Friday, March 31, 2017

*दारूल उलूम हनफिया वारिसुल उलूम क़स्बा बेलहरा जिला बाराबंकी यू.पी ((खादिम)) मुजीबुर्रहमान क़ादरी Saheb ki poste,,


POST=1



*_مدرسہ حنفیہ وارث العلوم_*
*_मदर्सा हनफिया वारिसुल उलूम_*


               *हिकायत*



*_हज़रत दाऊद अलैहिस्सलाम के ज़माने में एक बुढ़िया थी जिसने एक दिन तीन रोटियां सदक़ा की,मगर उसके बाद अचानक एक हवा चली और उसका बचा हुआ पूरा आटा हवा में उड़ गया,बुढ़िया को बहुत गुस्सा आया और वो हवा की शिकायत लेकर हज़रत दाऊद अलैहिस्सलाम की बारगाह में हाज़िर हुई,हज़रत दाऊद अलैहिस्सलाम ने हवा को बुलाया और पूछा कि तुमने इसका आटा क्यों उड़ाया तो हवा ने कहा इसके बारे में आप हवा के फरिश्ते से दरयाफ़्त करें फिर आपने हवा के फरिश्ते को बुलवाया और सवाल किया तो उसने कहा कि आप खुदा से पूछिए फिर आपने बारगाहे खुदावन्दी में अर्ज़ की तो मौला फरमाता है कि मेरा कोई भी काम अबस नहीं होता,समंदर में एक कश्ती जा रही थी उसमें चूहे ने सुराख कर दिया,कश्ती डूबने को हुई तो मैंने हवा को हुक्म दिया कि वो ये आटा उड़ाकर कश्ती में डाल दे ताकि वो लोग इससे कश्ती के सूराख को भर लें,चुनांचे उन्होंने ऐसा ही किया और वो सही सलामत किनारे पर पहुंच गए,हज़रत दाऊद अलैहिस्सलाम ने 3 लाख दीनार बुढ़िया को दिया और फरमाया कि ये तेरे सदक़े की बरकत है और खुदा का शुक्र अदा किया_*

*📕 नुज़हतुल मजालिस,जिल्द 1,सफह 162*


 *_एक मर्तबा हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम ने छत पर छिपकली को लटकते हुए देखा तो तो खुदा से पूछा कि ऐ मौला तूने छिपकली को किस लिए पैदा फरमाया तो मौला फरमाता है कि ऐ मूसा अभी तुमसे पहले ये छिपकली भी मुझसे यही पूछ रही थी कि ऐ मौला तूने मूसा को क्यों पैदा फरमाया है_*

*📕 शैतान की हिकायत,सफह 7*


*_एक बादशाह का एक वज़ीर जो कि बड़ा नेक बख्त था और बादशाह का बहुत ही अज़ीज़ भी था हमेशा हर काम में बादशाह के साथ ही रहता,उसकी आदत थी कि कुछ भी हो जाए मगर उसके मुंह से यही जुमला निकलता था कि "अल्लाह जो करता है अच्छा करता है" अजीब इत्तेफाक ये हुआ कि बादशाह ने किसी शहर पर हमले के लिए फौज भेजी मगर वहां उसे शिकस्त हुई,जब ये खबर बादशाह को दी गयी तो वज़ीर की ज़बान से यही निकला कि "अल्लाह जो करता है अच्छा करता है" खैर बादशाह ने वज़ीर की बात को अनसुना कर दिया,कुछ दिनों के बाद बादशाह की मां का इन्तेक़ाल हो गया और वज़ीर यही बोला कि "अल्लाह जो करता है अच्छा करता है" अबकी बादशाह को बड़ा गुस्सा आया मगर कुछ ना कहा,अचानक एक दिन किसी काम को करते हुए बादशाह की एक ऊंगली कटकर गिर गई बादशाह दर्द से तड़प उठा मगर जैसा कि वज़ीर का मामूल था उसकी ज़बान से यही निकला कि "अल्लाह जो करता है अच्छा करता है" अब बादशाह से ज़ब्त ना हो सका और उसने सिपाहियों को हुक्म दिया कि वज़ीर को काल कोठरी में डाल दे और रोज़ाना कोड़े लगाये जाएं,सिपाही वज़ीर को ले जाने लगे तब भी वज़ीर यही बोला कि "अल्लाह जो करता है अच्छा करता है" खैर 6 महीने गुज़र गए ज़ख्म तो भर ही गया मगर ऊंगली तो कट ही चुकी थी,फिर एक दिन बादशाह कहीं शिकार को गया उसके सिपाही साथ ही थे मगर शिकार के पीछे ऐसा घोड़ा दौड़ाया कि सिपाही कहां छूट गए पता ही नहीं चला,बादशाह जंगल में कहीं गुम हो गए और जहां पहुंचे वहां आदि-वासियों का डेरा था उन्हें पकड़ लिया गया,अब ये चिल्ला रहे हैं कि मैं बादशाह हूं मगर सुने कौन,उनके यहां बलि देने का भी कानून था सो इनको नहलाया धुलाया गया और बलि देने के लिए हाज़िर किया गया,मगर जैसे ही इन्हें लिटाया गया और गर्दन काटने वाले की नज़र बादशाह की कटी ऊंगली पर गयी तो वो चिल्लाने लगा और अपने सरदार से बादशाह की कटी हुई ऊंगली दिखाई,सरदार ने बादशाह को छोड़ दिया,ये गिरते पड़ते दरबार पहुंचे समझ तो गए थे कि कटी ऊंगली की वजह से ही बचे हैं,फौरन वज़ीर को जेल से निकलवाया गया,वज़ीर से बादशाह ने कहा कि इतना तो मेरी समझ में आ गया कि उस दिन अगर मेरी उंगली ना कटती तो आज गर्दन ना बचती ये मेरे लिए अच्छा हुआ मगर तुम पिछले 6 महीने से जेल में हो तुम्हारे हक़ में कैसे अच्छा हुआ तो वज़ीर ने जवाब दिया कि हुज़ूर मैं आपका खास था आपके हर काम में साथ देता था तो अगर मैं भी आपके साथ शिकार पर गया होता तो कटी हुई ऊंगली की वजह से आप तो बच जाते मगर मेरी गर्दन तो मारी जाती इसी लिए अल्लाह ने पहले ही मुझे सज़ा के तौर पर आपसे जुदा करवा दिया था,ये सुनकर बादशाह को भी उसकी बात पर यक़ीन आ गया कि "अल्लाह जो करता है अच्छा करता है"_*

*_अलहासिल कहना ये है कि मौला ने जो भी पैदा फरमाया है सब ही हिक़मत के तहत है और उसका कोई भी काम हिक़मत से खाली नहीं होता,लिहाज़ा बन्दे पर जो भी गुज़रे उसे हर हाल में अपने रब का शुक्र और सब्र ही करना चाहिए कि "अल्लाह जो करता है अच्छा करता है"_*
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                   *जोइन*

*_मदर्सा हनफिया वारिसुल उलूम*
         *9628204387*


*मुजीबुर्रहमान क़ादरी*

 
              *खादिम*


*दारूल उलूम हनफिया वारिसुल उलूम क़स्बा बेलहरा ज़िला बाराबंकी यू.पी*







POST=2



 *_مدرسہ حنفیہ وارث العلوم_*
*_मदर्सा हनफिया वारिसुल उलूम_*


               *दुरूदे पाक*


*_1.  जो कोई एक बार दुरूदे पाक पढ़ता है तो उसके दुरूद से एक परिंदा पैदा होता है जिसके 70000 बाज़ू हैं हर बाज़ू में 70000 पर हैं हर पर में 70000 चेहरे हैं हर चेहरे में 70000 मुहं हैं हर मुहं में 70000 ज़बान है और वो हर ज़बान से 70000 बोलियों में रब की तस्बीह पढ़ता है और इन तमाम तस्बीहों का सवाब उस पढ़ने वाले के नामये आमाल में लिखा जाता है_*

*📕 नूर से ज़हूर तक,सफह 15*

*सल्लललाहो तआला अलैही वसल्लम*

 *_जो नबी पर एक बार दुरूद शरीफ पढ़े तो मौला तआला उस पर 10 रहमते नाज़िल फरमायेगा उसके 10 गुनाह मिटा देगा और उसके 10 दर्जे बुलन्द करेगा और दूसरी रिवायत में है कि मौला और उसके फरिश्ते उस पर 70 मर्तबा दुरूद पढ़ते हैं_*

*📕 बहारे शरीयत,हिस्सा 3,सफह 76*

*सल्लललाहो तआला अलैही वसल्लम*

*_जो रोज़ाना 100 बार नबी करीम सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम पर दुरूदे पाक पढ़े और शहादत की तमन्ना रखे तो वह शहीद मरेगा_*

*📕 बहारे शरीयत,हिस्सा 4,सफह 174*

*सल्लललाहो तआला अलैही वसल्लम*

*_जो कोई दिन भर में 1000 बार दुरूद शरीफ पढ़ेगा तो वो उस वक़्त तक नहीं मरेगा जब तक की अपनी जगह जन्नत में ना देख ले_*

*📕 खज़ीनये दुरूद शरीफ,सफह 14*

*सल्लललाहो तआला अलैही वसल्लम*

 *_जब भी जहां भी और जितनी बार भी नबी करीम सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम का नाम मुबारक आये तो हर बार आप पर दुरूदे पाक पढ़ना बाज़ उल्मा के नज़दीक वाजिब है और ऐसा ना करने वालों पर सख्त वईदें आई है_*

*📕 बहारे शरीअत,हिस्सा 1,सफह 21*

*सल्लललाहो तआला अलैही वसल्लम*

*_हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम फरमाते हैं कि जिसने रमज़ान पाया और अपनी बख्शिश ना करा सका वो हलाक हुआ जिसने अपने वालिदैन को पाया और उनकी खिदमत करके अपनी बख्शिश ना करा सका वो हलाक हुआ और जिसके पास मेरा ज़िक्र हुआ और उसने मुझपर दुरूद ना पढ़ा वो हलाक हुआ_*

*📕 बहारे शरीअत,हिस्सा 5,सफह 97*

*सल्लललाहो तआला अलैही वसल्लम*

 *_बाज़ लोग हिंदी में नामे अक़्दस के आगे बजाये सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम लिखने के सिर्फ सल्ल0 लिखते हैं या अंग्रेजी में s.a.w और उर्दू में ص ل ع م लिख देते हैं ऐसा करना सख्त नाजायज़ो हराम है_*

*📕 बहारे शरीअत,हिस्सा 1,सफह 21*

*सल्लललाहो तआला अलैही वसल्लम*

 *_हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम फरमाते हैं कि जिसने मेरे नाम के साथ दुरूदे पाक लिखा तो जब तक वो वहां लिखा रहेगा फरिश्ते उसके लिए मग़फिरत की दुआ करते रहेंगे और उसका सवाब जारी रहेगा_*

*📕 कुर्बे मुस्तफा,सफह 79-80*

*सल्लललाहो तआला अलैही वसल्लम*

*_जिसने दुआ के अव्वल और आखिर में दुरूद शरीफ पढ़ा तो उसकी दुआ रद्द नहीं की जाती_*

*📕 क़ुर्बे मुस्तफा,सफह 75*

*सल्लललाहो तआला अलैही वसल्लम*

 *_जिसने दुरूदे पाक को ही अपना वज़ीफा बना लिया तो ये उसकी दुनिया और आखिरत के लिए तन्हा काफी है और उसको दूसरे किसी वज़ीफे की जरूरत नहीं है_*

*📕 बहारे शरीयत,हिस्सा 3,सफह 77*

*सल्लललाहो तआला अलैही वसल्लम*

*हदीसे पाक में आता है कि इल्म फैलाने वाले के बराबर कोई आदमी सदक़ा नहीं कर सकता*

*📕 क़ुर्बे मुस्तफा,सफह 100*

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                  *जोइन*

*मदर्सा हनफिया वारिसुल उलूम*

        *9628204387*

*मुजीबुर्रहमान क़ादरी*

           
         *खादिम*

*दारुल उलूम हनफिया वारिसुल उलूम क़स्बा बेलहरा ज़िला बाराबंकी यू.पी*







POST=3



 *_مدرسہ حنفیہ وارث العلوم_*
*_मदर्सा हनफिया वारिसुल उलूम_*


          *छांई और मुहासे*


*_चेहरे पर एक किस्म का सियाह दाग या धब्बा पड़ जाता है उसे छांई कहते हैं,कुछ नुस्खे दर्ज हैं_*

*_अनार का छिल्का और संतरे का छिल्का दोनों को अंगूर के सिरके में भिगोकर रखें और इन छिल्कों से दाग पर मालिश करें,छांई दूर करने के लिए बेहद मुफीद है_*

*📕 गंजीनये तबीब,सफह 167*

*_कागज़ी नींबू में हल्दी मिलाकर मलें फायदा होगा_*

📕 *इलाजुल गुरबा,सफह 190*

 *_चुकंदर और फिटकरी दोनों को पीसकर प्याज के रस में मिलाकर लगाने से बहुत जल्द फायदा होता है_*

*📕 मुजर्बाते सुयूती,87*

*और अगर चेहरे पर मुंहासे हो तो ये इस्तेमाल करें*

*बथुवे की जड़ को गाय के दूध में पीसकर लगाने से मुंहासे दूर हो जाते हैं*

*कलौंजी को सिरके में पीस लें रात को लगाएं और सुबह को मुंह धो लिया करें*

*सरस की छाल और काली तिल दोनों को बराबर सिरके में पीसकर चेहरे पर लगाएं इंशा अल्लाह मुहासे दूर हो जायेंग*े

📕 *इलाजुल गुरबा,सफह 188*

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                   *जोइन*

*_मदर्सा हनफिया वारिसुल उलूम_*
        *9628204387*

*मुजीबुर्रहमान क़ादरी*


            *खादिम*


*दारूल उलूम हनफिया वारिसुल उलूम क़स्बा बेलहरा ज़िला बाराबंकी यू.पी*







POST=4



 *_مدرسہ حنفیہ وارث العلوم_*
*_मदर्सा हनफिया वारिसुल उलूम_*


         *_ईमान किया है_*



*_ईमान कुर्ता पैजामा पहनने दाढ़ी रखने या टोपी लगाने का नाम नहीं है बल्कि ईमान सिर्फ और सिर्फ ये हैं कि अपने नबी से अपनी जान से भी ज़्यादा मुहब्बत की जाये_*

 *_ये मैं नहीं कह रहा बल्कि खुद हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम इरशाद फरमाते हैं कि_*

*_तुम में से कोई उस वक़्त तक मुसलमान नहीं होगा जब तक कि मैं उसे उसके मां-बाप उसकी औलाद और सबसे ज़्यादा महबूब ना हो जाऊं_*

*📕 बुखारी,जिल्द 1,सफह 7*

*_और मुहब्बत में सबसे खास बात क्या होती है जानते हैं ये कि मोहिब अपने महबूब की सारी कमियां नज़र अंदाज़ करके फक़त उसकी खूबियां ही बयान करता है हालांकि ये आम मुहिब और उनके महबूब सब के सब सर से लेकर पैरों तक ऐबों का मुजस्समा होते हैं,मगर रब के वो महबूब हमारे और आपके आक़ा जनाबे मुहम्मदुर रसूल अल्लाह सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम जो कि हर ऐब से पाक और मासूम पैदा किये गए हैं मगर कुछ हरामखोर उनके अंदर भी ऐब तलाश करते फिरते हैं और दावा मुसलमान होने का करते हैं,जबकि अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त क़ुरान मुक़द्दस में इरशाद फरमाता है कि_*

*_खुदा की कसम खाते हैं कि उन्होंने नबी की शान में गुस्ताखी नहीं की अल्बत्ता बेशक वो ये कुफ्र का बोल बोले और मुसलमान होकर काफिर हो गए_*

*📕 पारा 10,सूरह तौबा,आयत 74*

*_अब हर पढ़े लिखे और बे पढ़े लिखे से ये सवाल है कि नीचे वहाबियों की किताबों से दी गई इबारतें पढ़ें या पढ़वाकर सुनले और अक़्ल से फैसला करे कि क्या ये कलिमात हुज़ूर की शान में गुस्ताखी के नहीं हैं और क्या ऐसा कहने वालों या या ऐसा कहने वालों को जो सही कहे क्या उन्हें मुसलमान समझा जा सकता है,पढ़िए_*

*! तक़वियतुल ईमान सफह 27 पे* हुज़ूर को चमार से ज़्यादा ज़लील लिखा,माज़ अल्लाह,क्या ये गुस्ताखी नहीं है

! *तक़वियतुल ईमान सफह 56 पे* लिखा कि नबी को किसी बात का इख़्तियार नहीं है,माज़ अल्लाह,क्या ये गुस्ताखी नहीं है

! *तक़वियतुल ईमान सफह 75 पे* लिखा कि नबी के चाहने से कुछ नहीं होता,माज़ अल्लाह,क्या ये गुस्ताखी नहीं है

! *तहज़ीरुन्नास सफह 8* पे लिखा कि उम्मती भी नबी से अमल में आगे बढ़ जाते हैं,माज़ अल्लाह,क्या ये गुस्ताखी नहीं है

! *तहज़ीरुन्नास सफह 43 पे* लिखा कि हुज़ूर खातेमुन नबीयीन नहीं है,माज़ अल्लाह,क्या ये गुस्ताखी नहीं है

! *बराहीने कातिया सफह 122 पे* लिखा कि हुज़ूर का इल्म शैतान से भी कम है,माज़ अल्लाह,क्या ये गुस्ताखी नहीं है

! *हिफज़ुल ईमान सफह 7* पे लिखा कि हुज़ूर का इल्म तो जानवरों की तरह है,माज़ अल्लाह,क्या ये गुस्ताखी नहीं है

! *सिराते मुस्तक़ीम सफह 148 पे* लिखा कि नबी का ख्याल नमाज़ में लाना गधे और बैल से भी बदतर है,माज़ अल्लाह,क्या ये गुस्ताखी नहीं है

*_अगर ये सब बातें इन वहाबियों के बाप-दादा की शान में की जाए तो क्या वो इसे अच्छा समझेंगे नहीं और यक़ीनन नहीं तो फिर कैसे एक मुसलमान इन काफिरों को अच्छा समझे,जिसने मेरे आक़ा की शान में गुस्ताखी की और उन्हें ईज़ा दी तो उसके लिए रब का ये फरमान है,पढ़ लें_*

*_वो जो रसूल अल्लाह को ईज़ा देते हैं उनके लिए दर्दनाक अज़ाब है_*

*📕 पारा 10,सूरह तौबा,आयत,61*

*_और फुक़्हा का ऐसे बद बख्तों के बारे में क्या कहना है ये भी पढ़ें_*

*_जो किसी नबी की गुस्ताखी के सबब काफिर हुआ तो किसी भी तरह उसकी तौबा क़ुबूल नहीं और जो कोई उसके कुफ्र में या अज़ाब में शक करे वो खुद काफिर है_*

*📕 रद्दुल मुख़्तार,जिल्द 3,सफह 317*

*_और मेरे आलाहज़रत अज़ीमुल बरक़त रज़ियल्लाहु तआला अन्हु फरमाते हैं कि_*

*_किसी भी काफिर की तौबा क़ुबूल है मगर जो हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम की शान में गुस्ताखी करके काफिर हुआ तो किसी भी अइम्मा के नज़दीक उसकी तौबा क़ुबूल नहीं,अगर इस्लामी हुक़ूमत हो तो ऐसो को क़त्ल ही किया जाए अगर चे उनकी तौबा सच्ची ही क्यों ना हो अगर तौबा सही हुई तो क़यामत के दिन बख्शा जायेगा मगर यहां उसकी सज़ा मौत ही है_*

*📕 तम्हीदे ईमान,सफह 42*

*_अब सोचिये खुदा और रसूल के ये मुजरिम जो क़त्ल के मुस्तहिक़ हो चुके उनसे बात करना उनसे सलाम जवाब करना उनके साथ खाना पीना उनके यहां रिश्तेदारी करना किस हद तक शर्म की बात है,और क्या इस मेल-जोल पर हम खुदा का क़हर मोल नहीं ले रहे हैं ये आखिरी रिवायत पढ़ लीजिए समझदार के लिए बहुत है_*

*_मौला ने हज़रत जिब्रील अलैहिस्सलाम को हुक्म दिया कि फलां बस्ती पर अज़ाब नाज़िल करदे तो जिब्रील अलैहिस्सलाम बोले कि मौला उस बस्ती में तेरा एक नेक बन्दा है जो एक आन के लिए भी तेरी इबादत से ग़ाफिल ना रहा,मौला फरमाता है कि फिर भी सब पर अज़ाब नाज़िल कर बल्कि पहले उस नेक पर अज़ाब नाज़िल कर क्योंकि उसने गुनाह को देखकर भी अनदेखा कर दिया_*

*📕 अशअतुल लमआत,जिल्द 4,सफह 183*

*_जब कोई क़ौम में गुनाह होता है और कोई नेक बन्दा रोकने की ताक़त रखने के बावजूद भी उसे ना रोके तो सब अज़ाबे इलाही के मुस्तहिक़ होंगे_*

*📕 मिश्कात,सफह 437*

*_अस्तग़फ़ेरुल्लाह,क्या ही इबरतनाक रिवायत है,सिर्फ गुनाह को गुनाह और मुजरिम को मुजरिम ना समझने पर अज़ाब की वईद आई है तो अंदाजा लगाइये कि जो खुद उस गुनाह में शामिल हो जाए वो कैसे मौला के अज़ाब से बचेगा,और आजकल तो ऐसे मुसलमानों की कसरत है जो दुश्मनाने रसूल को दुश्मन ही नहीं समझते हालांकि अगर कोई उनके मां-बाप को गाली देदे तो हाथा पाई पर उतर आएंगे मगर जो नबी की शान में गुस्ताखियां करते फिरते हैं उन्हें अपना अज़ीज़ समझते हैं,मौला तआला से दुआ है कि मुसलमानों को अपने हबीब से सच्ची मोहब्बत करने की तौफीक़ अता फरमाए और हम सबको मसलके आलाहज़रत पर क़ायम रखे और इसी पर मौत नसीब अता फरमाये-आमीन_*

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                       *जोइन*

 *_मदर्सा हनफिया वारिसुल उलूम_*

        *_9628204387_*


*मुजीबुर्रहमान क़ादरी*


            *खादिम*


*दारूल उलूम हनफिया वारिसुल उलूम क़स्बा  बेलहरा ज़िला बाराबंकी यू.पी*







POST=5



 *_مدرسہ حنفیہ وارث العلوم_*
*_मदर्सा हनफिया वारिसुल उलूम_*


       *ईमान और कुफ़्र*


*_हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम फरमाते हैं कि ईमान ये है कि तू इस बात की गवाही दे कि अल्लाह के सिवा कोई माअबूद नहीं और मुहम्मद सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम अल्लाह के रसूल हैं और ईमान ये है कि तू खुदाए तआला और उसके रसूलों उसके फ़रिश्तों उसकी किताबों और क़यामत के दिन और तक़दीर पर यक़ीन रखे_*

*📕 मुस्लिम,जिल्द 1,सफह 438*

*_यानि जो बात हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम से क़तई व यक़ीनी तौर पर साबित हो उसकी तस्दीक़ करना ईमान है और उनसे इनकार करना कुफ़्र है_*

*📕 अशअतुल लमआत,जिल्द 1,सफह 38*
*📕 शरह फ़िक़्हे अकबर,सफह 86*
*📕 तफ़सीरे बैदावी,सफह 23*

*_अहले सुन्नत वल जमाअत के सही व मुस्तनद अक़ायद जानने के लिए हुज़ूर सदरुश्शरीया मौलाना अमजद अली आज़मी अलैहिर्रहमा की किताब बहारे शरीयत हिस्सा अव्वल का मुताला ज़रूर करें जो कि हिंदी उर्दू इंग्लिश हर ज़बान में मौजूद है,अक़ायद का पूरा मसायल एक लंबा और तवील मज़मून है जिसका यहां दर्ज कर पाना बहुत ही मुश्किल है मैं यहां कुछ मुख़्तसर ज़िक्र करता हूं_*

*_अल्लाह एक है उसका कोई शरीक नहीं ना ज़ात में ना सिफात में ना अफ़आल में ना अहकाम में और ना अस्मा में,ना उसका कोई बाप है और ना बेटा,वो अज़्ली व अब्दी है यानि जब कुछ ना था तो वो था और जब कुछ ना रहेगा तब भी वो होगा एक उसके सिवा सब कुछ हादिस है यानि फ़ना है_*

*_! वो सबसे बे परवाह है यानि किसी का मोहताज नहीं सारा जहान उसका मोहताज है_*

*_! वो हर ऐब से पाक है मसलन झूट,दग़ा,खयानत,ज़ुल्म,जहल,बेहयाई_*

*_! वो जिस्म जिस्मानियत से पाक है मसलन हयात,क़ुदरत,सुनना,देखना,कलाम,इल्म,इरादा सब उसकी सिफ़ात है मगर इसके लिए उसे ना तो जिस्म की ज़रूरत है ना रूह की ना कान की और ना आंख की_*

*_! वो ज़माना और मकान से पाक है,लिहाज़ा उल्मा इसी लिए ऊपर वाला कहने से मना फरमाते हैं_*

*_! हर भलाई और बुराई का पैदा करने वाला वही है मगर किसी गुनाह की निस्बत उसकी तरफ करना सख़्त हिमाक़त है बल्कि अपने नफ़्स की शरारत कहें_*

*_! उसके हर काम में कसीर हिकमतें होती हैं भले ही वो हमें अच्छी लगे या बुरी,लिहाज़ा क़ुदरत के किसी भी फेअल को हमेशा अपने लिए भला ही जानें_*

*_किसी भी अम्बिया की शान में अदना सी गुस्ताखी या बे अदबी करना कुफ़्र है_*

*_! तमाम अंबिया मासूम हैं यानि उनसे गुनाह का होना मुहाल यानि नामुमकिन है,और उनसे जो भी लग्ज़िशें हुई उनका ज़िक्र सिवाये क़ुरान की तिलावत या हदीस की रिवायत के अलावा हराम हराम और सख्त हराम है_*

*_! नुबूव्वत विलायत की तरह कसबी नहीं कि कोई भी अमल के ज़रिये नुबूव्वत हासिल कर ले,लिहाज़ा जो ऐसा जाने काफिर है_*

*_! कोई वली कितने ही बड़े मर्तबे का हो हरगिज़ किसी भी नबी की बराबरी नहीं कर सकता सो जो अपने आपको किसी नबी से बराबरी का दावा करे काफिर है_*

*_! अम्बिया की तादाद मुतअय्यन करना जायज नहीं कि इस मसले पर इख़्तिलाफ़ बहुत हैं लिहाज़ा जो भी तादाद बतायी जाए मसलन 124000 या 224000 तो वो कमो-बेश के साथ कही जाए_*

*_! हुज़ूर खातेमुन नबीयीन हैं जो उनके बाद किसी को नुबूव्वत का मिलना जाने काफिर है_*

*_! हुज़ूर को जिस्म ज़ाहिरी के साथ मेराज हुई,जो मस्जिदे हराम से मस्जिदे अक्सा तक के सफर का इन्कार करे काफिर है और आगे का मुनकिर गुमराह_*

*_! हुज़ूर को हर किस्म की शफाअत हासिल है जो इन्कार करे गुमराह है_*

*_! हुज़ूर मालिको मुख्तार हैं जो इन्कार करे काफिरो गुमराह है_*

*_फ़रिश्ते भी मासूम होते हैं इनके अलावा तमाम औलिया व अब्दाल गुनाह से महफूज़ होते हैं मासूम नहीं_*

*_! किसी भी फ़रिश्ते की तनकीस कुफ्र है मसलन अपने किसी दुश्मन को देखकर ये कहना कि मलकुल मौत आ गया करीब कल्मये कुफ्र है_*

*_तमाम आसमानी किताबों पर ईमान लाना ज़रूरी है,मगर हुक्म अब सिर्फ क़ुरान का ही चलेगा_*

*_! जो कुरान को ना मुक़म्मल जाने काफिर है_*

*_! क़ुरान की आयतों से मज़ाक करना भी कुफ्र है मसलन दाढ़ी मुंडा कल्ला सौफा पेश करे या भूखा कहे कि मेरा पेट क़ुल हुवल्लाह पढ़ता है_*

*_ये अक़ीदा रखना कि मरने के बाद रूह किसी और जिस्म में या जानवर में चली गयी है कुफ्र है_*

*_! हश्र रूह और जिस्म दोनों का होगा जो ये कहे कि अज़ाब या हिसाब सिर्फ रूह का होगा जिस्म का नहीं काफिर है_*

*_अज़ाबे क़ब्र,हश्र,जन्नत,दोज़ख सब हक़ हैं_*

*_यूंही आमाले दीन मसलन किसी से नमाज़ पढ़ने को कहा और उसने जवाब दिया कि बहुत पढ़ ली कुछ नहीं होता काफिर हो गया_*

*_! रमज़ान के रोज़े रखने को कहा और जवाब दिया कि रोज़ा वो रखे जिसके घर खाने को ना हो काफिर हो गया_*

*_! यूंही एक हल्की सुन्नत मसलन नाख़ून काटने को कहा तो जवाब दिया कि नहीं काटता अगर चे सुन्नत ही क्यों ना हो काफिर हो गया_*

*_! यूंही किसी आलिम की तौहीन इसलिये की ये आलिमे दीन है कुफ्र है_*

*_! यूंही किसी काफिर के त्यौहार मसलन होली,दीवाली,राम-लीला,जन-माष्ट्मी के मेलों में शामिल होकर शानो शौकत बढ़ाना भी कुफ्र है_*

*_! यूंही किसी बदमज़हब फिरके को पसंद करना या मज़ाक में ही अपने आपको उन बातिल फिरकों का बताना कुफ़्र है_*

*_! युंहि किसी मुसलमान को काफ़िर कहना कुफ़्र है उसी तरह किसी कफ़िर को मुसलमान कहना भी कुफ़्र ही है,याद रखें कि वहाबी देवबन्दी क़ादियानी खारजी राफजी अहले हदीस जमाते इसलामी और जितने भी 72 बद-मज़हब फ़िरके हैं सब काफ़िरो मुर्तद हैं_*

*📕 बहारे शरीयत,हिस्सा 1,सफह 1----79*
*📕 अनवारुल हदीस,सफह 90-91*
*📕 अहकामे शरीयत,हिस्सा 2,सफह 163*
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                 *जोइन*

*_मदर्सा हनफिया वारिसुल उलूम_*
          *9628204387*

         *मुजीबुर्रहमान क़ादरी*

                    *खादिम*

*दारूल उलूम हनफिया वारिसुल उलूम क़स्बा बेलहरा जिला बाराबंकी यू.पी*






POST=6



 *_مدرسہ حنفیہ وارث العلوم_*
*_मदर्सा हनफिया वारिसुल उलूम_*


                 *अक़ायद*


  *खिलाफते सिद्दीक़े अकबर*


*_अहले सुन्नत वल जमात का इस बात पर इज्माअ है कि अम्बिया अलैहिस्सलातो वत्तसलीम के बाद ज़मीन पर सबदे बड़ा मर्तबा अगर किसी का है तो वो है सिद्दीक़े अकबर का फिर फारूक़े आज़म का फिर उसमान ग़नी और फिर मौला अली रिज़वानुल्लाहि तआला अलैहिम अजमईन का,और यही तर्तीब नबी अलैहिस्सलाम के बाद खलीफा बनने की भी रही_*

*_मगर शिया यानि राफजियों का ये कहना कि मौला अली खलीफये अव्वल थे और उनकी खिलाफत को खुल्फये सलासा ने ग़सब कर लिया निहायत ही गलत और बे महल है,बल्कि कुछ मानों में उनके इसी ऐतराज़ की ज़द में खुद मौला अली भी आ जाते हैं,ज़ैल में कुछ हवाले क़ुरानो हदीस व इज्माअ से पेश करता हूं मुलाहज़ा फरमायें_*

_*1⃣  बेशक अल्लाह के यहां तुममें सबसे ज़्यादा इज़्ज़त वाला वो है जो तुममें सबसे ज़्यादा परहेज़गार है*_

*📕 पारा 26,सूरह हुजरात,आयत 13*

_*इस आयत से उन लोगों की इस बात का रद्द होता है जो मौला अली रज़ियल्लाहु तआला अन्हु को हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम के चचा ज़ाद भाई और आपका दामाद होने पर खिलाफत का मुस्तहिक़ जानते हैं,और जब रब ने खुद फरमा दिया कि सबसे बड़ा परहेज़गार ही उसके सबसे ज़्यादा क़रीब है तो फिर मौला से ही पूछ लेते हैं ऐ मौला सबसे बड़ा परहेज़गार कौन है ये भी बता दे तो मौला फरमाता है कि*_

*_2⃣  और उससे बहुत दूर रखा जायेगा जो सबसे बड़ा परहेज़गार है.जो अपना माल देता है कि सुथरा हो.और किसी का उसपर कुछ एहसान नहीं कि जिसका बदला वो दे.सिर्फ अपने रब की रज़ा चाहता है जो सबसे बुलंद है और बेशक क़रीब है कि वो राज़ी होगा_*

*📕 पारा 30,सूरह वल्लैल,आयत 17-21*

*_इस आयत मे मौला ने सिद्दीक़े अकबर रज़ियल्लाहु तआला अन्हु को सबसे बड़ा परहेज़गार कहा,इसका शाने नुज़ूल ये है कि हज़रते सिद्दीक़े अकबर रज़ियल्लाहु तआला अन्हु ने हज़रते बिलाल को बहुत ज़्यादा कीमत देकर खरीदा और आज़ाद कर दिया क्योंकि हज़रते बिलाल को इस्लाम क़ुबूल करने पर काफिर बहुत ज़्यादा ईज़ा दिया करते थे,जब काफिरों ने इतनी बड़ी कीमत पर उनको खरीदकर आज़ाद करते देखा तो कहने लगे कि शायद बिलाल का कुछ एहसान होगा सिद्दीक़े अकबर पर जिसकी वजह से ऐसा किया होगा,तो ये आयत नाज़िल हुई और मौला ने साफ फरमा दिया कि सिद्दीक़ पर किसी का कोई एहसान नहीं बल्कि वो सिर्फ मेरी रज़ा के लिए ऐसा करता है_*

*📕 तफसीरे खज़ाएनुल इर्फान,सफह 708*

_*3⃣  तुममे बराबर नहीं वो जिन्होंने फतह मक्का से क़ब्ल खर्च किया*_

*📕 पारा 27,सूरह हदीद,आयत 10*

 _*इस आयत से मालूम हुआ कि सहाबा में भी आपस में मर्तबे हैं और सब बराबर नहीं है,और सबसे पहले जिसने माल राहे खुदा में खर्च किया वो कोई और नहीं बल्कि सिद्दीक़े अकबर रज़ियल्लाहु तआला अन्हु ही हैं*_

*📕 तफसीरे खज़ाएनुल इर्फान,सफह 726*

_*4⃣  सिर्फ दो जान से जब वो ग़ार में थे*_

*📕 पारा 10,सूरह तौबा,आयत 40*

*_फुक़हा फरमाते हैं कि 124000 सहाबा इकराम हैं मगर किसी भी सहाबी की सहाबियत का इनकार कुफ्र नहीं है सिवाए सिद्दीक़े अकबर रज़ियल्लाहु तआला अन्हु के,कि उनकी सहाबियत क़ुरान से साबित है और कुरआन का इनकार कुफ्र है_*

*📕 तफसीरे खज़ाएनुल इर्फान,सफह 230*

*_ऐसी बहुत सी आयतें हैं जिनसे सिद्दीक़े अकबर का अफज़ल सहाबी होना साबित होता है मगर बस इतने पर ही इक्तिफा करता हूं कि मौज़ू बहुत ज़्यादा तवील हो जायेगा,अब कुछ हदीस की भी सैर कर लिया जाए_*

*_5⃣  खुदा ने बाज़रियये जिब्रील हज़रते अबू बक्र सिद्दीक़ को सलाम कहलवाया_*

*📕 तफसीरे अज़ीज़ी,पारा 30,सफह 208*

_*6⃣  हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम इरशाद फरमाते हैं कि मेरे दो वज़ीर आसमान में हैं जिब्रील व मीकाईल और दो ज़मीन पर हैं अबु बक्र व उमर*_

*📕 तिर्मिज़ी,जिल्द 2,सफह 208*

_*7⃣  हज़रते मौला अली रज़ियल्लाहु तआला अन्हु के बेटे हज़रत सय्यदना इमाम मुहम्मद बिन हनफिया फरमाते हैं कि मैंने अपने वालिद से अर्ज़ की कि हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम के बाद सब आदमियों में सबसे ज़्यादा अफज़ल कौन है तो फरमाया अबु बक्र मैंने अर्ज़ की फिर तो फरमाया उमर*_

*📕 बुखारी,जिल्द 1,सफह 518*

_*8⃣  एक शख्स ने मौला अली रज़ियल्लाहु तआला अन्हु से कहा कि ऐ अमीरुल मोमेनीन आपके होते हुए अनसार व मुहाजेरीन ने किस तरह अबू बक्र व उमर को आप पर मुक़द्दम कर दिया जब कि मर्तबे में आप उनसे बेहतर हैं तो मौला अली रज़ियल्लाहु तआला अन्हु फरमाते हैं कि अगर ये बात ना होती कि अल्लाह मोमिन को नाजायज़ अमल से बचा लेता है तो मैं तुझे क़त्ल कर देता*_

*📕 कंज़ुल उम्माल,जिल्द 6,सफह 318*

_*9⃣  मौला अली रज़ियल्लाहु तआला अन्हु के खिलाफत के ज़माने में कुछ लोगों ने आपको सिद्दीक़े अकबर व फारूक़े आज़म से अफज़ल कहा जिस पर आप फरमाते हैं कि इस बारे में अगर मैंने पहले से हुक्म सुना दिया होता तो ज़रूर सज़ा देता*_
_*मगर आजसे जिसको ऐसा कहते हुए सुनूंगा तो मेरे नज़दीक वो फितना फैलाने वाला कमीना होगा और उसकी सज़ा 80 कोड़े होगी,बेशक नबी के बाद सबसे अफज़ल अबु बक्र हैं फिर उमर,उस महफिल में हज़रते इमाम हसन रज़ियल्लाहु तआला अन्हु मौजूद थे आप फरमाते हैं कि खुदा की कसम अगर इसके बाद मौला किसी का नाम लेते तो ज़रूर उसमान का लेते*_

*📕 किताबुल सुन्नत,सफह 12*
*📕 ग़ायतुत्तहक़ीक़,सफह 13*

_*🔟 दो शख्स ने अमीरुल मोमेनीन मौला अली रज़ियल्लाहु तआला अन्हु से उनकी खिलाफत के बारे में सवाल किया कि क्या ये कोई ओहदा या वादा हुज़ूरे अक़दस की तरफ से है या आपकी राय है तो फरमाया हमारी राय है रहा ये कि क्या मेरे लिए हुज़ूर ने कोई ओहदा या मनसब मुक़र्रर फरमा दिया हो तो खुदा की कसम ऐसा नहीं,अगर हुज़ूर की तरफ से मेरे पास कोई ओहदा होता तो मैं अबू बक्र व उमर को मेम्बरे रसूल पर बैठने ना देता और बेशक उनसे जंग करता अगरचे कि अपनी चादर के सिवा किसी को साथी ना पाता,बात ये हुई कि हुज़ूर माज़ अल्लाह कोई क़त्ल ना हुए और ना अचानक इन्तेक़ाल फरमाया बल्कि कई रात दिन हुज़ूर मर्ज़ में रहे मुअज़्ज़िन आकर अज़ान दे जाता और हुज़ूर अबू बक्र को इमामत के लिए मुंतखिब करते और बेशक मैं कहीं गायब ना था और खुदा की कसम अज़्वाजे मुतहहरात में से एक बीवी ने ये मामला अबु बक्र से फेरना चाहा तो हुज़ूर ने गज़ब का इज़हार किया और अबू बक्र को इमामत का हुक्म दिया,फिर जब हुज़ूर का इन्तेक़ाल हुआ तो हमने अपने कामो पर नज़र की तो खिलाफत के लिए उसको पसंद किया जिसको हुज़ूर ने हमारे दीन के लिए मुंतखिब फरमाया था लिहाज़ा हमने अबु बक्र से बैयत की और वो उसके लायक थे,पस मैंने उनको उनका हक़ दिया और उनकी इताअत लाज़िम जानी,और उनके साथ लश्करों में जिहाद किया जब वो बैतुल माल से कुछ देते तो मैं ले लेता और जब लड़ाई पर भेजते तो मैं जाता और उनके सामने मुजरिमो को अपने कोड़े से सज़ा देता फिर यही मज़मून हज़रते उमर व हज़रते उस्मान के बारे में फरमाया*_

*📕 कंज़ुल उम्माल,जिल्द 3,सफह 141*

*_ये तो हुई क़ुरानो हदीस से फज़ायल की बात,अब चलते हैं राफजियों के कुछ सवालों की तरफ जिनका जवाब मुलाहज़ा फरमायें और वो भी उन्ही की किताबों से_*

*सवाल*

_मौला अली रज़ियल्लाहु तआला अन्हु हुज़ूर सल्लललाहो तआला  वसल्लम के चचा ज़ाद भाई और आपके दामाद भी थे लिहाज़ा खिलाफत पर पहला हक़ उन्हीं का था_

*जवाब*

_ऊपर गुज़र चुका कि अल्लाह और उसके रसूल ने नस्ब को नहीं बल्कि तक़वा व परहेज़गारी को मुक़द्दम रखा है_

*सवाल*

- खुल्फाये सलासा ने मौला अली रज़ियल्लाहु तआला अन्हु की खिलाफत हड़प ली

*जवाब*

- तो मौला अली ने तलवार क्यों नहीं उठाई

*सवाल*

- जब तक मददगार ना हों जंग वाजिब नहीं और अली अलैहिस्सलाम के पास मददगार नहीं थे

*📕 अखबारे सदाक़त,सफह 10,5/1/1956*

*जवाब* -

मददगार नहीं थे,मगर आपकी किताबों में तो कुछ और ही लिखा है,पढ़ लीजिए

*जिस्मानी ताक़त बयान करते हुए लिखते हैं कि*

*मौला अली फरमाते हैं कि खुदा की कसम अगर मैं तन्हा मुक़ाबला करूं और वो तमाम रूए ज़मीन भर तब भी मुझे कुछ परवाह ना होगी और ना मैं घबराऊंगा*

*📕 नहजल बलागा,जिल्द 2,सफह 124*

*रूहानी ताक़त बयान करते हुए लिखते हैं कि*

*आपके पास असाये मूसवी सुलेमानी अंगूठी और इस्मे आज़म भी था*

*📕 उसूले काफी,सफह 40-41*

*आपके लश्कर के बारे में लिखते हैं कि*

*_हुज़ूर का विसाल हुआ तो फौरन ही हज़रते अब्बास व अबु सुफियान जो कि तमाम मक्का वालों के सरदार थे आपके पास बैयतो खिलाफत के लिए आये मगर मौला अली रज़ियल्लाहू तआला अन्हु ने क़ुबूल ना किया_*

*📕 नहजल बलागा,जिल्द 1,सफह 45*

*जनाबे अमीर के साथ जवानाने बनी हाशिम और क़बीलये बनी हनीफ भी था*

*📕 मजालिसे मोमेनीन,सफह 52*

*सअद बिन उबादा जो कि अन्सार के क़बीले का सरदार था वो भी अमीर के साथ था,और सअद की क़ूवत का हाल ये था कि खुल्फये सलासा बावजूद अपनी शानो शौकत के सअद पर ग़ल्बा नहीं पा सकते थे_*

*📕 मजालिसे मोमेनीन,सफह 101*

*_इनके अलावा खालिद बिन सईद,मिक़दाद,अबु ज़र,सलमान,बुरिद,अम्मार,अबू हाशिम,उस्मान बिन हनीफ,खुज़ैमा बिन साबित,अबि बिन कअब,अबु अय्यूब अंसारी,बिलाल,ओसामा बिन ज़ैद,हज़रते अब्बास व तमाम बनी हाशिम हत्ता कि 12000 का लश्करे जर्रार भी अमीर के साथ था और इसमें से 8000 तो खास मदीने में मौजूद था_*

*📕 हयातुल क़ुलूब,जिल्द 2,सफह 588*

_*अब आप खुद बतायें कि जिसके बदन में इतनी ताक़त हो कि खैबर का 32 टन का दरवाज़ा हाथों से उखाड़कर फेंक दें जिसके पास असाये मूसवी हो कि फेंक देते तो सांप बन जाता जिसके पास सुलेमानी अंगूठी हो कि तमाम जिन्नात आपकी मदद को हाज़िर हो जाते जिसके पास इस्मे आज़म हो कि पल भर में दुश्मनों की फौज जलकर खाक हो जाती और फिर जिसके पास 12000 का लश्कर हो और 8000 तो उसी वक़्त मदीने में ही मौजूद था तो क्यों इन सबके होते हुए भी मौला अली ने अपनी खिलाफत को ग़सब होने दिया,सिर्फ इसलिए कि इंसान दो ही सूरतों में दूसरों का फैसला मानता है पहला या तो वो कमज़ोर हो जो कि मौला नहीं थे और दूसरा या तो अगला सच्चा हो,और यही हक़ है,ये मौला अली अच्छी तरह जानते थे जब ही तो आपने उनकी बैयत की और खुद उनके साथ हुसने अखलाक़ से पेश आते रहे,एक बातिनी वजह भी बताई जाती है वो भी पढ़ लीजिए*_

*सवाल*

- मौला अली ने खुल्फाये सलासा के खिलाफ इस लिए भी तलवार नहीं उठाई कि काफिरों और मुनाफिकों की पुश्तों में मोमिन अल्लाह की अमानत है पस अली अलैहिस्सलाम ऐसे ना थे कि अमानतों के नुत्फे से पहले उनके आबा व अजदाद को क़त्ल कर देते

*📕 अखबारे सदाक़त,सफह 10,5/1/1956*

*जवाब* -

 *_माज़ अल्लाह इसका मतलब खुल्फये सलासा काफिर व मुनाफिक़ हैं ये क़ुरान का इन्कार है जो कि खालिस कुफ्र है,और अगर उनके खिलाफ तलवार ना उठाने की मौला अली की ये वजह मान भी ली जाए तो जंगे जमल और सिफ्फीन में क्यों आप सहाबा से लड़े,क्या तब उनके अंदर मोमिन के नुत्फे ना रहे होंगे_*

*हक़ यही है कि मौला अली जब हक़ पर थे तब उम्मुल मोमेनीन के खिलाफ तलवार उठाने में भी ना झिझके मगर खुल्फये सलासा के खिलाफ अगर तलवार नहीं उठाई तो मतलब साफ है कि यहां खुल्फये सलासा हक़ पर थे और खिलाफत पर उनका हक़ था और यही हक़ है हक़ है हक़ है*

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                  *जोइन*

*मदर्सा हनफिया वारिसुल उलूम*
          *9628204387*

*_मुजबुर्रहमान क़ादरी_*

                *खादिम*

*दारूल उलूम हनफिया वारिसुल उलूम क़स्बा बेलहरा ज़िला बाराबंकी यू पी*






POST=7



*_مدرسہ حنفیہ وارث العلوم_*
*_मदर्सा हनफिया वारिसुल उलूम_*


*ilaaj*


*सफेद दाग - white stains*


*ये एक खतरनाक और मूज़ी मर्ज़ है जो आदमी के हुस्नो जमाल को तबाहो बर्बाद कर देता है,ये मर्ज़ अक्सर खून की खराबी की वजह से होता है,ये कुछ नुस्खे हैं इस्तेमाल करें इंशा अल्लाह बीमारी दूर होगी*

*1. चाकसू 20 ग्राम,इंजीर 20 ग्राम,बाबची 20 ग्राम,तुख्म पिंदार 20 ग्राम सबको रात में मिट्टी के बर्तन में आधे पाव पानी में भिगो दें और सुबह को नहार मुंह बग़ैर मले हुए उसको कपड़े से छान लें और उसमें 20 ग्राम शहद मिलाकर पिएं,और बची हुई बाकी चीज़ें पीसकर दागों पर लगाया जाए,इस अमल की मुद्दत 40 दिन है*

*📕 शम्ये शबिस्ताने रज़ा,हिस्सा 3,सफह 433*

*2. शहद और लहसुन मिलाकर खाने से इस मर्ज़ में काफी फायदा होता है*

*3. ज़रीख,तूतिया,मूली की बीज एक बराबर लेकर पीस कर उसमें ज़ैतून का तेल मिला कर दाग की जगह रगड़ कर लगाएं,इंशा अल्लाह 3 दिन से ही फ़ायदा शुरू हो जायेगा*

*📕 मुजर्बाते सुयूती,पेज 181*

*4. भैंस की चर्बी में इन्द्रानी नमक मिलाकर दाग पर मलने से जल्द ही ये दाग दूर हो जाते हैं*

*📕 हयातुल हैवान,जिल्द 2,पेज 31*

*5. बैगन पानी में पकाएं जब गल जाए तो पानी छानकर जैतून के तेल में साथ मिलकर खौलाएं जब पानी जल जाए और तेल बाकी रह जाए तो इस तेल को दागों पर लगाएं*

*📕 इलाजुल ग़ुरबा,सफह 170*

*6. सरसों के बीज को गाय के दूध में डालकर पकाएं जब दूध खोये जैसा गाढ़ा हो जाए तो बीज निकालकर धोकर सुखा लें और बारीक पीसकर 1 ग्राम रोज़ाना गाय के दूध के साथ इस्तेमाल करें*

*📕 कंज़ुल मुजरबात,सफह 769*

*7. قل هو المعين يا المعروف المنان والحليم* *"क़ुल हुवल मोईन या माअरूफ़ुल मन्नान वल हलीम" ज़र्द रंग की रोशनाई से प्लेटों पर लिखकर दिन में 3 बार धोकर पिलायें*

*लिखना अरबी में ही है,पढ़ने में आ जाये इसलिये मैने हिन्दी में लिख दिया है*

*📕 रूहानी इलाज,सफह 42*

*परहेज़ - मछली,गुड़,खटाई,अंडा,चावल,दूध,दही,माश की दाल,आलू,लौकी*
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                    *जोइन*

*_मदर्सा हनफिया वारिसुल उलूम_*
        *9628204387*


*मुजीबुर्रहमान क़ादरी*


                *खादिम*

*दारूल उलूम हनफिया वारिसुल उलूम क़स्बा बेलहरा ज़िला बाराबंकी यू़.पी*






POST=8



*_مدرسہ حنفیہ وارث العلوم_*
*_मदर्सा हनफिया वारिसुल उलूम_*


            *_आदाबे मस्जिद_*


*_मस्जिद में दाख़िल होते वक़्त अगर लोग मौजूद हों और वो ज़िक्रो तिलावत में मशगूल ना हों तो उन्हें सलाम करें वरना अस्सलामो अलैना मिर्रब्बना व आला इबादिल लाहिस सालेहीन कहें_*

*_वक़्ते मकरूह ना हो तो 2 रकात तहयतुल मस्जिद पढ़ें_*

*_खरीदो फरोख्त न करें_*

*_गुमी हुई चीज़ मस्जिद में न ढूंढ़े_*

*_ज़िक्र के सिवा हरगिज़ आवाज़ को बुलंद ना करें _*

 *_दुनिया की बातें ना करें_*

*_लोगों की गर्दनें ना फलांगें_*

*_जहां जगह मिले बैठ जाएं _*

*_इस तरह न बैठें कि दूसरों को तक़लीफ हो_*

*_नमाज़ी के आगे से ना गुजरें_*

*_मस्जिद में थूके नहीं_*

*_उंगलियां ना चटकायें_*

*_नजासत,पागलों और बहुत छोटे बच्चों को मस्जिद से दूर रखें_*

*_मस्जिद में खाना पीना या सोना सिवाए मोतकिफ़ के दूसरों को नाजायज़ है_*

*_कच्ची प्याज़ या लहसुन या कोई भी बदबूदार खाना खाकर या जिसके मुंह से बहुत ज़्यादा बदबू उड़ती हो वो हरगिज़ मस्जिद में ना जाए बल्कि उसको जमाअत की हाज़िरी भी माफ़ है घर में नमाज़ पढ़े _*

*_नमाज़ के बाद मुसल्ला हटा देना अच्छा है मगर कुछ लोग सिर्फ कोने मोड़ देते हैं और उनका ख्याल ये होता है कि शैतान इस पर बैठेगा,ये बे अस्ल है_*

*_बिला उज़्रे शरई मस्जिद की छत पर चढ़ना मकरूह है_*

*_औरतों का मस्जिद मे जाना मना है_*

*_📕 बहारे शरीअत,हिस्सा 16,सफह 119_*

*_मस्जिद में दुनिया की जायज़ बात करना नेकियों को ऐसे खा जाता है जैसे आग लकड़ी को खा जाती है और मस्जिद में हसना क़ब्र में अंधेरा लाता है _*

*📕 अहकामे शरियत,हिस्सा 1,सफह 109*

*_मस्जिद में भीख मांगना हराम है,जो मस्जिद में मागंने वाले को 1 रूपये देगा तो उसको 70 रूपये कफ्फारह देना होगा_*

*📕 फतावा रज़वियह,जिल्द 6,सफ़ह 436*
*📕 एहकामे शरीयत,हिस्सा 1,सफ़ह 113*

*_अक्सर मसजिदों में देखा जाता है कि जैसे ही इमाम साहब ने सलाम फेरा फ़ौरन एक आवाज़ आती है कि भाई मैं फलां हूं फलां जगह से आया हूं ऐसे लोगों को देना सख्त मना है बल्कि गुनाह है जब ही तो कफ़्फ़ारह देने को कहा गया,हां ज़रूरत मन्द आदमी अगर अपनी हाजत पहले ही इमाम साहब से कहदे और फिर इमाम साहब उसके लिये लोगों से कहें तो ऐसा करना जायज़ बल्कि सुन्नत है क्युंकि हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम अक्सर अपने गरीब सहाबा की मदद के लिये ग़नी सहाबा में ऐलान करते थे,और जो फ़क़ीर मस्जिद के बाहर बैठे रहतें हैं बिला शुबह उन को दिया जाये_*
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                       *जोइन*

*_मदर्सा हनफिया वारिसुल उलूम_*
      *_9628204387_*

*_मुजीबुर्रहमान क़ादरी_*

                  *_खादिम_*

*_दारूल उलूम हनफिया वारिसुल उलूम क़स्बा बेलहरा ज़िला बाराबंकी यू.पी_*






POST=9



 *_مدرسہ حنفیہ وارث العلوم_*
*_मदर्सा हनफिया वारिसुल उलूम_*


       *_सुन्नी और मज़ार_*
     

*_किसी की क़ब्र पर इमारत बना देना ही मज़ार कहलाता है,अल्लाह के मुक़द्दस बन्दों की मज़ार बनाना और उनसे मदद लेना जायज़ है,पढ़िये_*

*_मज़ार बनाना_*


*_(1) तो बोले उनकी ग़ार पर इमारत बनाओ उनका रब उन्हें खूब जानता है वह बोले जो इस काम मे ग़ालिब रहे थे कसम है कि हम तो उन पर मस्जिद बनायेंगे_*

*📕 पारा 15,सूरह कहफ,आयत 21*

*_तफसीर_*


*_असहाबे कहफ 7 मर्द मोमिन हज़रत ईसा अलैहिस्सलाम की उम्मत के लोग थे बादशाह दक़्यानूस के ज़ुल्म से तंग आकर ये एक ग़ार मे छिप गये जहां ये 300 साल तक सोते रहे 300 साल के बाद जब ये सोकर उठे और खाने की तलाश मे बाहर निकले तो उनके पास पुराने सिक्के देखकर दुकानदारो ने उन्हे सिपाहियों को दे दिया उस वक़्त का बादशाह बैदरूस नेक और मोमिन था जब उस को ये खबर मिली तो वो उनके साथ ग़ार तक गया और बाकी तमाम लोगो से भी मिला असहाबे कहफ सबसे मिलकर फिर उसी ग़ार मे सो गये जहां वो आज तक सो रहें हैं हर साल दसवीं मुहर्रम को करवट बदलते हैं हज़रत इमाम मेंहदी रज़ियल्लाहु तआला अन्हु के दौर मे उठेंगे और आपके साथ मिलकर जिहाद करेंगे बादशाह ने उसी ग़ार पर इमारत बनवाई और हर साल उसी दिन वहां तमाम लोगों को जाने का हुक्म दिया_*

*📕 तफसीर खज़ाएनुल इर्फान,सफह 354*

*मज़ार पर जाना*

*_(2) हुज़ूर सल्लल्लाहो तआला अलैहि वसललम इरशाद फरमाते हैं कि मैंने तुम लोगों को क़ब्रों की ज़ियारत से मना किया था अब मैं तुम को इजाज़त देता हूं कि क़ब्रों की ज़ियारत किया करो_*

*📕 मुस्लिम,जिल्द 1,हदीस 2158*

*_(3) खुद हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैही वसल्लम हर साल शुहदाये उहद की क़ब्रो पर तशरीफ़ ले जाते थे और आपके बाद तमाम खुल्फा का भी यही अमल रहा_*

*📕 शामी,जिल्द 1,सफह 604*
*📕 मदारेजुन नुबुव्वत,जिल्द 2,सफह 135*

*_जब एक नबी अपने उम्मती की क़ब्र पर जा सकता है तो फिर एक उम्मती अपने नबी की या किसी वली की क़ब्र पर क्यों नहीं जा सकता_*


*_मज़ार पर चादर चढ़ाना_*


*_(4) खुद हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम की मज़ारे अक़दस पर सुर्ख यानि लाल रंग की चादर डाली गई थी_*

*📕 सही मुस्लिम,जिल्द 1,सफह 677*

*_(5) हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम एक जनाज़े मे शामिल हुए बाद नमाज़ को एक कपड़ा मांगा और उसकी क़ब्र पर डाल दिया_*

*📕 तफसीरे क़ुर्बती,जिल्द 1,सफह 26*

*मज़ार पर फूल डालना*

*_(6) हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम का गुज़र दो क़ब्रो पर हुआ तो आपने फरमाया कि इन दोनों पर अज़ाब हो रहा है और किसी बड़े गुनाह की वजह से नहीं बल्कि मामूली गुनाह की वजह से,एक तो पेशाब की छींटों से नहीं बचता था और दूसरा चुगली करता था,फिर आपने एक तार शाख तोड़ी और आधी आधी करके दोनो क़ब्रों पर रख दी और फरमाया कि जब तक ये शाख तर रहेगी तस्बीह करती रहेगी जिससे कि मय्यत के अज़ाब में कमी होगी_*

*📕 बुखारी,जिल्द 1,हदीस 218*

*_तो जब तर शाख तस्बीह पढ़ती है तो फूल भी पढ़ेगा और जब इनकी बरक़त से अज़ाब में कमी हो सकती है तो एक मुसलमान के तिलावतो वज़ायफ से तो ज़्यादा उम्मीद की जा सकती है और मज़ार पर यक़ीनन अज़ाब नहीं होता मगर फूलों की तस्बीह से साहिबे मज़ार का दिल ज़रूर बहलेगा_*

*मुर्दो का सुनना*

*_(7) तो सालेह ने उनसे मुंह फेरा और कहा एै मेरी क़ौम बेशक मैंने तुम्हें अपने रब की रिसालत पहुंचा दी_*

*📕 पारा 8,सुरह एराफ,आयात 79*

*_तफसीर_*

*_हज़रत सालेह अलैहिस्सलाम क़ौमे समूद की तरफ नबी बनाकर भेजे गए,क़ौमे समूद के कहने पर आपने अपना मोजज़ा दिखाया कि एक पहाड़ी से ऊंटनी ज़ाहिर हुई जिसने बाद में बच्चा भी जना,ये ऊंटनी तालाब का सारा पानी एक दिन खुद पीती दुसरे दिन पूरी क़ौम,जब क़ौमे समूद को ये मुसीबत बर्दाश्त न हुई तो उन्होंने इस ऊंटनी को क़त्ल कर दिया,तो आपने उनके लिए अज़ाब की बद्दुआ की जो कि क़ुबूल हुई और वो पूरी बस्ती ज़लज़ले से तहस नहस हो गयी,जब सारी क़ौम मर गई तो आप उस मुर्दा क़ौम से मुखातिब होकर अर्ज़ करने लगे जो कि ऊपर आयत में गुज़रा_*

*📕 तफसीर सावी,जिल्द 2,सफह 73*

*_(8) जंगे बद्र के दिन हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम ने बद्र के मुर्दा कुफ्फारों का नाम लेकर उनसे ख़िताब किया,तो हज़रत उमर फारूक़े आज़म ने हैरत से अर्ज़ किया कि क्या हुज़ूर मुर्दा बेजान जिस्मों से मुखातिब हैं तो सरकार सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम ने फरमाया कि 'एै उमर खुदा की कसम ज़िंदा लोग इनसे ज़्यादा मेरी बात को नहीं समझ सकते'_*

*📕 बुखारी,जिल्द 1,सफह 183*

*_सोचिये कि जब काफिरों के मुर्दो में अल्लाह ने सुनने की सलाहियत दे रखी है तो फिर अल्लाह के मुक़द्दस बन्दे क्यों हमारी आवाज़ों को नहीं सुन सकते_*

*क़ब्र वालों का मदद करना*

*_(9) और अगर जब वो अपनी जानों पर ज़ुल्म करें तो ऐ महबूब तुम्हारे हुज़ूर हाज़िर हों फिर अल्लाह से माफी चाहें और रसूल उनकी शफाअत फरमायें तो ज़रूर अल्लाह को बहुत तौबा क़ुबूल करने वाला मेहरबान पायेंगे_*

*📕 पारा 5,सूरह निसा,आयत 64*

*_हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैही वसल्लम की वफात के बाद एक आराबी आपकी मज़ार पर हाज़िर हुआ और रौज़ये अनवर की खाक़ अपने सर पर डाली और क़ुरान की यही आयत पढ़ी फिर बोला कि हुज़ूर मैने अपनी जान पर ज़ुल्म किया अब मै आपके सामने अपने गुनाह की माफी चाहता हूं हुज़ूर मेरी शफाअत कराइये तो रौज़ये अनवर से आवाज़ आती है कि जा तेरी बखशिश हो गई_*

*📕 तफसीर खज़ाएनुल इर्फान,सफह 105*

*_(10) हज़रते इमाम शाफई रज़ियल्लाहु तआला अन्हु फरमाते हैं जब भी मुझे कोई हाजत पेश आती है तो मैं हज़रते इमामे आज़म रज़ियल्लाहु तआला अन्हु की क़ब्र पर आता हूं,2 रकत नफ्ल पढता हूं और रब की बारगाह में दुआ करता हूं तो मेरी हाजत बहुत जल्द पूरी हो जाती है_*

*📕 रद्दुल मुख्तार,जिल्द 1,सफह 38*

*वहाबी और मज़ार*

*_एक सवाल के जवाब पर मौलवी रशीद अहमद गंगोही लिखते हैं कि_*

*_(11) क़ुबूरे औलिया पर जाना और उनसे फैज़ हासिल करना इसमें कुछ हर्ज़ नहीं_*

*📕 फतावा रशीदिया,जिल्द 1,पेज 223*

*_(12) मौलाना रफ़ी उद्दीन के साथ हज़रत (थानवी) ने सरे हिन्द पहुंचकर शेख मुजद्दिद उल्फ सानी के मज़ार पर हाज़िरी दी_*

*📕 हयाते अशरफ,सफह 25*

*_थानवी ने लिखा_*

*_(13) दस्तगिरी कीजिये मेरे नबी_*
     *_कशमकश में तुम ही हो मेरे वली_*

*_📕 नशरुत्तबीब फि ज़िक्रे नबीईल हबीब,सफह 164_*

*_मौलवी आरिफ सम्भली ने लिखा है कि_*

*_(14) पस बुज़ुर्गो की अरवाह से मदद लेने के हम मुंकिर नहीं_*

*_📕 बरैली फितने का नया रूप,सफह 139_*

*_मौलवी हुसैन अहमद टांडवी लिखता है कि_*

*_(15) हमें जो कुछ मिला इसी सिलसिलाए चिश्तिया से मिला,जिसका खाये उसी का गाये_*

*📕 शेखुल इस्लाम नम्बर,सफह 13*

*_इतना सब कुछ पढ़ने के बाद आज के दोगले वहाबियों को चाहिये कि सुन्नी से मुनाज़रा करना छोड़ें और जाकर चुल्लू भर पानी में डूब कर मर जायें और अगर अब भी कुछ शर्म बाकी है तो फौरन अपने दोगले अक़ायद से तौबा करें और सच्चे दिल से मज़हबे अहले सुन्नत वल जमात यानि मसलके आलाहज़रत पर क़ायम हो जायें_*
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*नोट.ग्रुप में पोस्ट करना मना है दीनी हो या दुन्यावी*

*जो भी पोस्ट करेगा बाहर कर दिया जायेगा*

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                *_जोइन_*

*_मदर्सा हनफिया वारिसुल उलूम_*
        *_9628204387_*

*_मुजीबुर्रहमान क़ादरी_*


                *_खादिम_*

*_दारूल उलूम हनफिया वारिसुल उलूम क़स्बा बेलहरा ज़िला बाराबंकी यू पी_*






POST=10



 *_مدرسہ حنفیہ وارث العلوم_*
*_Madarsa Hanfiya Warisul Uloom_*

     *_KARAMAT_*            

*_Jis raat hazrat sayyadtna raabiya basri raziyallahu taala anha paida huyin us raat unke waalid ke ghar charag me jalane ke liye teil tak maujood na tha aapko apni naadari par sakht ranj hua,jab aap soye to khwab me huzoor sallallaho taala alaihi wasallam tashreef laaye aur farmaya ki ranj na kar teri ye beti ALLAH ki bahut nek bandi hai meri ummat ke 71000 gunahgaron ki khuda se shafat karwayegi_*

*_aap rozana 1000 rakat nafl padhti thi_*

*_aapki ye karamat bahut mashhoor hai ki ek baar hazrat ibraheem adham raziyallahu taala anhu hajj ko chale is tarah ki har qadam par 2,2 rakat namaz nafl padhte jaate is tarah aapko 14 saal lag gaye makka mukarrama tak pahunchte hue,magar jab wahan pahunche to dekha ki kaaba gaayab hai aap hairan rah gaye socha ki shayad ye meri aankhon ka fitoor ho fauran gaib se nida aayi ki ye teri aankhon ka fitoor nahin balki kaaba khud meri ek bandi ke isteqbaal ko gaya hai_*

*_aapke wisaal ke baad kisi buzurg ne aapko khwab me dekha aur qabr ka haal poochha to farmaya ki jab munkar nakeer ne MAN RABBOKA kaha to maine kaha ki jaakar rub se kaho ki jab raabiya ne duniya me tujhse zyada kisi ko mahboob na rakha to fir aaj kisi ko bhejkar ye sawal kyunkar poochha ja raha hai_*

*_SUBHAN ALLAH_*

*📕 Mahfile auliya,safah 26*
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*Not*

*Group me kisi bhi Tarah ka post nahi kar sakte Sirf group ki Taraf se hi post kiye jayenge jo post karega bahar kar diya jayega iska khayal Rakhe Group me Rahne ke Liye Rules ko follow kare Maharbani hogi*
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                  *Add*

*_madarsa Hanfiya warisul uloon_*
     *_9628204387_*

*_Mujeeburrahman Qadri_*


                *_Khadim_*

*_Darul uloom Hanfiya warisul uloom Qasba Belhara zila. Barabanki up_*






POST=11



 *_مدرسہ حنفیہ وارث العلوم_*
*_मदर्सा हनफिया वारिसुल उलूम_*


*_73 में से हक़ पर कौन_*


*_कुछ लोगों को कुरान में किसी फिरके का नाम नहीं मिलता_*
*_उन्हें सबके सब मुस्लमान नज़र आते हैं_*
*_क्या वाकई सारे 73 फिरके वाले मुस्लमान हैं_*

*_आइये क़ुरान से पूछते है_*

*_अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त कुरान में फरमाता है_*

*_(1). ये गंवार कहते हैं की हम ईमान लाए,तुम फरमादो ईमान तो तुम न लाये,हाँ यूँ कहो की हम मुतिउल इस्लाम हुए,ईमान अभी तुम्हारे दिलों में कहाँ दाखिल हुआ_*

*📕 पारा 26,सूरह हुजरात,आयत 14*

*_(2). मुनाफेकींन जब तुम्हारे हुज़ूर हाज़िर होते हैं तो कहते हैं की हम गवाही देते हैं कि बेशक हुज़ूर यक़ीनन खुदा के रसूल हैं और अल्लाह खूब जानता है कि बेशक तुम ज़रूर उसके रसूल हो और अल्लाह गवाही देता है कि बेशक ये मुनाफ़िक़ ज़रूर झूठे हैं_*

*📕 पारा 28,सूरह मुनाफेकूंन,आयत 1*

*_(3). तो क्या अल्लाह के कलाम का कुछ हिस्सा मानते हो और कुछ हिस्सों के मुंकिर हो_*

*📕 पारा 1,सूरह बकर,आयत 85*

*_(4). इज़्ज़त तो अल्लाह उसके रसूल और मुसलमानो के लिए है और मुनाफ़िक़ों को खबर नहीं_*

*📕 पारा 28,सूरह मुनाफेकूंन,आयत 8*

*_(5). कहते हैं हम ईमान लाए अल्लाह और रसूल पर और हुक्म माना फिर कुछ उनमें के उसके बाद फिर जाते हैं और वो मुस्लमान नहीं_*

*📕 पारा 18,सूरह नूर,आयत 47*

 *_लीजिये जनाब सब क़ुरान से साबित हो गया की मुस्लमान कोई और है काफिर कोई और और मुनाफ़िक़ कोई और,मुस्लमान और काफिर के बारे में तो जग ज़ाहिर है मगर मुनाफ़िक़ उसे कहते हैं की दिखने में मुस्लमान जैसा हो और काम से काफिर,जैसा की खुद मौला फरमाता है_*

*_(6). ये इसलिए की वो ज़बान से ईमान लाए और दिल से काफिर हुए तो उनके दिलों पर मुहर कर दी गयी तो वो अब कुछ नहीं समझते_*

*📕 पारा 28,सूरह मुनाफेकूंन,आयत 3*

*_वहाबी,कादियानी,खारजी,शिया,अहले हदीस,जमाते इस्लामी ये सब बदमजहब मुनाफ़िक़ ही हैं,और सब 72 फिर्को वाले ही हैं यानि हमेशा की जहन्नम वाले,ये मैं नहीं बल्कि खुद मौला फरमाँ रहा है_*

*_(7). बेशक अल्लाह मुनाफ़िक़ों और काफिरों सबको जहन्नम में इकठ्ठा करेगा_*

*📕 पारा 5,सूरह निसा,आयत 140*

 *_अब इन नाम निहाद मुसलमानो की इबादत और इबादतगाहो की असलियत भी खुद रब से ही सुन लीजिए,इन मुनाफ़िक़ों की मस्जिदें मस्जिद कहलाने के लायक नहीं,उनकी कोई ताज़ीम नहीं,खुद ही पढ़ लीजिए_*

*_(8). और वो जिन्होंने मस्जिद (मस्जिदे दररार) बनायीं नुक्सान पहुंचाने को कुफ्र के सबब और मुसलमानों में तफर्का डालने को और उसके इंतज़ार में जो पहले से अल्लाह और उसके रसूल का मुख़ालिफ़ है और वो ज़रूर कस्मे खाएंगे की हमने तो भलाई चाही और अल्लाह गवाह है की वो बेशक झूठे हैं. उस मस्जिद में तुम कभी खड़े न होना यानि (हुज़ूर सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम)_*

*📕 पारा 11,सूरह तौबा,आयत 107-108*

 *_क्या काफिर भी मस्जिद बनाते हैं,नहीं बल्कि ये नाम निहाद मुसलमान बनाते हैं इसी लिए हुज़ूर ने सहबा इकराम को हुक्म दिया की वो 'मस्जिदे दररार' गिरा दें,और ऐसा ही किया गया और पढ़िए_*

*_(9). और नमाज़ को नहीं आते मगर जी हारे और खर्च नहीं करते मगर ना गवारी से_*

*📕 पारा 10,सूरह तौबा,आयत 54*

 *_ये है इन मुनाफ़िक़ों की इबादत का हाल,की खुद रब कह रहा है की नमाज़ बेदिल से पढ़ते है और ज़कात बोझ समझ कर अदा करते हैं,और पढ़िए_*

*_(10). और उनमें से किसी की मय्यत पर कभी नमाज़ न पढ़ना और न उनकी कब्र पर खड़े होना बेशक वो अल्लाह और उसके रसूल से मुंकिर हुए_*

*📕 पारा 10,सूरह तौबा,आयत 84*

*_अब बताइये जिनकी मस्जिदे मस्जिदे नहीं,जिनकी नमाज़ नमाज़ नहीं,जिनकी ज़कात ज़कात नहीं,जिनकी कब्र पर जाना नहीं,जिनकी नमाज़े जनाज़ा पढ़ना नहीं पढ़ाना नहीं तो क्या अब भी उन मुनाफ़िक़ों को मुस्लमान समझा जाए,हमसे हर बात पर कुरान से हवाला मांगने वाले वहाबियों ने क्या सुन्नियों को भी अपनी तरह जाहिल समझ रखा है अभी तक मैंने सिर्फ क़ुरान से ही बात की है,इनके दीने बातिल पर ये आखरी कील ठोंकता हूँ,आप भी पढ़िए_*

*_(11). वो जो रसूल अल्लाह को ईज़ा देते हैं उनके लिए दर्दनाक अज़ाब है_*

*📕 पारा 10,सूरह तौबा,आयत 61*

*_क्या माज़ अल्लाह नबी को चमार से ज़्यादा ज़लील कहना,उनको ईज़ा देना नहीं है_*
*_तकवियतुल ईमान,सफह 27_*

*_क्या माज़ अल्लाह नबी को किसी बात का इख्तियार नहीं है ये कहना,उनको ईज़ा देना नहीं है-तकवियतुल ईमान,सफह 56_*

*_क्या माज़ अल्लाह नबी के चाहने से कुछ नहीं होता ये कहना,उनको ईज़ा देना नहीं है-तकवियतुल ईमान,सफह 75_*

*_क्या माज़ अल्लाह उम्मती भी अमल में नबी से आगे बढ़ जाते हैं ये कहना,उनको ईज़ा देना नहीं है-तहजीरुन्नास,सफह 8_*

*_क्या माज़ अल्लाह हमारे नबी को आखरी नबी ना मानना,उनको ईज़ा देना नहीं है-तहजीरुन्नास,सफह 43_*

*_क्या माज़ अल्लाह नबी के इल्म को शैतान के इल्म से कम मानना,उनको ईज़ा देना नहीं है-बराहीने कातया,सफह 122_*

*_क्या माज़ अल्लाह नबी के इल्म को जानवरों और पागलो से तस्बीह देना,उनको ईज़ा देना नहीं है-हिफजुल ईमान,सफह 7_*

*_क्या माज़ अल्लाह गधे और बैल का ख्याल आने से नमाज़ हो जाती है और नबी का ख्याल आने से नमाज़ बातिल हो जाती है ये लिखना,उनको ईज़ा देना नहीं है-सिराते मुस्तक़ीम,सफह 148_*

*_ये उन वहाबी खबिसो के कुछ अक़ायद हैं,क्या इनपर कुफ्र का फतवा नहीं लगेगा,क्या कोई अक़्लमन्द आदमी ऐसा लिखने वालों को छापने वालो को या जानकार भी इनके उसी बुरे मज़हब पर कायम रहने वालो को मुसलमान जानेगा,नहीं हरगिज़ नहीं,चलते चलते एक हदीसे पाक सुन लीजिए और बात खत्म_*

*_(12). हज़रत इब्ने उमर रज़ी अल्लाहु अन्हु से रिवायत है कि रसूले करीम सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया कि मेरी उम्मत पर एक ज़माना ज़रूर ऐसा आएगा जैसा की बनी इस्राईल पर आया था बिलकुल हु बहु एक दुसरे के मुताबिक यहाँ तक की बनी इस्राईल में से अगर किसी ने अपनी माँ के साथ अलानिया बदफैली की होगी तो मेरी उम्मत में ज़रूर कोई होगा जो ऐसा करेगा और बनी इस्राईल 72 मज़हबो में बट गए थे और मेरी उम्मत 73 मज़हबो में बट जाएगी उनमें एक मज़हब वालों के सिवा बाकी तमाम मज़ाहिब वाले नारी और जहन्नमी होंगे सहाबा इकराम ने अर्ज़ किया या रसूल अल्लाह सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम वह एक मज़हब वाले कौन है तो हुज़ूर ने फ़रमाया कि वह लोग इसी मज़हबो मिल्लत पर कायम रहेंगे जिसपर मैं हूँ और मेरे सहाबा हैं_*

*📕 तिर्मिज़ी,हदीस नं 171 * अब दाऊद,हदीस नं 4579 * इब्ने माजा,सफह 287*

*_ये वहाबी,,कादियानी,खारजी,शिया,अहले हदीस,जमाते इस्लामी वाले पहले अपने आपको अहले सुन्नत वल जमात के इस मिल्लत पर तो ले आएं बाद में मुसलमान होने की बात करें_*

*_अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त की बारगाह में दुआ है की हम सबको मसलके आलाहज़रत पर सख्ती से क़ायम रहने की तौफीक़ अता फरमाये_*
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                    *जोइन*

*_मदर्सा हनफिया वारिसुल उलूम_*
      *_9628204387_*

*मुजीबुर्रहमान क़ादरी*


               *खादिम*

*दारूल उलूम हनफिया वारिसुल उलूम क़स्बा बेलहरा ज़िला बाराबंकी यू पी*






POST=12



 *_مدرسہ حنفیہ وارث العلوم_*
*_मदर्सा हनफिया वारिसुल उलूम_*


 *_मीलाद शरीफ़ और क़ुर्आन_*


*_हुज़ूर की ज़ात व औसाफ़ व उनके हाल व अक़वाल के बयान को ही मिलादे पाक कहा जाता है,हुज़ूर की विलादत की ख़ुशी मनाना ये सिर्फ इंसान का ही ख़ास्सा नहीं है बल्कि तमाम खलक़त उनकी विलादत की खुशी मनाती है बल्कि खुद रब्बे क़ायनात मेरे मुस्तफा जाने रहमत का मीलाद पढता है,यहां क़ुरान की सिर्फ चंद आयतें पेश करता हूं वरना तो पूरा क़ुरान ही मेरे आका की शान से भरा हुआ है मगर कुछ आंख के अंधे और अक़्ल से कोढ़ी लोग इसको भी शिर्क और बिदअत कहते हैं,माज़ अल्लाह,हवाला मुलाहज़ा फरमाएं_*

*_1. वही है जिसने अपना रसूल हिदायत और सच्चे दीन के साथ भेजा_*

*📕 पारा 10,सूरह तौबा,आयत 33*

*_2. बेशक तुम्हारे पास तशरीफ़ लायें तुममे से वो रसूल जिन पर तुम्हारा मशक़्क़त में पड़ना गिरां है तुम्हारी भलाई के निहायत चाहने वाले मुसलमानों पर कमाल मेहरबान_*

*📕 पारा 11,सूरह तौबा,आयत 128*

*_पहली आयत में मौला तआला उन्हें भेजने का ज़िक्र कर रहा है और भेजा उसे जाता है जो पहले से मौजूद हो मतलब साफ़ है कि महबूब पहले से ही आसमान पर या अर्शे आज़म पर या जहां भी रब ने उन्हें रखा वो वहां मौजूद थे,और दूसरी आयत में उनके तशरीफ़ लाने का और उनके औसाफ़ का भी बयान फरमा रहा है,क्या ये उसके महबूब का मिलाद नहीं है,क्या वहाबी खुदा पर भी हुक्म लगायेगा_*

*_3. बेशक तुम्हारे पास अल्लाह की तरफ़ से एक नूर आया और रौशन किताब_*

*📕 पारा 6,सूरह मायदा,आयत 15*

*_यहां नूर से मुराद हुज़ूर हैं और किताब से मुराद क़ुराने मुक़द्दस है_*

*_4. और याद करो जब ईसा बिन मरियम ने कहा ................. और उन रसूल की बशारत सुनाता हूं जो मेरे बाद तशरीफ़ लायेंगे उनका नाम "अहमद" है_*

*📕 पारा 28,सूरह सफ़,आयत 6*

*_इस आयत में हज़रत ईसा अलैहिस्सलाम मेरे आक़ा का मीलाद पढ़ रहे हैं,क्या वहाबी उन पर भी हुक्म लगायेगा_*

*_5. और याद करो जब अल्लाह ने पैगम्बरों से अहद लिया.जो मैं तुमको किताब और हिकमत दूं फिर तशरीफ़ लायें तुम्हारे पास वो रसूल कि तुम्हारी किताब की तस्दीक़ फरमाएं तो तुम ज़रूर ज़रूर उनपर ईमान लाना और उनकी मदद करना,क्या तुमने इक़रार किया और उसपर मेरा भारी ज़िम्मा लिया,सबने अर्ज़ की हमने इक़रार किया फ़रमाया तो एक दूसरे पर गवाह हो जाओ और मैं खुद तुम्हारे साथ गवाहों में हूं,तो जो कोई इसके बाद फिरे तो वही लोग फ़ासिक़ हैं_*

*📕 पारा 3,सूरह आले इमरान,आयत 81-82*

*_ये आलमे अरवाह का वाकिया है जहां मौला ने अपने महबूब की शान बयान करने के लिए अपने तमाम नबियों को इकठ्ठा कर लिया यानि महफिले मिलाद सजा ली और उनसे फरमा रहा है कि अगर तुम्हारे पास मेरे नबी तशरीफ़ लायें तो तुम्हे सब कुछ छोड़कर उसकी इत्तेबा करनी होगी,और आखिर के जुम्ले क्या ही क़यामत ख़ेज़ हैं क्या फरमा रहा है कि " जो इस अहद को तोड़े तो वो फ़ासिक़ है " अल्लाह अल्लाह ये कौन कह रहा है हमारा और आपका रब कह रहा है,किससे कह रहा है अपने मासूम नबियों से कह रहा है,क्यों कह रहा है क्योंकि बात उसके महबूब की है इसलिए कह रहा है_*

*_आज हम उसके महबूब का ज़िक्र करें तो हम मुश्रिक_*
*_महफिले मिलाद सजाएं तो हम मुश्रिक_*
*_भीड़ इकठ्ठा कर लें तो हम मुश्रिक_*
*_और रब जो कर रहा है उसका क्या,उस पर क्या हुक्म लगेगा वहाबियों_*

*_6. और उन्हें अल्लाह के दिन की याद दिला_*

*📕 पारा 13,सूरह इब्राहीम,आयत 5*

*_अल्लाह के दिन से मुराद वो दिन हैं जिन में मौला तआला ने अपने बन्दों पर नेमतें नाज़िल फरमाई जैसा कि बनी इस्राईल पर मन व सल्वा नाज़िल फरमाना और उनको दरिया से पार कराना,जैसा कि खुद हज़रत ईसा अलैहिस्सलाम का क़ौल क़ुरान में मौजूद है मौला फरमाता है कि_*

*_7. ईसा बिन मरियम ने अर्ज़ की ऐ अल्लाह ऐ हमारे रब हम पर आसमान से एक ख्वान उतार कि वो हमारे लिए ईद हो_*

*📕 पारा 7,सूरह मायदा,आयत 114*

*_मुफ़स्सेरीन फरमाते हैं कि जिस दिन आसमान से ख्वान नाज़िल हुआ वो दिन इतवार का था और आज भी ईसाई उस दिन खुशी यानि छुट्टी मनाते हैं,सोचिये कि हज़रत ईसा अलैहिस्सलाम ख्वान के नाज़िल होने पर तो ईद का हुक्म नाज़िल फरमा रहे हैं तो क्या माज़ अल्लाह हमारे नबी की विलादत एक खाने से भरे तश्त से भी कम है कि हम उस पर खुशी नहीं मना सकते,यक़ीनन मेरे आक़ा दुनियाए जहान की सारी नेमतों से बढ़कर हैं ये मैं नहीं कह रहा बल्कि खुद रब्बे क़ायनात फरमा रहा है,पढ़िए_*

*_8. बेशक अल्लाह का बड़ा एहसान हुआ मुसलमानो पर कि उनमे उन्हीं में से एक रसूल भेजा जो उनपर उसकी आयतें पढ़ते हैं और उन्हें पाक करते हैं और उन्हें किताब और हिक़मत सिखाते है_*

*📕 पारा 4,सूरह आले इमरान,आयत 164*

*_मौला ने इंसान को कैसी कैसी नेमतें अता फरमाई है,उसकी आंख कान नाक मुंह ज़बान दिल जिगर उसके हाथ पैर उसकी सांसें,मैंने शायद किसी मैगज़ीन में पढ़ा था किसी मेडिकल रिसर्चर का बयान है कि एक इंसान के जितने भी आज़ा है वैसे तो उनकी कोई कीमत नहीं सब अनमोल है मगर फिर भी मेडिकल साइंस एक इंसान को तक़रीबन 300 करोड़ rs. की मिल्क समझती है,सुबहान अल्लाह,हर इंसान 300 करोड़ rs. का फिर उस पर जो रब ने नेमतें दी उस के मां-बाप भाई-बहन दोस्त-अहबाब नाते रिश्तेदार वो अलग फिर उसपर ये कि उसे ज़िन्दगी गुज़ारने के लिए कितने ही साज़ो सामान से नवाज़ा,मगर कसम उस रब्बे क़ायनात की पूरा क़ुरान उठाकर देख लीजिए कि क्या कहीं उसने अपनी किसी नेमत पर एहसान जताया हो अगर जताया है तो अपने महबूब को जब बन्दों के दरमियान भेजा तब जताया है,अब बताइए क्या जिस नेमत को देने पर वो खुद फरमा रहा है कि "मैंने एहसान किया बन्दों पर" ज़रा सोचिये कि कैसी ही अज़ीम नेमत है मेरे मुस्तफ़ा की विलादत,ख्वान के आसमान से आने पर तो ईद मनायी गयी तो फिर मुस्तफा जाने रहमत के आने पर ईद मनाना शिर्क कैसे हो गया,जबकि मौला खुद अपनी दी हुई नेमतों का चर्चा करने का हुक्म दे रहा है,फरमाता है_*

*_8. और अपने रब की नेमत का खूब चर्चा करो_*

*📕 पारा 30,सूरह वद्दोहा,आयत 11*

*_क्या महबूबे दो आलम से बढ़कर भी कोई नेमत हो सकती है,नहीं नहीं नहीं और हरगिज़ नहीं,तो हम सुन्नी रब की दी हुई उसी अज़ीम नेमत का चर्चा करते हैं तो हम मुश्रिक कैसे हो गए बल्कि हक़ तो ये है कि जो उसकी दी हुई नेमत का चर्चा नहीं करते वो एहसान फरामोश गद्दार हैं जहन्नम के हक़दार हैं_*
.................................................
                *_जोइन_*

*_मदर्सा हनफिया वारिसुल उलूम_*
      *_9628204387_*

*_मुजीबुर्रहमान क़ादरी_*

               *_खादिम_*

*_दारूल उलूम हनफिया वारिसुल उलूम क़स्बा बेलहरा ज़िला बाराबंकी यू पी_*






POST=13



 *_مدرسہ حنفیہ وارث العلوم_*
*_मदर्सा हनफिया वारिसुल उलूम_*


             *_इब्लीस_*


*_अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त ने दरकये सिज्जीन में दो सूरतें पैदा फरमाई एक सांप की शक्ल में जिसका नाम खबलीस था और दूसरी भेड़िये की शक्ल में जिसका नाम नबलीस था दोनों ने आपस में जुफ्ती खाई तो इब्लीस पैदा हुआ_*

*📕 माअरेजुन नुबूवत,जिल्द 1,सफह 15*

*_इब्लीस की बीवी का नाम रसुल है_*

*📕 नुज़हतुल मजालिस,6,सफह 117*

*_इब्लीस जिन्न की क़ौम से है यानि आग से पैदा किया गया है इसलिए शरीर जिन्नो को भी शयातीन कहा जाता है_*

*📕 खाज़िन,जिल्द 2,सफह 176*
*📕 तकमीलुल ईमान,सफह 10*

*_पहले आसमान पर इब्लीस का नाम आबिद दूसरे पर ज़ाहिद तीसरे पर आरिफ चौथे पर वली पांचवे पर तक़ी छठे पर खाज़िन सातवे पर अज़ाज़ील और लौहे महफूज़ में इब्लीस था,ये 40000 साल तक जन्नत का खज़ांची रहा,14000 साल तक अर्शे आज़म का तवाफ करता रहा,80000 साल तक फरिश्तो के साथ रहा जिसमे से 20000 साल तक फरिश्तो का वाज़ो नसीहत करता रहा और 30000 साल कर्रोबीन फरिश्तो का सरदार रहा और 1000 साल रूहानीन फरिश्तो का सरदार रहा_*

*📕 तफसीरे सावी,जिल्द 1,सफह 22*
*📕 तफसीरे जमल,जिल्द 1,सफह 50*

*_इब्लीस ने 50000 साल तक अल्लाह की इबादत की यहां तक कि अगर उसके सजदों को जमीन पर बिछाया जाए तो तो एक बालिश्त जगह भी खाली ना बचे_*

*📕 ज़रकानी,जिल्द 1,सफह 59*

*_इनके यहां शादी ब्याह भी होती है और बच्चे भी मगर तरीके कई हैं,कुछ की दाहिनी रान में नर की अलामत और बाईं रान में मादा की अलामत पाई जाती है,खुद ही जिमअ करता है खुद ही हामिला होता है और खुद ही बच्चा जनता है,और कुछ रोज़ाना अण्डे दिया करते हैं हर अंडे से 70 शैतान और 70 शैतानिया पैदा होते हैं_*

*📕 खाज़िन,जिल्द 4,सफह 176*
*📕 उम्दतुल क़ारी,जिल्द 7,सफह 271*
*📕 तफसीरे सावी,जिल्द 3,सफह 35*
*📕 तफसीरे जमल,जिल्द 3,सफह 35*
*📕 तफसीरे नईमी,जिल्द 1,सफह 174*

*_पहले शैतान आसमानों पर जाया करते थे और वहां फरिश्तो की बातें सुनकर यहां काहिनों और नुजूमियों को बताते मगर जब से हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम तशरीफ लाये तब से इनको आसमानो पर जाने से रोक दिया गया_*

*📕 महाहिबुल लदुनिया,जिल्द 1,सफह 398*

*_हर इन्सान के साथ एक शैतान पैदा होता है जिसका नाम हमज़ाद है जब मुसलमान का इन्तेक़ाल होता है तो रब तआला उसके हमज़ाद को क़ैद कर लेता है लेकिन जब कोई काफिर मरता है तो उसके हमज़ाद को क़ैद नही किया जाता यही भूत कहलाता है अब हर शैतान आपस मे एक दूसरे से पूछ रखते हैं ज़िन्दा इन्सान का हमज़ाद किसी मरे हुए शख्स के हमज़ाद से उसकी ज़िन्दगी की सारी मालूमात करता है और फिर ज़िन्दा शख्स के मुंह से वो सारी बातें बोलता है ताकि उन लोगों को गुमराह कर सके और कुछ लोग इसी को पुनर्जन्म या आवा-गवन समझ लेते हैं_*

*📕 अलमलफ़ूज़,हिस्सा 3,सफह 28*
*📕 तफसीरे नईमी,जिल्द 1,सफह 674*

*_हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम का हमज़ाद बल्कि तमाम नबियों के हमज़ाद उनकी सोहबत में रहकर मुसलमान हो गए_*

*📕 तफसीरे नईमी,जिल्द 1,सफह 221*
*📕 तफसीरे अलम नशरह,सफह 199*

*_इब्लीस का परपोता हम्मा बिन हीम बिन लाक़ीस बिन इब्लीस भी हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम की बारगाह में हाज़िर होकर आप पर ईमान लाया और अपनी उम्र के बारे में कहा कि जब क़ाबील ने हाबील का क़त्ल किया तो मैं उस वक़्त बच्चा था_*

*📕 क्या आप जानते हैं,सफह 484*
*📕 खुलासतुत तफासीर,सफह 170*

*_मुअल्लमुल मलाकूत होने और लाखों बरस इबादत करने के बावजूद सिर्फ एक सज्दा हज़रते आदम अलैहिस्सलाम को ना करने की बिना पर उसको रांदये बरगाह कर दिया गया,उसके एक सजदा ना करने में 4 कुफ्र थे मुलाहज़ा फरमाएं_*

*_1. उसने कहा कि तूने मुझे आग से बनाया और इसको मिटटी से मैं इससे बेहतर हूं,इसमें मलऊन का मक़सद ये था कि तू बेहतर को अदना के आगे झुकने का हुक्म दे रहा है जो कि ज़ुल्म है,और उसने ये ज़ुल्म की निस्बत खुदा की तरफ की जो कि कुफ्र है_*

*_2. एक नबी को हिकारत से देखा,और नबी को बनज़रे हिक़ारत देखना कुफ्र है_*

*_3. नस के होते हुए भी अपना फलसफा झाड़ा,मतलब ये कि जब हुक्मे खुदा हो गया कि सज्दा कर तो उस पर अपना क़ौल लाना कि मैं आग से हूं ये मिटटी से है ये भी कुफ्र है_*

*_4. इज्माअ की मुखालिफत की,यानि जब सारे के सारे फरिश्ते झुक गए तो इसको भी झुक जाना चाहिए था चाहे बात समझ में आये या नहीं क्योंकि इज्माअ की मुखालिफत भी कुफ्र है_*

*📕 नुज़हतुल मजालिस,जिल्द 2,सफह 34*

*_सोचिये कि जब लाखों बरस इबादत करने वाला एक नबी यानि हज़रत आदम अलैहिस्सलाम की तौहीन करने की बनिस्बत लाअनती हो गया तो जो लोग नबियों के सरदार हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम की तौहीन कर रहे हैं उनका क्या होगा,उलमाये इकराम फरमाते हैं कि जिसने हुज़ूर की नालैन शरीफ की तौहीन कर दी वो भी काफिर है और आपके नालें पाक के नक्श के लिए आलाहज़रत फरमाते हैं कि_*

*_उलमाये इकराम ने हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम की नालैन मुबारक की तस्वीर को अस्ल की तरह बताया और उसकी वही इज़्ज़त और एहतेराम है जो असल की है_*

*📕 अहकामे तस्वीर,सफह 20*

*_तो जब नालैन मुबारक की या सिर्फ उसकी नक्ल यानि तस्वीर की तौहीन करने वाला काफिर है तो जो आपकी ज़ात व औसाफ व हाल व अक़वाल की तौहीन करेगा वो कैसे ना काफिर होगा बल्कि वो काफिर नहीं काफिर से बदतर है_*

*_रिवायत में आता है कि एक दिन ये हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम की बारगाह में हाज़िर हुआ और कहा कि रब से मेरी शिफारिश कर दीजिए मैं तौबा करना चाहता हूं,आपने उसके लिए दुआ फरमाई तो मौला फरमाता है कि ऐ मूसा इससे कह दो कि जाकर आदम की क़ब्र को सज्दा करले मैं इसे माफ कर दूंगा,ये बात जब हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम ने मलऊन को बताई तो खबीस कहने लगा कि जब मैंने उनको उनकी ज़िन्दगी में सज्दा नहीं किया तो अब उनकी क़ब्र को सज्दा करूंगा ये कहकर चला गया,यहां तक कि मौला उसको जहन्नम में 1 लाख साल जलाने के बाद निकालेगा और कहेगा कि अब भी आदम को सज्दा करले तो मैं तुझे माफ कर दूंगा इस पर वो इंकार करेगा और हमेशा के लिए जहन्नम में डाला जायेगा_*

*📕 तफसीर रूहुल बयान,जिल्द 1,सफह 72*
*📕 तफसीरे अज़ीज़ी,जिल्द 1,सफह 158*
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                 *_जोइन_*

*_मदर्सा हनफिया वारिसुल उलूम_*
        *_9628204387_*

*_मुजीबुर्रहमान क़ादरी_*


             *_खादिम_*

*_दारूल उलूम हनफिया वारिसुल उलूम क़स्बा बेलहरा ज़िला बाराबंकी यू पी_*






POST=14



 *_مدرسہ حنفیہ وارث العلوم_*
*_मदर्सा हनफिया वारिसुल उलूम_*


             *मुताफर्रिकात*


*_1⃣  साइंस्दां कहते हैं कि पृथ्वी यानि ज़मीन घूमती है जबकि ऐसा नहीं है ज़मीन बिल्कुल साकिन यानि ठहरी हुई है और घूमने का काम ये सूरज चांद सितारे करते हैं_*

*📕 फतावा रज़वियह,जिल्द 9,सफह 177*


*_2⃣  फासिक़ अगर सलाम करे या मुसाफा करना चाहे तो कर सकता है मगर पहल ना करें_*

*📕 अलमलफूज़,हिस्सा 3,सफह 72*

*_3⃣  हज़रत अब्दुल्लाह बिन सलाम रज़ियल्लाहु तआला अन्हु ने हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम से नमाज़ में क़ुरान के साथ कुछ आयतें तौरैत शरीफ से पढ़ने की इजाज़त मांगी जिसपर अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त क़ुरान में इरशाद फरमाता है कि "ऐ ईमान वालो अगर मुसलमान हुए हो तो पूरे पूरे इस्लाम में दाख़िल हो जाओ और शैतान की पैरवी ना करो कि वो तुम्हारा खुला दुश्मन है" सोचिये कि जब एक आसमानी और हक़ किताब पढ़ने की हमें इजाज़त नहीं दी गयी तो जो मुसलमान काफिरों की मुशाबहत करते हैं उनके त्यौहार मनाते हैं या मनाने जाते हैं उसकी मुबारकबाद देते हैं वो किस क़दर ज़ुल्म करते हैं_*

*📕 अलमलफूज़,हिस्सा 4,सफह 22*

*_4⃣  वहाबी ना तो मुसलमान है और ना ही उसकी मस्जिद मस्जिद है और ना उसकी नमाज़ नमाज़,जब उनकी नमाज़ बातिल है तो अज़ान भी बातिल हां मगर अल्लाह और उसके हबीब का नाम सुने अगर चे किसी काफिर के भी मुंह से तो ताज़ीमन जल्ला शानहू और सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम कहे_*

*📕 अलमलफूज़,हिस्सा 1,सफह 95*

*_5⃣  तफ़ज़ीली वो फिरका है जो कि मौला अली रज़ियल्लाहु तआला अन्हु को हज़रते अबू बकर रज़ियल्लाहु तआला अन्हु व हज़रते उमर रज़ियल्लाहु तआला अन्हु से अफज़ल जानता है,बाकी तमाम बातों में अहले सुन्नत वल जमात के साथ है,बिला शुबह ऐसा अक़ीदा रखने वाला भी गुमराह व बिदअती है_*

*📕 फतावा अज़ीज़िया,जिल्द 1,सफह 183*

*_6⃣  नमाज़ी के सामने से एक तरफ से आते हुए दूसरी तरफ निकल जाना ये बहुत बड़ा गुनाह है लेकिन अगर कोई ऐन नमाज़ी के सामने नमाज़ पढ़ रहा था और उसकी नमाज़ खत्म हो गई तो वो दाएं बाएं जिधर से चाहे निकलकर जा सकता है इसको हटना कहेंगे नमाज़ काटना नहीं_*

*📕 बहारे शरीयत,हिस्सा 3,सफह 156*

*_7⃣  ताक,मेहराब या दरख्तों में किसी बुज़ुर्ग या वली का क़याम बताना सरासर जिहालत है,वहां अगरबत्ती मोमबत्ती जलाना या फूल वगैरह डालना फिज़ूल है_*

*📕 अहकामे शरीयत,हिस्सा 1,सफह 32*

*_8⃣  आजकल कुछ पीर ऐसे भी सुनने में आ रहे हैं जो कि माज़ अल्लाह मुसलमान किये बग़ैर मुरीद कर लेते हैं,जबकि आलाहज़रत अज़ीमुल बरक़त रज़ियल्लाहु तआला अन्हु फरमाते हैं कि "कोई काफिर ख्वाह मुशरिक हो या मोहिद हरगिज़ दाखिले सिलसिला नहीं हो सकता जबतक कि इस्लाम ना क़ुबूल करे" ऐसे पीर पीर नहीं बल्कि शैतान के चेले हैं लिहाज़ा ऐसो से दूर रहने में ही ईमान की आफियत है_*

*📕 फतावा रज़वियह,जिल्द 6,सफह 157*

*_9⃣  बाज़ लोग नमाज़े जनाज़ा में तकबीर के वक़्त अपना मुंह आसमान की तरफ उठाते हैं ऐसा करना सख्त मना है_*

*📕 गलत फहमियां और उनकी इस्लाह,सफह 54*

*_🔟 जुमे की रात और दिन में और रमज़ान शरीफ में किसी पर भी अज़ाब नहीं होता,हां मुसलमान हमेशा के लिए महफूज़ हो जाता है मगर काफिर पर इसके बाद अज़ाब लौट आता है_*

*📕 शराहुस्सुदूर,सफह 76*
*📕 अलअश्बाह वन्नज़ायेर,सफह 564*

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                   *_जोइन_*
*_मदर्सा हनफिया वारिसुल उलूम_*
      *_9628204387_*

*_मुजीबुर्रहमान क़ादरी_*

                   *खादिम*

*_दारूल उलूम हनफिया वारिसुल उलूम क़स्बा बेलहरा ज़िला बाराबंकी यू पी_*






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 *_مدرسہ حنفیہ وارث العلوم_*
*_मदर्सा हनफिया वारिसुल उलूम_*



      *वली की पहचान*


*_हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम इरशाद फरमाते हैं कि क़यामत के दिन अल्लाह के कुछ बन्दे ऐसे होंगे जो ना नबी होंगे और ना शुहदा मगर उनके मक़ाम और बुलंदी को देखकर बाज़ अम्बिया और शुहदा भी रश्क करेंगे_*

*📕 अबू दाऊद,जिल्द 3,सफह 288*

*_अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त क़ुरान मुक़द्दस में इरशाद फरमाता है कि_*

*_बेशक अल्लाह के वली मुत्तक़ी ही होते हैं_*

*📕 पारा 9,सूरह इंफाल,आयत 34*

*_और तक़वा परहेज़गारी खशीयत बग़ैर इल्म के नामुमकिन है जैसा कि मौला क़ुरान में इरशाद फरमाता है कि_*

*_अल्लाह से उसके बन्दों में वही डरते हैं जो इल्म वाले हैं_*

*📕 पारा 22,सूरह फातिर,आयत 28*

*_हुज़ूर ग़ौसे पाक रज़ियल्लाहु तआला अन्हु फरमाते हैं कि तसव्वुफ़ सिर्फ गुफ्तुगू नहीं बल्कि अमल है और फरमाते हैं कि जिस हक़ीक़त की गवाही शरीयत ना दे वो गुमराही है_*

*📕 फुतुहूल ग़ैब,सफह 82*

*_हज़रत मुजद्दिद उल्फ सानी रज़ियल्लाहु तआला अन्हु फरमाते हैं कि जो शरीयत के खिलाफ हो वो मरदूद है_*

*📕 मकतूबाते इमाम रब्बानी,हि 1,मकतूब 36*

*_हज़रत शहाब उद्दीन सहरवर्दी रज़ियल्लाहु तआला अन्हु फरमाते हैं कि जिसको शरीयत रद्द फरमाये वो हक़ीक़त नहीं बेदीनी है_*

*📕 अवारेफुल मआरिफ,जिल्द 1,सफह 43*

*_हज़रत इमाम गज़ाली रज़ियल्लाहु तआला अन्हु फरमाते हैं कि जिस हक़ीक़त को शरीयत बातिल बताये वो हक़ीक़त नहीं बल्कि कुफ्र है_*

*📕 तजल्लियाते शेख मुस्तफा रज़ा,सफह 149*

*_हज़रत बायज़ीद बुस्तामी रज़ियल्लाहु तआला अन्हु फरमाते हैं कि अगर तुम किसी को देखो कि वो हवा में उड़ता है पानी पर चलता है ग़ैब की खबरें बताता है मगर शरीयत की इत्तेबा नहीं करता तो समझलो कि वो मुल्हिद व गुमराह है_*

*📕 सबा सनाबिल शरीफ,सफह 186*

*_एक शख्स हज़रत जुनैद बग़दादी रज़ियल्लाहु तआला अन्हु से ये सोचकर मुरीद होने के लिए आया कि हज़रत से कोई करामात देखूंगा तो मुरीद हो जाऊंगा,वो आया और आकर आस्ताने में रहने लगा इस तरह पूरे 10 साल गुज़र गए और 10 सालों के बाद वो नामुराद होकर वापस जाने लगा,हज़रत ने उसे बुलवाया और कहा कि तुम 10 साल पहले आये यहां रहे और अब बिना बताए जा रहे हो क्यों,तो कहने लगा कि मैंने आपकी बड़ी तारीफ सुनी थी कि आप बा करामत बुज़ुर्ग हैं इसलिए आया था कि आपसे कोई करामात देखूंगा तो आपका मुरीद हो जाऊंगा मगर पिछले 10 सालों में मैंने आपसे एक भी करामात सादिर होते हुए नहीं देखी इसलिए जा रहा हूं,हज़रत जुनैद बग़दादी रज़ियल्लाहु तआला अन्हु फरमाते हैं कि ऐ जाने वाले तूने पिछले 10 सालों में मेरा खाना पीना,सोना जागना,उठना बैठना सब कुछ देखा मगर क्या कभी ऐसा कोई खिलाफे शरह काम भी होते देखा,इसपर वो कहने लगा कि नहीं मैंने आपसे कभी कोई खिलाफे शरह काम होते नहीं देखा,तो आप फरमाते हैं कि ऐ शख़्स क्या इससे बड़ी भी कोई करामात हो सकती है कि 10 सालों के तवील अरसे में एक इंसान से कोई खिलाफे शरह काम ही ना हो_*

*📕 तारीखुल औलिया,जिल्द 1,सफह 67*

*_हुज़ूर ग़ौसे पाक रज़ियल्लाहु तआला अन्हु फरमाते हैं कि मैं एक जंगल में था भूख और प्यास का सख्त गल्बा था,अचानक मेरे सामने एक रौशनी छा गयी और एक आवाज़ आई कि ऐ अब्दुल कादिर मैं तेरा रब हूं और तुझसे बहुत खुश हूं इसलिए आजसे मैंने तुमपर हर हराम चीज़ें हलाल फरमा दी और तुम पर से नमाज़ भी माफ फरमा दी,ये सुनते ही मैंने लाहौल शरीफ पढ़ा तो फौरन वो रौशनी गायब हो गयी और एक धुवां सा रह गया फिर आवाज़ आई कि ऐ अब्दुल कादिर मैं शैतान हूं तुझसे पहले इसी जगह पर मैंने 70 औलिया इकराम को गुमराह किया है मगर तुझे तेरे इल्म ने बचा लिया,इसपर हुज़ूर ग़ौसे पाक रज़ियल्लाहु तआला अन्हु फरमाते हैं कि ऐ मरदूद मुझे मेरे इल्म ने नहीं बल्कि रब के फज़्ल ने बचाया है,ये सुनते ही इब्लीस फरार हो गया_*

*📕 बेहिज्जतुल असरार,सफह 120*

*इन सब बातों का निचोड़ ये है कि*

*_अगर हवा में उड़ना विलायत होती तो इब्लीस लईन सबसे बड़ा वली होता कि सातवीं ज़मीन के भी नीचे तहतुस्सरा में ठहरता है मगर जैसे ही नाम लिया पास आकर बैठ जाता है कि 3500 साल से भी ज़्यादा का सफर वो पल भर में तय कर लेता है,मगर वो वली नहीं_*

*_अगर पानी पे चलना विलायत होती तो काफिर भी अपने जादू से पानी पर चला करते हैं,मगर वो वली नहीं_*

*_अगर ग़ैब की खबर देना विलायत होती तो कभी कभार नुजूमी यानि स्ट्रोलोजर भी सही भविष्यवाणी कर दिया करते हैं,मगर वो वली नहीं_*

 *_नमाज़ छोड़ने वाला,दाढ़ी मुंडाने वाला,फोटो खींचने खिंचाने वाला,म्यूजिक सुनने वाला,ना महरम औरतों की सोहबत में बैठने वाला,झूठ बोलने वाला फासिक़ है हरगिज़ वली नहीं_*

*_अलहासिल जो इल्म वाला होगा वही तक़वे वाला होगा और जो तक़वे वाला होगा वही अल्लाह का वली होगा लिहाज़ा वली को उसके तक़वे से पहचाने करामात से नहीं,अगर कोई मुझसे मेरे पीरो मुर्शिद हुज़ूर ताजुश्शरिया दामत बरकातोहुमुल आलिया के बारे में पूछता है तो यक़ीन जानिये मैं सिर्फ इतना कहता हूं कि मेरी बातों पर भरोसा मत करो तुम खुद जाकर एक बार अपनी आंखों से उनका दीदार कर आओ खुद बखुद समझ जाओगे कि वली कैसा होता है और करामत क्या होती है_*

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               *_जोइन_*
*_मदर्सा हनफिया वारिसुल उलूम_*
     *_9628204387_*

*_मुजीबुर्रहमान क़ादरी_*


                 *_खादिम_*

*_दारूल उलूम हनफिया वारिसुल उलूम क़स्बा बेलहरा ज़िला बाराबंकी यू.पी_*






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 *_مدرسہ حنفیہ وارث العلوم_*
*_मदर्सा हनफिया वारिसुल उलूम_*
             

               *हज़रत शीश अलैहिस्सलाम*


*_हज़रत शीश अलैहिस्सलाम के बारे में ज़्यादा कुछ किताबों में नहीं लिखा है मगर जितना मेरी नज़र में आया दर्ज करता हूं_*

*_हज़रते हव्वा रज़ियल्लाहु तआला अन्हा 40 मर्तबा हामिला हुईं,39 बार 2 बच्चे साथ में पैदा हुए एक लड़का और एक लड़की,और चालीसवीं बार में हज़रत शीश अलैहिस्सलाम अकेले पैदा हुए_*

*📕 तज़किरातुल अम्बिया,सफह 56*

*_आपका लक़ब हिब्तुल्लाह है वो युं कि आपको अल्लाह ने हज़रते हाबील के बदले में हज़रत आदम अलैहिस्सलाम को अता फरमाया था_*

*📕 तफसीरे सावी,जिल्द 1,सफह 242*

*_आपके निकाह का खुतबा हज़रत जिब्रील अलैहिस्सलाम ने पढ़ाया,आपकी उम्र 912 साल हुई और आपकी मज़ार के बारे में इख्तिलाफ है बाज़ जबले अबी क़ुबैस में बताते हैं_*

*📕 ज़रकानी,जिल्द 1,सफह 65*

*_और बाज़ लोग हिंदुस्तान के शहर आयोध्या में जो कि शहर फैज़ाबाद के करीब है वहां बताते हैं_*

*📕 तफसीरे नईमी,जिल्द 3,सफह 664*

            *हज़रत इदरीस अलैहिस्सलाम*

*_आपका नाम अख्नूख है कसरते दर्स की वजह से आपको इदरीस का लक़ब मिला_*

*📕 तफसीरे सावी,जिल्द 3,सफह 32*

*_आपका नस्ब नामा यूं है अख्नूख बिन यूरिद बिन महलाबील बिन अनूश बिन क़ैतान बिन शीश बिन आदम_*

*📕 अलइतक़ान,जिल्द 2,सफह 175*

*_आप हज़रत आदम अलैहिस्सलाम की ज़िन्दगी में पैदा हो चुके थे,आपको हज़रत आदम अलैहिस्सलाम का 100 साल का ज़माना मिला मगर नबी होने का ऐलान आपने हज़रत आदम अलैहिस्सलाम के विसाल के 200 साल बाद किया_*

*📕 तफसीरे सावी,जिल्द 3,सफह 73*

*_आपने 65 साल की उम्र में बरुखा नामी औरत से निकाह किया जिससे आपको मतुशल्ख नाम का एक फरज़न्द हुआ_*

*📕 माअरेजुन नुबूवत,जिल्द 1,सफह 67*

*_सबसे पहले सितारों के ज़रिये हिसाब करना,कलम से लिखना,सिला हुआ कपड़ा पहनना,चीज़ों का वज़न और कपड़ों की पैमाईश करना,और असलहों की ईजाद आपने ही की_*

*📕 तज़किरातुल अम्बिया,सफह 63*

*_आप पर 30 सहीफे नाज़िल हुए_*

*📕 तफसीरे खज़ाएनुल इर्फान,सफह 369*

*_आप ज़िंदा हैं मगर कहां हैं इसमें इख्तिलाफ है,बुखारी शरीफ की रिवायत के मुताबिक आप चौथे आसमान पर हैं और कअब अहबार की रिवायत के मुताबिक आप जन्नत में हैं,वाकया कुछ यूं है कि एक रोज़ आप खेतों में काम कर रहे थे सूरज की तपिश से आपकी पीठ मुबारक जल गई,आपने सोचा कि जब ये सूरज ज़मीन से 2000 साल की दूरी पर है तो हमारा ये हाल है तो जो फरिश्ता सूरज को चलाने पर मामूर होगा उसका क्या हाल होगा,ये सोचकर आपने रब की बारगाह में दुआ की कि ऐ मौला उस फरिश्ते पर जो कि सूरज पर मामूर है उसवपर रहम फरमा नबी की दुआ थी सो फौरन क़ुबूल हुई और फरिश्ते को आराम मिला,तो उसने रब की बारगाह में अर्ज़ किया कि ऐ मौला मुझपर ये नरमी किस लिए तो मौला फरमाता है कि मेरे बन्दे इदरीस ने तेरे लिए दुआ की है जिसका तुझे फायदा मिला है,तो फरिश्ता अर्ज़ करता है कि ऐ मौला मुझे अपने बन्दे का शुक्रिया अदा करने का मौक़ा दे,तो मौला ने उसको इजाज़त दे दी,वो हज़रत इदरीस अलैहिस्सलाम की बारगाह में हाज़िर होकर उनका शुक्रगुज़ार हुआ और आपसे कहा की अगर आपको मेरी कोई भी ज़रूरत हो तो बताएं मैं आपकी पूरी मदद करूंगा,तब हज़रत इदरीस अलैहिस्सलाम ने जन्नत को देखने की तम्मन्ना ज़ाहिर की तो वो कहने लगा कि मैं खुद तो इसमें आपकी कोई मदद नहीं कर सकता मगर मेरी पहचान इस्राईल से है मैं आपको उनके पास ले चलता हूं वो आपकी ज़रूर मदद करेंगे,तब आप हज़रते मलकुल मौत के पास हाज़िर हुए और पूरा वाक़िया कह सुनाया तो हज़रत इस्राईल अलैहिस्सलाम कहते हैं कि बग़ैर मरे हुए तो कोई जन्नत में नहीं जा सकता हां मैं ये कर सकता हूं कि आपकी रूह क़ब्ज़ करके फौरन आपके जिस्म में डाल दूं तो ये मुमकिन है,तो हज़रत इदरीस अलैहिस्सलाम फरमाते हैं कि ठीक है ऐसा ही करो तो उन्होंने रूह क़ब्ज़ करके फौरन जिस्म में डाल दी फिर उन्हें जहन्नम के ऊपर बने हुए पुल यानि पुल-सिरात से गुज़ारकर जन्नत में पहुंचा दिया और खुद बाहर रुक गए कि आप जन्नत की सैर करके वापस तशरीफ ले आयें,जब बहुत देर हो गई तो हज़रत इस्राईल अलैहिस्सलाम ने आपको आवाज़ दी कि हज़रत अब चला जाए तो हज़रत इदरीस अलैहिस्सलाम फरमाते हैं कि कहां चला जाये रब फरमाता है कि हर बन्दे को मौत का मज़ा चखना है सो मैं चख चुका फिर फरमाता है कि हर बन्दे को पुल-सिरात से गुज़रना होगा सो मैं वहां से भी गुज़र चुका फिर फरमाता है कि जो एक बार जन्नत में दाखिल हो गया वो कभी भी उससे बाहर नहीं निकाला जायेगा तो अब मैं यहां आ चुका और यहां से कहीं नहीं जाऊंगा,जब हज़रत इदरीस अलैहिस्सलाम ने हज़रत इस्राईल अलैहिस्सलाम को ये दलील दी तो मौला ने फरमाया कि ऐ इस्राईल मेरे बन्दे ने सच कहा और जो कुछ किया वो मेरे इज़्न से ही किया सो उसे वहीं रहने दो_*

*📕 तज़किरातुल अम्बिया,सफह 64*

*_ये वाक़िया दोशम्बे के दिन पेश आया_*

*📕 नुज़हतुल मजालिस,4,सफह 47*

*_किस उम्र में ये वाक़िया पेश आया इसमें कई क़ौल हैं बाज़ ने 350 साल कहा और बाज़ ने 400 साल और बाज़ ने 450 साल की उम्र बताई_*

*📕 अलइतकान,जिल्द 2,सफह 175*
*📕 जलालैन,हाशिया 9,सफह 276*
*📕 तफसीरे सावी,जिल्द 3,सफह 73*
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*_मदर्सा हनफिया वारिसुल उलूम_*
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*_मुजीबुर्रहमान क़ादरी_*

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*_दारूल उलूम हनफिया वारिसुल उलूम क़स्बा बेलहरा ज़िला बाराबंकी यू.पी_*






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*_मदर्सा हनफिया वारिसुल उलूम_*


             *नमाज़*


*_बच्चा जब 7 साल का हो जाए तो उसे नमाज़ का हुक्म दो और और जब 10 साल का हो जाए तो मारकर पढ़ाओ_*

*📕 अबु दाऊद,जिल्द 1,सफह 77*

*_मोमिन और काफिर के दरमियान फर्क़ सिर्फ नमाज़ का है_*

*📕 निसाई,जिल्द 1,सफह 81*

*_क़यामत के दिन बन्दे से आमाल में सबसे पहले पूछ नमाज़ की होगी_*

*📕 कंज़ुल उम्माल,जिल्द 2,सफह 282*

*_जिसकी अस्र की नमाज़ फौत हो गई उसका अमल ज़ाया हो गया_*

*📕 बुखारी,जिल्द 1,सफह 78*

*_जो शख्स जानबूझकर एक वक़्त की नमाज़ छोड़ दे तो उसलपर से अल्लाह का ज़िम्मा उठ गया_*

*📕 अलइतहाफ,जिल्द 6,सफह 392*

*_नमाज़ में सुस्ती करने वाले क़यामत के दिन सुअर की सूरत में उठेंगे_*

*📕 क्या आप जानते हैं,सफह 439*

*_जहन्नम में एक वादी है जिसका नाम वैल है उसकी गर्मी का ये हाल है कि उससे जहन्नम भी पनाह मांगता है उसमे बे नमाज़ी डाले जायेंगे_*

*📕 पारा 30,सूरह माऊन,आयत 4*
*📕 बहारे शरीयत,हिस्सा 3,सफह 7*

*_जो नमाज़ों को उनके वक़्त पर पढ़े और उसके आदाब की हिफाज़त करे तो मौला पर अहद है कि उसको जन्नत में दाखिल करे और जिसने नमाज़ों को छोड़ा या पढ़ने में उसके आदाब व अरकान सही ना रखा तो उस पर कोई अहद नहीं चाहे तो उसे बख्शे और चाहे अज़ाब दे_*

*📕 मज्मउज़ ज़वायेद,जिल्द 1,सफह 302*

*_हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम की बारगाह में एक औरत हाज़िर हुई और कहा कि आप अल्लाह से मेरी सिफारिश फरमा दीजिये कि मुझसे बहुत बड़ा गुनाह सरज़द हो गया है आपने पूछा कि क्या तो कहने लगी कि मैंने ज़िना कराया और उससे जो बच्चा पैदा हुआ उसे क़त्ल कर दिया,हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम फरमाते हैं कि ऐ फासिक़ा फाजिरा औरत निकल यहां से कहीं तेरी नहूसत की वजह से हम पर भी अज़ाब नाज़िल ना हो जाए वो वहां से चली गई,हज़रत जिब्रील अलैहिस्सलाम हाज़िर हुए और फरमाया कि आपने उस तौबा करने वाली औरत को क्यों वापस कर दिया तो आप फरमाते हैं कि मैंने उससे ज़्यादा बुराई वाला कोई ना देखा तो हज़रत जिब्रील अलैहिस्सलाम फरमाते हैं कि जो शख्स जानबूझकर नमाज़ छोड़ता है वो इस औरत से भी ज़्यादा बदकार है_*

*📕 किताबुल कबायेर,सफह 44*

*_जो शख्स नमाज़ नहीं पढ़ता उसे दुनिया और आखिरत में क्या सज़ाएं मिलती है वो भी मुलाहज़ा फरमा लें_*

*5 दुनिया की सज़ा*

*_उसकी उम्र में बरकत खत्म हो जायेगी_*

*_उसके चेहरे से नूर हट जायेगा_*

*_उसके किसी आमाल का अज्र नहीं मिलेगा_*

 *_उसकी कोई दुआ क़ुबूल नहीं होगी_*

*_उसे नेकों की दुआ से भी फैज़ नहीं मिलेगा_*

*_3 मरते वक़्त की सज़ा_*

*_वो ज़लील होकर मरेगा_*

*_भूखा मरेगा_*

*_प्यासा मरेगा ऐसा कि अगर दुनिया के तमाम समन्दर का भी पानी पिला दिया जाए तब भी उसकी प्यास ना बुझेगी_*


*_3 क़ब्र की सज़ा_*


*_उस पर क़ब्र तंग होगी ऐसी कि उसकी पसलियां टूटकर उस दूसरे में पैवस्त हो जायेंगी_*

*_उसके नीचे आग जला दी जाएगी_*

*_उसकी क़ब्र में शुजाउल अक़रा नाम का एक गंजा सांप मुक़र्रर किया जायेगा जो उसे सज़ा देगा,उसकी आंखें आग की और नाखून लोहे के हैं और उसकी आवाज़ बिजली की गरज की तरह है,तो अगर फज्र की नमाज़ नहीं पढ़ी तो वो फज्र से लेकर ज़ुहर तक मारता रहेगा अगर ज़ुहर पढ़ ली होगी तो छोड़ देगा वरना ज़ुहर से अस्र तक मारेगा और युंही हमेशा चलता रहेगा,और उसकी एक ज़र्ब से मुर्दा 70 गज ज़मीन में धंस जायेगा_*

*3 हश्र की सज़ा*

*_उससे सख्ती से हिसाब लिया जायेगा_*

*_रब तआला उससे नाराज़ होगा_*

*_उसे जहन्नम में दाखिल किया जायेगा_*

*📕 मुक़ाशिफातुल क़ुलूब,सफह 392*

*_और अब नमाज़ के फायदे भी पढ़ लीजिए_*

*_कशाईश रिज़्क़ मिलेगा_*

*_अज़ाबे क़ब्र से महफूज़ रहेगा_*

*_नामये आमाल दाहिने हाथ में मिलेगा_*

*_पुल सिरात से बिजली की तरह गुज़र जायेगा_*

*_जन्नत में दाखिल होगा_*

*📕 किताबुल कबायेर,सफह 41*

*अब इनाम चाहिए या सज़ा फैसला आप खुद करें मर्ज़ी आपकी क्योंकि जिस्म है आपका*

*_अगर इन सबको पढ़कर दिल में कुछ खौफ पैदा हो गया हो और तौबा का इरादा रखते हों तो फौरन ये काम करें कि एक अच्छे हाफिज़ को लगाकर सबसे पहले क़ुरान को मखरज से पढ़ना सीखें और नमाज़ के तमाम मसायल को जानने के लिए अब्दुल सत्तार हमदानी की किताब मोमिन की नमाज़ जो कि हिंदी में भी मौजूद है ले आयें,सबसे पहले अपनी नमाज़ सही कर लीजिए इन शा अल्लाह दुनिया और आखिरत दोनों सही हो जाएगी_*

*_आज से बल्कि अभी से नमाज़ शुरू कर दीजिए और जो नमाज़ें क़ज़ा हो चुकीं उन्हें अदा करना शुरू करें,जिसकी नमाज़ें बहुत ज़्यादा हैं तो उनके लिए शरीयत ने कुछ सहूलत दी है मैं पहले बता चूका हूं आज फिर बता देता हूं,मसलन एक शख्स 40 साल की उम्र तक पहुंच गया और उसने नमाज़ें माज़ अल्लाह क़ज़ा कर रखी है तो बालिग़ होने के बाद से हर दिन की 20 रकात नमाज़ पढ़नी होगी पांचों वक़्त की फर्ज़ और इशा की वित्र,तो इस तरह 1 साल की 365 फज्र की और इतनी ही ज़ुहर अस्र मग़रिब इशा और वित्र,अब इसी हिसाब से कितने साल की नमाज़ क़ज़ा हुई है उसे पढ़ना होगा यानि 40 साल में से 12 साल निकाल दीजिए बचे 28 साल तो उसे 28 साल की नमाज़ पढ़नी होगी,और ये नमाज़ें मकरूह वक़्तों के अलावा यानि सूरज निकलने के 20 मिनट बाद और सूरज डूबने से 20 मिनट पहले और निस्फुन्नहार जो कि सूरज के बीचों बीच आने को कहते हैं ये पूरे साल में 39 मिनट से लेकर 47 मिनट तक होता है इनमे छोड़कर कभी भी पढ़ सकते हैं,बेहतर ये है की सुन्नते ग़ैर मुअक़्किदा और नफ़्लों की जगह क़ज़ा पढ़ी जाए और बेहतर यही है कि ये नमाज़ें घर में छिपकर पढ़ी जाए कि नमाज़ क़ज़ा करना गुनाह है और उसको ज़ाहिर करना ये भी गुनाह है,और अगर मस्जिद में ही पढ़ता है तो बाकी नमाज़ें पढ़ने में तो हर्ज नहीं कि किसी को इल्म नहीं होगा कि क्या पढ़ता है मगर वित्र पढ़ने में ये करे कि तीसरी रकात में जो कानो तक हाथ उठाकर अल्लाहो अकबर कहते हैं तो अल्लाहो अकबर कहे मगर हाथ ना उठाये और अगर घर में पढ़ता है तो हाथ भी उठाये,आलाहज़रत जल्द से जल्द इन नमाज़ों को आसानी से अदा करने के लिए फरमाते हैं कि_*

 *_नियत युं करें "सब में पहली वो फज्र जो मुझसे क़ज़ा हुई" अल्लाहु अकबर कहकर नियत बांध ले,युंही फज्र की जगह ज़ुहर अस्र मग़रिब इशा वित्र कहकर सिर्फ नमाज़ का नाम बदलता रहे बाकी सब उसी तरह कहे_*

*_सना छोड़ दें और क़याम में बिस्मिल्लाह से शरू करें बाद सूरह फातिहा के कोई सूरत मिलाकर रुकू करे और तस्बीह 3 मर्तबा की जगह सिर्फ 1 बार पढ़ें फिर युंही सजदों में भी 1 बार ही तस्बीह पढ़ें,2 रकात पर क़ायदा करने के बाद तीसरी और चौथी रकात के क़याम में सिर्फ 3 बार सुब्हान अल्लाह कहें और रुकू करे आखरी क़ायदे में अत्तहयात के बाद सिर्फ अल्लाहुम्मा सल्ले अला सय्येदेना मुहम्मदिवं व आलेही कहकर सलाम फेर दें,वित्र की तीनो रकात में सूरह मिलेगी मगर दुआये क़ुनूत की जगह सिर्फ अल्लाहुम्मग़ फिरली कह लेना काफी है_*

*_फरमाते हैं कि अगर किसी ने पक्का इरादा कर लिया कि अब मैं आईन्दा नमाज़ नहीं छोड़ूंगा और अपनी क़ज़ा नमाज़ अपनी ताकत भर अदा करता रहूंगा और फर्ज़ कीजिये 1 ही दिन बाद उसका इन्तेक़ाल हो जाए तो मौला तआला अपनी रहमत से उसकी सब नमाज़ों को अदा लिख देगा_*

*सुब्हान अल्लाह,सुब्हान अल्लाह,सुब्हान अल्लाह*

*📕 अलमलफूज़,हिस्सा 1,सफह 62*

*तो तौबा कीजिये और अपनी नमाज़ों को अदा करना शुरू कीजिये कि मौत का कोई भरोसा नहीं कि कब आ जाये*

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              *इल्मे ग़ैब*  
       

*_और कोई ग़ैब क्या तुमसे निहां हो भला_*
*_जब ना ख़ुदा ही छिपा तुमपर करोडो दुरूद_*

*_msg बड़ा है,लेकिन अगर पूरा पढ़ लिया तो इस मसले में कभी धोखा नहीं खाएंगे इंशा अल्लाह_*

*_क़ुरान में 15 16 आयतें एैसी है जिनको पढ़ने से ये मालूम होता है कि ग़ैब का जानने वाला सिर्फ ख़ुदा ही है और किसी को ग़ैब नहीं मसलन_*

*_1. तुम फरमादो मैं तुमसे नहीं कहता कि मेरे पास अल्लाह के ख़ज़ाने हैं और न ये कहूं कि खुद ही ग़ैब जान लेता हूँ_*

*📕 पारा 7,सूरह इनआम,आयत 50*

*_2. और उसी के पास है कुंजियाँ ग़ैब की और उन्हें वही जानता है_*

*📕 पारा 7,सूरह इनआम,आयत 59*

*_3. तुम फरमादो मैं अपनी जान के बुरे भले का इख्तेयार नहीं रखता मगर जो अल्लाह चाहे_*

*📕 पारा 11,सूरह यूनुस,आयत 49*

*_4. अगर मैं ग़ैब जान लिया करता तो यूँ होता कि मैंने बहुत भलाई जमा करली और मुझे कोई बुराई न पहुँचती_*

*📕 पारा 9,सूरह एराफ़,आयत 188*

*_5. मैं नहीं जानता कि मेरे साथ क्या किया जाएगा और तुम्हारे साथ क्या_*

*📕 पारा 26,सूरह अहकाफ,आयत 9*



*_खैर इसी तरह की 10 11 आयतें और हैं जिनका निचोड़ यही है जैसा कि आपने पढ़ा की ग़ैब का जानने वाला सिर्फ ख़ुदा है और ख़ुदा के सिवा किसी को ग़ैब नहीं अगर क़ुरान की इन आयतों का यही मतलब है जैसा की वहाबी बद अक़ीदों ने समझा और हमें समझाने की कोशिश करते हैं तो इसी क़ुरान में 18,19 आयतें ये भी कह रहीं हैं पढ़िए_*

*_6. और अल्लाह ने आदम को तमाम अश्या के नाम सिखाये_*

*📕 पारा 1,सूरह बक़र,आयत 31*

*_अल्लाह ने आदम अलैहिस्सलाम को 7 लाख ज़बानों का इल्म दिया था_*

*📕 तफ़सीरे नईमी,जिल्द 1,सफह 291*

*_7. और हमने ख़िज़्र को अपने पास से इल्म सिखाया_*

*📕 पारा 15,सूरह कहफ,आयत 65*

*_8. और उसे एक इल्म वाले लड़के ( इस्हाक़ ) की बशारत दी_*

*📕 पारा 26,सूरह ज़ारियात,आयत 28*

*_9. और बेशक याक़ूब साहिबे इल्म हैं हमारे सिखाये से_*

*📕 पारा 13,सूरह यूसुफ,आयत 68*

*_10. और मैं तुम्हे बताता हूँ जो कुछ खाते हो और अपने घरों में जो कुछ जमा करके रखते हो_*

*📕 पारा 3,सूरह आले इमरान,आयत 49*

*_11. याक़ूब ने कहा कि मुझे वो बातें भी मालूम है जो तुम्हे मालूम नहीं_*

*📕 पारा 12,सूरह यूसुफ,आयत 24*

*_ये तो हुई दीगर अम्बिया अलैहिस्सलाम की बातें अब आइये आगे बढ़ें_*

*_12. और ये नबी ( रसूल अल्लाह सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम ) ग़ैब बताने में बख़ील नहीं_*

*📕 पारा 30,सूरह तक़वीर,आयत 24*

*_बख़ील कहते हैं कंजूस को और कंजूस वो होता है जिसके पास माल हो और वो उसे खर्च न करे अगर होगा ही नहीं तो कंजूस न कहेंगे बल्कि फ़क़ीर कहेंगे यहाँ रब अपने महबूब को फरमा रहा है कि मेरा महबूब ग़ैब बताने में कंजूस नहीं मतलब ये कि मैं इन्हे ग़ैब बताता हूँ और ये अपने सहाबा को उस पर इत्तेला कर देते हैं_*

*_13. अल्लाह ग़ैब पर किसी को मुसल्लत नहीं करता सिवाए अपने पसंदीदा रसूलों के_*

*📕 पारा 29,सूरह जिन्न,आयत 26*

*_14. अल्लाह की शान ये नहीं है कि ऐ आम लोगों तुम्हे ग़ैब का इल्म दे हाँ अल्लाह चुन लेता है अपने रसूलों में से जिसे चाहे_*

*📕 पारा 4,सूरह आले इमरान,आयत 179*

*_15. ना ज़मीन में ना आसमान में और ना इससे छोटी और ना उससे बड़ी कोई चीज़ नहीं जो एक रौशन किताब ( क़ुरान ) में ना लिखा हो_*

*📕 पारा 11,सूरह यूनुस,आयत 37-41*

*_लौहे महफूज़ में जो कुछ लिखा है वो सब क़ुरान मुक़द्दस में मौजूद है_*

*📕 अलइतक़ान,जिल्द 1,सफह 58*

*_और उसी क़ुरआन के बारे में अल्लाह फरमाता है कि_*

*_16. रहमान ने अपने महबूब को क़ुरान सिखाया इंसानियत की जान मुहम्मद को पैदा किया मकान व मा यकून का उन्हें बयान सिखाया_*

*📕 पारा 27,सूरह रहमान,आयत 1-4*

*_अब पूरी बात को आपके लफ़्ज़ों में समझाता हूँ क़ुरआन की जिन आयतों में ये है कि ग़ैब का जानने वाला सिर्फ अल्लाह है और किसी को ग़ैब नहीं उसका मतलब ये है कि ग़ैब का बिज़्ज़ात जानने वाला सिर्फ अल्लाह है उसको इल्म जानने की ज़रुरत किसी से न पड़ी जैसे वो अल्लाह है अजली व अबदी यानि हमेशा से है और हमेशा रहेगा उसी तरह उसकी तमाम सिफ़तें भी अजली व अबदी हैं मगर नबियों का इल्म अल्लाह के देने से है और यही हम अहले सुन्नत वल जमात का अक़ीदा है अगर कोई नबी के लिए ग़ैबे ज़ाती जाने बिला शुबह वो काफिर होगा क्योंकि ग़ैबे ज़ाती सिर्फ अल्लाह को है और नबी का इल्म अल्लाह के बताने से और वलियों का इल्म नबी के बताने से है अगर ये तफ़्सीर सही नहीं तो फिर आप ही बताएं कि कुरान की जिन आयतों में रब अपने महबूबों के लिए ग़ैब मान रहा है उसे कैसे पढेंगे क्या तर्जुमा करेंगे क्युंकि क़ुरान की किसी एक भी आयत का इन्कार करना कुफ्र है,वहाबी का काम सिर्फ शाने रिसालत में नुक़्स निकालना है हालांकि नबी की ज़ाते पाक को रब ने बे अ़ैब बनाया है अब एक ऐसी आखिरी आयत पेश करता हूँ कि जिसको पढ़ने के बाद किसी तरह की कोई शक़ की गुंजाइश बाक़ी न रहेगी और मुनाफ़िक़ों के लिए ये आयत 1000 एैटम बम से ज़्यादा खतरनाक है पढ़िए_*

*_17. ऐ महबूब तुम उनसे पूछो तो कहेंगे कि हम तो यूँही हंसी खेल में थे तुम फरमाओ क्या अल्लाह और उसकी आयतों और उसके रसूल पर हँसते हो बहाने न बनाओ तुम काफिर हो चुके मुसलमान होकर_*

*📕 पारा 10,सूरह तौबा,आयत 66*

*_इस आयत का शाने नुज़ूल ये है कि हज़रते अब्बास रज़ी अल्लाहो तआला अन्हु फरमाते हैं कि किसी शख्स की ऊंटनी खो गई उसकी तलाश जारी थी हुज़ूर को जब खबर हुई तो आपने फरमाया कि फलां की ऊंटनी फलां जंगल में है इस पर एक मुनाफ़िक़ बोला की मुहम्मद कहते हैं कि फलां की ऊंटनी फलां जंगल में है वो ग़ैब क्या जाने इसपर ये आयत नाज़िल हुई_*

*📕 तफ़सीर इब्ने जरीर तबरी,जिल्द 10,सफह 105*

*_इस एक आयत से कितने मसले हल हुए ये देखिये_*

*_! नबी अलैहिस्सलाम को ग़ैब है_*

*_! जो नबी के ग़ैब का इंकार करेगा काफिर है_*

*_! हंसी खेल यानि मज़ाक में भी अगर शरीयते मुस्तफा को बीच में लायेगा तो ईमान खत्म_*

*_! दाढ़ी टोपी वाला भी अगर कल्मये कुफ्र बकेगा को काफिर कहा जायेगा_*

*_ये फतवा आलाहज़रत का नहीं है बल्कि ख़ुदा का है और ये फ़तावये रज़वियह में नहीं लिखा है बल्कि क़ुरान में लिखा है_*
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              *_जोइन_*

*_मदर्सा हनफिया वारिसुल उलूम_*
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           *रुखे मुस्तफा*

*_हस्सानुल हिन्द आशिक़े माहे नुबूवत परवानये शम्ये रिसालत इमाम इश्क़ो मुहब्बत हुज़ूरे आलाहज़रत रज़ियल्लाहु तआला अन्हु मेरे आक़ा सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम के चेहरये अनवर के बारे मे इरशाद फरमाते हैं कि_*

*_चांद से मुंह पे ताबां दरख्शां दुरूद_*
*_नमक आग़ीं सबाहत पे लाखों सलाम_*

*_जिस के माथे शफाअत का सेहरा रहा_*
*_उस जबीने सआदत पे लाखों सलाम_*

*_जिन के आगे चिरागे क़मर झिलमिलाये_*
*_उन अज़ारों की तलअत पे लाखों सलाम_*

*_जिस से तारीक दिल झिलमिलाने लगे_*
*_उस चमक वाली रंगत पे लाखों सलाम_*

*_शबनमे बागे हक़ यानि रुख़ का अरक़_*
*_उसकी सच्ची बराक़त पे लाखों सलाम_*

*_1⃣  हज़रते अबु हुरैरह रज़ियल्लाहु तआला अन्हु फरमाते हैं कि मैंने हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम से ज़्यादा हसीन किसी को नहीं देखा और जब मैं चेहरये अक़दस को देखता हूं तो ये मालूम होता है कि आफताब चेहरये मुबारक में जारी है_*

*📕 तिर्मिज़ी,जिल्द 2,सफह 205*

*_2⃣  हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम सूरत और सीरत में तमाम लोगों से ज़्यादा हसीनो जमील थे_*

*📕 मुस्लिम,जिल्द 1,सफह 258*

*_3⃣  हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम का चेहरा मुबारक इतना नूरानी था कि जब वो नूर दीवार पर पड़ता तो दीवारें भी चमक उठतीं_*

*📕 ज़रक़ानी,जिल्द 6,सफह 210*

*_4⃣  उम्मुल मोमेनीन सय्यदना आयशा सिद्दीक़ा रज़ियल्लाहु तआला अंहा फरमातीं हैं कि मैं सहरी के वक़्त कुछ सी रही रही थी कि सुई गिर गई और बड़ी तलाश के बावजूद ना मिली,इतने में रसूले खुदा सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम कमरे में तशरीफ लाये तो उनके चेहरे मुबारक के नूर से पूरा कमरा मुनव्वर हो गया और मैंने बा आसानी सुई ढूंढ़ ली_*

*📕 खसाइसे कुबरा,जिल्द 1,सफह 156*
*📕 नसीमुर्रियाज़,सफह 328*
*📕 जवाहिरुल बहार,सफह 814*

*_5⃣  जब हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम खुश होते तो आपका चेहरा मिस्ल आईने के हो जाता कि दीवारें आपके चेहरे में नज़र आ जाती_*

*📕 ज़रक़ानी,जिल्द 4,सफह 80*

*_6⃣  हज़रत अब्दुल्लाह बिन रुवाह रज़ियल्लाहु तआला अन्हु फरमाते हैं कि हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम के वजूद में वहिये इलाही,मोजेज़ात और दीगर दलाइले नुबूवत का असर और ज़हूर ना भी होता तब भी आपका चेहरा मुबारक ही दलीले नुबूवत को काफी था_*

*📕 ज़रक़ानी,जिल्द 4,सफह 72*

*_7⃣  हज़रत अब्दुल्लाह बिन सलाम रज़ियल्लाहु तआला अन्हु जो कि यहूदियों के बहुत बड़े आलिम थे फरमाते हैं कि जब मैंने पहली बार हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम के चेहरये अनवर को देखा तो मैंने जान लिया कि ये चेहरा किसी झूटे का नहीं हो सकता_*

*📕 अलमुस्तदरक,जिल्द 4,सफह 160*

*_8⃣  हज़रते रबिया बिन्त मऊज़ रज़ियल्लाहु तआला अंहा सहाबिया से किसी ने हुज़ूर के बारे में दरयाफ्त किया तो आप फरमातीं हैं कि ऐ बेटे अगर तू उनका हुस्न देखता तो यक़ीनन पुकार उठता कि सूरज तुलु हो रहा है_*

*📕 बैहक़ी,जिल्द 1,सफह 154*
*📕 दारमी,सफह 23*

*_9⃣  तिर्मिज़ी शरीफ की रिवायत है कि हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम को कोई नज़र भरकर देख नहीं पाता था सिवाये अबू बक्र व उमर के और उन्ही अबू बक्र सिद्दीक़ रज़ियल्लाहु तआला अन्हु से मेरे आक़ा फरमाते हैं कि " ऐ अबू बक्र मुझे मेरे रब के सिवा हक़ीक़तन किसी ने पहचाना ही नहीं_*

*📕 मतालेउल मिरात,सफह 129*

*_🔟 अल्लाह ने अपने महबूब को हुस्ने तमाम अत फरमाया है मगर हम पर ज़ाहिर ना किया और ये अल्लाह का एहसान है वरना हमारी आंखें हुज़ूर के दीदार की ताक़त ना रखती_*

*📕 ज़रक़ानी,जिल्द 5,सफह 198*

*_1⃣1⃣ शायरे रिसालत मआब हज़रते हस्सान बिन साबित रज़ियल्लाहु तआला अन्हु फरमाते है कि जब मैने हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम के चेहरये अनवर को देखा तो मैंने अपनी आंखो को हथेलियों से बन्द कर लिया कि कहीं मेरी आंखो की रौशनी ना चली जाये_*

*📕 जवाहिरुल बहार, जिल्द 2, सफह 347*
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                *_जोइन_*


*_मदर्सा हनफिया वारिसुल उलूम_*
       *_9628204387_*

*_मुजीबुर्रहमान क़ादरी_*

             *_खादिम_*

*_दारूल उलूम हनफिया वारिसुल उलूम क़स्बा बेलहरा ज़िला बाराबंकी यू.पी_*






POST=20



 *_مدرسہ حنفیہ وارث العلوم_*
*_मदर्सा हनफिया वारिसुल उलूम_*


             *_अप्रैल फूल_*


*ये भी एक अलमिया है कि मुसलमान झूट बोलकर या धोखा देकर अपने भाई को बेवकूफ बनाता है और उसपे फख्र करता है कि मैंने फलां को बेवकूफ बनाया हालांकि झूट बोलना और धोखा देना दोनों ही हराम काम  है,जैसा कि हदीसे पाक में मज़कूर है हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम इरशाद फरमाते हैं कि*

*_जिस के अन्दर ये बातें पायी जाए यानि जब बात करे तो झूट बोले वादा करे तो पूरा ना करे और अमानत रखी जाए तो उसमे खयानत करे तो वो खालिस मुनाफिक़ है अगर चे वो नमाज़ पढ़े रोज़ा रखे और मुसलमान होने का दावा करे_*

*📕 मुस्लिम,जिल्द 1,सफह 56*

*_बेशक झूट गुनाह की तरफ ले जाता है और गुनाह जहन्नम में_*

*📕 बुखारी,जिल्द 2,सफह 900*

*_उस शख्स के लिए खराबी है जो किसी को हंसाने के लिए झूट बोले_*

*📕 अत्तर्गीब वत्तर्हीब,जिल्द 3,सफह 599*

*_झूटा ख्वाब बयान करना सबसे बड़ा झूट है_*

*📕 मुसनद अहमद,जिल्द 1,सफह 96*

*_मोमिन की फितरत में खयानत और झूट शामिल नहीं हो सकती_*

*📕 इब्ने अदी,जिल्द 1,सफह 44*

*_झूटे के मुंह को लोहे की सलाखों से गर्दन तक फाड़ा जायेगा_*

*📕 बुखारी,जिल्द 2,सफह 1044*

*अब कुछ हुक्म क़ुरान से भी पढ़ लीजिए*

*_झूटों पर अल्लाह की लानत है_*

*📕 पारा 3,सूरह आले इमरान,आयत 61*

*_बेशक अल्लाह उसे राह नहीं देता जो हद से बढ़ने वाला बड़ा झूटा हो_*

*📕 पारा 24,सूरह मोमिन,आयत 28*

*_मर जाएं दिल से तराशने वाले (यानि झूट बोलने वाले)_*

*📕 पारा 26,सूरह ज़ारियात,आयत 10*

*_झूट और बोहतान वही बांधते हैं जो अल्लाह की आयतों पर ईमान नहीं रखते_*

*📕 पारा 14,सूरह नहल,आयत 105*

*और वादे के ताल्लुक़ से अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त क़ुरान में इरशाद फरमाता है*

*_और वादा पूरा करो कि बेशक क़यामत के दिन वादे की पूछ होगी_*

*📕 पारा 15,सूरह असरा,आयत 34*

*_ऐ ईमान वालो वादों को पूरा करो_*

*📕 पारा सूरह मायदा,आयत 1*

*ज़रा गौर कीजिये कि किस क़दर इताब की वईद आयी है झूट बोलने और धोखा देने के बारे में,हंसी मज़ाक करना या दिल बहलाना हरगिज़ गुनाह नहीं बस शर्त ये है कि झूट ना बोला जाए और किसी का दिल ना दुखाया जाए,हां मगर तीन जगह झूट बोलना जायज़ है*

*_1. जंग मे - दुश्मन पर रौब तारी करने के लिये कहा कि हमरी इतनी फौज और आ रही है या दुश्मनों की फौज मे भगदड़ मचाने के लिये अफवाह उड़ा दी कि उनका सिपाह सालार मारा गया वगैरह वगैरह_*

*_2. दो मुसलमानों के बीच सुलह कराने मे - एक दूसरे से दोनो की झूटी तारीफ की कि वो तो तुमहारी बड़ी तारीफ कर रहा था इस तरह दोनो को मिलाना_*

*_3. शौहर का बीवी से - बीवी नाराज़ हो गयी तो उसको मनाने की गर्ज़ से कह दिया कि मैं तुम्हारे लिये ये ले आऊंगा वो ले आऊंगा या उसके पूछने पर कि कैसी लग रही हूं तो अगर चे अच्छी नहीं भी लग रही थी कह दिया कि बहुत अच्छी लग रही हो वगैरह वगैरह_*

*📕 तिर्मिज़ी,जिल्द 4,हदीस 1939*

*इस्लाम में तफरीहात हरगिज़ मना नहीं बल्कि रसूल अल्लाह सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम से साबित है,पढ़िए*

*_एक मर्तबा एक ज़ईफा बारगाहे नबवी में आईं और कहने लगी कि हुज़ूर मेरे लिए दुआ फरमा दें कि अल्लाह मुझे जन्नत में दाखिल करे,आप सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम ने उससे फरमाया कि कोई बुढ़िया जन्नत में  नहीं जाएगी,इस पर वो रोने लगी तो आपने मुस्कुराते हुए फरमाया कि ऐ अल्लाह की बन्दी मेरे कहने का ये मतलब है कि कोई बूढ़ी औरत जन्नत में नहीं जाएगी बल्कि हर बूढ़ी को जवान बनाकर जन्नत में भेजा जायेगा,तो वो खुश हो गयी इसी तरह एक सहाबी हाज़िर हुए और सवारी के लिए ऊंट मांगा तो आप फरमाते हैं कि मैं ऊंटनी का बच्चा दूंगा तो वो कहते हैं कि हुज़ूर मैं बच्चे पर सवारी कैसे करूंगा तो आप मुस्कुराकर फरमाते हैं कि ऊंट भी तो ऊंटनी का बच्चा ही होता है ऐसे ही कई सच्ची तफरीहात अम्बिया व औलिया व सालेहीन से मनक़ूल है_*

*📕 रूहानी हिकायत,सफह 151*

*_एक फक़ीह किसी के घर में किराए पर रहते थे,मकान बहुत पुराना और बोसीदा था अकसर दीवारों और छतों से चिड़चिड़ाने की आवाज़ आती रहती थी,एक दिन जब मकान मालिक किराया लेने के लिए आये तो$ फक़ीह साहब ने फरमाया कि पहले मकान तो दुरुस्त करवाइये तो कहने लगे कि अजी अल्लामा साहब आप बिल्कुल न डरें ये दीवार और छत तस्बीह करती रहती है उसकी आवाज़ें हैं,तो फक़ीह बोले कि तस्बीह तक तो गनीमत है लेकिन अगर किसी रोज़ आपकी दीवार और छत पर रिक़्क़त तारी हो गयी और वो सजदे में चली गयी तब क्या होगा_*

*📕 मुस्ततरफ,सफह 238*

*कहने का मतलब सिर्फ इतना है की हंसी मज़ाक करिये बिल्कुल करिये मगर झूट ना बोलिये गाली गलौच ना कीजिये और ना किसी की दिल आज़ारी कीजिये,मौला से दुआ है कि हम सबको हक़ सुनने हक़ समझने और हक़ पर चलने की तौफीक अता फरमाये-आमीन*
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                *_जोइन_*

*_मदर्सा हनफिया वारिसुल उलूम_*
      *_9628204387_*

*_मुजीबुर्रहमान क़ादरी_*

            *_खादिम_*

*_दारूल उलूम हनफिया वारिसुल उलूम क़स्बा बेलहरा ज़िला बाराबंकी यू.पी_*






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_مدرسہ حنفیہ وارث العلوم_*
*_मदर्सा हनफिया वारिसुल उलूम_*



           *_अक़ायद_*


    *_सुन्नी और शिया_*


*_जैसा कि आपने सुना ही होगा कि मेरे आक़ा सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम इरशाद फरमाते हैं कि मेरी उम्मत में 73 फिरके होंगे उसमें से एक ही जन्नती होगा और 72 हमेशा जहन्नम में रहेंगे,उन्ही जहन्नमी फिरकों में राफजी यानि शिया भी एक फिरका है,ये अपने आपको शैदाइये अहले बैत कहता है और उनके इसी या अली या हुसैन कहने पर हमारे बहुत से सुन्नी मुसलमान धोखा खा जाते हैं और उन्हें काफिर कहने से परहेज़ करते हैं मगर ये क़ौम अहले बैते अत्हार की मुहब्बत की आड़ लेकर ना जाने कितने ही कुफ्रिया अक़ायद रखती है,वैसे तो हुक्मे कुफ्र एक ही ज़रूरियाते दीन के इन्कार पर लग जाता है और इनके यहां तो कुफ्र की भरमार है,इनकी चंद कुफ्री इबारतें पेश करता हूं मुलाहज़ा फरमायें_*

*_शिया अक़ायद_*

 *_मुहम्मद सल्लललाहो अलैहि वसल्लम ने जिस खुदा की ज़ियारत की वो कुल 30 साल का था,माज़ अल्लाह_*

*📕 उसूले काफी,जिल्द 1,सफह 49*


*_सुन्नी अक़ायद_*

*_बेशक खुदाए तआला जिस्म जिस्मानियत से पाक है_*

*📕 बहारे शरीयत,हिस्सा 1,सफह 3*
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*_शिया अक़ायद_*

*_अल्लाह तआला कभी कभी झूठ भी बोलता है,माज़ अल्लाह_*

*📕 उसूले काफी,जिल्द 1,सफह 328*

*सुन्नी अक़ायद*

 *_और अल्लाह से ज़्यादा किसी की बात सच्ची नहीं_*

*📕 पारा 5,सूरह निसा,आयत 122*
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*शिया अक़ायद*

 *_अल्लाह तआला गलती भी करता है,माज़ अल्लाह_*

*📕 उसूले काफी,जिल्द 1,सफह 328*

*सुन्नी अक़ायद*

 *_बेशक अल्लाह तआला हर ऐब से पाक है_*

*📕 बहारे शरीयत,हिस्सा 1,सफह 4*
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*शिया अक़ायद*

 *_अल्लाह तआला ने हज़रत जिब्रील को पैग़ामे रिसालत देकर अली के पास भेजा था लेकिन वो गलती करके मुहम्मद सल्लललाहो अलैहि वसल्लम के पास चले गए,माज़ अल्लाह_*

*📕 अनवारुल नोमानिया,सफह 237*
*📕 तज़किरातुल अइम्मा,सफह 78*

*सुन्नी अक़ायद*

 *_और वो (फरिश्ते) कभी भी कुसूर (गलती) नहीं करते_*

*📕 पारा 7,सूरह इनआम,आयत 61*
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*शिया अक़ायद*

 *_हज़रत अली खुदा हैं,माज़ अल्लाह_*

*📕 तज़किरातुल अइम्मा,सफह 77*

*सुन्नी अक़ायद*

 *_अल्लाह एक है_*

*📕 पारा 30,सूरह अहद,आयत 1*
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*शिया अक़ायद*

*_तमाम सहाबा सिवाये तीन चार को छोड़कर सब मुर्तद हैं,माज़ अल्लाह_*

*📕 फरोग़े काफी,जिल्द 3,सफह 115*

*सुन्नी अक़ायद*

 *_और उन सबसे (सहाबा) अल्लाह जन्नत का वादा फरमा चुका_*

*📕 पारा 27 सूरह हदीद,आयत 10*
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*शिया अक़ायद*

 *_मौजूदा क़ुरान नाक़िस है और क़ाबिले हुज्जत नहीं,माज़ अल्लाह_*

*📕 उसूले काफी,जिल्द 1,सफह 26-263*

*सुन्नी अक़ायद*

 *_वो बुलंद मर्तबा किताब (क़ुरान) जिसमे शक की कोई गुंजाइश नहीं_*

*📕 पारा 1,सूरह बक़र,आयत 1*
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*शिया अक़ायद*

 *_मौजूदा क़ुरान तहरीफ शुदा है,माज़ अल्लाह_*

*📕 हयातुल क़ुलूब,जिल्द 3,सफह 10*

*सुन्नी अक़ायद*

 *_बेशक हमने उतारा है ये क़ुरान और बेशक हम खुद इसके निगहबान हैं_*

*📕 पारा 14,सूरह हजर,आयत 8*
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*शिया अक़ायद*

 *_क़ुरान को हुज़ूर के विसाल के बाद जमा करना उसूलन गलत था_*

*📕 हज़ार तुम्हारी दस हमारी,सफह 560*

*सुन्नी अक़ायद*

 *_हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम ने अपनी ज़िन्दगी में ही क़ुरान को तरतीब दे दिया था लेकिन किताबी शक्ल में जमा करने की सआदत हज़रते अबू बक्र सिद्दीक़ को हासिल है_*

*📕 तफसीरे नईमी,जिल्द 1,सफह 114*
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*शिया अक़ायद*

*_मर्तबये इमामत पैगम्बरी से अफज़ल व आला है,माज़ अल्लाह_*

*📕 हयातुल क़ुलूब,जिल्द 3,सफह 2*

*सुन्नी अक़ायद*

*_जो किसी ग़ैरे नबी को नबी से अफज़ल बताये काफिर है_*

*📕 बहारे शरीयत,हिस्सा 1,सफह 15*
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*शिया अक़ायद*

 *_हज़रत आयशा का शरीयत से कुछ ताल्लुक़ नहीं और वो वाजिबुल क़त्ल हैं,माज़ अल्लाह_*

*📕 शरियत और शियाइयत,सफह 45*
*📕 बागवाये बनी उमय्या और माविया,सफह 474*

*सुन्नी अक़ायद*

 *_हज़रते आयशा सिद्दीका की शानो अज़मत में अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त ने क़ुराने करीम की सूरह नूर में 17 या 18 आयतें नाज़िल फरमाई और उनसे 2210 हदीस मरवी है_*

*📕 मदारेजुन नुबूवत,जिल्द 2,सफह 808*
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*शिया अक़ायद*

 *_मौला अली का इमामत को तर्क कर देने से खुल्फाये सलासा मुर्तद हो गए,माज़ अल्लाह_*

*📕 उसूले काफी,जिल्द 1,सफह 420*

*सुन्नी अक़ायद*

 *_हुज़ूर ने अशरये मुबश्शिरा यानि 10 सहाबा इकराम का नाम लेकर जन्नती होने की गवाही दी जिनमें खुल्फाये सलासा भी शामिल हैं_*

*📕 इबने माजा,जिल्द 1,सफह 61*
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*शिया अक़ायद*

*_हज़रत उमर बड़े बेहया थे,माज़ अल्लाह_*

*📕 नूरुल ईमान,सफह 75*

*सुन्नी अक़ायद*

 *_हुज़ूर फरमाते हैं कि मेरे बाद अगर कोई नबी होता तो उमर होते_*

*📕 तिर्मिज़ी,हदीस 3686*
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*शिया अक़ायद*

 *_हज़रत उसमान गारत गर था और उनकी खिलाफत में फहहाशी का सिलसिला शुरू हुआ,माज़ अल्लाह_*

*📕 कशफुल इसरार,सफह 107*

*सुन्नी अक़ायद*

 *_हज़रते उसमान ग़नी शर्मिले तबियत के मालिक हैं_*

*📕 शाने सहाबा,सफह 114*

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*_जो कुछ मैंने यहां ज़िक्र किया वो तो बस चंद बातें हैं वरना इन काफिरों की किताबों में तो सैकड़ों ही कुफरी इबारतें भरी पड़ी है,अगर ऐसा अक़ीदा रखने वाले सिर्फ ज़बानी अहले बैत अतहार का नाम लें तो क्या उन्हें मुसलमान समझ लिया जायेगा नहीं और हरगिज़ नहीं,अब हदीसे पाक में इस नारी फिरके का तज़किरा भी पढ़ लीजिए,मौला अली रज़ियल्लाहु तआला अन्हु फरमाते हैं कि_*

*_आखिर ज़माने में एक क़ौम पाई जायेगी जिसका एक खास लक़ब होगा इन्हें राफजी कहा जायेगा ये हमारी जमात में होने का दावा करेगा मगर ये हम में से नहीं होगा इनकी पहचान ये होगी कि ये हज़रत अबु बकर व हज़रत उमर को बुरा कहेंगे_*

*📕 कंज़ुल उम्माल,जिल्द 6,सफह 81*

*_राफजियों को काफिर कहना ज़रूरी है ये फिरका इस्लाम से खारिज है मुर्तदीन के हुक्म में है_*

*📕 फतावा आलमगीरी,जिल्द 3,सफह 264*
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                 *जोइन*

*_मदर्सा हनफिया वारिसुल उलूम_*
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*_मुजीबुर्रहमान क़ादरी_*


               *खादिम*

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 *_مدرسہ حنفیہ وارث العلوم_*
*_मदर्सा हनफिया वारिसुल उलूम_*


               *हिस्सा-1*

                *शादी*


*_अल्लाह ने मर्द में औरत की तरफ और औरत में मर्द की तरफ रग़बत ख्वाहिश और दिलचस्पी पैदा की,दोनों में एक दूसरे की ज़रूरत और चाहत रखी और दोनों की ज़िन्दगी बग़ैर एक दूसरे के अधूरी और ना मुकम्मल है,मगर जिंसी ख्वाहिशात को पूरा करने के लिए इंसान को जानवरों की तरह आज़ाद नहीं छोड़ा गया कि जिसके साथ चाहे अपनी ज़रूरत पूरी कर ली बल्कि शरीयते इस्लामिया ने जो दायरा बनाया उसको निकाह कहते हैं,निकाह नाम है इजाबो क़ुबूल का कि दो गवाहों के सामने एक ने कह दिया कि मैंने तुमको अपने निकाह में लिया दूसरे ने कहा कि मैंने क़ुबूल किया निकाह मुनक़्क़िद हो गया,निकाह सिर्फ इसी का नाम है मगर दुनिया ने इसको कहां से कहां पहुंचा दिया,सालों पहले से ऐसी तैयारियां शुरू होती हैं मानो एक दूसरे को बर्बाद करने की मुहिम छिड़ी हो,लड़की पैदा हुई उसकी शादी होना है 20 साल बाद मगर घर वाले अभी से ही घुले जा रहे हैं अभी से ही उसके नाम से f.d कर दी गई है,अल्लाह की दी हुई नेमत को मुसलमानों ने अपने ऊपर अज़ाब बना डाला,हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम इरशाद फरमाते हैं कि_*

*_सबसे ज़्यादा बरकत वाला निकाह वो है जिसमे खर्च कम हो_*

*📕 मिश्कात,जिल्द 2,सफह 268*

*_इस्लामी हिस्ट्री उठाकर देखिये कि क्या नबी भी किसी के घर 300 बाराती लेकर गए थे क्या किसी सहाबी की बारात में 200 लोग थे या किसी ताबईन की बारात में 100 लोग ही गए हों और फिर उनको नाश्ता कराया गया हो फिर खाना खिलाया गया हो तब कहीं निकाह हुआ हो ऐसी कोई एक भी रिवायत दिखाई जाए,और बस यही नहीं बल्कि उस पर से जहेज़ का हाल ये कि खुद के घर में चाहे खाने के लाले पड़े हों मगर फ्रिज वाशिंग मशीन एयर कंडीशन और बाइक तो चाहिए ही चाहिए,जहेज़ लेने वाले कहते हैं कि जहेज़ देना सुन्नत है तो याद रखें कि हुज़ूर ने जो जहेज़ अपनी बेटी को दिया उससे आज के इस जहेज़ की कोई मुनासिबत ही नहीं ,वो ज़रूरत के सामन थे और आज ऐशो आराम और रुपयों की नुमाईश के सिवा कुछ नहीं,कुल मिलाकर बस ये समझ लीजिए कि भिखारी अपना स्टैंडर्ड बदल कर बारात लेकर पहुंच रहा है और देने वाला अपने रुपयों की नुमाइश कर रहा है,ना दीन का कुछ ख्याल रहा और ना शरीयत का कुछ लिहाज़ फिर भी हम मुसलमान हैं,और कुछ घरों का हाल तो ये हो गया है कि लड़कियां अगर चे घर में बैठी बैठी बूढी हो जाएं खुद घरवाले मगर रिश्ता करने  में इतनी नुक्ता चीनी करते हैं कि अल्लाह की पनाह,हदीसे पाक में आता है कि_*

*_जब ऐसे शख्स का पैग़ाम आये जिसका दीन और अखलाक़ अच्छा हो तो उससे निकाह कर दो वरना ज़मीन पर फितनये अज़ीम पैदा होगा_*

*📕 तिर्मिज़ी,जिल्द 1,सफह 128*

*_हम हैं तो मुसलमान मगर सिर्फ नाम के अगर अमल के मुसलमान होते तो क्या ऐसा करते मुलाहज़ा फरमाएं_*

*_बेहतरीन महर वो है जिसे अदा करना इंतिहाई आसान हो_*

*📕 अबु दाऊद,जिल्द 2,हदीस 2117*

*मगर हमारे यहां महर महर नहीं बोझ होता है*

*_शादी में आतिश बाज़ी करना हराम है_*

*📕 रद्दे बिदआत व मुंकिरात,सफह 326*

*अगर किसी के यहां आतिश बाज़ी ही ना हुई तो मानो मय्यत की तरह सूना सूना रह गया*

*_ग़ैर महरम की तरफ देखना मर्दो औरत दोनों को हराम है_*

*📕 रद्दुल मुख्तार,जिल्द 5,सफह 258*

*मगर हमारे यहां जब तक रतजगा सलाम कराई और जूता चुराई ना हो तब तक शादी कहां मानी जाती है*

*_बाजे ताशे हराम हैं_*

*📕 बुखारी,जिल्द 2 ,सफह 837*

*मगर हम तो डी.जे बजायेंगे और अपने घर की औरतों से मुजरा भी करवायेंगे*

*_मर्द को मेंहदी लगाना हराम है_*

*📕 फतावा रज़वियह,जिल्द 9,सफह 412*

*मेंहदी क्या चीज़ है अजी हम तो कंगन भी पहनाते हैं और दूल्हे को दुपट्टा भी उढ़ाते हैं*

*_सोने की अंगूठी मर्द को पहनना नाजायज़ है और चांदी की भी सिर्फ एक वो भी 4.3 ग्राम से कम की_*

*📕 अहकामे शरीयत,हिस्सा 2,सफह 170*

*मगर हम तो इसका उल्टा ही करेंगे*

*_मस्जिद में औरतों का नमाज़ पढ़ने के लिए जाना मना है_*

*📕 मुस्लिम,जिल्द 1,सफह 183*

*मगर हमारे घर की औरतें मस्जिदों में गुलगुला रखने जाती हैं*

*_हां रस्मो में कुछ जायज़ भी हैं जैसे दूल्हा दुल्हन को उबटन लगाना अगर ना महरम ना हों और सतरपोशी का ख्याल रखा जाए तो जायज़,युंही डाल की रसम की कुछ कपड़े वग़ैरह भेजे जाते हैं जायज़,दूल्हे का सिर्फ फूलों का सेहरा पहना जायज़_*

*_क्या क्या कहूं,ये बहस इतनी लंबी चौड़ी है कि दो चार सतरों में बात खत्म ही नहीं हो सकती,बस इतना समझ लीजिए कि ये बीमारी कोढ़ की तरह हमारे मुआशरे को तबाहो बर्बाद कर रही है,फिर मुसलमान कहता है कि हम बहुत परेशान हैं रोज़ी की किल्लत है बच्चे बात नहीं सुनते कुछ वज़ीफा बता दीजिए,आप खुद सोचें कि इतना सारा हराम काम करते हुए क्या कोई वज़ीफा या कोई अमल मुसलमान को फायदा पहुंचा सकता है नहीं और हरगिज़ नहीं,अगर फायदा चाहते हों तो पहले अपना और अपने घर का माहौल बदलकर इस्लामी तहज़ीब में आ जाएं,इस मसले पर अल्लामा ततहीर अहमद बरेलवी का रिसाला "ब्याह शादी के बढ़ते हुए अखराजात" पढ़ा जाए बहुत मुफीद होगा_*
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                *_जोईन_*

*_मदर्सा हनफिया वारिसुल उलूम_*
       *_9628204387_*

    *_मुजीबुर्रहमान क़ादरी_*

            *_खादिम_*

*_दारूल उलूम हनफिया वारिसुल उलूम क़स्बा बेलहरा ज़िला बाराबंकी यू






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 *_مدرسہ حنفیہ وارث العلوم_*
*_मदर्सा हनफिया वारिसुल उलूम_*


        *हिस्सा-2*

        *शादी*


*_हमारे मुआशरे की शादी के बारे में तो आप पहले हिस्से में पढ़ चुके हैं अब इस्लाम में निकाह की क्या फज़ीलत है ये भी पढ़ लीजिए_*

*_निकाह करना सुन्नते अम्बिया है कि जितने भी नबी आये सबने निकाह किया हत्ता कि हज़रत यहया अलैहिस्सलाम के बारे में भी आता है कि आपने निकाह तो किया मगर किसी वजह से सोहबत ना की और हज़रत ईसा अलैहिस्सलाम भी जब आसमान से उतरेंगे तो निकाह करेंगे_*

*📕 तिर्मिज़ी,जिल्द 1,सफह 128*
*📕 रूहुल बयान,जिल्द 1,सफह 73*

*_हज़रत माज़ बिन जबल रज़ियल्लाहु तआला अन्हु से मरवी है कि साहिबे निकाह की नमाज़ बिला निकाह वाले से 40 या 70 गुना अफज़ल है_*

*📕 नुज़हतुल मजालिस,जिल्द 2,सफह 48*

*_जिसने निकाह कर लिया उसने अपना आधा दीन बचा लिया अब आधे के लिए अल्लाह से डरे_*

*📕 मिश्कात,जिल्द 2,सफह 268*

*_निकाह के ज़रिये से पैदा हुई मुहब्बत की दुनिया में नज़ीर नहीं मिलती_*

*📕 इबने माजा,सफह 133*

*_बिरादरी में शादी करना अफज़ल है_*

*📕 इबने माजा,सफह 141*

*_मगर इसका मतलब ये नहीं है कि ग़ैर बिरादरी में शादी करना हराम हो गया जैसा कि माहौल बना हुआ है_*

*_जो लड़की बग़ैर निकाह के मर गई तो जन्नत में किसी से उसका निकाह कर दिया जायेगा_*

*📕 तफसीरे नईमी,जिल्द 3,सफह 356*

*_दुनिया की औरत जन्नत में हूरों से भी ज़्यादा खूबसूरत व अफज़ल होगी_*

*📕 तफसीरे सावी,जिल्द 1,सफह 17*

*_हज़रत मरयम बिन्त इमरान व कुलसूम हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम की बहन व आसिया फिरऔन की बीवी ये सारी औरतें हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम के निकाह में आयेंगी_*

*📕 नुरुल अबसार,सफह 13*

*_हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम इरशाद फरमाते हैं कि तुममें से जो कोई निकाह की इस्तेताअत रखता हो तो वो निकाह करे कि ये अजनबी औरत की तरफ नज़र करने से रोकता है और शर्मगाह की हिफाज़त करता है और जिसको निकाह की इस्तेताअत ना हो तो वो रोज़ा रखे कि रोज़ा शहवत को कम करता है_*

*📕 मिशकात,जिल्द 2,सफह 268*

*_अब इस्तेताअत क्या होती है ये भी समझ लीजिए,निकाह करना कभी फर्ज़ हो जाता है कभी वाजिब और कभी कभी हराम भी मसलन जो मर्द औरत का खर्च उठा सकता है और निकाह ना करने के बाईस उससे ज़िना हो जाने का यक़ीन तो उस पर निकाह करना फर्ज़ है और जो औरत का खर्च उठा तो सकता है मगर ज़िना होने का शक है तो उस पर निकाह करना वाजिब है अगर ये हालत ना पायी जाए तो निकाह करना सुन्नत है जो शख्स महज़ ख्वाहिश के लिए निकाह करे तो मुबाह है और जो औरत का खर्च उठाने पर क़ादिर ना हो या ज़रूरी हुक़ूक़ पूरा ना कर सकता हो तो उसको निकाह करना हराम है और इन्हीं बातों का शक हो तो निकाह करना मकरूह है_*

*📕 फतावा रज़वियह,जिल्द 5,सफह 58*

*_हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम इरशाद फरमाते हैं कि 4 बातों की वजह से औरत से निकाह किया जाता है मालदारी,खानदान खूबसूरती और दीनदारी आम तौर पर लोग हुस्न और खानदान देखते हैं मगर तुम पहले दीनदारी देखो_*

*📕 बुखारी,जिल्द 2,सफह 762*

*_सुन्नी मर्द या औरत का वहाबी देवबंदी क़ादियानी खारजी राफजी अहले हदीस जमाते इस्लामी या जितने भी बदमज़हब फिरके हैं उनसे निकाह नहीं हो सकता,अगर किया तो बातिल होगा खालिस ज़िना और औलाद वलदुज़ ज़िना होगी_*

*📕 अलमलफूज़,हिस्सा 2,सफह 107*

*_ये खराबी भी बहुत आम हो चुकी है माज़ अल्लाह अच्छे खासे सुन्नियों का निकाह वहाबियों के यहां हो जाता है और उन्हें इसकी ज़रा भी फिक्र नहीं होती,और ये भी देखा गया है कि लड़की देते वक़्त तो कुछ पूछ-ताछ हो भी जाती है मगर लड़की लेते वक़्त ये भी ज़हमत नहीं उठायी जाती और कुछ कहो तो जवाब मिलता है कि अरे जनाब लड़की अपने घर ला ही तो रहे हैं उसको सुन्नी बना लेंगे,अरे जनाब जब सुन्नी बनाओगे तब बनाओगे अभी जो हराम कारी होगी उसका क्या_*

*_किसी की बात चीत चल रही हो तो उस पर दूसरा पैगाम देना मना है जब तक कि पहला इन्कार ना हो जाए_*

*📕 बुखारी,जिल्द 2,सफह 772*

*_इसी तरह औरत अगर इद्दत में है तो उस वक़्त उसको निकाह तो दूर की बात बल्कि निकाह का पैगाम देना भी हराम है_*

*📕 अलमलफूज़,हिस्सा 2,सफह 36*

*_जुमेरात या जुमा को निकाह करना मुस्तहब है सुबह की बजाये शाम को यानि अस्र बाद करना अफज़ल है,और जुमा के दिन निकाह करना बाईसे बरकत है,हज़रत आदम अलैहिस्सलाम का निकाह हज़रते हव्वा से हज़रत यूसुफ अलैहिस्सलाम का निकाह हज़रते ज़ुलेखा से हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम का निकाह हज़रत सफोरा से हज़रत सुलेमान अलैहिस्सलाम का निकाह हज़रते बिलकीस से और हमारे नबी का निकाह हज़रते खुदैजा व हज़रते आयशा से जुमा के दिन ही हुआ_*

*📕 तफसीरे नईमी,जिल्द 11,सफह 171*
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                *_जोइन_*

*_मदर्सा हनफिया वारिसुल उलूम_*
        *_9628204387_*

*_मुजीबुर्रहमान क़ादरी_*


           *_खादिम_*

*_दारूल उलूम हनफिया वारिसुल उलूम क़स्बा बेलहरा ज़िला बाराबंकी यू.पी_*






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 *_مدرسہ حنفیہ وارث العلوم_*
*_मदर्सा हनफिया वारिसुल उलूम_*


              *हिस्सा-3*

                 *शादी*

*_निकाह किसी भी महीने में करना मसलन मुहर्रम या सफर में या किसी भी तारीख मसलन 3,13,23 और 8,18,28 को मना नहीं है ये अवाम में गलत मशहूर है_*

*📕 अलमलफूज़,हिस्सा 1,सफह 36*

*_शादी से पहले लड़का और लड़की दोनों एक दूसरे को देख सकते हैं ये जायज़ है मगर बात-चीत या मुलाक़ात शुरू कर देना ये नाजायज़ है_*

*📕 अबू दाऊद जिल्द 1,सफह 284*
*📕 तिर्मिज़ी,जिल्द 1,सफह 129*
*📕 इब्ने माजा,सफह 134*
*📕 रद्दुल मुख्तार,जिल्द 5,सफह 258*
*📕 बहारे शरीयत,हिस्सा 16,सफह 79*

*_वलीमा बाद ज़ुफाफ करना सुन्नत है बेहतर है कि शबे ज़ुफाफ की सुबह को अपने दोस्त और अहबाब की दावत की जाये वरना दूसरे दिन भी हो सकती है मगर इससे ज़्यादा ताखीर करना खिलाफे सुन्नत है_*

*📕 बहारे शरीयत,हिस्सा 16,सफह 31*

*_ये वबा भी हमारे मुआशरे में बड़ी तेज़ी से फैल गई है अब तो लोग एक एक हफ्ते के बाद वलीमा करते हैं,हालांकि शरीयत की नज़र में ये वलीमा हरगिज़ नहीं है हां इसे मैरिज पार्टी ज़रूर कह सकते हैं_*

*_एक मर्द का इन औरतों से निकाह हराम है_*

*मां सगी हो या सौतेली*

*बहन सगी हो या सौतेली*

*नानी ख्वाह कितनी पुश्तों का फासला हो*

*दादी ख्वाह कितनी पुश्तों का फासला हो*

*बेटी अपनी हो या सौतेली*

 *पोती*

*नवासी*

*खाला युंही खाला की खाला*

*फूफी युंही फूफी की फूफी*

*भांजी और उनकी बेटियां*

*भतीजी और उनकी बेटियां*

*दूध के रिश्ते की बहन*

*इसी तरह एक औरत का इन मर्दों से निकाह हराम है*

*बाप सगा हो या सौतेला*

*भाई सगा हो या सौतेला*

*नाना ख्वाह कितनी पुश्तों का फासला हो*

*दादा ख्वाह कितनी पुश्तों का फासला हो*

*बेटा अपना हो या सौतेला*

*पोता*

*नवासा*

 *चाचा युंही चाचा के चाचा*

*मामू युंही मामू के मामू*

*भांजे और उनके बेटे*

*भतीजे और उनके बेटे*

*दूध के रिश्ते के भाई*

*📕 बहारे शरीयत,हिस्सा 7,सफह 19*
*📕 मुस्लिम,जिल्द 1,सफह 466*
*📕 इब्ने माजा,सफह 138*

*_दूध पिलाने कि मुद्दत 2 साल है मगर रज़ा'अत के लिए ढाई साल,मतलब ये कि किसी औरत ने ढ़ाई साल के बच्चे को दूध पिला दिया तो वो और इसके खुद के बच्चे आपस में रज़ाई भाई बहन हो गए,अब उसका इसके लड़के या लड़कियों से निकाह नहीं हो सकता होगा तो हराम होगा,हां ढ़ाई साल से ज़्यादा के बच्चे को दूध पिलाया तो जब तो रज़ा'अत साबित नहीं होगी मगर ढ़ाई साल से ज़्यादा उम्र के बच्चे को दूध पिलाना हराम है_*

*📕 बहारे शरीयत,हिस्सा 7,सफह 29*

*युंही बीवी की मौजूदगी में उसकी बहनों से चाहे सगी हो या रज़ाई उसकी खाला से उसकी फूफी से सबसे निकाह हराम है,हां अगर बीवी को तलाक़ दे दिया तो इद्दत गुज़रने के बाद इनसे निकाह हो सकता है मगर सास हराम ही रहेगी*

*📕 मुस्लिम,जिल्द 1,सफह 452*

*अगर माज़ अल्लाह किसी से ज़िना किया तो उसकी मां और उसकी लड़कियां सब हमेशा के लिए मर्द पर हराम हो गई इसी तरह औरत के लिए उसका बेटा और उसका बाप हमेशा के लिए हराम बल्कि माज़ अल्लाह ज़िना तो दूर की बात अगर शहवत के साथ मर्द व औरत ने सिर्फ एक दूसरे को छू लिया तब भी हुरमते मसाहिरत साबित हो जाएगी और औरत की मां और बेटियां मर्द पर और मर्द का बाप और बेटा औरत पर हमेशा के लिए हराम हो गए*

*📕 हिदाया,जिल्द 2,सफह 289*

*_ऐसा हिजड़ा जिसमें मर्द व औरत दोनों की अलामतें पायी जाए और साबित ना हो कि उसे मर्द कहें या औरत तो ऐसे से ना किसी मर्द का निकाह हो सकता है और ना किसी औरत का,अगर हुआ तो बातिल होगा युंही मर्द का परी से और औरत का जिन्न से निकाह नहीं हो सकता_*

*📕 बहारे शरीयत,हिस्सा 7,सफह 5*

*_दूल्हे को सिर्फ फूलों का सेहरा पहनना जायज़ है_*

*📕 अलमलफूज़,हिस्सा 1,सफह 38*

*_युंही दुल्हन को सजाना मुस्तहब है बल्कि हदीसे पाक में आता है कि औरत को चाहिए कि अपने हाथों में मेंहदी लगाये रहे कि उसका हाथ मर्द के हाथ से मुशाबह ना हो और ज़्यादा ना हो तो सिर्फ नाखून ही रंग ले और मेरे आलाहज़रत फरमाते हैं कि दुल्हन का अपने आपको शौहर के लिए सजाकर रखना उसके नफ्ल नमाज़ और रोज़ो से बेहतर है,और कुंवारी लड़कियों का भी बे ज़ेवर रहना मकरूह है उम्मुल मोमेनीन सय्य्दना आयशा सिद्दीक़ा रज़ियल्लाहु तआला अंहा फरमाती हैं कि औरत का बे ज़ेवर नमाज़ पढ़ना मकरूह है अगर कुछ ना मिले तो गले में एक डोरा ही डाल ले_*

*📕 फतावा रज़वियह,जिल्द 9,सफह 364*

*हमारे यहां जब लड़की की रुखसती होती है तो अक्सर देखा गया है कि लड़की का भाई उसकी गाड़ी वग़ैरह पर कुल्ली करते हैं ये बे अस्ल है बल्कि रिवायत में ये आता है कि*

*_जब लड़की को रुख्सत करें तो तो एक प्याले पानी पर ये दुआ अल्लाहुम्मा इन्नी ओइज़ोहा बेका वज़ुर्री यताहा मिनश शैतानिर रजीम اللهم انى اعيذها بك وذريتها من الشيطن الرجيم  पढ़कर दम करे और इस पानी से दुल्हन के सर और सीने पर छींटे मारे फिर दूल्हा को बुलायें और एक प्याले पानी पर ये दुआ अल्लाहुम्मा इन्नी ओइज़ोहु बेका वज़ुर्री यताहु मिनश शैतानिर रजीम اللهم انى اعيذه بك وذريته من الشيطن الرجيم  पढ़कर दम करें और उसके भी सर और सीने पर छिड़क दें_*

*📕 हसन हुसैन,सफह 249*

*_जब दुल्हन ससुराल पहुंचे तो घर वालों को चाहिए कि उसका पैर धोकर मकान के चारो तरफ छिड़कें ये बाईसे बरक़त है_*

*📕 फतावा रज़वियह,जिल्द 1,सफह 455*
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                 *जोइन*

*_मदर्सा हनफिया वारिसुल उलूम_*
*_9628204387_*


*_मुजीबुर्रहमान क़ादरी_*



             *_खादिम_*

*_मदर्सा हनफिया वारिसुल उलूम क़स्बा बेलहरा ज़िला बाराबंकी यू.पी_*










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*_مدرسہ حنفیہ وارث العلوم_*
*_मदर्सा हनफिया वारिसुल उलूम_*


              *हिस्सा-1*

    *_हज़रत नूह अलैहिस्सलाम_*


*_आपका नाम अब्दुल ग़फ्फार या अब्दुल जब्बार है और नूह यानि बहुत रोने वाला लक़ब इस लिए हुआ कि आप अपनी उम्मत के गुनाहों पर बहुत रोये हैं,आपके वालिद का नाम लमक और वालिदा का नाम सहमा था और दादा का नाम मतुशल्ख है,आप हज़रत आदम अलैहिस्सलाम के विसाल के 126 साल बाद पैदा हुए_*

*📕 अलइतकान,जिल्द 2,सफह 175-179*
*📕 हयातुल हैवान,जिल्द 1,सफह 11*

*_आपकी काफिर बीवी का नाम वाइला और काफिर बेटे का नाम कुंआन था_*

*📕 तफसीरे खज़ाएनुल इरफान,सफह 270*

*_काफिरों की तरफ सबसे पहले तब्लीग़ के लिए आप ही को भेजा गया_*

*📕 तफसीरे नईमी,जिल्द 3,सफह 348*

*_आपने अपनी क़ौम को 950 साल तक तब्लीग़ फरमाई मगर चन्द अफराद को छोड़कर पूरी कौम अपने कुफ्र पर क़ायम रही जिस पर आपने उनके लिए बद्दुआ कर दी और पूरी क़ौम तूफाने नूह में गर्क हो गई_*

*📕 तफसीरे खाज़िन,जिल्द 5,सफह 157*

*_सबसे पहले चमड़े का जूता आपने ही पहना_*

*📕 मिरआतुल मनाजीह,जिल्द 6,सफह 141*

*_सबसे पहले आपने ही उम्मत को दज्जाल के अज़ाब से डराया_*

*📕 मिश्कात,जिल्द 2,सफह 473*

*_बुतपरस्ती की शुरुआत हज़रत नूह अलैहिस्सलाम की उम्मत में ही हुई,वाक़िया ये हुआ कि आपकी उम्मत के 5 नेक लोग जिनका नाम वुद,सुवा,यग़ूस,यऊक़ और नस्र था,जब इनका इन्तेक़ाल हो गया तो इनकी औलाद को बहुत रंज हुआ मौक़ा देखकर इब्लीस उन लोगों के पास गया और कहने लगा कि अगर मैं एक रास्ता बताऊं तो तुम्हारा ग़म कुछ हल्का हो सकता है,उन्होंने हामी भरी तो इस मरदूद ने उन पांचो के बुत बना दिए शुरू शुरू में सिर्फ उन बुतों को देखकर ही घर वाले तसल्लियां कर लेते थे मगर बाद में आने वालों ने उनकी पूजा करनी शुरू कर दी,इसी लिए इस्लाम में जानदार की तस्वीर हराम फरमाई गई_*

*📕 अहकामे तस्वीर,सफह 9*

*_तूफाने नूह से पहले अल्लाह ने इब्तिदाई तौर पर उन पर बारिश बंद कर दी और और उनकी औरतों को बांझ कर दिया,जब वो इसकी शिकायत लेकर हज़रत नूह अलैहिस्सलाम के पास पहुंचे तो आप फरमाते हैं कि अल्लाह से माफी मांगो वो तुम्हारी सारी मुश्किल आसान कर देगा जिस पर क़ौम नहीं मानी_*

*_एक मर्तबा हज़रत इमाम हसन रज़ियल्लाहु तआला अन्हु के पास चन्द लोग अपनी परेशानी लेकर हाज़िर हुए उसमें से एक ने सूखे की शिकायत की आपने फरमाया कि अस्तग़फ़ार करो दूसरा बोला कि मैं गरीब हूं तो आपने फरमाया कि अस्तग़्फार करो तीसरे ने औलाद ना होने की शिकायत की तो आपने फरमाया कि अस्तग़्फार करो फिर चौथा ज़मीन से कम पैदावार की अर्ज़ लेकर आया तो फरमाया कि अस्तग़्फार करो,हाज़ेरीन ने कहा कि ऐ इमाम परेशानी सबकी जुदा जुदा है और आप हल सबका एक ही फरमा रहे हैं इसकी क्या वजह है तो आप फरमाते हैं कि जब हज़रत नूह अलैहिस्सलाम की क़ौम अपनी जुदा जुदा मुश्किल को लेकर उनकी बारगाह में हाज़िर हुई तो आपने तमाम मुश्किलों का एक ही हल बताया था कि खुदा से माफी मांगो और ये क़ुरान से साबित है,तो हर मुश्किल का हल खुदा की बारगाह में तौबा करने से हासिल हो जायेगा_*

*📕 तज़किरातुल अम्बिया,सफह 69*

*_आपको क़ौम ने माज़ अल्लाह गुमराह झूटा व मजनून कहा मगर आप उनके लिए हिदायत की दुआ ही करते रहे मगर जब अल्लाह ने आप पर वही फरमाई कि अब तुम्हारी क़ौम से कोई मुसलमान ना होगा मगर जितने ईमान ला चुके तब आपने उनके लिए हलाक़त की दुआ की तो मौला ने आपको कश्ती बनाने का हुक्म दिया_*

*📕 तज़किरातुल अम्बिया,सफह 71*

*_कश्ती बनाने में मदद के लिए हज़रत जिब्रील अलैहिस्सलाम हाज़िर हुए और 2 सालों में कश्ती बनकर तैयार हुई_*

*📕 तफसीरे सावी,जिल्द 2,सफह 72*

*_ये कश्ती साल की लकड़ी से बनाई गई जिसकी लंबाई 900 फिट चौड़ाई 150 फिट और ऊंचाई 90 फिट थी और इसमें 3 दर्जे थे सबसे नीचे वाले दर्जे में जंगली जानवर जैसे शेर चीता सांप बिच्छू वगैरह थे बीच वाले में पालतू जानवर थे और सबसे ऊपर वाले हिस्से में हज़रत नूह अलैहिस्सलाम मय ईमान वालों और खाने पीने की चीज़ के साथ सवार हुए_*

*📕 खज़ाएनुल इरफान,सफह 269*

*_कश्ती में कुल 80 लोग सवार हुए जिनमे 3 आपके बेटे साम,हाम और याफिस और 3 उनकी बीवियां खुद हज़रत नूह अलैहिस्सलाम और उनकी एक मोमिना बीवी हज़रत आदम अलैहिस्सलाम का जस्द मुबारक जो कि ताबूत में था और आपके काफिर बेटे की बीवी जो कि मोमिना थी और 70 मुसलमान मर्दो औरत_*

*📕 अलमलफूज़,हिस्सा 1,सफह 64*
*📕 तज़किरातुल अम्बिया,सफह 71*

*_ये कश्ती मस्जिदे कूफा के पास बनाई गई_*

*📕 जलालैन,हाशिया,4,सफह 183*

*_ये कश्ती 124000 और 4 तख्तों से बनी कि हर तख्ते पर एक नबी का नाम लिखा होता था और 4 तख्तों पर चारों खुल्फा का नाम दर्ज था,इस रिवायत में इख्तिलाफ हो सकता है इसलिए कि अम्बिया इकराम की तादाद मुतअय्यन करना हरगिज़ जायज़ नहीं_*

*📕 नुज़हतुल मजालिस,5,सफह 34*

*_चुंकि जहां ये कश्ती बनायी गई उस जगह पानी का नामो निशान तक ना था लिहाज़ा काफिर हज़रत नूह अलैहिस्सलाम को कश्ती बनाता देखकर उनका मजाक उड़ाया करते थे फिर जब तूफान का वक़्त आया तो मौला ने हज़रत नूह अलैहिस्सलाम को बता दिया कि जब तन्नूर से पानी उबलना शुरू हो जाए तो कश्ती में सवार हो जाना कि वही इब्तिदा होगी,ये तन्नूर आम तन्नूर था जिसमे औरतें रोटियां पकाया करती थीं_*

*📕 तज़किरातुल अम्बिया,सफह 73*

*_हज़रत नूह अलैहिस्सलाम दिन भर कश्ती बनाते और आपकी क़ौम रात को आकर वो कश्ती खराब करके चली जाती तब आपने बाहुकमे खुदावन्दी कुत्ते को रात भर जागकर पहरेदारी के लिए मुकर्रर किया_*

*📕 हयातुल हैवान,जिल्द 2,सफह 306*

*_तूफान की शुरुआत 1 रजब को हुई_*

*📕 अलमलफूज़,हिस्सा 1,सफह 64*
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                 *_जोइन_*

*_मदर्सा हनफिया वारिसुल उलूम_*
      *_9628204387_*

*_मुजीबुर्रहमान क़ादरी_*


                *खादिम*

*_दारूल उलूम हनफिया वारिसुल उलूम क़सेबा बेलहरा ज़िला बाराबंकी यू.पी_*






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           *हिस्सा-2*

  *हज़रत नूह अलैहिस्सलाम*


*_तूफान की शुरुआत 1 रजब को हुई और 10 रजब को कश्ती पानी में तैरने लगी और पूरे 6 महीने ज़मीन का गर्दिश करने के बाद 10 मुहर्रम को जूदी पहाड़ पर जाकर रुकी,पूरी ज़मीन पर इस क़दर पानी जमा हो गया था कि ज़मीन के सबसे ऊंचे पहाड़ से भी 30 हाथ ऊपर पानी था_*

*📕 अलमलफूज़,हिस्सा 1,सफह 64*

*_40 दिन तक लगातार ज़मीन से पानी निकलता रहा और आसमान से भी बरसता रहा_*

*📕 खज़ायेनुल इरफान,सफह 270*

*_पानी का हर कतरा जो आसमान से गिरता वो एक मशक के बराबर होता_*

*📕 माअरेजुन नुबूवत,जिल्द 1,सफह 74*

*_कश्ती में जानवरों में सबसे पहले सवार होने वाला तोता या मुर्गाबी है और सबसे आखिर में गधा,और इब्लीस लईन गधे की दुम पकड़कर ही कश्ती में सवार हुआ_*

*📕 अलबिदाया वननिहाया,जिल्द 1,सफह 111*

*_जब सांप और बिच्छु कश्ती में सवार होने लगे तो आपने मना फरमा दिया जिस पर वो अर्ज़ करते हैं कि हमें सवार कर लीजिये मगर जो शख्स "सलामुन अला नूहे फिल आलमीन" पढ़ेगा तो हम उसे नुक्सान नहीं पहुंचायेंगे_*

*📕 नुज़हतुल मजालिस,3,सफह 50*

*_कश्तिये नूह में कुछ जानवरों की पैदाईश बताई जाती है जो कि इस तरह है जब कश्ती में जानवरों ने गोबर वग़ैरह करना शुरू किया तो कश्ती बदबू से भर गयी लोगों ने हज़रत नूह अलैहिस्सलाम की बारगाह में शिकायत की तो मौला ने फरमाया कि हाथी की दुम हिलाओ जब आपने ऐसा किया तो 2 सुअर नर और मादा बरामद हुए और नजासत खाने लगे,इब्लीस को मौक़ा मिला और उसने सुअर के पेशानी पर हाथ फेरा तो 2 चुहे नर व मादा पैदा हुए जिन्होंने कश्ती को कुतरना शुरू कर दिया,जब हज़रत नूह अलैहिस्सलाम ने देखा तो खुदा की बारगाह में अर्ज़ किया तो मौला फरमाता है कि तुम शेर की पेशानी पर अपना हाथ फेरो जब उन्होंने ऐसा किया तो शेर को छींक आई और बिल्ली का जोड़ा निकला जिससे कि चूहे दुबक कर बैठ गये_*

*📕 माअरेजुन नुबूवत,जिल्द 1,सफह 75*
*📕 तफसीर इबने कसीर,पारा 12,रुकू 4*
*📕 अजायबुल हैवानात,सफह 20*

*_जब कश्ती में तमाम जानवरों के साथ शेर सवार हुआ तो सारे जानवर दहशत में आ गए तो मौला ने शेर को बुखार में जकड़ दिया,ये पहला जानवर है जो बीमार हुआ_*

*📕 अलबिदाया वननिहाया,जिल्द 1,सफह 111*

*_जब हज़रत आदम अलैहिस्सलाम जन्नत से तशरीफ लाये थे तो दुनिया में दो ही जानवर थे पानी में मछली और खुश्की में टिड्डी,बाकी सारे जानवर दुनिया में ही ज़रूरत के हिसाब से पैदा होते रहे_*

*📕 हयातुल हैवान,सफह 478*

*_तूफाने नूह के बाद सबसे पहले जो शहर बसाया गया उसका नाम "सौकुस समानीन" रखा गया ये जब्ले निहावंद के क़रीब है_*

*📕 अलमलफूज़,हिस्सा 1,सफह 65*

*_तूफाने नूह के बाद सबसे पहले ज़ैतून का दरख्त उगा_*

*📕 जलालैन,हाशिया 6,सफह 299*

*_कश्ती से उतरने के बाद लोग 80 ज़बानों में बात करने लगे इसलिए इसको बाबुल यानि इख्तिलाफ की जगह कहा गया_*

*📕 तफसीरे नईमी,जिल्द 1,सफह 682*

*_आशूरा के दिन जो खिचड़ा पकाया जाता है और उसकी निस्बत शुहदाये कर्बला की तरफ करते हैं ये गलत है बल्कि हज़रत नूह अलैहिस्सलाम की कश्ती जब जूदी पहाड़ पर आकर रुकी तो वो दिन दसवीं मुहर्रम का ही था,आपने तमाम लोगों से खाने पीने की चीज़ को इकठ्ठा करने को कहा तो उसमें मटर,गेंहू,जौ,मसूर,चना,चांवल और प्याज़ ये 7 अशिया ही पायी गई,तो आपने उन सबको इकठ्ठा करके एक ही हांडी में पकाया और उसको "तिब्यखुल हुबूब" का नाम दिया जो आज खिचड़े के नाम से जाना जाता है_*

*📕 फातिहा का सुबूत,सफह 12*

*_तूफाने नूह में आपका एक काफिर बेटा और काफिरा बीवी भी हलाक हुई,ख्याल रहे कि कुफ्र काफिरों की नज़र में ऐब नहीं समझा जाता वो इसे अपना मज़हब जानते हैं मगर ज़िना या इस तरह के और भी बुरे काम हर मज़हब में बुरे व ऐब समझे जाते हैं तो अम्बिया इकराम की बीवियां ज़िना जैसे ऐबों से पाक हैं मगर कुफ्र पाया जा सकता है,अब कुछ को ईमान नसीब होता है जैसे कि हज़रत यूसुफ अलैहिस्सलाम की बीवी हज़रते ज़ुलेखा और हज़रत सुलेमान अलैहिस्सलाम की बीवी हज़रते बिलक़ीस को ईमान नसीब हुआ और कुछ को ईमान नहीं मिलता जैसा कि यहीं आपने पढ़ा और हज़रत लूत अलैहिस्सलाम की बीवी भी कुफ्र पर मरी,यहां ये भी ख्याल रहे कि एक ही अज़ाब किसी पर सजा होता है तो किसी पर नहीं मतलब ये कि तूफाने नूह में सिर्फ वही लोग बचें जो कि कश्ती में सवार थे और बहुत सारे इंसान और जानवर हलाक हो गए मगर ये हलाकत इंसानों के लिए अज़ाब थी और जानवरों के लिए नहीं,जैसे कि जहन्नम में बहुत सारे सांप बिच्छु और फरिश्ते अज़ाब देने के लिए होंगे मगर खुद उनको कोई तकलीफ ना होगी_*

*📕 तज़किरातुल अम्बिया,सफह 76*

*_आपकी उम्र 1600 साल हुई और तमाम नस्ले इंसानी आपके ही बेटों से चली बाकी जो भी मुसलमान बचे थे उनमें से किसी की भी नस्ल आगे ना बढ़ी_*

*📕 अलमलफूज़,हिस्सा 1,सफह 65*

*_आपकी क़ब्र मस्जिदे हराम में है और यही राजेह है_*

*📕 अलबिदाया वननिहाया,जिल्द 1,सफह 120*
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                 *हिस्सा-1*



 *इल्मे ग़ैब पर वहाबियों का ऐतराज़*


*वैसे तो मैं इल्मे ग़ैबे मुस्तफा ﷺ पर सिर्फ कुरान की आयतों से पोस्ट बनाकर सेंड कर चुका हूं पर फिर भी कुछ सवाल मेरे पास आये जो हदीसो के ताल्लुक से था जिन्हें वहाबिया अक्सर सुन्नियो को दिखा दिखाकर कहते नज़र आते हैं कि अगर हुज़ूर ﷺ को ग़ैब होता तो इन हदीसों का क्या मतलब है,पहले वो सवाल मुलाहज़ा फरमा लें*

*_1⃣  वहाबी कहता है कि बैरे मऊना के मुनाफिकों के कहने पर हुज़ूर ﷺ ने उनके साथ 70 सहाबा को क्यों भेजा जिन्हें उन लोगों ने शहीद कर दिया,अगर आपको ग़ैब होता तो आप ऐसा ना करते और अगर ऐसा है तो फिर उनको शहीद करने का इलज़ाम भी आपके सर पर है_*

*_2⃣  वहाबी कहता है कि खैबर के रोज़ आपको ज़हर वाला गोश्त दिया गया जिसे आपने खा लिया अगर आपको ग़ैब होता तो आप ना खाते_*

*_3⃣  वहाबी कहता है कि अगर हुज़ूर ﷺ को ग़ैब होता तो आपको अपने मोज़े के अंदर का सांप होना मालूम होता_*

*_4⃣  वहाबी कहता है कि जब उम्मुल मोमेनीन सय्यदना आयशा सिद्दीका रज़ियल्लाहु तआला अंहा पर तोहमत लगायी गयी तो हुज़ूर ﷺ 1 महीने तक खामोश क्यों रहे और परेशानी में मुब्तेला क्यों हुए अगर उन्हें ग़ैब होता तो उनकी बरा'अत ज़ाहिर फरमाते_*

*_5⃣  वहाबी कहता है कि हुज़ूर ﷺ एक निकाह में तशरीफ ले गए वहां कुछ बच्चियां ये शेअर पढ़ रही थीं कि ये वो नबी हैं जो कल की बात जानते हैं तो आपने उन्हें मना फरमा दिया कि ऐसा ना कहो,अगर हुज़ूर ﷺ को ग़ैब होता तो उन्हें मना न फरमाते_*

*_6⃣  वहाबी कहता है कि खुद सय्यदना आयशा सिद्दीका रज़ियल्लाहु तआला अंहा फरमाती हैं कि जो ये कहे कि हुज़ूर ﷺ ग़ैब जानते हैं वो झूठा है_*

*_7⃣  वहाबी कहता है कि हौज़े कौसर पर कुछ लोग आयेंगे जिन्हें हुज़ूर ﷺ बुलायेंगे तो फरिश्ते अर्ज़ करेंगे कि या रसूल अल्लाह ﷺ ये मुनाफ़िक़ है तो हुज़ूर ﷺ उन्हें दुत्कार देंगे,अगर हुज़ूर ﷺ को ग़ैब होता तो उन्हें पहले ही खबर हो जाती_*

*_8⃣  वहाबी कहता है कि बुखारी शरीफ की रिवायत है हुज़ूर ﷺ फरमाते हैं कि मैं खुद नहीं जानता कि मेरे साथ क्या किया जायेगा,अगर हुज़ूर ﷺ को ग़ैब होता तो हरगिज़ ऐसा ना कहते_*

*_9⃣  वहाबी कहता है कि अज़्वाजे मुतहहरात के कहने पर आपने शहद को मगाफीर समझकर अपने ऊपर हराम कर लिया,अगर आप ग़ैब जानते तो हरगिज़ ऐसा ना करते_*

*_🔟 वहाबी कहता है कि हुज़ूर ﷺ ने किसी सहाबी को फलों की काश्त करने को कहा मगर उस साल फल पिछले साल से भी कम आये,अगर हुज़ूर ﷺ को ग़ैब था तो ऐसा क्यों फरमाया_*

*वग़ैरह वग़ैरह,और भी बहुत कुछ कहते हैं मगर मेरे ख्याल से अगर इनका जवाब दे दिया जाए तो बाकी सवाल का जवाब भी अपने आप ही अदा हो जायेगा,अब इन सबका जवाब भी पढ़ लीजिये*

*_1⃣  बेशक हुज़ूर ﷺ को बैरे मऊना वालों की मुनाफिक़त का इल्म था और ये भी खबर थी कि वो 70 सहाबा इकराम शहीद कर दिए जायेंगे मगर उनकी क़ज़ा टल नहीं सकती थी और यही मरज़िये इलाही थी और हुज़ूर ﷺ अपने खुदा की रज़ा पर राज़ी थे,और अगर थोड़ी देर के लिए वहाबियों की जिहालत भरी दलील मान भी ली जाए कि हुज़ूर ﷺ को ग़ैब नहीं था तो क्या माज़ अल्लाह खुदा को भी ग़ैब नहीं था,अरे जो खुदा बात बात में हज़रत जिब्रील अलैहिस्सलाम को हुज़ूर ﷺ की बारगाह में भेज दिया करता था यहां तक की रिवायतों में आता है कि हज़रत जिब्रील अलैहिस्सलाम 24000 मर्तबा मेरे आक़ा ﷺ की बारगाह में हाज़िर हुए हैं तो एक बार और भेज देता,हुज़ूर ﷺ नहीं जान रहे थे तो रब तो जान रहा था कि बैरे मऊना वाले मुनाफ़िक़ हैं और ये मुनाफ़िक़ 70 सहाबा को ले जाकर क़त्ल कर देंगे तो क्यों नहीं वही के ज़रिये अपने महबूब ﷺ को खबर दी,या माज़ अल्लाह वहाबियों का खुदा के बारे में भी यही अक़ीदा है कि वो भी ग़ैब नहीं जानता,क्योंकि उनकी इस दलील से तो यही ज़ाहिर हो रहा है कि माज़ अल्लाह खुदा को भी इल्म नहीं था और अगर मान लिया जाए कि खुदा को इल्म था जैसा कि हुज़ूर ﷺ को भी था,तो भी खुदा ने हुज़ूर ﷺ को सहाबा इकराम को उनके साथ जाने से क्यों नहीं रोका तो माज़ अल्लाह जो इलज़ाम नबी ﷺ पर लगाया गया कि उन्होंने जानबूझकर 70 सहाबा को क़त्ल करवा दिया अब वही इलज़ाम खुदा पर भी आयद हो जाता है कि उसने भी जानते हुए कि ये सहाबा शहीद हो जायेंगे फिर भी अपने महबूब ﷺ को खबर ना दी और उन्हें जाने से ना रोक,अब इसका जो जवाब वहाबी देगा वही जवाब हमारी तरफ से समझ ले_*
*_और राज़ी बरज़ाये इलाही वहाबियों की समझ में नहीं आता है तो अंधों को हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम का अपने मासूम बेटे हज़रत इस्माईल अलैहिस्सलाम के गले पर छुरी चलाना याद कर लेते,क्या वहाबी का ये कहना है बाप ने बेटे पर ज़ुल्म किया अगर माज़ अल्लाह ज़ुल्म कहता है जब तो काफिर हुआ कि खुदा को ज़ालिम कहता है कि ये हुक्म खुदा का था और अगर इसको ज़ुल्म नहीं बल्कि मरज़िये इलाही कहता है तो यही मरज़िये इलाही उन 70 सहाबा की शहादत पर हुज़ूर ﷺ की भी थी_*

*📕 जा'अल हक़,हिस्सा 1,सफह 124*

*_2⃣  और खैबर में उस गोश्त में ज़हर का भी आपको इल्म था मगर वही रज़ाये इलाही मक़सूद था,आपको ये भी इल्म था कि इसका असर अभी नहीं होगा बल्कि बवक़्ते वफात इसका असर लौटेगा और इसी ज़हर से मेरा विसाल होगा कि शहादत का मनसब भी आपकी ज़ात में जुड़ जाये_*

*📕 ज़रक़ानी,जिल्द 2,सफह 242*

*अलहासिल किसी बात को ज़ाहिर ना करना ये नहीं माना जाता कि उसको उस बात का इल्म भी नहीं है,ये वहाबियों की कमज़र्फी है कि वो हुज़ूर ﷺ के सुकूत को उनके इल्म की नफी करार देते हैं*
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*मामूलाते अहले सुन्नत*

         *तबर्रुकात*


*अगर कोई सुन्नी नबी या वली के तबर्रुकात की ज़ियारत करले या उसे चूम ले आंखों से लगा ले या वलियों की चादर चूम ले या क़ब्र में शजरा वगैरह रख दे तो वहाबियों को शिर्क और बिदअत याद आ जाता है क्या वाक़ई ये सब शिर्क और बिदअत है आईये देखते हैं*

*_1⃣  आये तुम्हारे पास ताबूत जिसमे रब की तरफ से दिलो का चैन है,और कुछ बची हुई चीज़ें हैं मुअज़्ज़ज़ मूसा व हारून के तरके की,कि उठाये लायेंगे फरिश्ते,बेशक उसमें बड़ी निशानी है अगर ईमान रखते हो_*

*📕 पारा 2,सूरह बक़र,आयत 248*

*_बनी इस्राईल हमेशा जंग या दुआ के वक़्त ये ताबूत अपने आगे रखते थे जिससे कि वो हमेशा फतहयाब होते और उनकी दुआयें क़ुबूल होती,इस ताबूत में नबियों की क़ुदरती तस्वीरें उनके मकान के नक़्शे हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम व हज़रत हारुन अलैहिस्सलाम का असा उनके कपड़े उनकी नालैन इमामा शरीफ वग़ैरह रखा हुआ था,जब बनी इस्राईल की बद आमलियां हद से ज़्यादा बढ़ गई तो उनसे वो ताबूत छिन गया और क़ौमे अमालका ने उसे हासिल कर लिया मगर उसने भी इस ताबूत की बेहुरमती की जिससे कि उनकी 5 बस्तियां हलाक़ हो गई और सबके सब बीमारी और परेशानी में मुब्तेला हुए_*

*📕 खज़ाएनुल इरफान,सफह 47*

*_2⃣  मेरा ये कुर्ता ले जाओ इसे मेरे बाप के मुंह पर डालो उनकी आंखे खुल जायेगी_*

*📕 पारा 13,सूरह युसूफ,आयत 93*

*_हज़रत यूसुफ अलैहिस्सलाम के ग़म में आपके वालिद हज़रत याक़ूब अलैहिस्सलाम की आंखों की रौशनी चली गयी,जब हज़रत युसूफ अलैहिस्सलाम को ये खबर हुई तो आपने अपना कुर्ता अपने भाइयों को दिया और फरमाया कि मेरा कुर्ता मेरे बाप की आंखों से लगा देना उनकी रौशनी आ जायेगी,उनके भाईयों ने घर जाकर ऐसा ही किया तो हज़रत याक़ूब अलैहिस्सलाम की आंखों की रौशनी वापस आ गयी_*

*📕 खज़ाएनुल इरफान,सफह 294*

*_3⃣  और इब्राहीम के खड़े होने की जगह को नमाज़ का मक़ाम बनाओ_*

*📕 पारा 1,सूरह बक़र,आयत 125*

*_हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम ने जिस पत्थर पर खड़े होकर काबे की तामीर फरमाई उस पर आपके कदमों के निशान पड़ गये,जहां वो मुक़द्दस पत्थर मौजूद है उसी जगह को आज मक़ामे इब्राहीम कहा जाता है और तमाम हाजी वहां नमाज़ पढ़ते हैं और वो भी खुदा के हुक्म से,ज़रा सोचिए कि हम किसी वली की चादर तबर्रुकन चूम लें तो शिर्क का फतवा लगाया जाता है,अरे अन्धे वहाबियों हम तो सिर्फ होठों व आंखों से ही चूमते हैं मगर रब्बे कायनात ने तो बन्दों की नाक और पेशानी तक रगड़वा दी अपने खलील के क़दमों के निशान पर,अब इस पर कौन सा फतवा लगेगा_*

*_4⃣  बेशक सफा और मरवा अल्लाह की निशानियों में से है_*

*📕 पारा 2,सूरह बक़र,आयत 158*

*_क्या है सफा और मरवा,यही ना कि हज़रते हाजरा रज़ियल्लाहु तआला अंहा अपने मासूम बेटे हज़रत इस्माईल अलैहिस्सलाम की प्यास को बुझाने के लिए पानी की तलाश में सफा और मरवा की पहाड़ियों में दौड़ी थीं,अरे जब दौड़ी थीं तब दौड़ी थीं आज हाजियों को क्यों वहां दौड़ाया जाता है आज कौन से पानी की तलाश है,मतलब साफ है कि अम्बिया व औलिया से जो चीज़ें निस्बत रखेंगी वो मुतबर्रक हो जायेंगी अब चाहे वो कोई जगह हो या फिर कोई सामान,आबे ज़म-ज़म शरीफ क्या है एक पानी ही तो है फिर उसकी इतनी अज़मत क्यों है,क्योंकि वो एक नबी के कदमों से मस करके निकला है इसलिए उसकी ये अज़मतों बुलन्दी है और क़यामत तक रहेगी_*

*_5⃣  ईसा बिन मरियम ने कहा ऐ अल्लाह ऐ हमारे रब हम पर आसमान से एक ख्वान उतार कि वो हमारे लिए ईद हो_*

*📕 पारा 7,सूरह मायदह,आयत 114*

*_हज़रत ईसा अलैहिस्सलाम के लिए आसमान से खानो का भरा हुआ एक तश्त उतरा,जिस दिन ये ख्वान नाज़िल हुआ वो इतवार का दिन था आज भी तमाम ईसाई इसी ख्वान के नाज़िल होने की खुशी में संडे को छुट्टी मनाते हैं,खुद ईसा अलैहिस्सलाम ख्वान उतरने पर ईद मनाने का हुक्म फरमा रहे हैं,ज़रा सोचिये कि आसमान से खाना उतरने पर तो ईद मनाई जा रही है मगर हम अपने नबी या वली की विलादत की खुशी मना लें या उर्स मना लें तो शिर्क का फतवा,हैं ना अजीब बात_*

*आयतें तो बहुत सारी है पर अब कुछ हदीसे पाक भी पढ़ लीजिये*

*_6⃣  हज़रत ज़राअ रज़ियल्लाहु तआला अन्हु फरमाते हैं कि हम हुज़ूर ﷺ के हाथ पांव चूमते थे और खुद हुज़ूर ﷺ ने हज़रते उस्मान बिन मतऊन को उनके इन्तेक़ाल के बाद बोसा दिया_*

*📕 मिश्कात बहवाला जाअल हक़,हिस्सा 1,सफह 351*

*_7⃣  हज़रते अस्मा बिन्त अबु बक्र रज़ियल्लाहु तआला अंहा के पास हुज़ूर ﷺ का एक जुब्बा था जब मदीने में कोई बीमार पड़ता तो आप उसे धोकर पिलाती जिससे वो शिफायाब होता_*

*📕 मुस्लिम,जिल्द 2,सफह 190*

*_8⃣  हज़रते बिलाल रज़ियल्लाहु तआला अन्हु हुज़ूर ﷺ के वुज़ु से बचा हुआ पानी लाये तो तमाम सहाबा ने उसे हाथों हाथ लिया जिसे ना मिला वो अपने साथ वाले से तरी ले लेता_*

*📕 बुखारी,जिल्द 1,सफह 225*

*हदीसे पाक भी इस मसले पर बहुत हैं पर अब वहाबियों की किताब से भी कुछ रिवायात पढ़ लीजिये*

*_9⃣  रशीद अहमद गंगोही ने एक सवाल का जवाब देते हुए लिखा कि "दीनदार के हाथ-पांव चूमना दुरुस्त है और हदीस से साबित है_*

*📕 फतावा रशीदिया,जिल्द 1,सफह 54*

*_🔟 यही रशीद अहमद गंगोही दूसरी जगह लिखते हैं कि "क़ब्र में शजरा रखना जायज़ है और मय्यत को फायदा होता है_*

*📕 तज़किरातुर्रशीद,जिल्द 2,सफह 290*

*_तबर्रुकात के अदब व ताज़ीम पर क़ुरानो हदीस के साथ साथ खुद वहाबियों की किताब से भी दलील दे दी गई पर फिर भी ये जाहिल हठधर्मी वहाबी कुछ मानने को तैयार नहीं होते,बहरहाल अभी तौबा का दरवाज़ा खुला हुआ है अगर मरने से पहले तौबा करली तो ज़हे नसीब वरना हमेशा के लिए जहन्नम में रहना होगा,दुआ है कि मौला हम सुन्नियों को मसलके आलाहज़रत पर क़ायम रखे और इसी पर मौत नसीब अता फरमाये-आमीन_*
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  *हज़रत सालेह अलैहिस्सलाम*



*_हज़रत सालेह अलैहिस्सलाम क़ौमे समूद की तरफ तशरीफ लायें और आप खुद भी क़ौमे समूद से हैं,समूद एक शख्स का नाम था जिनकी औलाद को क़ौमे समूद कहा जाता है,आपका नस्ब नामा इस तरह है सालेह बिन उबैद बिन मासिख बिन अब्द बिन जाबिर बिन समूद बिन उबैद बिन औस बिन आद बिन इरम बिन साम बिन हज़रत नूह अलैहिस्सलाम,आप हज़रत हूद अलैहिस्सलाम से तक़रीबन 100 साल बाद तशरीफ लायें_*

*📕 तज़किरातुल अम्बिया,सफह 182*

*_आप पर ईमान लाने वालों की तादाद 4000 थी_*

*📕 अलकामिल फित्तारीख,जिल्द 1,सफह 36*

*_क़ौमे आद की हलाक़त के बाद अल्लाह ने क़ौमे समूद को आबाद किया उनको लंबी उम्र अता की माली वुसअत भी खूब दी मगर जब उनकी नाफरमानियां बढ़ने लगीं तब उनकी तरफ हज़रत सालेह अलैहिस्सलाम को भेजा,जब उन्होंने तब्लीग की तो लोगों ने आपसे मोजज़ा तलब किया जिसका पूरा वाक़िया कुछ यूं है कि क़ौम का सरदार जिसका नाम जनदा बिन अमर था उसने एक चट्टान जिसका नाम काफिया था उसकी तरफ इशारा करते हुए बोला कि अगर आप नबी हो तो इससे एक हामिला ऊंटनी निकाल दो,आप ने रब की बारगाह में दुआ की तो फौरन चट्टान की वही हालत हो गयी जो कि एक हामिला की होती है दर्द से कराहना व इज़्तिराब वगैरह,यहां तक कि चट्टान फटी और उससे एक ऊंटनी बरामद हुई जो 10 महीने की हामिला थी और जिस्म पर ऊन भी बहुत था इसका सीना 60 गज़ लंबा था,ये मोजज़ा देखकर जनदा बिन अमर और कुछ लोग ईमान ले आये और बाकी अपने कुफ्र पर क़ायम रहे,फिर उन लोगों के सामने ही उस ऊंटनी ने बच्चा दिया जो कि 70 ऊंट के बराबर वज़न का था_*

*_क़ौम की बस्ती में पानी पीने के लिए एक ही तालाब था जिसमे कि पहाड़ों से पानी आकर जमा होता था,हज़रत सालेह अलैहिस्सलाम ने उनसे फरमा दिया था कि एक दिन छोड़कर इस तालाब का सारा पानी इन ऊंटनी और उसके बच्चे के लिए है और दूसरे दिन पूरी क़ौम के लिए और ये भी फरमाया कि बुराई की नीयत से इस पर दस्त अंदाज़ी मत करना वरना तुम पर अज़ाब आ जायेगा,ऊंटनी अपने बच्चे के साथ जंगल में चरती जब सर्दी आती तो वो जंगल के अंदरूनी हिस्से में चली जाती जिससे कि सारे जानवर भागकर जंगल के बाहरी हिस्से में आ जाते और गर्मियों में बाहरी हिस्से में रहती तो और जानवर अन्दर की तरफ भाग जाते,तालाब में मुंह लगाती तो उस वक़्त उठाती जब कि सारा पानी खत्म हो जाता,दूध तो इतना देती थी की पूरे क़बीले को काफी हो जाता था मगर उसकी वजह से जो मुसीबत क़ौम पर आई थी जब वो उनसे बर्दाश्त ना हुई तो उन लोगों ने ऊंटनी को क़त्ल करने का मंसूबा बनाया_*

*_इस तरह कि एक काफिरा औरत ग़ैज़ा बिन्त गनम जो कि कई खूबसूरत लड़कियों की मां थी इसको हज़रत सालेह अलैहिस्सलाम से दुश्मनी थी,इसने मिसदह बिन महरज और क़द्दार बिन सालिफ को इस शर्त पर ऊंटनी के क़त्ल को तैयार कर लिया कि वो जिस लड़की को चाहें अपने पास रख सकते हैं,ये दोनों अपने कई साथी लेकर तालाब पर ऊंटनी की ताक में पहुंचकर छिप गए जब वो पानी पीने को आई तो मिसदह बिन महरज ने उसकी एड़ी में तीर मारा जिससे की वो गिर गई और क़द्दार बिन सालिफ ने उसकी कोंचे काट दी और उसके बच्चे को भी क़त्ल किया,ये वाक़िया बुध के दिन पेश आया,जब हज़रत सालेह अलैहिस्सलाम को पता चला तो आपने फरमाया कि अब तीन दिन तुम्हारे पास हैं पहले दिन तुम्हारा चेहरा ज़र्द होगा दूसरे दिन सुर्ख और तीसरे दिन काला फिर उसके बाद अज़ाब आयेगा_*

*_होना तो ये चाहिए था कि जब हज़रत सालेह अलैहिस्सलाम ने उनको अज़ाब की खबर दी तो वो माफी मांगते मगर उन्होंने ऐसा ना किया बल्कि हज़रत सालेह अलैहिस्सलाम की क़त्ल की ही साजिश करने लगे,इस कबीले के 9 सरदार थे जिनके लड़के हमेशा हज़रत सालेह अलैहिस्सलाम के खिलाफ सरगर्म रहते थे,वो सब टोलियां बनाकर तलवार लिए हुए हज़रत सालेह अलैहिस्सलाम के घर के करीब जब पहुंच गए तो मौला तआला ने फरिश्तो को अपने नबी की हिफाज़त के लिए भेज दिया इस तरह कि फरिश्ते उन पर पत्थर बरसाने लगे,अब इन पर पत्थर तो पढ़ रहे थे मगर पत्थर मारने वाले नज़र ना आते इसी तरह वो हलाक़ हुए,और ये वाक़िया मोहलत की आखिरी रात में हुआ,फिर सुबह को वो अज़ाब आया जिसके बारे में आता है कि ज़मीन में सख्त ज़लज़ला आया और आसमान से एक गरज़ दार चिंघाड़ जिसकी हैबत से तमाम काफिर मर गए और उनकी इमारतें तबाहो बर्बाद हो गयी_*

*📕 खज़ाएनुल इरफान,सफह 190*
*📕 इब्ने कसीर,पारा 8,रुकू 17*
*📕 रूहुल बयान,पारा 8,रुकू 17*
*📕 तज़किरातुल अम्बिया,सफह 186*

*_बाज़ मुफस्सेरीन फरमाते हैं कि उन लोगों ने बच्चे को क़त्ल नहीं किया बल्कि अपनी मां के क़त्ल के बाद वो खुद ही चीखता हुआ पहाड़ में गायब हो गया और क़ुर्बे क़यामत यही बच्चा "दाबतुल अर्द" बनकर ज़ाहिर होगा_*

*📕 जलालैन,हाशिया 10,सफह 136*

*_आपकी उम्र में इख्तिलाफ है बाज़ ने 58 साल बताई और बाज़ ने 280 साल_*

*📕 अलइतकान,जिल्द 2,सफह 177*
*📕 तफसीरे सावी,जिल्द 2,सफह 73*

*_आपकी क़ब्रे मुबारक मक़ामे इब्राहीम और ज़म-ज़म शरीफ के दरमियान है_*

*📕 खाज़िन,जिल्द 2,सफह 207*
*📕 जलालैन,हाशिया 27,सफह 184*

*_ये भी याद रखिए कि सिर्फ हज्रे अस्वद और ज़म-ज़म शरीफ के दरमियान 70 अम्बिया इकराम के मज़ारात मौजूद हैं_*

*📕 फतावा रज़वियह,जिल्द 2,सफह 453*

..........खत्म
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                 *जोइन*

*_मदर्सा हनफिया वारिसुल उलूम_*
      *_9628204387_*

*_मुजीबुर्रहमान क़ादरी_*
              
               *खादिम*

*_दारूल उलूम हनफिया वारिसुल उलूम क़स्बा बेलहरा ज़िला बाराबंकी यू.पी_*






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                    *शादी*
                *_हिस्सा 5_*


        *मियां बीवी के एक दूसरे पर हुक़ूक़*


*बीवी के हुक़ूक़*


*_अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त क़ुरान मुक़द्दस में इरशाद फरमाता है कि_*

*_1. अपनी बीविओं से अच्छा बर्ताव करो_*

*📕 पारा 4,सूरह निसा,आयत 19*

*_2. और औरतों का हक़ शरह के मुआफ़िक जो है उसे अदा करो_*

*📕 पारा 2,सूरह बक़र,228*

*_और हदीसे पाक में रसूल अल्लाह सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम इरशाद फरमाते हैं कि_*

*_3. ईमान में सबसे ज़्यादा कामिल वो है जिसके अख़लाक़ अच्छे हों और अपनी बीवी के साथ नरमी बरते_*

*📕 तिर्मिज़ी,जिल्द 1,सफह 138*
*📕 मिश्क़ात,जिल्द 2,सफह 282*

*_4. औरत टेढ़ी पसली से पैदा की गई है लिहाज़ा उसको एकदम सीधा करने की कोशिश करोगे तो तोड़ दोगे तो ऐसे ही टेढ़ी रखकर उससे फायदा उठाओ_*

*📕 बुखारी,जिल्द 2,सफह 779*

*_5. औरत के ये 4 हक़ हैं जिसे शौहर को अदा करना है_*

*_! जिस हैसियत का खाना खुद खाये वैसा ही अपनी बीवी को खिलाए_*

*_! जिस हैसियत का कपड़ा खुद पहने वैसा ही उसे भी पहनाए_*

*_! रहने का मकान हस्बे हैसियत हो_*

*_! और उसकी ज़रुरत (हमबिस्तरी) पूरी करता रहे_*

*📕 अबु दाऊद,सफह 291*
*📕 फतावा रज़वियह,जिल्द 5,सफह 907*

*शौहर के हुक़ूक़*

*_6. मर्द अफसर यानि हाकिम हैं औरतों पर_*

*📕 पारा 5,सूरह निसा,आयत 34*

*_एक शौहर का अपनी बीवी पर इतना बड़ा हक़ है कि उसको समझने के लिए ये एक ही हदीसे पाक काफी है हुज़ूरे अक़्दस सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम इरशाद फरमाते हैं कि_*

*_7. अगर ख़ुदा के सिवा किसी को सजदा जायज़ होता तो मैं औरतों को हुक्म देता की अपने शौहरों को सजदा करें और ख़ुदा की कसम कोई औरत ख़ुदा का हक़ अदा नहीं कर सकती जब तक कि अपने शौहर का हक़ न अदा कर ले_*

*📕 इब्ने माजा,सफह 133*

*_8. जिस औरत को मौत ऐसी हालत में आये की उसका शौहर उससे राज़ी हो तो वो जन्नती है_*

*📕 तिर्मिज़ी,जिल्द 1,सफह 138*

*_9. कोई औरत बगैर शौहर की मर्ज़ी के हरगिज़ नफ्ल रोज़ा न रखे अगर रखेगी तो गुनाहगार होगी और हरगिज़ उसकी मर्ज़ी के बिना घर ना छोड़े वरना जब तक कि पलट कर ना आएगी इन्सो जिन्न के सिवा अल्लाह की तमाम मख़लूक़ उसपर लानत करेगी_*

*📕 फतावा रज़वियह,जिल्द 9,सफह 197*

*_10. बेहतरीन औरत वो है जो हमेशा अपने शौहर को खुश रखे और शौहर जो हुक्म दे उसे पूरा करे_*

*📕 निसाई,जिल्द 2,सफह 60*

*_11. औरत का अपने शौहर की नाफरमानी करना गुनाहे कबीरा है बग़ैर शौहर को राज़ी करे व बग़ैर तौबा के हरगिज़ माफ़ न होगी_*

*📕 किताबुल कबायेर,सफह 291*

*कहते हैं कि अक़्लमंद को इशारा ही काफी होता है इसी को सामने रखकर ये चन्द जुमले क़ुरानों हदीस से बयान कर दिए,मौला तआला से की दुआ है कि मुआशरे की इस वक़्त की सबसे बड़ी खराबी को दूर फरमा दे और जिन मियां बीवी में न इत्तेफाक़ी हो उसे इत्तेफ़ाक़ और मुहब्बत में बदल दे-आमीन आमीन आमीन या रब्बुल आलमीन बिजाहिस सय्यदिल मुरसलीन सल्ललाहो तआला अलैहि वसल्लम*
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               *_जोइन_*

*_मदर्सा हनफिया वारिसुल उलूम_*
      *_9628204387_*

*_मुजीबुर्रहमान क़ादरी_*

              *_खादिम_*

*_दारूल उलूम हनफिया वारिसुल उलूम क़स्बा बेलहरा ज़िला बाराबंकी यू.पी_*






POST=31


*_مدرسہ حنفیہ وارث العلوم_*
*_मदर्सा हनफिया वारिसुल उलूम_*


*_हुज्जतुल इस्लाम हुज़ूर हामिद रज़ा खान रज़ियल्लाहु तआला अन्हु,बरैली_*



*नाम : हामिद रज़ा खान*
*लक़ब : हुज्जतुल इस्लाम*
*वालिद : आलाहज़रत*
*वालिद : इरशाद बेगम*
*विलादत : रबीउन नूर 1292* *हि,1875 ई*
*विसाल : 17/5/1362* *हि,23/5/1942 ई*

*हुज्जतुल इस्लाम*

*_आप आलाहज़रत अज़ीमुल बरक़त के बड़े साहबज़ादे और हुज़ूर ताजुश्शरिया के दादा हैं_*

*_आपका निकाह आपकी फूफी की लड़की कनीज़ आयशा से हुई जिसने आपको 6 औलादें अता हुईं,2 लड़के और 4 लड़कियां जिनके नाम ये हैं_*

*! मौलाना इब्राहीम रज़ा खान*
*! मौलवी हम्माद रज़ा खान*
*! उम्मे कुलसुम ज़ौजा हकीम हुसैन रज़ा खान*
*! कनीज़ सुग़रा ज़ौजा तक़द्दुस अली खान*
*! राबिया बेगम ज़ौजा मशहूद अली खान*
*! सलमा बेगम ज़ौजा मुशाहिद अली खान*

*_मौलाना इब्राहीम रज़ा खान यानि जीलानी मियां का निकाह आपके चचा यानि हुज़ूर मुफ्तिए आज़म हिन्द की बड़ी साहबज़ादी निगार फातिमा से हुआ जिनसे आपको 8 औलादें हुईं जिनमे हुज़ूर ताजुश्शरिया भी हैं_*

*_आपने तमाम उलूम अपने वालिदे माजिद आलाहज़रत अज़ीमुल बरक़त से ही सीखा,आपने कई किताबें लिखी,आपको अरबी ज़बान पर भी महारत हासिल थी जिसको दौलतुल मक्किया का उर्दू तर्जुमा करके आपने साबित भी कर दिया_*

*_आप हमेशा दुरूदे पाक का विर्द करते रहते थे यहां तक कि अक्सर आपको नींद में भी दुरूद शरीफ पढ़ते हुए पाया गया_*

*_सीता मढ़ी के एक जलसे में आलाहज़रत की दावत थी जिसमे मसरूफियत की बिना पर आप नहीं गए और हुज्जतुल इस्लाम को अपनी जगह भेज दिया और फरमाया कि ये मेरे ही क़ायम मक़ाम है लिहाज़ा इन्हें हामिद रज़ा नहीं बल्कि अहमद रज़ा ही कहा जाए और फरमाते हैं कि उनकी बैयत मेरी ही बैयत है और उनका हाथ मेरा ही हाथ है_*

*_आप बाकरामत थे एक मर्तबा किसी वली की मज़ार पर हाज़िरी दी,फातिहा पढ़ ही रहे थी कि अचानक अपने पैर कुछ क़दम वापस ले लिए और परमाया कि ये मज़ार अपनी अस्ल जगह पर नहीं है,जब लोगों से ये बात बताई गई तो कहने लगे कि हज़रत सच फरमाते हैं कि सफ की तंगी की वजह से ऊपर की तुरबत को कुछ खिसकाया गया है,जिस पर आपने फरमाया कि ऐसा करना बिल्कुल भी ठीक नहीं है लिहाज़ा तुरबत को अपनी अस्ल जगह पर रखा जाए ऐसे ही बनारस के किसी जलसे में ये एलान हो गया कि अगर कोई आसेब ज़दा हो तो अपना कपड़ा यहां रख दे हज़रत उस पर दम फरमायेंगे कुछ ही देर में वहां कपड़ों का ढ़ेर लग गया,आपने उनमें से बहुत से कपड़े हटा दिए और चंद कपड़ों को अलग करके दम किया और फरमाया कि सिर्फ यही लोग आसेब ज़दा है बाकी किसी को भी आसेब का आरिज़ा नहीं,और फिर कुछ दिनों में वो सारे मरीज़ शिफायाब हो गए_*

*_आपको आपके वालिद के पहलू में ही दफ्न किया गया_*

*📕 हयाते आलाहज़रत,जिल्द 1,सफह 118*
*📕 तज़किराये अकाबिरे अहलेसुन्नत,सफह 117*

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              *हज़रत हूद अलैहिस्सलाम*


*_हज़रत हूद अलैहिस्सलाम सर ज़मीने अरब में पैदा होने वाले सबसे पहले नबी हैं_*

*📕 तफसीरे नईमी,जिल्द 11,सफह 547*

*_आपका नस्ब नामा युं है हूद बिन अब्दुल्लाह बिन रिबाह बिन खुलूद बिन आद बिन औस बिन इरम बिन साम बिन हज़रत नूह अलैहिस्सलाम चुंकि हज़रते नूह अलैहिस्सलाम की नस्ल में आद नामी शख्स गुज़रे हैं जिनकी तरफ मंसूबियत करते हुए आपकी क़ौम को क़ौमे आद कहा गया,आप हज़रत नूह अलैहिस्सलाम से 800 साल बाद तशरीफ लाये_*

*📕 तज़किरातुल अम्बिया,सफह 174*

*_क़ौमे आद के लोग 400,500 गज़ लम्बे हुआ करते थे उनके यहां बौना शख्स भी 300 गज़ का होता था_*

*📕 जलालैन,हाशिया 14,सफह 135*

*_आपकी क़ौम बुत परस्त थी उनके तीन बड़े बुत थे जिनके नाम उन्होंने सदा समूद और हबा रखा थे,हज़रत हूद अलैहिस्सलाम ने तीन शख्स अश्र नुअैम और मुदस्सिर जो कि आप पर ईमान ला चुके थे उनको क़ौम की तरफ तब्लीग के लिए भेजा क्यूंकि ये अपना ईमान अपनी क़ौम से छिपाये हुए थे,क़ौम ने इन तीनो को अपना तो समझा मगर उनकी बात को तस्लीम नहीं किया,बहुत समझाने पर भी जब क़ौम नहीं मानी तो अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त ने उन पर तीन साल तक बारिश रोक दी और इस दर्मियान उनकी औरतों को भी बांझ कर दिया,हज़रत हूद अलैहिस्सलाम उनको अज़ाब से डराते तो कहते कि हम बहुत ताक़तवर हैं किसी भी अज़ाब को रोक लेने की क़ुदरत रखते हैं चुंकि वो बहुत बड़े पत्थरों और चट्टानों को भी उठा लिया करते थे और अपनी इसी ताक़त पर उन्हें बहुत घमंड हो गया था,जब क़ौम नहीं मानी तो उन पर अज़ाबे इलाही ये आया कि काले बादल ने पूरे खित्ते को घेर लिया वो समझें कि अब बारिश होगी चुंकि तीन साल से बारिश नहीं हुई थी मगर पानी का एक कतरा भी ना गिरा और लगातार 7 रात आठ 8 दिन तेज आंधियां चलती रही जिसमे इंसान और जानवर सब उड़ने लगे,हवा के ज़ोर से किसी की गर्दन टूटी तो किसी का बदन और कोई तो रेत के टीले में दफन हो गया,इसी तरह पूरी क़ौम अज़ाब से मर गई मगर यही हवा हज़रत हूद अलैहिस्सलाम व उनके मानने वालों के लिए रहमत बनी रही और किसी को कोई नुकसान नहीं पहुंचा_*

*📕 तज़किरातुल अम्बिया,सफह 175--181*

*_आपकी उम्र 464 साल हुई_*

*📕 तफसीरे सावी,जिल्द 2,सफह 72*

*_आपकी मज़ार में इख्तिलाफ है या तो हज़रे मौत या मक़ामे इब्राहीम या फिर ज़मज़म शरीफ के दरमियान बताई जाती है_*

*📕 खाज़िन,जिल्द 2,सफह 207*

*..........खत्म*
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*_हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम की शान क़ुर्आन में_*

*1 * मीलाद शरीफ़ मनाना सुन्नते ख़ुदावन्दी है*

📕 पारा 10-11,सूरह तौबा,आयत 33,128
📕 पारा 6,सूरह मायदा,आयत 15
📕 पारा 3-4,सूरह आले इमरान,आयत 81,82,103,164
📕 पारा 28,सूरह जुमा,आयत 2
📕 पारा 28,सूरह सफ़,आयत 6
📕 पारा 30,सूरह वद्दोहा,आयत 11
📕 पारा 13,सूरह इब्राहीम,आयत 5

*2 * अंबिया इकराम अपनी क़ब्रों में ज़िन्दा हैं*

📕 पारा 2,सूरह बकर,आयत 154
📕 पारा 4,सूरह आले इमरान,आयत 169
📕 पारा 22,सूरह सबा,आयत 14

*3 * ख़ुदा की बारगाह में अंबिया व औलिया का वसीला लगाना जायज़ है*

📕 पारा 6,सूरह मायदा,आयत 35
📕 पारा 5,सूरह निसा,आयत 64
📕 पारा 1,सूरह बकर,आयत 37

*4 * हुज़ूर नूर हैं,बेशक आप बशर भी हैं मगर हम जैसे नहीं*

📕 पारा 6,सूरह मायदा,आयत 15
📕 पारा 22,सूरह अहज़ाब,आयत 45,46
📕 पारा 10,सूरह तौबा,आयत 32
📕 पारा 28,सूरह सफ़,आयत 8

*5 * अंबिया इकराम को बशर यानि अपनी तरह कहना कुफ्र है*

📕 पारा 14,सूरह हजर,आयत 33
📕 पारा 18,सूरह मोमेनून,आयत 33,47
📕 पारा 28,सूरह तग़ाबुन,आयत 6
📕 पारा 8,सूरह एराफ़,आयत 12
📕 पारा 19,सूरह शोअरा,आयत 154

*6 * अल्लाह के नेक बन्दे दूर से देखते,सुनते व मदद भी करते हैं*

📕 पारा 19,सूरह नमल,आयत 18
📕 पारा 10,सूरह इन्फाल,आयत 64
📕 पारा 28,सूरह तहरीम,आयत 4
📕 पारा 5,सूरह निसा,आयत 64

*7 * हुज़ूर खातेमुन नबीय्यीन हैं,यानि आपके बाद कोई नबी नहीं आ सकता*

📕 पारा 22,सूरह अहज़ाब,आयत 40

*8 * हुज़ूर हाज़िर व नाज़िर हैं*

📕 पारा 26,सूरह फतह,आयत 8
📕 पारा 2,सूरह बकर,आयत 143
📕 पारा 5,सूरह निसा,आयत 41
📕 पारा 9,सूरह इन्फाल,आयत 33
📕 पारा 29,सूरह मुज़म्मिल,आयत 15
📕 पारा 17,सूरह अंबिया,आयत 107

*9 * ताज़ीमे मुस्तफा ईमान की जान है*

📕 पारा 5,सूरह निसा,आयत 65
📕 पारा 9,सूरह इन्फाल,आयत 24
📕 पारा 9,सूरह एराफ़,आयत 157
📕 पारा 18,सूरह नूर,आयत 63
📕 पारा 26,सूरह हुजरात,आयत 2
📕 पारा 22,सूरह अहज़ाब,आयत 53
📕 पारा 26,सूरह फतह,आयत 8,9

*10 *  ख़ुदा ने ख़ुद हुज़ूर व तमाम अंबिया इकराम पर दुरूदो सलाम पढ़ा है और हमें पढ़ने का हुक्म भी दिया*

📕 पारा 22,सूरह अहज़ाब,आयत 56
📕 पारा 16,सूरह मरियम,आयत 15,33
📕 पारा 23,सूरह साफ्फात,आयत 79,109,120,130,181

*11 *  हुज़ूर से गुस्ताखी कुफ्र है*

📕 पारा 1,सूरह बकर,आयत 104
📕 पारा 10,सूरह तौबा,आयत 61,65,66
📕 पारा 23,सूरह स्वाद,आयत 75,76
📕 पारा 26,सूरह हुजरात,आयत 2
📕 पारा 22,सूरह अहज़ाब,आयत 57

*12 * हुज़ूर मालिको मुख़्तार हैं,जिसे जो चाहें अता कर दें*

📕 पारा 30,सूरह वद्दोहा,आयत 5,8
📕 पारा 30,सूरह कौसर,आयत 1
📕 पारा 5,सूरह निसा,आयत 113
📕 पारा 10,सूरह तौबा,आयत 29,59,74,103
📕 पारा 2,सूरह बकर,आयत 144
📕 पारा 9,सूरह एराफ़,आयत 157
📕 पारा 22,सूरह अहज़ाब,आयत 36
📕 पारा 23,सूरह ज़मर,आयत 53
📕 पारा 9,सूरह इन्फाल,आयत 24
📕 पारा 27,सूरह कमर,आयत 1,2

*13 * अंबिया इकराम मासूम हैं,उनसे गुनाह हो ही नहीं सकता*

📕 पारा 15,सूरह बनी इसराईल,आयत 65,74
📕 पारा 27,सूरह वन्नज्म,आयत 2
📕 पारा 13,सूरह यूसुफ,आयत 53
📕 पारा 21,सूरह अहज़ाब,आयत 21
📕 पारा 23,सूरह स्वाद,आयत 82,83
📕 पारा 8,सूरह एराफ़,आयत 61
📕 पारा 8,सूरह इनआम,आयत 124
📕 पारा 1,सूरह बकर,आयत 124

*14 * हुज़ूर ने ख़ुदा को बेदारी में सर की आखों से देखा*

📕 पारा 27,सूरह वन्नज्म,आयत 1-17

*15 * ख़ुदा ने अंबिया इकराम खुसूसन हुज़ूर को ग़ैब का इल्म अता किया*

📕 पारा 1,सूरह बकर,आयत 31
📕 पारा 15,सूरह कहफ,आयत 65
📕 पारा 26,सूरह ज़ारियात,आयत 28
📕 पारा 13,सूरह यूसुफ,आयत 68
📕 पारा 5,सूरह निसा,आयत 113
📕 पारा 3-4,सूरह आले इमरान,आयत 49,179
📕 पारा 29,सूरह जिन्न,आयत 26,27
📕 पारा 27,सूरह वन्नज्म,आयत 10
📕 पारा 30,सूरह तक़वीर,आयत 24
📕 पारा 13,सूरह यूसुफ,आयत 102
📕 पारा 27,सूरह रहमान,आयत 1-4 

*16 * जो हुज़ूर की शान में गुस्ताखी करे वो हरगिज़ मुसलमान नहीं,ब्लकि वो बदमज़हब है बेदीन है इस्लाम से ख़ारिज है,उनकी मस्जिदें मस्जिदें नहीं,उनकी नमाज़ नमाज़ नहीं,उनसे मेलजोल सलाम कलाम हराम,उनकी नमाज़े जनाज़ा पढ़ना हराम,गर्ज़ कि वो हरगिज़ मुसलमान नहीं जो उन्हें मुसलमान जाने वो भी उन्हीं में से है यानि बेदीन है,और एैसे लोग हमेशा हमेश जहन्नम में रहेंगे,ये मैं नहीं क़ुर्आन कह रहा है*

📕 पारा 28,सूरह मुजादेलह,आयत 22
📕 पारा 20,सूरह अन्कबूत,आयत 1,2
📕 पारा 10,सूरह तौबा,आयत 23
📕 पारा 28,सूरह मुम्तहिना,आयत 1,2
📕 पारा 6,सूरह मायदा,आयत 51
📕 पारा 9,सूरह एराफ़,आयत 179
📕 पारा 25,सूरह जाशिया,आयत 23
📕 पारा 28,सूरह जुमा,आयत 5
📕 पारा 26,सूरह हुजरात,आयत 14
📕 पारा 28,सूरह मुनाफेकून,आयत 1,8
📕 पारा 1,सूरह बकर,आयत 85,86
📕 पारा 18,सूरह नूर,आयत 47
📕 पारा 26,सूरह मुहम्मद,आयत 34
📕 पारा 5,सूरह निसा,आयत 140
📕 पारा 10-11,सूरह तौबा,आयत 54,84,107,108
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               *_जोइन_*

*_मदर्सा हनफिया वारिसुल उलूम_*
        *_9628204387_*

*_मुजीबुर्रहमान क़ादरी_*

               *_खादिम_*


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*_مدرسہ حنفیہ وارث العلوم_*
*_मदर्सा हनफिया वारिसुल उलूम_*


     *_आसारे क़यामत_*


*_क़यामत बरहक़ है और अपने वक़्त पर ज़रूर आएगी जो इसका इंकार करे या ज़र्रा बराबर भी शक़ करे काफिर है,क़यामत की 3 किस्में हैं_*

*_1. क़यामते सुग़रा - " मन माता फक़द क़ामत क़यामह " यानि जो मर गया उसकी क़यामत हो गयी_*

*_2. क़यामते वुस्ता - यानि किसी कर्न या जगह के पूरे लोग मर जाएं तो उनकी क़यामत क़ायम हो गयी_*

*_3. क़यामते कुबरा - यानि वो दिन जिस दिन आसमानों ज़मीन और इसमें जो कुछ है सब फ़ना हो जायेंगे_*

*📕 अलमलफ़ूज़,हिस्सा 3,सफह 49*

*_बाज़ जाहिल नाम निहाद मुसलमान ये कहते हैं कि हुज़ूर को क़यामत का इल्म नहीं बल्कि उनके मुतलक़न ग़ैब का ही इन्कार करते फिरते हैं,माज़ अल्लाह,इल्मे ग़ैब पर मैं पोस्ट कर चुका हूं जिसको चाहिए हो पर्सनल में msg करके ले सकता है_*

*_जिस नबी को अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त ने जन्नत में जाने वालों और जहन्नम में जाने वालों की तादाद तक को बता दिया वो नबी पर क़यामत को पोशीदा रखेगा,नहीं और हरगिज़ नहीं,जबकि आज मुसलमान का बच्चा बच्चा जानता है कि क़यामत मुहर्रम की दसवीं जुमा के दिन ज़ुहर व अस्र के दरमियान आएगी,और रही बात वक़्ते मुतअय्यन की तो वो भी मेरे नबी पर पोशीदा नहीं है बल्कि उस राज़ को पोशीदा रखने का हुक्म है_*

*📕 हाशिया सावी अलत तफसीरे जलालैन,जिल्द 2,सफह 104*

*_और बेशक मेरे आक़ा व मौला मुस्तफा जाने रहमत सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम ने क़यामत की तमाम निशानियां भी बयान फरमा दी है,और इसकी भी 2 क़िस्में हैं_*

*_1. अलामाते सुग़रा - यानि छोटी निशानियां,इसका ज़हूर क़यामत आने से बहुत पहले ही शुरू हो जाएगा बल्कि शुरू हो चुका है_*

*_2. अलामाते कुबरा - यानि बड़ी निशानियां,इसका ज़हूर क़ुर्बे क़यामत में होगा और इसकी शुरुआत मुसलमानों की तमाम हुक़ूमतों के ख़ातमे से होगी_*


*_अलामाते सुग़रा_*


*_मौला अली से रिवायत है फरमाया रसूल अल्लाह सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम ने की क़ुर्बे क़यामत की निशानियों में से है जब तुम देखो कि_*

*! नमाज़ों को ज़ाया किया जाए*
*! अमानत को रायगां कर दिया जाए*
*! कबीरा गुनाहों को हलाल ठहराया जाए*
*! सूद खोरी की जाए*
*! रिश्वत ली जाए*
*! मकान ऊंचे और पुख्ता बनाये जाएं*
*! नाजायज़ ख्वाहिशों की तकमील की जाए*
*! दीन को दुनिया के बदले बेचा जाए*
*! क़ुरान को गाने की तरह पढ़ा जाए*
*! दरिंदों की खालों को बतौर ज़ैन इस्तेमाल किया जाए*
*! मस्जिदों को रास्ता बनाया जाए*
*! मर्द रेशम का लिबास पहने*
*! ज़ुल्म हद से बढ़ जाए*
*! ज़िना की कसरत हो जाए*
*! तलाक़ को खेल बनाया जाए*
*! अमीन को खाइन ठहराया जाए*
*! खाइन को अमानतदार समझा जाए*
*! बारिश कम हो जाए*
*! औलाद दिल की घुटन बन जाए*
*! बड़े ओहदों पर वो बैठे जो उसके लायक़ ना हों*
*! उल्मा पैसों के लिए अमीरों की चाकरी करें*
*! क़ारियों की कसरत हो*
*! फुक़हा की किल्लत हो जाए*
*! क़ुरान पर सोने चांदी के गिलाफ़ चढ़ाये जाएं*
*! मस्जिदें सजाई जाए*
*! दिल फ़ासिद हो जाएं*
*! लोग गाने वालियां रखें*
*! ढोल बाजे हलाल किये जाएं*
*! शराब पी जाए*
*! अल्लाह के हुक्म को तोड़ा जाए*
*! महीने घट जाएं*
*! वादा खिलाफी आम हो जाए*
*! औरत और मर्द शरीके तिजारत हों*
*! औरतें घोड़ों पर बैठ*े
*! औरत मर्द से और मर्द औरत से मुशाबहत रखे*
*! गैरुल्लाह की कसम खाई जाए*
*! आदमी बग़ैर गवाह हुये गवाही दे*
*! ज़कात बोझ बन जाए*
*! अमानत माले गनीमत हो जाए*
*! मर्द अपनी बीवी की इताअत करे*
*! मां बाप की नाफरमानी करे*
*! मां बाप को अपने से दूर रखे*
*! ओहदों को जायदाद की तरह बाटा जाए*
*! गुज़रे हुए लोगों को गालियां दी जाएं*
*! आदमी की इज़्ज़त उसके शर के डर से की जाए*
*! सिपाहियों की कसरत हो*
*! जाहिल मेम्बर पर बैठे*
*! मर्द ताज पहने*
*! रास्तों की क़िल्लत हो जाए*
*! मर्द मर्द के साथ और औरत औरत के साथ सोहबत करे*
*! उल्मा मन चाहा फ़तवा दें*
*! दुनिया के लिए इल्मे दीन हासिल किया जाए*
*! माल पर शरीरों का क़ब्ज़ा हो जाए*
*! क़ुरान को तिजारत बनाया जाए*
*! रिश्तों को काटा जाए*
*! जुआ आम हो जाए*
*! मोहताजों को ज़कात ना दी जाए*
*! बेगुनाहों का कत्ल आम हो जाए*
*! तौल में कमी की जाए*

*_तो इंतज़ार करो उस चिंघाड का जो तुम्हारे दिल को दहला दे_*

*📕 कंज़ुल उम्माल,जिल्द 14 सफह 573-574*

*_अलामाते कुबरा का बयान बाद मे आयेगा_*

*_मकान ऊंचे और पुख्ता बनाये जाएं,क़ुरान पर सोने चांदी के गिलाफ़ चढ़ाये जाएं,मस्जिदें सजाई जाए ये वो अलामत है जो क़यामत कि निशानी तो है मगर नाजायज़ नहीं,इसी तरह एक msg अक्सर घूमता रहता है कि क़यामत की निशानी है कि लोग अपने हाथों से क़ुरान को मिटायेंगे,और ऐसे msg ना भेजने की अपील की जाती है,पहला तो ये कि क़यामत की निशानी ये बताई गई है कि क़ुरान के हुरूफ़ उड़ जायेंगे ना कि लोग अपने हाथ से मिटायेंगे और दूसरा ये कि अगर मान भी लिया जाये कि ऐसा फरमाया गया तब भी वो नाजायज़ फेअल नहीं होगा,इस पर हुजूर ताजुश्शरीया का फ़तवा आ चुका है,लिहाज़ा ऐसी फालतू बातों को ना तो पढ़ा जाये और ना ही ऐसे massages share किये जायें_*
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                *_जोइन_*

*_मदर्सा हनफिया वारिसुल उलूम_*
       *_9628204387_*

*_मुजीबुर्रहमान क़ादरी_*

             *_खादिम_*

*_दारूल उलूम हनफिया वारिसुल उलूम क़स्बा बेलहरा ज़िला बाराबंकी यू.पी_*






POST=35


*_مدرسہ حنفیہ وارث العلوم_*
*_मदर्सा हनफिया वारिसुल उलूम_*


*_आसारे क़यामत_*

 *_अलामाते कुबरा_*


*_! अलामाते कुबरा यानि क़यामत की बड़ी बड़ी निशानियां इसकी शुरुआत मुसलमानों की तमाम हुक़ूमतों के ख़ातमे से होगी जैसा कि आक़ाए नेअमत इमाम इश्क़ो मुहब्बत आलाहज़रत अज़ीमुल बरक़त रज़ियल्लाहु तआला अन्हु फरमाते हैं कि 1837 हिजरी में शायद कोई इसलामी हुक़ूमत बाक़ी ना रहे और 1900 हिजरी में इमाम मेंहदी रज़ियल्लाहु तआला अन्हु का ज़हूर हो_*

*📕 अलमलफ़ूज़,हिस्सा 1,पेज 92*

*_! इमाम मेंहदी रज़ियल्लाहु तआला अन्हु के ज़हूर से आठवें साल दज्जाल का ख़ुरूज होगा,दज्जाल के क़त्ल के लिए हज़रत ईसा अलैहिस्सलाम नाज़िल होंगे और उसका क़त्ल करेंगे,क़त्ले दज्जाल के दूसरे साल इमाम मेंहदी रज़ियल्लाहु तआला अन्हु का विसाल होगा,उसके कुछ साल बाद याजूज माजूज ज़ाहिर होंगे,हज़रत ईसा अलैहिस्सलाम की दुआ से याजूज माजूज का खात्मा होगा,विसाले इमाम के 38 साल बाद हज़रत ईसा अलैहिस्सलाम का विसाल होगा और आप रौज़ए अनवर में हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम के पहलू में दफ़्न किये जायेंगे_*

*_! हज़रत ईसा अलैहिस्सलाम के विसाल के बाद जहजाह नाम का आपका जांनशीन होगा जो इन्साफ के साथ सल्तनत करेगा उसके बाद कुछ और बादशाह भी होंगे,फिर लोगों में कुफ्रो जिहालत फै ल जायेगी,उन्हीं दिनों तक़दीर का इंकार करने वाले दो गिरोह के साथ पूरब और पश्चिम की ज़मीन धंस जायेगी,और एक धुवां पूरी ज़मीन को अपने आगोश में ले लेगा जिससे ईमान वालों कोज़ुकाम हो जाएगा और दिमाग भारी रहेगा और काफिरो मुनाफ़िक़ तो बेहोश हो जायेंगे,उसी साल ज़िल हज्ज के महीने में क़ुरबानी के दिनों के बाद एक रात इतनी लंबी हो जायेगी कि उसकी मुसाफत तीन या चार रात जितनी बढ़ जायेगी इंसान और जानवर सब परेशान हो जायेंगे कि आखिर सुबह क्यों नहीं हो रही है बिल आख़िर एक लंबी मुसाफत के बाद सूरज थोड़ी सी रोशनी के साथ अचानक पश्चिम से निकल आएगा,उस वक़्त मोमिन तो मोमिन बल्कि काफ़िर भी खुदाये ज़ुल्जलाल की वहदानियत का इक़रार करेंगे मगर उनकी तौबा क़ुबूल ना होगी क्योंकि सूरज की पहली किरण के साथ ही तौबा का वो दरवाज़ा जो 70 साल की मुसाफत की चौड़ाई रखता है बंद हो जाएगा,अब किसी की तौबा या ईमान लाना मक़बूल ना होगा,सूरज जब बीच आसमान को पहुंचेगा तो वापस उसी पश्चिम की जानिब डूबना भी शुरू कर देगा,फिर दूसरे दिन से बदस्तूर पूरब से निकलकर पश्चिम में ही डूबेगा मगर बहुत मामूली रौशनी के साथ,लोग अभी इस उलझन से निकले भी नहीं होंगे की काबे शरीफ के क़रीब कोहे सफा फट पड़ेगा और उसमें से दाबतुल अर्द ज़ाहिर होगा ये वो जानवर है जो 7 जानवरों की हैबत पर होगा,उसका मुंह आदमी की तरह उसका पैर ऊंट की तरह उसकी गर्दन घोड़े के अयाल की तरह उसकी दुम गाय की दुम की तरह उसका खुर हिरन की तरह उसकी सींग बारहसिंघा की तरह उसके हाथ बन्दर की तरह होंगे और बड़ी ही साफ़ ज़बान में बात-चीत करेगा,उसके एक हाथ में हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम का असा और दूसरे हाथ में हज़रत सुलेमान अलैहिस्सलाम की अंगूठी होगी,पूरी दुनिया में बड़ी ही तेज़ी के साथ गश्त करेगा और कोई भी उससे छूट ना सकेगा,ईमान वालों के चेहरे पर हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम के असे से खत खींच देगा जिससे कि उसका मुंह मुनव्वर व रौशन हो जाएगा और काफिर पर हज़रत सुलेमान अलैहिस्सलाम की अंगूठी को मस करेगा तो उसका चेहरा काला और बद शक्ल हो जाएगा,अगर एक दस्तर ख्वान पर कोई जमात बैठेगी तो हर आदमी जान लेगा कि कितने मोमिन हैं और कितने काफिर,फिर वो जानवर ग़ायब हो जाएगा और कुछ दिनों बाद दक्खिन की जानिब से एक खुशबूदार हवा चलेगी जिससे ईमान वालो की बगल में दर्द शुरु होगा और आहिस्ता आहिस्ता इसी दर्द की वजह से तमाम मुसलमान मरना शुरू हो जाएंगे और ज़मीन पर कोई भी अल्लाह कहने वाला ना बचेगा,उस वक़्त जानवर पत्थर घर के बर्तन व जूते वग़ैरह लोगों से बात करेंगे मतलब ये कि हर चीज़ में वीडियो कैमरे लगे होंगे जिससे कि हर पल की ख़बर मालूम होती रहेगी,जब काफिर ही काफिर ज़मीन पर होंगे तो वो काबा शरीफ ढह देंगे,क़ुरान कागज़ों से उठा लिया जाएगा,मर्द व औरत जानवरों की तरह सड़कों पर सोहबत किया करेंगे हत्ता कि सूर फूंकने से पहले 40 बरस का ऐसा वक़्त गुज़रेगा कि लोग सोहबत तो करेंगे मगर किसी के औलाद पैदा नहीं होगी क्योंकि क़यामत 40 साल से कम के किसी भी इंसान पर क़ायम नहीं होगी,नफ़्क़े सूर से तीन या चार साल पहले एक आग ज़ाहिर होगी जो तमाम इंसानों को खदेड़ कर मुल्के शाम पहुंचा देगी और ग़ायब हो जायेगी उन चार सालों में लोग ग़फलत से अपने अपने वतन को लौट रहे होंगे कि वो दिन आएगा यानि आशूरह जुमा का दिन,लोग अपने अपने कामों में लगे होंगे कोई जानवर को चारा लगा चुका होगा और दूध दुहने को तैयार हो रहा होगा,कोई कपड़ा खरीद रहा होगा तो कोई खाना खाने बैठा होगा कि अचानक एक आवाज़ सुनाई देगी जो पहले तो सीटी की तरह हलके हलके शुरू होगी और बढ़ते बढ़ते इस हद तक हो जायेगी कि बिजली की गरज उसके सामने हल्की मालूम होगी लोग दहशत से मरने लगेंगे बादल फट पड़ेगा ज़मीन फट जायेगी समन्दर उबल पड़ेगा आसमान टूटकर गिर जाएगा सितारे चांद सूरज झड़ जाएंगे पहाड़ रुई की तरह उड़ते फिरेंगे,फ़रिश्ते इसी अश्ना में इब्लीस लईन को ढूंढ़ रहे होंगे कि उसकी रूह क़ब्ज़ करें और वो भागता फिरेगा हत्ता कि एक मक़ाम पर उसकी रूह क़ब्ज़ की जायेगी और बनी आदम पर हर हर इंसान को जितनी तक़लीफ़ मौत की हुई होगी वो सब इकठ्ठा करके उस लईन पर डाली जायेगी,यहां तक कि सब कुछ फ़ना हो जाएगा जिन 7 चीज़ों यानि अर्श कुर्सी लौह क़लम रूह जन्नत दोज़ख के बारे में आता है कि ये फ़ना नहीं होंगे एक लम्हा के लिए इनको भी फ़ना कर दिया जाएगा,तमाम फ़रिश्ते यहां तक कि इस्राफील अलैहिस्सलाम और उनका सूर भी फ़ना हो जायेंगे,मलकुल मौत अलैहिस्सलाम रब की बारगाह में अर्ज़ करेंगे मौला सब मर गए बस तेरा ये बंदा रह गया तो रब फरमायेगा6 कि तू भी मर जा और वो भी मर जाएंगे,अब सिर्फ एक बादशाह की बादशाहत होगी फिर वो पुकारेगा कि आज किसकी बादशाहत है अब कौन है जो उसे जवाब दे फिर खुद ही कहेगा कि "लिल्लाहिल वाहेदिल क़हहार" यानि आज बस एक खुदा की बादशाहत है,फिर जब वो चाहेगा तो हज़रत इस्राफील को ज़िंदा करेगा और दुबारा सूर फूंकने का हुक्म देगा याद रहे कि हर सूर की मुसाफत 6 माह की होगी_*

*_! कुल मिलाकर विसाले ईसा के 120 साल के बाद पहला सूर फूंका जायेगा_*

*📕 जलालैन,पारा 8,सफह 277*
*📕 ज़लज़लातुस सा'अत,सफह 11---18*
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                 *_जोइन_*

*_मदर्सा हनफिया वारिसुल उलूम_*
       *_9628204387_*

*_मुजीबुर्रहमान क़ादरी_*

            *_खादिम_*

*_दारूल उलूम हनफिया वारिसुल उलूम क़स्बा बेलहरा ज़िला बाराबंकी यू़.पी_*






POST=36


 *_مدرسہ حنفیہ وارث العلوم_*
*_मदर्सा हनफिया वारिसुल उलूम_*


          *_अक़ायद_*

  *_हुज़ूर मालिको मुख्तार हैं_*


*_इस मसले पर भी वहाबी अपनी जिहालत दिखाता रहता है और आये दिन सुन्नियों को कुछ ऐसी दलीलों को बता बताकर बहकाता रहता है "मसलन नबी को अगर इख़्तियार होता तो अपने चचा अबू तालिब से इतनी मुहब्बत रखने के बावजूद क्यों उनको ईमान नहीं दिलवा पाए" इसी तरह की और भी कुछ बातें हैं जो अक्सर बेशतर सुनने में आती रहती है,बेशक आक़ाए करीम सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम अल्लाह की अता से मालिको मुख़्तार हैं जिसे जो चाहें अता कर दें और जिससे जो चाहें छीन लें और क़ुरानो हदीस उनके इख़्तियार की दलीलों से पुर है,कुछ झलकियां मुलाहज़ा फरमाएं_*

*_1. निकाह में लाओ जो औरतें तुमको खुश आएं दो दो तीन तीन और चार चार_*

*📕 पारा 4,सूरह निसा,आयत 3*

*_अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त ने तमाम मुसलमानों को ये हुक्म दिया है कि अगर सबमें इंसाफ़ कर सको तो 4 बीवियां एक साथ रख सकते हो वरना एक ही काफी है और ये क़ानून सब के लिए बराबर है और क़यामत तक के लिए है मगर इसके खिलाफ जब हुज़ूर ने अपनी प्यारी बेटी हज़रते फातिमा ज़ुहरा रज़ियल्लाहु तआला अन्हा का निकाह मौला अली रज़ियल्लाहु तआला अन्हु से किया तो फ़रमाया कि ऐ अली जब तक फ़ातिमा तुम्हारे निक़ाह में है तुमको दूसरा निकाह हराम है,और आपके इस फैसले के खिलाफ ना तो मौला अली ने कुछ कहा ना तो किसी सहाबी ने और तो और खुद रब्बे ज़ुल्जलाल ने भी ऐतराज़ नहीं किया कि ऐ नबी हम तो चार औरतों को एक साथ रखने का हुक्म दे रहे हैं और आप दूसरी को ही हराम किये देते हैं,ये है इख़्तियारे मुस्तफा सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम_*

*📕 मिश्क़ात,बाबुल मनाक़िबे अहले बैत*

*_2. और दो गवाह कर लो मर्दों में से_*

*📕 पारा 3,सूरह बक़र,आयत 282*

*_शरई गवाही के लिए 2 मुसलमान आक़िल बालिग़ मुत्तक़ी होने चाहिए ये फरमान क़ुरान का है मगर हुज़ूर ने हज़रते खुज़ैमा रज़ियल्लाहु तआला अन्हु की अकेले की गवाही को 2 मुसलमान मर्दों की गवाही के बराबर क़रार दिया,ये है इख़्तियारे मुस्तफा सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम_*

*📕 खसाइसे कुबरा,जिल्द 2,सफह 263*

*_3. दिन भर में 5 वक़्त की नमाज़ फ़र्ज़ है अगर कोई इंकार करे तो काफ़िर हो जाए मगर एक सहाबी इस शर्त पर ईमान लाये कि वो दिन भर में 2 वक़्त की ही नमाज़ पढ़ेंगे और हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम ने उन्हें इजाज़त अता फरमाई_*

*📕 सल्तनते मुस्तफा,सफह 27*

*_4. जब हज फ़र्ज़ हुआ तो एक सहाबी ने कहा कि क्या हर साल फ़र्ज़ है इस पर हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम फरमाते हैं कि अगर हम हां कह दें तो हर साल फ़र्ज़ हो जाएगा_*

*📕 मिश्क़ात,बाबुल हज,सफह 222*

*_5. एक सहाबी ने रमज़ान में रोज़े की हालत में अपनी बीवी से सोहबत कर ली तो सरकार सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम ने उन पर कफ्फारह लाज़िम फ़रमाया कि 60 रोज़े लगातार रखो उन्होंने माज़रत चाही फिर आपने कहा कि 60 मिस्कीन को खाना खिलाओ या कपड़े पहनाओ इस पर वो बोले कि मेरी इतनी हैसियत नहीं है तो हुज़ूर ने उन्हें कुछ देर रुकने को कहा कुछ देर में ही हुज़ूर के पास एक टोकरी खजूर हदिये में आया आपने उन सहाबी से फ़रमाया कि इसे ले जा और गरीबों में बांट दे तो वो कहते हैं कि हुज़ूर मदीने में मुझसे ज्यादा गरीब कोई नहीं है तो आप सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम मुस्कुरा देते हैं और फरमाते हैं कि ठीक है इसे ले जा खुद खा और अपने घर वालों को खिला तेरा कफ़्फ़ारह अदा हो जाएगा,ये है इख़्तियारे मुस्तफा सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम_*

*📕 बुखारी,जिल्द 1,सफह 260*

*_6. क़ुरबानी के लिए बकरा बकरी की उम्र 1 साल मुतय्यन है कि अगर इसमें एक दिन भी कम होगा तो जानवर हलाल है मगर क़ुरबानी हरगिज़ न हुई मगर अबु दर्दा रज़ियल्लाहु तआला अन्हु को 6 माह के बकरी के बच्चे को क़ुरबानी के लिए इजाज़त अता फरमाई,ये है इख़्तियारे मुस्तफा सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम_*

*📕 बुखारी,जिल्द 2,सफह 834*

*_7. मौला अली रज़ियल्लाहु तआला अन्हु की अस्र की नमाज़ क़ज़ा हो गयी जिस पर हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम ने डूबे हुए सूरज को ही वापस लौटा दिया कि अली अपनी नमाज़ अदा फरमा लें_*

*📕 कंज़ुल उम्माल,जिल्द 2,सफह 277*

*_8. एक आराबी आपकी खिदमत में हाज़िर हुआ कि मुझे कुछ मोजज़ा दिखाएं तो मैं ईमान ले आऊं इस पर आप फरमाते हैं कि जा जाकर उस दरख़्त से कह कि तुझे अल्लाह के रसूल सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम बुलाते हैं जैसे ही उस आराबी ने जाकर उस पेड़ से ये कहा फ़ौरन वो दरख़्त अपनी जड़ों को घसीटता हुआ हुज़ूर की बारगाह में हाज़िर हो गया ये देखकर आराबी फ़ौरन ईमान ले आया_*

*📕 तिर्मिज़ी,जिल्द 2,सफह 203*

*_9. एक मर्तबा अबु जहल ने हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम से कहा कि अगर आप नबी हैं तो चांद के दो टुकड़े करके दिखाइये इस पर आपने उंगली के इशारे से चांद के दो टुकड़े फरमा दिए,और इसका गवाह ख़ुद क़ुराने मुक़द्दस है_*

*📕 पारा 27,सूरह क़मर,आयत 1-2*
*📕 बुखारी,जिल्द 1,सफह 546*

*_10. किसी मुसलमान मर्द व औरत को ये हक़ नहीं पहुंचता कि जब अल्लाह व रसूल कुछ हुक्म फरमा दें तो उन्हें अपने मामले का कुछ इख़्तियार रहे_*

*📕 पारा 22,सूरह अहज़ाब,आयत 36*

*_हुज़ूर ने अपने ग़ुलाम हज़रत ज़ैद बिन हारिस रज़ियल्लाहु तआला अन्हु के निकाह का पैग़ाम हज़रत ज़ैनब बिन्त हजश रज़ियल्लाहु तआला अन्ह को दिया जिस पर उन्होंने इन्कार कर दिया,इस पर ये आयत उतरी और हज़रत ज़ैनब को निकाह करना पड़ा,ये है इख़्तियारे मुस्तफा सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम_*

*_11. सुलह हुदैबिया के मौक़े पर जब सहाबियों के पास पानी ख़त्म हो गया तो सब हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम के पास पहुंचे इस पर आपने एक प्याले में अपनी उंगलियां मुबारक डुबो दी तो फ़ौरन उसमे से पानी उबलने लगा हज़रते जाबिर फरमाते हैं कि हम 1500 की तादाद में थे और उस पानी ने सबको किफ़ायत किया,ये है इख़्तियारे मुस्तफा सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम_*

*📕 बुखारी,जिल्द 1,सफह 505*

*_12. हज़रत अब्दुल्लाह बिन उबैक रज़ियल्लाहु तआला अन्हु की पिण्डली टूट गयी तो आपने उस पर अपना दस्ते करम फेरा तो फ़ौरन वो पिण्डली पहले जैसी हो गयी_*

*📕 बुखारी,जिल्द 2,सफह 577*

*_13. मौला अली रज़ियल्लाहु तआला अन्हु की दुखती आंख में अपना लोआबे दहन डाला तो फ़ौरन उनकी आंख अच्छी हो गयी_*

*📕 बुखारी,जिल्द 1,सफह 525*

*_14. हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम फरमाते हैं कि अगर मैं चाहूं तो ये पहाड़ सोने के बनकर मेरे साथ साथ चलें_*

*📕 मिश्क़ात,सफह 521*

*_15. हज़रत अबु हुरैरा रज़ियल्लाहु तआला अन्हु फरमाते हैं कि मैं अक्सर हदीसें सुनकर भूल जाता था एक मर्तबा मैंने ये बात हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम को बताई तो आपने फ़रमाया कि अपनी चादर फैलाओ तो मैंने फैला दी फिर हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम ने अपने दोनों हाथों को मिलाकर चुल्लु से कुछ डाला और कहा कि इसे अपने सीने से लगा लो तो मैंने ऐसा ही किया और उसके बाद से मैं कभी कोई बात नहीं भूला_*

*📕 बुखारी,जिल्द 1,सफह 515*

*_16. जंगे खन्दक के रोज़ हज़रते जाबिर रज़ियल्लाहु तआला अन्हु ने 4 किलो जौ और एक बकरी का बच्चा ज़बह करके हुज़ूर की दावत की,और हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम अपने साथ 1000 असहाब को लेकर पहुंच गए और हज़रते जाबिर रज़ियल्लाहु तआला अन्हु की बीवी से फ़रमाया कि इस गोश्त की हांडी को चूल्हे से ना उतरना और रोटी बनाने के लिए एक और औरत को बुलालो ये कहकर आपने आटे में और हांडी में अपना लोआबे दहन डाल दिया,हज़रते जाबिर फरमाते हैं कि सबने खाना खाया और फिर भी गुंधा हुआ आटा और हांडी में गोश्त वैसा की वैसा ही रहा और कुछ कमी ना हुई_*

*📕 बुखारी,जिल्द 2,सफह 589*

*_17. एक जंग के मौके पर जब कि खाने के सामान की तंगी हुई तो हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम ने 21 दाने खजूर पर कुछ पढ़कर दम किया और दस्तर ख्वान पर डाल दिए सबने शिकम सैर होकर खाया मगर खजूरें वैसी ही दस्तर ख्वान पर मौजूद रहीं तो आपने उन्हें एक पोटली में डालकर हज़रत अबु हुरैरा रज़ियल्लाहु तआला अन्हु को दी और कहा कि जब भी तुम्हे खजूरों की ज़रूरत हो इसमें से हाथ डालकर निकाल लेना मगर कभी पलटना मत,हज़रत अब हुरैरा रज़ियल्लाहु तआला अन्हु फरमाते हैं कि मैंने ज़िन्दगी भर में उससे 120 कुन्टल खजूरें बरामद की मगर एक जंग के मौके पर वो थैली मुझसे ग़ुम हो गयी_*

*📕 खसाइसे कुबरा,जिल्द 2,सफह 51*

*_18. मर्द को सोना पहनना हराम है मगर आप सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम ने हज़रते सुराक़ा रज़ियल्लाहु तआला अन्हु को सोने के कंगन पहनना जायज़ फ़रमाया_*

*📕 सल्तनते मुस्तफा,सफह 31*

*_19. हम देख रहे हैं बार बार तुम्हारा आसमान की तरफ़ मुंह करना तो ज़रूर हम तुम्हें फेर देंगे उस क़िब्ले की तरफ़ जिसमे तुम्हारी ख़ुशी है,अभी अपना मुंह फेर दो मस्जिदें हराम की तरफ़_*

*📕 पारा 2,सूरह बक़र,आयत 144*

*_शुरू इस्लाम में 16 या 17 महीने बैतुल मुक़द्दस ही मुसलमानो का क़िब्ला रहा और इस बात पर यहूदी मुसलमानों को ताना देते थे कि हर काम तो अपना हमसे जुदा करते हैं और नमाज़ हमारे क़िब्ला की जानिब मुंह करके पढ़ते हैं,मगर अचानक एक दिन कुछ यहूदियों ने हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम को इस अंदाज़ में लअन तअन किया कि जिसका आपके क़ल्ब पर बेहद असर हुआ और आप रंजीदा हो गए आप इसी हालत में मस्जिदे किब्लतैन में नमाज़ को हाज़िर हुए और हालाते नमाज़ में बार बार आसमान की जानिब देखते जाते कि शायद अब जिब्रील वही लेकर आते होंगे आखिरकार रब की रहमत जोश में आई और अपने महबूब की ख़ुशी के लिए ऐन नमाज़ की हालत में ही क़िब्ले को बदलने का हुक्म फ़रमाया इसी लिए उस मस्जिद को मस्जिदे क़िब्लतैन यानि दो क़िब्लों वाली मस्जिद कहा जाता है_*

*20. अल्लाह का तुम पर बड़ा फ़ज़्ल है*

*📕 पारा 5,सूरह निसा,आयत 113*

*_हज़रत सुलेमान अलैहिस्सलाम को पूरी दुनिया पर यानि इंसानो पर जानवरो पर खुशकी पर तरी पर हवा पर हुक़ूमत बख्शी मगर ये ना फ़रमाया कि मैंने सुलेमान पर फ़ज़्ल किया मगर हुज़ूर को फरमाता है कि मैंने आप पर फ़ज़्ल किया,दूसरी जगह इरशाद फरमाता है कि_*

*_21. और तुम्हें हाजत मंद पाया तो ग़नी कर दिया_*

*📕 पारा 30,सूरह वद्दोहा,आयत 8*

*_अब जिसको रब ग़नी करदे उसके ग़िना का अंदाजा कौन लगा सकता है,मगर ये वहाबी कोढी वो हैं कि जिसकी मिसाल उस मक्खी की तरह है जो पूरा खूबसूरत जिस्म छोड़कर ज़ख्म पर ही बैठा करती है,ठीक उसी तरह ये खबीस भी तमाम आयतों और हदीसों को छोड़कर सिर्फ उन आयतों और हदीसों की तरफ़ रुजू करते हैं जिनमे उन्हें हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम की शान में कमी निकालने का कुछ मौक़ा मिले हालांकि ऐसी कोई आयत और कोई हदीस नहीं जिससे कि हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम की तनक़ीस होती हो मगर ये जाहिल उसका गलत मतलब निकालकर लोगों में फितना फैलाते हैं,जैसा कि वो बात जो मौज़ूये बहस थी,याद रखिये ईमान और कुफ़्र का ताल्लुक़ क़ल्ब से है मगर इख्तियार खुद का,जिसने जो मांगा नबी ने हर उस शख्स को हर वो चीज़ दी पर अबू तालिब ने कभी भी ईमान को मुक़द्दम ना समझा इसी लिये ईमान उनसे दूर ही रहा और रही बात एहसान की कि जो उन्होने मेरे आक़ा सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम के साथ किया तो बुखारी शरीफ की रिवायत है कि सफ़रे मेराज मे आपने अपने चचा अबु तालिब को जहन्नम की आग मे पाया तो आपसे रहा ना गया और फरमाते हैं कि मैने उनका अज़ाब यहां तक कम किया कि सिर्फ उनके टख्नों तक रह गया,ये हुज़ूर पर एहसान का बदला था_*

*_यहां जो कुछ लिखा वो मेरे मुस्तफ़ा जाने रहमत सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम के इख्तियार का बस एक हर्फ है,पूरा ना तो मैं यहां लिख सकता हूं और ना आप पढ़ सकते हैं,मगर ईमान वालों के लिये उनकी शान को समझने के लिये एक हर्फ ही काफ़ी है और बे ईमान के लिये पूरी क़ुरानो हदीस भी कम है_*
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              *_जोइन_*

*_मदर्सा हनफिया वारिसुल उलूम_*
      *_9628204387_*

*_मुजीबुर्रहमान क़ादरी_*

         *_खादिम_*

*_दारूल उलूम हनफिया वारिसुल उलूम क़स्बा बेलहरा ज़िला बाराबंकी यू.पी_*






POST=37


 *_مدرسہ حنفیہ وارث العلوم_*
*_मदर्सा हनफिया वारिसुल उलूम_*


          *_वक़्त का घटना_*

*_जैसा कि हम देख रहे हैं और खुद महसूस कर रहे हैं कि वक़्त कितनी तेज़ी से भाग रहा है,दिन हफ्ता महीना तो छोड़िए साल कब और कैसे गुज़र जाता है बिल्कुल पता ही नहीं चलता,ये भी क़यामत की निशानी है और हदीसे पाक में इसका भी तज़किरा मौजूद है हुज़ूर फरमाते हैं कि_*

*_जब क़यामत क़रीब होगी तो ज़माना क़रीब हो जाएगा यानि थोड़ा रह जाएगा तो साल महीनो की तरह महीने हफ़्तों की तरह और हफ्ता इतनी जल्दी गुज़र जाएगा जितनी देर में एक खजूर की टहनी जलकर राख हो जाए_*

*📕 कंज़ुल उम्माल,जिल्द 14,सफह 227*

*_अब ये हो कैसे रहा है आईये समझते हैं,सूरज चांद सितारे सब ही ज़मीन के इर्द गिर्द चक्कर काटते रहते हैं और इनकी हरकत नस्से क़तई से साबित है मगर साइंस दां का ये कहना कि ज़मीन भी घूमती है हरगिज़ सही नहीं,आलाहज़रत अज़ीमुल बरक़त फरमाते हैं कि_*

*_ज़मीन और आसमान दोनों साकिन हैं यानि ठहरे हुए हैं_*

*📕 फतावा रज़वियह,जिल्द 9,सफह 177*

*_चांद ज़मीन से चार गुना छोटा है और तक़रीबन दो लाख मील से ज़्यादा दूरी पर है और सूरज ज़मीन से तक़रीबन तेरह लाख गुना बड़ा है और 9 करोड़ 30 लाख मील की दूरी पर है_*

*📕 इस्लाम और चांद का सफर,सफह 51-55*

*_क़ुरान में अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त इरशाद फरमाता है कि_*

*_और सूरज चलता है अपने ठहराव के लिए_*

*📕 पारा 23,सूरह यासीन,आयत 38*

*_दूसरी जगह इरशाद फरमाता है कि_*

*_जब धूप लपेट दी जाए_*

*📕 पारा 30,सूरह तक़वीर,आयत 1*

*_इसकी तफ़सीर में इमाम राज़ी अलैहिर्रहमा फरमाते हैं कि_*

*_जब सूरज को फ़लक से नीचे डाल दिया जायेगा_*

*📕 तफ़सीरे कबीर,जिल्द 31,सफह 66*

*_अब इन सबका निचोड़ आसान लफ़्ज़ों में समझाता हूं,जैसा कि आपने पढ़ लिया कि सूरज अपने मुस्तक़र की तरफ़ रवां दवां हैं और किसी भी मुस्तक़र पर ठहरता नहीं बल्कि फिर चल पड़ता है और उसका चलना ज़मीन के चारों तरफ घूमना ही है जो कि क़यामत तक जारी रहेगा,तो हुआ यूं कि जैसे जैसे क़यामत क़रीब होती जा रही है अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त सूरज को ज़मीन के क़रीब करता जा रहा है जिससे उसकी रफ़्तार तेज़ हो गई है इसको मिसाल के तौर पर समझाता हूं आपमें से बहुत से ख़ुशनसीब लोग हरम शरीफ की ज़ियारत किये होंगे और जो लोग नहीं भी कर पाएं है मौला उनको ज़ियारत नसीब अता फरमाये मगर कम से कम तसवीर में तो काबा मुअज़्ज़मा हर शख्स ने देखा ही होगा अब समझिए कि अगर काबा शरीफ का तवाफ़ उसके बगल से किया जाए तो एक चक्कर काटने में कितना वक़्त लगेगा मुश्किल से 2 या 3 मिनट मगर वहीं एक शख्स बहुत दूर से काबा शरीफ का तवाफ़ कर रहा है तो उसको एक चक्कर काटने में कितना वक़्त लगेगा 10,11 मिनट,क्यों,क्योंकि एक ने क़रीब से चक्कर काटे और एक ने दूर से तो यक़ीनन चक्कर एक ही कहलायेगा मगर चूंकि पास वाले की मुसाफत कम हुई तो कम वक़्त में उसका एक चक्कर पूरा हो गया बस इसी तरह सूरज निकल तो पूरब से ही रहा है और डूब भी पश्चिम में ही रहा है मगर उसका ज़मीन का चक्कर काटने में अब कमी होती जा रही है इसी वजह से वक़्त तेज़ी से गुज़र जाता है,और जैसे जैसे सूरज ज़मीन से क़रीब होगा तो ग्लेशियर भी पिघलती जायेगी और मौसम की तब्दीली भी यक़ीनन होगी जिसका मुशाहिदा हमें रोज़ बरोज़ हो ही रहा है_*

*📕 आसारे क़यामत,सफह 58*
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                 *_जोइन_*

*_मदर्सा हनफिया वारिसुल उलूम_*
      *_9628204387_*

*_मुजीबुर्रहमान क़ादरी_*

            *_खादिम_*

*_दारूल उलूम हनफिया वारिसुल उलूम क़स्बा बेलहरा ज़िला बाराबंकी यू.पी_*






POST=38


 *_مدرسہ حنفیہ وارث العلوم_*
*_मदर्सा हनफिया वारिसुल उलूम_*

                  *अक़ायद*


               *गैरुल्लाह से मदद मांगना*

*_बेशक गैरुल्लाह से मदद मांगना जायज़ है और अल्लाह के मुक़द्दस बन्दे दूर से सुनते हैं देखते हैं और मदद भी करते हैं नीचे मैं 23 हवाले दे रहा हूं मुलाहज़ा करें_*
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*दूर से सुनना*

*_(1) एक चींटी बोली ऐ चींटियों अपने बिलों में चली जाओ तुम्हे कुचल ना डाले सुलेमान और उसका लश्कर बेखबरी में तो उसकी बात सुनकर सुलेमान मुस्कुरा कर हंसा_*

*📕 पारा 19,सूरह नमल,आयत 18*

*_इस आयत के मातहत तफ़सीर रूहुल बयान में है कि_*

*_हज़रत सुलेमान अलैहिस्सलाम एक अज़ीम लश्कर लेकर जो कि 300 मील लम्बाई व चौड़ाई पर मुश्तमिल था,जिसमे जिन्नों इन्सो चरिंदो परिन्द सब शामिल थे,,जब ये लश्कर मुल्के शाम के जंगलों से गुज़रा तो एक चींटी जो कि मादा थी,लंगड़ी थी,उसका नाम ताखिया जर्मी या मनज़रा था,ये खुद मलिका थी,इसके लश्कर में तक़रीबन 640 करोड़ चींटियां थीं,ये उन सबको मुख़ातब करके बोली कि अपने घरों में चली जाओ कहीं ऐसा न हो कि सुलेमान का लश्कर तुम्हें कुचल दे और उन्हें खबर तक न हो,जब उस चींटी ने ये बात कही उस वक़्त हज़रत सुलेमान अलैहिस्सलाम उस चींटी से 3 मील दूर थे,उस चींटी की दानाई पर आप मुस्कुरा दिए_*

*अब ज़रा कैलकुलेशन कीजिये*

*1 मील = 1.60934 किलोमीटर यानि*

*3 मील = 4.82802 किलोमीटर यानि*

*तक़रीबन आपने 5 किलोमीटर दूर से चींटी की आवाज़ सुनी,तो जब चींटी की न सुनाई देने वाली आवाज़ भी एक नबी सुन सकते हैं,तो फिर हमारे आक़ा व मौला जो कि नबियों के सरदार हैं उनकी समाअत का क्या आलम होगा*

*_(2) और लोगो में हज की निदा आम कर दे_*

*📕 पारा 17,सूरह हज,आयत 27*

*_इस आयत के मातहत तफ़सीर खज़ाएनुल इरफ़ान में है कि_*

*_जब हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम व हज़रत इस्माईल अलैहिस्सलाम ने क़ाबा शरीफ तामीर कर दिया तो अल्लाह ने कहा की एै नबी अब लोगों को इस घर के हज के लिए बुलाओ,तो हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम ने कहा की एै मौला किसको बुलाऊं यहां तो दूर दूर तक कोई नहीं,तब अल्लाह ने कहा तुम एलान करो सबको सुनाना मेरा काम है,तब हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम अबु कबीस पहाड़ पर चढ़कर लोगों से मुखातिब हुए,तो वो आवाज़ क़यामत तक जितने पैदा होने वाले थे सबने सुनी,हत्ता की जो बाप की पुश्त में था जो मां के शिकम में था या जो आलमे अरवाह में था सबने सुनी और वहीं से लब्बैक कहा,तो जिसने उनकी आवाज़ पर लब्बैक कहा है उसी को हज नसीब होगा और जिसने सुकूत इख़्तियार किया उसे हरगिज़ वहां की हाज़िरी नसीब न होगी_*

*जब आम मुसलमानों की रूहें मां-बाप की पुश्त से और आलमे अरवाह से आवाज़े सुन सकती हैं तो हुज़ूर व हुज़ूर के महबूबीन अपनी क़ब्रे अनवर से क्यों नहीं सुन सकते*

*_(3) तो सालेह ने उनसे मुंह फेरा और कहा एै मेरी क़ौम बेशक मैंने तुम्हें अपने रब की रिसालत पहुंचा दी_*

*📕 पारा 8,सुरह एराफ,आयात 79*

*_इस आयत के मातहत तफ़सीर सावी,जिल्द 2,पेज 73-75 में है कि_*

*_हज़रत सालेह अलैहिस्सलाम क़ौमे समूद की तरफ नबी बनाकर भेजे गए,क़ौमे समूद के कहने पर आपने अपना मोजज़ा दिखाया कि एक पहाड़ी से ऊंटनी ज़ाहिर हुई जिसने बाद में बच्चा भी जना,ये ऊंटनी तालाब का सारा पानी एक दिन खुद पीती दुसरे दिन पूरी क़ौम,जब क़ौमे समूद को ये मुसीबत बर्दाश्त न हुई तो उन्होंने इस ऊंटनी को क़त्ल कर दिया,तो आपने उनके लिए अज़ाब की बद्दुआ की जो कि क़ुबूल हुई और वो पूरी बस्ती ज़लज़ले से तहस नहस हो गयी,जब सारी क़ौम मर गई तो आप उस मुर्दा क़ौम से मुखातिब होकर अर्ज़ करने लगे,जो कि ऊपर आयत में गुज़रा_*

*_(4) जंगे बद्र के दिन हुज़ूर सल्लल्लाहो तआला अलैहि वसल्लम ने बद्र के मुर्दा कुफ्फारों का नाम लेकर उनसे ख़िताब किया,तो हज़रत उमर फ़ारूक़े आज़म ने हैरत से अर्ज़ किया कि क्या हुज़ूर मुर्दा बेजान जिस्मों से मुखातिब हैं तो सरकार सल्लल्लाहो तआला अलैहि वसल्लम ने फरमाया कि 'एै उमर ख़ुदा की कसम ज़िंदा लोग इनसे ज़ादा मेरी बात को नहीं समझ सकते'_*

*📕 बुखारी शरीफ,जिल्द 1,पेज 183*

*सोचिये कि जब काफिरों के मुर्दो में अल्लाह ने सुनने की सलाहियत दे रखी है तो फिर अल्लाह के मुक़द्दस बन्दे क्यों हमारी आवाज़ों को नहीं सुन सकते*
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*दूर से देखना*

*_(5) और इसी तरह हम इब्राहीम को दिखाते हैं सारी बादशाही आसमानों की और ज़मीन की,इसलिए कि वो ऐनुल यक़ीन वालों में से हो जाये_*

*📕 पारा 7,सुरह इन'आम,आयात 75*

*_तफ़सीर रुहुल बयान,ज़ेरे आयत_*

*_हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम ने पहाड़ पर खड़े खड़े सारे आसमान व ज़मीन को देखा,सबकी आवाजों को सुना,जन्नत दोज़ख को देखा,और तमाम मख़लूक़ के आमालों को भी मुलाहज़ा फरमा लिया_*

*_(6) हज़रत अबु हुरैरा रज़ी अल्लाहु तआला अन्हु से मरवी है कि रसूल अल्लाह सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया कि 'हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम अंधेरी रात में 10 फरसख़ के फासले से चींटी को देख लिया करते थे_*

*📕 तिबरानी बहवाला शिफा शरीफ,पेज 33*

*1 फरसख   = 3 मील यानि*
*10 फरसख x 3 मील = 30 मील यानि*

*_तक़रीबन 48 किलोमीटर दूर से आप चींटी को देखा करते थे_*

*_(7) हज़रत उमर फ़ारूक़े आज़म रज़ी अल्लाहु तआला अन्हु ने एक लश्कर निहावंद (ईरान) भेजा,जिसका सिपाह सालार सारिया नाम के शख्स को बनाया,एक दिन आपने जुमे का खुत्बा छोड़कर 3 मर्तबा 'या सारियल जबल' फ़रमाया,बाद नमाज़ के अब्दुर रहमान बिन औफ़ रज़ी अल्लाहु तआला अन्हु ने माजरा पूछा तो आपने फरमाया कि मैंने मुसलमानों को देखा कि वो लड़ रहे हैं अचानक काफिर एक तरफ से आगे बढ़े तो मुझसे रहा न गया और मैंने सारिया को पहाड़ का सहारा लेने को कहा,चन्द रोज़ के बाद एक क़ासिद जंग का हाल लेकर वापस आया ता उसने बताया कि किसी आवाज़ देने वाले ने हमको पहाड़ की तरफ जाने को कहा तो हमने ऐसा ही किया और अल्लाह ने दुश्मनों को शिकस्त दी_*

*📕 मिशक़ात शरीफ,पेज 546*

*हज़रात सुलेमान अलैहिस्सलाम 5 किलोमीटर दूर से चींटी की आवाज़ सुनें,हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम 48 किलोमीटर दूर से चींटी को देख लिया करें और हज़रत उमर फ़ारूक़े आज़म रज़ी अल्लाहु तआला अन्हु सैकड़ों मील दूर से न तो सिर्फ देख ही रहे थे बल्कि मुश्किल में देखकर मदद भी फरमा रहे हैं हालांकि आप कोई नबी भी नहीं हैं कि कोई कह दे कि ये आपका मोजज़ा था,बल्कि ये खुली हुई करामात है कि अल्लाह वाले एक जगह रहते हुए भी पूरी दुनिया का मुशाहदा करते हैं ये खुली हुई आफताब रौशन दलीलें हैं*
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*गैरुल्लाह से मदद मांगना*

*_(8) ऐ ईमान वालो सब्र और नमाज़ से मदद चाहो_*

*📕 पारा 2,सूरह बक़रह,आयत 153*

*ज़ाहिर सी बात है कि सब्र और नमाज़ खुदा नहीं,फिर फरमाता है*

*_(9) और नेकी और परहेज़गारी पर एक दुसरे की मदद करो_*

*📕 पारा 6,सूरह माएदह,आयत 2*

*यहां एक दूसरे की मदद को कहा जा रहा है,और फरमाता है*

*(10) ऐ ईमान वालो दीने खुदा के मददगार हो_*

*📕 पारा 28,सूरह सफ,आयत 14*

*यहां खुद मौला मुसलमानो से अपने दीन की मदद करने को कह रहा है,और फरमाता है*

*_(11) बोले कौन मेरे मददगार होते हैं अल्लाह की तरफ तो हवारियों ने कहा हम दीने खुदा के मददगार हैं_*

*📕 पारा 3,सुारह आले इमरान,आयत 52*

*यहाँ हज़रत ईसा अलैहिस्सलाम ने अपनी कौम से मदद मांगी,अगर ये शिर्क होता तो हरगिज़ एक नबी ऐसा न करते*

*_(12) तो मेरी मदद ताक़त से करो मैं तुममे और उनमें एक मज़बूत आड़ बना दूं_*

*📕 पारा 16,सुरह कहफ,आयत 95*

*_इस आयत की तफ़सीर,तफ़्सीरे सावी,जिल्द 3,सफह 22 में कुछ युं है कि_*

*_हज़रत सिकंदर ज़ुलक़रनैन ने आबे हयात की चाह में शिमाल की सिम्त सफर किया,वहां हज़रत ख़िज़्र ने तो आबे हयात पी लिया लेकिन आपके मुक़द्दर में न था,रास्ते में जब आप दो पहाड़ों के दरमियान में पहुंचे,तो वहां के लोगों ने याजूज माजूज की शिकायत की,तो आपने उन लोगों से कहा कि ताक़त से मेरी मदद करो,इस तरह आपने उन लोगो की मदद से सिद्दे सिकंदरी तामीर करवाई,जो क़यामत के करीब ही टूटेगी_*
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*क्या गैरुल्लाह मदद भी करते हैं*

*_(13) ऐ ग़ैब की खबर देने वाले अल्लाह तुम्हें काफी है और ये जितने मुसलमान तुम्हारे पैरु हैं  (ये भी तुम्हें काफी हैं)_*

*📕 पारा 10,सुरह इंफाल,आयात 64*

*यानि मुसलमान मदद करता है*

*_(14) तो बेशक अल्लाह उनका मददगार है और जिब्रील और नेक ईमान वाले और उसके बाद फ़रिश्ते मदद को हैं_*

*📕 पारा 28,सूरह तहरीम,आयत 4*

*यहां मौला मुसलमानो को फरिश्तों को जिब्रीले अमीन को मददगार बता रहा है,और फरमाता है*

*_(15) सुलेमान ने कहा ए दरबारियों तुममे कौन है जो उसका (बिल्क़ीस) का तख्त मेरे पास ले आए क़ब़्ल इसके कि वह मेरे हुज़ूर मुतीअ होकर हाज़िर हो एक बड़ा ख़बीस जिन्न बोला कि मैं वह तख्त हुज़ूर मे हाज़िर करूंगा क़ब़्ल इसके कि हुज़ूर इज्लास बर्खास्त करे और मैं बेशक इसपर क़ुव्वत वाला अमानतदार हूं उसने (आसिफ़ बिन बरख्या) अर्ज़ की जिसके पास किताब का इल्म था कि मैं उसे हुज़ूर में हाज़िर करूंगा एक पल मारने से पहले फ़िर जब सुलेमान ने तख्त को अपने पास रखा देखा तो कहा कि ये मेरे रब के फ़ज्ल से है_*

*📕 पारा 19,सूरह नमल,आयत 38-39-40*

*_ज़ेरे आयत तफ़सीर जलालैन व तफ़सीर खज़ाएनुल इरफ़ान व तफ़सीर कबीर में है कि_*

*_हज़रत सुलेमान अलैहिस्सलाम बैतुल मुक़द्दस में थे और बिलक़ीस मुल्के सबा की हुक्मरां थीं दोनों शहरो के बीच 2 माह यानि 1500 मील का फासला था जो कि तक़रीबन 2414 किलोमीटर बनते हैं जब मलिका बिलक़ीस ने हज़रत सुलेमान अलैहिस्सलाम से मिलने का इरादा किया तो उसने अपना तख़्त जो कि सोने चांदी से बना और हीरे मोतियों से जड़ा था जिसकी लम्बाई चौड़ाई ऊंचाई सब ही 30,30 गज़ थी यानि 90 फिट लम्बा 90 फिट चौड़ा और 90 फिट ऊंचा था उस तख़्त को उसने 7 महलों के अंदर बंद करके हर एक को मज़बूत ताले से बंद किया और फिर वो बैतुल मुक़द्दस को चली उधर हज़रत सुलेमान अलैहिस्सलाम को उसके आने का इल्म हो गया तो आपने अपने दरबार में ये एलान किया कि मलिका बिलक़ीस मुझसे मिलने को आ रही है तुमसे से कौन एैसा है जो उसका तख़्त उसके पहुँचने से पहले यहाँ लादे इसपर 1 जिन्न बोला कि वो तख़्त यहां ला देगा आपकी महफ़िल बर्खास्त होने से पहले पर आप तैयार न हुए बल्कि उससे भी पहले मगांना चाहा तब आपके वज़ीर हज़रत आसिफ बिन बरख्या रज़ी अल्लाहु तआला अन्हु उठे ये आपकी उम्मत के वली भी हैं आपने कहा कि मैं वो तख़्त यहां ला दूंगा पलक झपकने से पहले ये बात अभी खत्म भी न हुई थी कि वो तख़्त दरबार में हाज़िर था_*

*क़ुरआन की आयत आपने पढ़ ली उसकी तशरीह यानि तफ़्सीर भी पढ़ ली अब उसमें छुपे हुए राज़ को भी जान लीजिए*

*_! हज़रत सुलेमान अलैहिस्सलाम खुद नबी हैं आप चाहते तो दुआ कर देते और तख़्त हाज़िर हो जाता मगर ऐसा न करके आपने अपने दरबारियों से मदद चाही अगर गैरुल्लाह से मदद मांगना शिर्क होता तो एक बुज़ुर्गदीदा नबी हरगिज़ ऐसा न करते जब एक नबी अपनी उम्मत से मदद तलब कर सकता है तो फिर उम्मती अपने नबी से मदद क्यों नहीं मांग सकता जब वो जायज़ तो ये भी जायज़_*

*_! 2414 किलोमीटर दूर रखे हुए उस भारी भरकम तख़्त को दरबार में मंगवाना जो कि क़रीब क़रीब नामुमकिन था आपने ऐसा काम करने को क्यों कहा क्योंकि आप जानते थे कि इस दरबार में ऐसे लोग मौजूद हैं जो कि ना मुमकिन से लग रहे इस काम को बड़ी आसानी से कर सकते हैं लिहाज़ा हर मुश्किल से मुश्किल अम्र में भी एक वली की तरफ रुजू करना जायज़ बल्कि बेहतर है_*

*_! एक जिन्न की ताक़त का भी अंदाज़ा हुआ_*

*_! जब उस जिन्न ने महफ़िल बर्खास्त होने से पहले उस तख़्त को लाने को कहा तो आपने इंकार क्यों किया हालांकि मल्लिका बिलक़ीस को आप तक पहुंचने में 2 महीने का वक्त लगता और तख़्त सिर्फ 4,5 घंटों में आपके पास होता इंकार की वजह ये थी कि आप देख रहे थे कि आने वाले ज़माने में कुछ लोग ऐसे पैदा होंगे जो नबियों के इख्तियार का इंकार करेंगे इस लिए आपने अपने वली की ताक़त दिखाकर दुनिया को ये बता दिया कि ऐ इंकार करने वालो जब नबियों के गुलामों का ये पावर है तो फिर नबियों के पावर का क्या कहना और फिर नबियों के नबी जनाब सय्यदुल अम्बिया सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम के पावर का क्या कहना_*

*हज़रत आसिफ बिन बरख्या रज़ी अल्लाहो तआला अन्हु का ये कहना कि मैं पलक झपकने से पहले वो तख़्त ला दूंगा और न सिर्फ कहा बल्कि उसी वक़्त तख़्त को दरबार में हाज़िर कर देना अकेले कितनी करामतों का मुजस्समा है,देखिये*

*_! पहली तो ये कि पूरी रूए ज़मीन पर नज़र डाली की तख़्त कहां रखा है उसे देख लिया गोया कि एक वली एक जगह बैठे बैठे पूरी दुनिया को मुलाहज़ा कर सकता है_*

*_! दूसरी ये कि 2414 किलोमीटर का सफर करके आप गए और फिर उतना ही सफर करके आप वापस आ भी गए गोया की एक वली पलक झपकने भर में पूरी दुनिया गश्त करके वापस वहीं आ सकता है_*

*_! तीसरा ये कि जो तख़्त सैकड़ो आदमी मिलकर उठाते थे उसे आप तन्हा ही ले आये गोया की एक वली के बाज़ुओं के पावर का क्या कहना_*

*_! चौथा ये कि बिन गए तो आप तख़्त लाये नहीं और गए तो गए कैसे,कि दरबार से तो एक पल को भी आप गायब न हुए गोया कि एक वली एक जगह हाज़िर रहते हुए भी कहीं भी आ जा सकता है_*

*बेशक दूर से देखना सुनना मदद करना ये खुदा की ही सिफ़त है,पर अल्लाह के ये मुक़द्दस बन्दे कैसे ये सब कर रहे हैं,आईये रब से ही पूछते हैं*

*_(16) हदीसे क़ुदसी है रब फरमाता है कि बन्दा नवाफिल के ज़रिये मेरा क़ुर्ब चाहता है पस मैं बन्दे को अपना क़ुर्ब अता करता हूं,जब मैं बन्दे को अपना दोस्त बना लेता हूं तो उसके कान हो जाता हूं जिससे वो सुनता है,उसकी आंख हो जाता हूं जिससे वो देखता है,उसके हाथ हो जाता हूं जिससे वो चीज़ों को पकड़ता है,और उसके पैर हो जाता हूं जिससे वो चलता है_*

*📕 बुखारी शरीफ,जिल्द 2,पेज 963*

*_इस हदीस को समझना हो तो ये आयते मुलाहजा करें_*

*_(17) ऐ महबूब वो ख़ाक जो तुमने फेंकी तुमने न फेंकी बल्कि अल्लाह ने फेंकी_*

*📕 पारा 9,सूरह इंफाल,आयात 17*

*हिजरत की रात हुज़ूर ने काफिरों पर 1 मुठ्ठी ख़ाक उठाकर फेंक दी और सबके सामने से आप चले गए किसी ने ना देखा,उसी फेंकने को रब कह रहा है कि तुमने न फेंकी बल्कि मैंने फेंकी,अल्लाहु अकबर*

*_(18) वो जो तुम्हारी बैयत करते हैं वो तो अल्लाह ही से बैयत करते हैं उसके हाथों पर_*

*📕 पारा 26,सूरह फतह,आयात 10*

*बैयते रिज़वान में जो सहाबा इकराम हुज़ूर के हाथ पर बैयत हुए,रब फरमा रहा है कि वो तो अल्लाह ही के हाथ पर बैयत हुए,बात खत्म हुई ये अल्लाह वाले अल्लाह की अता से ऐसा करते हैं,जो इंकार करता है वो क़ुरआन का इंकार करता है,और जो क़ुरआन की किसी 1 आयत का इंकार करदे वो काफिर है,पर चलते चलते ज़रा इन वहाबी मुनाफ़िक़ों की किताबों से भी कुछ हवाले देख लीजिए*
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*वहाबी और गैरुल्लाह*

*_एक सवाल के जवाब पर मौलवी रशीद अहमद गंगोही लिखते हैं कि_*

*_(19) कुबूरे औलिया पर जाना और उनसे फैज़ हासिल करना इसमें कुछ हर्ज़ नहीं_*

*📕 फतावा रशीदिया,जिल्द 1,पेज 223*

*हर्ज़ नहीं,क्यों शिर्क नहीं है क्या*

*_(20) मौलाना रफ़ी उद्दीन के साथ हज़रत (थानवी) ने सरे हिन्द पहुंचकर शेख मुजद्दिद उल्फ सानी के मज़ार पर हाज़िरी दी_*

*📕 हयाते अशरफ,सफह 25*

*फिर जब हम किसी वली के दरबार में हाज़िरी देते हैं तो तुम वहाबियों का कलेजा क्यों फटता है,और देखिये मौलवी अशरफ अली थानवी ने लिखा*

*_(21) दस्तगिरी कीजिये मेरे नबी कशमकश में तुम ही हो मेरे वली_*

*_📕 नशरुत्तबीब फि ज़िक्रे नबीईल हबीब,सफह 164_*

*हम या रसूल अल्लाह कहें तो शिर्क*
*हम या ग़ौस अल मदद कहें तो शिर्क*
*हम या ख्वाजा मदद कहें तो शिर्क*
*और तुम नबी से मदद मांगो तो शिर्क नहीं*

*_मौलवी आरिफ सम्भली उस्ताज नदवतुल उलूम ने लिखा है कि_*

*_(22) पस बुज़ुर्गो की अरवाह से मदद लेने के हम मुंकिर नहीं_*

*📕 बरैली फितने का नया रूप,सफह 139*

*तो क्या माज़ अल्लाह सुन्नी इंकार करता है,दो रुखी पालिसी पढ़ते जाइये,मौलवी हुसैन अहमद टांडवी लिखता है कि*

*_(23) हमें जो कुछ मिला इसी सिलसिलाए चिश्तिया से मिला,जिसका खाये उसी का गाये_*

*📕 शेखुल इस्लाम नम्बर,सफह 13*

*फिर जब हम कहते हैं कि गरीब नवाज़ से मिला है तो वहाबी कुत्ते शिर्क शिर्क क्यों भौंकने लगते हैं,जवाब दो*
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               *_जोइन_*

*_मदर्सा हनफिया वारिसुल उलूम_*
      *_9628204387_*

*_मुजीबुर्रहमान क़ादरी_*

          *_खादिम_*

*_दारूल उलूम हनफिया वारिसुल उलूम क़स्बा बेलहरा ज़िला बाराबंकी यू़.पी_*






POST=39


 *_مدرسہ حنفیہ وارث العلوم_*
*_मदर्सा हनफिया वारिसुल उलूम_*


              *हिस्सा-2*

              *नमाज़*


*_एक आम मुसलमान का तन्हा नमाज़ पढ़ना गोया 1 बड़ी फौज से जंग करने से भी बड़ा है क्योंकि नमाज़ के तमाम उसूल उसको अकेले ही देखने होंगे मसलन शरायत फरायज़ वाजिबात सुन्नत मुस्तहिबात मकरूहे तहरीमी मकरूहे तनज़ीही फासिदाते नमाज़ और खासकर क़ुरान पढ़ने में मखरज की अदायगी और इन तमाम शरायतों का पूरा कर पाना एक आम मुसलमान के लिए बहुत मुश्किल और तक़रीबन ना मुमकिन है,लेकिन अगर इमाम के पीछे यानि बा जमात नमाज़ पढ़ रहे हैं तो सिर्फ कुछ खास बातों को ही नज़र में रखे और उस पर अमल करने से ही उसकी नमाज़ हो अदा जायेगी इन शा अल्लाह_*

*बा जमात नमाज़ पढ़ने मे सबसे पहले ये देखें कि इमाम कैसा हो*

*_1. इमाम सुन्नी सहिउल अक़ीदा होना चाहिये क्योंकि वहाबी देवबंदी क़ादियानी खारजी शिया अहले हदीस जमाते इस्लामी व दीगर बदमज़हब के मानने वालों को इमाम बनाना हराम है और माज़ अल्लाह अगर उन्हें मुसलमान जाने जब तो काफिर है_*

*📕 फतावा रज़वियह,जिल्द 3,सफह 234-240*

*_2. सुन्नी सहिउल अक़ीदा होने के बावजूद इमाम के अंदर इमामत की शरायत पाया जाना बेहद ज़रूरी है जो हस्बे ज़ैल हैं_*

*_! सूद खाने वाला_*

*_! बे उज़्र शरई रोज़ा ना रखने वाला_*

*_! जानबूझकर नमाज़ छोड़ने वाला_*

*_! झूठ बोलने वाला_*

*_! धोखा देने वाला_*

*_! फहश कलामी करने वाला_*

*_! नाच गाना देखने वाला_*

*_! नुजूमी यानि एस्ट्रोलाजर_*

*_! बदमज़हबो से मेल जोल रखने वाला_*

*_! दाढ़ी एक मुश्त तक ना रखने वाला_*

*_! सुन्नतों का अलल एलान इंकार करने वाला_*

*_! अपनी बीवी को बेपर्दा निकलने पर ना रोकने वाला_*

*_हरगिज़ हरगिज़ हरगिज़ इमाम नहीं बन सकता अगर ऐसे इमाम के पीछे नमाज़ पढ़ी तो नमाज़ वाजिबुल इयादा होगी यानि उस नमाज़ को दोबारा पढ़ना वाजिब होगा_*

*_📕 फतावा रज़वियह,जिल्द 3,सफह 151-158-257-204-208-217-255-269-266-201-215-219_*

*_3. इसके अलावा वो सहिउल क़िरात व मसाइले नमाज़ से अच्छी तरह वाक़िफ भी हो_*

*📕 फतावा रज़वियह,जिल्द 3,सफह 264*

*_4. अगर सुन्नी सहिउल अक़ीदा इमाम के अंदर ये तमाम खराबी मौजूद हो तो तन्हा नमाज़ पढ़ी जाये और अगर इमाम ये सारे गुनाह करता तो है मगर अवाम में मशहूर नहीं है यानि छिपकर ये गुनाह करता है तो उसके पीछे नमाज़ पढ़ लें जमात ना छोड़ें_*

*📕 फतावा रज़वियह,जिल्द 3,सफह 253*

*अगर ऐसा बा शरायत इमाम मिल जाये तब भी मुक़्तदी उसके पीछे नमाज़ पढ़ने मे नीचे दिये गये काम हर्गिज़ ना करे*

*_5. उल्टा कपड़ा व जानदार तस्वीर वाला कपड़ा पहनकर,कपड़े की आस्तीन या जीन्स मोड़कर,लोहा पीतल तांबा सोने की अंगूठी पहनकर या चांदी की 4.3 ग्राम से ज्यादा की 1 अंगूठी या चांदी की 2 अंगूठी पहनकर,ब्रेसलेट कड़ा चैन या चैनदार घड़ी पहनकर नमाज़ पढ़ना मकरुहे तहरीमी है यानि वाजिबुल इयादा है_*

*📕 फतावा रज़वियह,जिल्द 3,सफ़ह 438-48*

*_6. मर्द को जूड़ा बांधना मकरुहे तहरीमी है नमाज़ वाजिबुल इयादा है_*

*📕 फतावा रज़वियह,जिल्द 3,सफह 417*

*_7. सजदे में पैर की 1 उंगली का पेट ज़मीन से लगना यानि की मोड़कर ज़मीन पर रखना फर्ज़ है व दोनों पैरों की 3,3 ऊंगली का पेट लगना वाजिब है अगर फर्ज़ छूट गया तो नमाज़ सिरे से होगी ही नहीं और वाजिब छूटा तो नमाज़ वाजिबुल इयादा है,बाज़ लोगों के पैर सज्दे की हालत मे हवा मे उठे होते है उनकी नमाज़ नहीं होगी_*

*📕 फतावा रज़वियह,जिल्द 1,सफ़ह 556*

*_8. कुछ लोग सजदे में जाते वक़्त दोनों हाथ से पैजामा या जीन्स ऊपर खींचते हैं ऐसा करना मकरुहे तहरीमी है उस नमाज़ को दोहराना वाजिब है_*

*📕 फतावा रज़वियह,जिल्द 3,सफ़ह 416*

*_9. 1 रुक्न में 3 बार हाथ हटाने या खुजाने से नमाज़ फासिद हो जायेगी यानि जैसे ही तीसरी बार हाथ हटाया तो फौरन नमाज़ से बाहर हो गया फिर से पढ़े_*

*📕 बहारे शरीयत,हिस्सा 3,सफह 132*

*_10. रुकू की तस्बीह में "अज़ीम" के माने बड़ा और "अजीम" के माने गूंगा तो जिन लोगों से रुकू में "सुब्हाना रब्बियल अज़ीम" ना बने तो वो "सुब्हाना रब्बियल करीम" पढ़ें "अजीम" हरगिज़ ना पढ़ें वरना नमाज़ तो होगी ही नहीं उल्टा गुनहगार अलग से होगा_* 

*📕 मोमिन की नमाज़ सफह 107*

*_11. रुकू से उठने के बाद और दोनों सज्दों के बीच में कमर को एक दम सीधा करना वाजिब है अगर इसको तर्क किया तो नमाज़ मकरुहे तहरीमी होगी_*

*📕 बहारे शरीयत,हिस्सा 3,सफह 132*

*_12. कपड़े व दाढ़ी से खेलना,उंगलिया चटखाना,सजदे से उठते वक़्त दामन को सीधा करना,कन्धा या सीना खुला रखना,मर्द का सजदे में कलाई को ज़मीन पर बिछाना इमाम से पहले कोई रुक्न अदा करना ये सब मकरुहे तहरीमी है_*

*📕 बहारे शरीयत,हिस्सा 3,सफह 165-205-167*

*इन सारे कामो से बचते हुए सही इमाम के पीछे नमाज़ पढ़ी तो अगर एक लफ्ज़ भी अपनी ज़बान से अदा ना करे फिर भी नमाज़ हो जायेगी*

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*_मदर्सा हनफिया वारिसुल उलूम_*
        *_9628204387_*

*_मुजीबुर्रहमान क़ादरी_*

             *_खादिम_*

*_दारूल उलूम हनफिया वारिसुल उलूम क़स्बा बेलहरा ज़िला बाराबंकी यू.पी_*






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*_मदर्सा हनफिया वारिसुल उलूम_*


     *_खाने पीने की सुन्नतें_*


*_खाना खाना बाज़ सूरतो में फर्ज़ है बाज़ में सुन्नत बाज़ में मुबाह और बाज़ में हराम भी है मसलन भूख का इतना गलबा है कि अगर कुछ ना खाया तो मर जायेगा तो ऐसी सूरत में खाना फर्ज़ है और जितनी भूख हो उससे कम खाना सुन्नत है और पेट भरकर खा लेना मुबाह है यानि जायज़ है और इतना ज़्यादा खा लेना कि मेदा खराब हो जाये हराम है_*

*_खाने से पहले और बाद में दोनों हाथों को गट्टो तक धोना सुन्नत है खाने से पहले हाथ धोकर ना पोछा जाए,बाज़ लोग सिर्फ उंगलिया धोते हैं ये खिलाफे सुन्नत है_*

*_खाने से पहले बिस्मिल्लाह शरीफ पढ़ें और अगर महफिल में खाता है तो बा आवाज़ बुलंद पढ़े कि सुनकर और लोग भी पढ़ लें अगर शुरू में बिस्मिल्लाह पढ़ना भूल गया तो याद आते ही अगर चे आखिरी लुक़मा ही बचा हो पढ़ें बिस्मिल्लाहे फी अव्वलेही व आखेरेही और खाना खाने के बाद अलहम्दो लिल्लाह पढ़ें_*

*_रोटी पर कोई चीज़ ना रखा जाए_*

*_युंही हाथ को रोटी से ना पोछें_*

*_तकिया लगाकर या नंगे सर खाना अदब के खिलाफ है_*

*_खाने के वक़्त एक हाथ ज़मीन पर टेके रहना मकरूह है_*

*_खाना खाने का सबसे बेहतरीन तरीका ये है कि बायां पैर बिछा दे और दायां पैर खड़ा करके बैठे,इस तरह खाना खाने में ना तो पेट बाहर आएगा और ना ही अपेन्डीज़ की शिकायत होगी_*

*_अगर पहले रोटी आ गयी तो उसे खाना शुरू कर दें सालन का इंतज़ार ना करें और जो लुक़मा दस्तार ख्वान पर गिर जाए उसे उठाकर खा लिया जाए_*

*_ज़्यादा गर्म खाना ना खाये ना तो खाने में फूंके और ना सूंघें_*

*_खाने के वक़्त ज़रूरतन बात करता रहे बिलकुल चुप रहना मजूसियों का तरीका है_*

*_खाने के बाद उंगलिया और बर्तन चाट कर अच्छी तरह साफ करें कि हदीस में आता है कि अगर ऐसा करेगा तो बर्तन भी उसके लिए मग़फिरत की दुआ करेगा_*

*_नमकीन से शुरू करे और नमकीन पर ही खत्म करें इससे 70 बीमारियां दूर होती है_*

*_खाना अगर अच्छा ना हो तो उसे छोड़ दें मगर उसमे ऐब ना निकालें_*

*_किसी के आने पर ये पूछना कि आओ खाना खाओ बहुत अच्छा है मगर उसका ये कहना कि बिस्मिल्लाह करो बे मानी है उल्मा ने इसे सख्त मना फरमाया है हां दुआ दे मसलन बारक अल्लाह वगैरह_*

*_बाप अपने बेटे की कोई चीज़ बग़ैर उसकी इजाज़त के भी इस्तेमाल कर सकता है_*

*_दरख्तों से फल तोड़कर खाना या गिरे हुए फलों को भी खाना उस वक़्त तक जायज़ नहीं जब तक कि उसके मालिक की इजाज़त ना हो_*

*_रोटी को छुरी से काटना नसारा का तरीका है मगर ज़रूरतन ऐसा करना जायज़ है मसलन दावत वगैरह में इसराफ से बचाने के लिए रोटी के टुकड़े रखे जाते हैं कि जिसे जितनी ज़रूरत हो उतना ही उठाये या डबल रोटी वगैरह काटना युंही भुनी हुई रान को छुरी से काटना जायज़ है_*

*_खाना ज़मीन पर खाना ही सुन्नत है कुर्सी पर बैठकर खाना नसारा का तरीका है इससे बचना चाहिए मगर माज़ अल्लाह अब तो मुसलमान खड़े खड़े जानवरो की तरह खाने को ही पसंद करता है,हदीसे पाक में आता है कि जो भूलकर खड़ा होकर खाए पिए तो वो क़ै कर दे यानि जो कुछ खाया पिया उसे उलटी करदे,ज़रा सोचिये मेरे आक़ा ये भी तो फरमा सकते थे कि जिसने भूले से खड़े होकर खा लिया वो तौबा करे और आईन्दा खड़े होकर ना खाए पिए मगर आपने उसको निकाल देने का हुक्म दिया इसका मतलब है कि खड़े होकर खाना पीना सेहत के लिहाज़ से सख्त नुक्सान देह है और ये क़ै का हुक्म भूले से खाने पीने पर है मगर यहां तो जान बूझकर खड़े होकर खाया पिया जा रहा है और जाहिल मुसलमानों का यही फैशन हो गया है,अल्लाह हिदायत दे_*

*_पानी बैठकर तीन सांस में पीना सुन्नत है सिवाये दो पानियों के पहला आबे ज़म-ज़म शरीफ और दूसरा वुज़ु का बचा हुआ पानी यही दो पानी खड़े होकर पिया जायेगा_*

*_सोने चांदी के बर्तन में खाना पीना सख्त मना है_*

*_मुसलमान का झूठा झूठा नहीं होता उसे फेंकना इसराफ है_*

*_वुज़ू के लोटे में जो पानी बच जाए उसे भी फेंकना मना है_*

*📕 बहारे शरीयत,हिस्सा 16,सफह 2--27*

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       *लेटना और सोना*


*_पेट के बल लेटने वाले को अल्लाह पसंद नहीं फरमाता और फरमाया कि इस तरह काफिर व जहन्नमी लेटते हैं_*

*_हुज़ूर ने ऐसी छत पर सोने से मना फरमाया जिस पर रोक ना हो_*

*_अस्र के बाद सोना अक़्ल को कम करता है_*

*_क़ैलूला यानि ज़ुहर बाद थोड़ी देर सोना सुन्नत है_*

*_दिन निकले तक सोना और मगरिब और इशा के दरमियान सोना मकरूह है_*

*_दो मर्द का एक ही चादर में लेटना नाजायज़ है_*

*_जब लड़का लड़की 10 साल के हो जायें तो उनका बिस्तर अलग कर दें_*

*_10 साल का लड़का अपनी मां या बहन के साथ नहीं सो सकता बल्कि इस उम्र का लड़का किसी मर्द के साथ भी नहीं सो सकता_*

*_इंसान जिस हालत में सोता है उसी पर उठता है और जिस हालत में मरता है उसी हालत में क़यामत के दिन उठेगा लिहाज़ा मौत का कोई भरोसा नहीं तो तौबा करके और दुआ वग़ैरह पढ़कर सोयें_*

*_सोते वक़्त ये दुआ पढ़ें अल्लाहुम्मा बिस्मेका अमूतो व अहया  اللهم باسمك اموت واحي_*

*_जो शख्स सोते वक़्त ये दुआ " अस्तग़फ़ेरुल लाहल लज़ी लाइलाहा इल्ला होवल हय्युल क़य्यूमो व आतूबो इलैहे استغفر الله الذى لااله الا هو الحى القيوم واتوب اليه  " 3 बार पढ़ लेगा तो अगर उसके गुनाह दरख्तों के पत्तों या ज़मीन की रेत से भी ज़्यादा होंगे तब भी मौला तआला उसे बख्श देगा_*

*_सुबह उठकर ये दुआ पढ़ें अलहम्दो लिल्लाहिल लज़ी अहयाना बाअदा मा अमातना व इलैहिन नुशूर الحمد لله الذى احيانا بعد ما اماتنا واليه النشور_*

*_तकिया लगाना सुन्नत है_*

*_मुस्तहब ये है कि बा तहारत यानि वुज़ु करके सोयें और कुछ देर दायीं करवट पर लेटें और दाहिने हाथ की हथेली दाहिने गाल के नीचे रखें_*

*📕 इस्लामी अखलाक़ो आदाब,सफह 93-95,257*

*_इमाम गज़ाली अलैहिर्रहमा फरमाते हैं कि मियां बीवी का रात के अव्वल वक़्त में सोहबत करना मकरूह है क्योंकि इस तरह पूरी रात नापाकी में गुज़ारनी पड़ेगी इसके लिए बेहतरीन वक़्त रात का आखिरी हिस्सा है और सेहत के लिहाज़ से मुनासिब भी_*

*📕 अहयाउल उलूम,जिल्द 2,सफह 52*
*📕 बिस्तान,सफह 138*

*_जिन पर गुस्ल फर्ज़ है उनको ज़बान से क़ुरान की आयत पढ़ना लिखना या छूना हराम है हां दरूद शरीफ व कल्मा शरीफ और दीगर वज़ायफ व दुआ पढ़ने में हर्ज़ नहीं मगर कुल्ली करके पढ़ें_*

*📕 बहारे शरीयत,हिस्सा 2,सफह 43*
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  *नाप-तौल में कमी करना*


*_हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम फरमाते हैं कि_*

*_जो क़ौम नाप-तौल में कमी करने लगेगी तो वो क़हत साली (सूखा) का शिकार हो जायेगी_*

*📕 अलमुअज्जमुल कबीर,जिल्द 11,सफह 44*

*_जैसा कि पिछले कई सालों से हम देख ही रहे हैं कि कभी किसी स्टेट को सूखा ग्रस्त घोषित किया जा रहा है तो कभी किसी स्टेट को,अगर बद आमाली का यही हाल रहा तो वो दिन दूर नहीं जब पूरा देश ही सूखा ग्रस्त हो जायेगा_*

*_क़ुरान मुक़द्दस में मौला तआला इरशाद फरमाता है कि_*

*_कम तौलने वालों की खराबी है_*

*📕 पारा 30,सूरह मुतफ्फेफीन,आयत 1*

*_इस आयत में कम तौलने वालों को मौला ने "वैल" से डराया है,वैल जहन्नम की वो वादी है कि जिससे जहन्नम भी पनाह मांगता है अगर उसमे पहाड़ भी डाला जाए तो पानी की तरह पिघल जायेगा तो फिर इंसान की क्या औक़ात कि उसकी आग बर्दाश्त कर सके_*

*_एक बुज़ुर्ग फरमाते हैं कि मैं एक मर्ज़ुल मौत शख़्स की इयादत को गया और उसको कलमे की तलक़ीन की तो वो कहने लगा कि मेरी ज़बान पर तराज़ु हावी है और मैं कलमा नहीं पढ़ पा रहा तो वो कहने लगे कि क्या तू कम तौला करता था इस पर वो बोला कि खुदा की कसम मैंने एक अरसे तक अपने तराज़ुओं की माप को आज़माया ही नहीं_*

*📕 किताबुल कबायेर,सफह 383*

*_सोचिये जब अनजाने में कम तौलने वाले का ये हाल है कि कल्मा नसीब नहीं हो रहा तो जो जान-बूझ कर कम तौलते हैं उनका हश्र क्या होगा,और ये कमी करना सिर्फ तराज़ू से तौलने के लिए ही ख़ास नहीं है बल्कि हर वो चीज़ जो बन्दा खरीद रहा है अगर उसमें कमी की गई तो इताब होगा_*
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     *_( मुताफर्रिक़ात )_*


*_कर्ज़दार को 3 पैसे के बदले 700 रकअत नमाज़ देनी होगी,अगर नेकियां ख़त्म हो गयी तो उसका गुनाह लेना पड़ेगा_*

*📕 क्या आप जानते हैं,सफ़ह 634*

*_जो अक़ायद का पूरा इल्म रखे और अपनी ज़रूरत के मसायल बग़ैर किसी की मदद के किताब से निकाल ले,वो आलिम है_*

*📕 अहकामे शरियत,हिस्सा 2,सफ़ह 231*

*_अदना जन्नती को जन्नत में दुनिया के जैसी 10 गुना जगह 80000 गुलाम और 72 बीवियां मिलेगी,मर्दों की उम्र 33 साल और औरतों की 18 साल और हमेशा यही उम्र रहेगी वहां ना कभी बूढ़े होंगे ना बीमार और ना ही कभी मौत आयेगी_*

*📕 तिर्मिज़ी शरीफ,जिल्द 1,सफ़ह 83*
*📕 बहारे शरियत,हिस्सा 1,सफ़ह 46*
*📕 तफ़सीरे अज़ीज़ी,पारा 30*

*_बैतुल मुक़द्दस की ज़मीन आसमान से सबसे ज़्यादा क़रीब है,क्योंकि हर जगह से ये ज़मीन 18 मील ऊंची है_*

*📕 फतावा रज़विया,जिल्द 4,सफह 687*

*_हज़रत हूद अलैहिस्सलाम के उम्मत के लोग 400,500 गज़ लम्बे हुआ करते थे,उनके में बौना शख्स भी 300 गज़ का होता था_*

*📕 जलालैन,हाशिया 14,सफ़ह 135*

*_जानवर में सबसे पहले मछली को पैदा किया गया,उसका नाम 'नून' या 'यम्हूत' या 'लेव्तिया' है उसी की पीठ पर ज़मीन ठहरी है_*

*📕 मदारेजुन नुबुवत,जिल्द 1,सफ़ह 130*

*_जिस साल मेरे आक़ा तशरीफ़ लायें उस साल पूरी दुनिया में सिर्फ लड़के ही पैदा हुए कोई लड़की पैदा नहीं हुई_*

*📕 मवाहिबुल लदुनिया,जिल्द 1,सफ़ह 21*

*_कश्तिये नूह में जब और जानवरों के साथ शेर सवार हुआ तो मौला ने शेर को बुख़ार में मुब्तेला कर दिया,ताकि वह किसी को परेशान ना कर सके,इससे पहले ज़मीन पर ये बीमारी नहीं थी_*

*📕 तफ़सीर रूहुल मआनी,पारा 12,सफ़ह 53*

*_अगर किसी को जानवर ने खा लिया तो उसके पेट में ही हिसाब किताब होगा_*

*📕 मिरक़ात,जिल्द 1,सफ़ह 168*

*_हज़रत दाऊद अलैहिस्सलाम के हाथ में लोहा मोम की तरह नर्म हो जाता था,आप बग़ैर आग के उसे हाथों से मोड़कर ज़िरह बना लेते_*

*📕 तफ़सीरे खज़ाएनुल इर्फ़ान,पारा 22,रुकू 8*

*_बुलगार,लन्दन में हर साल 40 रातें ऐसी आती हैं जिनमे इशा का वक़्त ही नहीं आता,शफ़क़ डूबते डूबते ही सुब्ह सादिक़ हो जाती है_*

*📕 बहारे शरियत,हिस्सा 3,सफ़ह 21*

*_पहले खाना नहीं सड़ता था बनी इसराईल को हुक्म था कि 'मन्न व सलवा' दूसरे दिन के लिए बचा कर ना रखें पर वो ना माने उनकी नाफ़रमानी पर खाना ख़राब होना शुरू हुआ_*

*📕 तफ़सीर रूहुल बयान,जिल्द 1,सफ़ह 97*

*_'क़ाफ़' नामी पहाड़ जिसकी जड़ें तमाम ज़मीन के अन्दर फैली हैं,रब जिस जगह ज़लज़ले का हुक्म देता है तो पहाड़ अपनी उस जगह की जड़ को हिला देता है जिससे ज़मीन कांप उठती है_*

*📕 फतावा रज़विया,जिल्द 12,सफ़ह 189*


*_अगर मुसलमान किसी काफिर या मुनाफिक़ के मरने पर उसे मरहूम या स्वर्गवासी कहे या उसकी मग़फिरत की दुआ करे तो खुद काफिर है_*

*📕 बहारे शरीयत,हिस्सा 1,सफह 55*

*_जो ये अक़ीदा रखे कि हम काबे को सजदा करते हैं काफिर है कि सजदा सिर्फ खुदा को है और काबा इमारत है खुदा नहीं_*

*📕 फतावा मुस्तफविया,सफह 14*

*_ग़ैर मुस्लिमों के त्योहारों में शामिल होना हराम है और अगर माज़ अल्लाह उनकी कुफ्रिया बातों को पसंद करे या सिर्फ हल्का ही जाने जब तो काफ़िर है_*

*📕 इरफाने शरीयत,हिस्सा 1,सफह 27*

*_आखिर ज़माने में आदमी को अपना दीन संभालना ऐसा दुश्वार होगा जैसे हाथ में अंगारा लेना दुश्वार होता है_*

*📕 कंज़ुल उम्माल,जिल्द 11,सफह 142*

*_आखिर ज़माने में आदमी सुबह को मोमिन होगा और शाम होते होते काफिर हो जायेगा_*

*📕 तिर्मिज़ी,जिल्द 2,सफह 52*

*_फरिश्ते ना मर्द हैं और ना औरत वो एक नूरी मखलूक़ हैं मगर वो जो सूरत चाहें इख़्तियार कर सकते हैं पर औरत की सूरत नहीं इख़्तियार करते_*

*📕 तकमीलुल ईमान,सफह 9*

*_जब हज़रत ईसा अलैहिस्सलाम चौथे आसमान पर जिंदा हैं और हज़रत इदरीस अलैहिस्सलाम जन्नत में जिस्म के साथ मौजूद हैं तो फिर मेराज शरीफ में मेरे आक़ा सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम के जिस्मे अनवर के साथ सफर का इंकार क्यों_*

*📕 मदारेजुन नुबूवत,जिल्द 2,सफह 391*

*_उल्माये अहले सुन्नत ने अगर किसी को काफिर या बेदीन या गुमराह का फतवा दिया तो बेशक रब के नज़दीक भी वो वैसा ही ठहरेगा उस पर तौबा वाजिब है_*

*📕 फतावा मुस्तफविया,सफह 615*

*_कोई ग़ैर मुस्लिम मुसलमान होना चाहे तो उसे फौरन कल्मा पढ़ाया जाए कि जिसने भी उसे कल्मा पढ़ाने में ताख़ीर की तो खुद काफिर हो जायेगा_*

*📕 फतावा मुस्तफविया,सफह 22*

*_उसूले शरह 4 हैं क़ुरान हदीस इज्माअ और क़यास,जो इनमें से किसी एक का भी इंकार करे काफिर है_*

*📕 फतावा मुस्तफविया,सफह 55*
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     *_जन्नती जानवर_*


*_इंसान के अलावा ये कुछ जानवर भी जन्नत में जायेंगे इनकी पूरी तफसील मुलाहज़ा फरमाएं_*

*_1. मेरे आक़ा सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम का बुराक़ और ऊंटनी_*

*_सफरे मेराज में हुज़ूर जिस बुराक़ से अर्शे मुअल्ला तक पहुंचे वो बुराक़ और आपकी अज़्बा नामी ऊंटनी जन्नत में जायेगी_*

*_3. हज़रत इस्माईल अलैहिस्सलाम का मेंढ़ा_*

*_हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम ने रब के हुक्म पर अपने बेटे हज़रत इस्माईल अलैहिस्सलाम की कुर्बानी पेश करने का फैसला किया मगर वो सिर्फ आपका इम्तिहान था जब आपने अपने प्यारे बेटे के गले पर छुरी चलाई तो मौला के हुक्म से हज़रत जिब्रील अलैहिस्सलाम जन्नत से जो मेंढ़ा लाये और जिस पर छुरी चली वो मेंढ़ा भी जन्नत में जाएगा_*

*_4. हज़रत सुलेमान अलैहिस्सलाम की चींटी और हुदहुद_*

*_एक मर्तबा हज़रत सुलेमान अलैहिस्सलाम एक अज़ीम लशकर के साथ मुल्के शाम के जंगलों से गुज़रे तो एक चींटी जो कि अपनेi क़ौम की सरबराह थी उसने अपनी क़ौम से मुखातिब होकर फरमाया कि अपने बिलों में चली जाओ कहीं ऐसा ना हो कि हज़रत सुलेमान अलैहिस्सलाम और उनका लश्कर तुम्हे कुचल डाले और उन्हें खबर भी ना हो,जब उसने ये बात कही तो लश्कर उस वक़्त तक़रीबन 5 किलोमीटर दूर था मगर उसकी बात हज़रत सुलेमान अलैहिस्सलाम ने सुन ली और उसकी दानाई पर मुस्कुरा दिए,ये चींटी भी जन्नत में जायेगी,इमाम राज़ी फरमाते हैं कि चींटी का ये बयान करना कि उनसे अगर ऐसा होगा भी तो बेखबरी में होगा क्योंकि कोई नबी जान-बूझकर हरगिज़ ऐसा कर ही नहीं सकता जो कि क़ुरान में मौजूद है ये बताता है कि अम्बिया इकराम हरगिज़ गुनहगार नहीं हो सकते लिहाज़ा जो लोग अम्बिया को मासूम नहीं समझते उनकी अक्ल चींटी से भी कम है_*

*_हज़रत सुलेमान अलैहिस्सलाम के लश्कर में तमाम जानवर भी मौजूद थे जिनमे परिंदों का सरदार एक हुदहुद था जिसका नाम याफूर था,ये ज़मीन के अंदर का पानी देख लेने की सलाहियत रखता था जिस जगह पानी होता ये अपनी चोंच रगड़ता और जिन्न उस जगह को खोदकर कुंआ बना देते,ये एक मर्तबा बग़ैर बताये ग़ैर हाज़िर रहा तो हज़रत सुलेमान अलैहिस्सलाम ने इताबन इसके पर उखाड़ लेने को कहा जब ये वापस आया तो माफ़ी चाही और बिलक़ीस की खबर दी जिस पर हज़रत सुलेमान अलैहिस्सलाम ने इसे माफ़ कर दिया,ये हुदहुद भी जन्नत में जाएगा_*

*_6. हज़रत उज़ैर अलैहिस्सलाम का गधा_*

*_हज़रत उज़ैर अलैहिस्सलाम को रब ने अपनी क़ुदरते कामिला पर मुत्तेला करना चाहा तो एक मर्तबा आप अपने गधे को लेकर एक पेड़ के नीचे सोए सुबह का वक़्त था और आपकी रूह क़ब्ज़ कर ली गयी,100 साल गुज़र गए इस बीच बादशाह बख्ते नसर यानि शद्दाद की भी मौत हो गयी और एक बार फिर बनी इस्राईल बैतुल मुक़द्दस में काबिज़ हुए,100 साल के बाद रब ने हज़रत उज़ैर अलैहिस्सलाम को ज़िंदा फरमाया तो शाम का वक़्त था रब ने आपसे पूछा कि कितनी देर यहां ठहरे तो आपने वक़्त देखकर कयासन फरमाया कि थोड़ी देर,तो रब फरमाता है कि 100 साल गुज़र चुके,आपके खाने पीने का सामान बिलकुल भी ख़राब ना हुआ था मगर आपका गधा गल सड़कर रेज़ा रेज़ा हो चुका था फौरन ही आपके सामने उसकी सारी हड्डियां मिली उस पर गोश्त चढ़ा खाल चढ़ी और वो चीखने लगा,आप उसे लेकर जब अपनी बस्ती में पहुंचे तो आप खुद 40 साल के थे आपके बेटे की उम्र 118 साल की थी और आपके पोते भी बूढ़े हो चुके थे,आपकी दुआ से आपकी एक कनीज़ जो कि उस वक़्त 130 की थी नाबीना हो चुकी थी आंख वाली हो गयी और आपको पहचाना,जब बनी इस्राईल ने देखा तो आपको खुदा का बेटा कहने लगे और ईमान से खारिज हो गए,आपका यही गधा भी जन्नत में जाएगा_*

*_7. हज़रत सालेह अलैहिस्सलाम की ऊंटनी_*

*_क़ौमे समूद में रब ने हज़रत सालेह अलैहिस्सलाम को भेजा जब आपने उनको तब्लीग की तो उन्होंने आपसे मोजज़ा मांगा जिस पर आपने उनके कहने पर पहाड़ से एक हामिला ऊंटनी निकाल दी जिस पर कई लोग ईमान ले आये और बहुत से रुके रहे,लोगों के सामने ही उस ऊंटनी ने बच्चा जना जो 70 ऊंटनियों के जितना बड़ा था,क़ौम के पानी के लिए एक नहर थी जिससे वो ऊंटनी एक दिन छोड़कर सारा पानी पी जाती और एक दिन पूरा क़ौम पीती,ये बात क़ौम पर गिरां गुज़री और सबने मिलकर उसको मार दिया जिस पर आसमान से उन पर अज़ाब उतरा और सबके सब हलाक हो गए,ये ऊंटनी भी जन्नत में जायेगी_*

*_8. हज़रत यूनुस अलैहिस्सलाम की मछली_*

*_एक क़ौम नेनवा इलाक़े मे बसी थी जो कुफ्रो शिर्क में मुब्तेला थी जिस पर रब ने हज़रत यूनुस अलैहिस्सलाम को तब्लीग के लिए भेजा,आपने उनको तब्लीग की और ये भी फरमाया कि अगर 40 दिन में तुम नहीं बदलोगे तो आज से चालीसवें दिन अज़ाब आयेगा,जब 35 दिन हो गए तो आसमान का रंग बदल गया आप समझ गए कि अब अज़ाब आयेगा और आपने अपने इज्तेहाद से फैसला किया कि मुझ पर रब तंगी ना करेगा और आप बस्ती छोड़कर चले गए,इधर अज़ाब की अलामत देखकर क़ौम का बुरा हाल हो गया और सब रो रोकर माफ़ी मांगने लगे रब को उन पर रहम आ गया और अज़ाब को टाल दिया गया,हज़रत यूनुस अलैहिस्सलाम जब कश्ती पर बैठकर बीच दरिया पहुंचे तो कश्ती अचानक रुक गयी,उस वक़्त दस्तूर के मुताबिक ये ख्याल किया जाता था कि अगर कोई ग़ुलाम अपने आका को छोड़कर जा रहा हो तो कश्ती किनारे पर नहीं लगती,तमाम कश्ती वालों ने क़ुरा निकाला तो तीनो मर्तबा हज़रत यूनुस अलैहिस्सलाम का नाम ही आया आपने सोचा कि मेरी वजह से ये लोग क्यों मुसीबत में रुके रहे और आप दरिया में कूद गए रब ने एक मछली को इल्हाम किया कि हज़रत यूनुस अलैहिस्सलाम को अपने पेट में रखे मगर एक ख़राश तक ना आने पाए,ये एक यार का यार पर इताब था किसी दूसरे को मजाल नहीं कि उन पर ऐतराज़ करे,मछली तीन रोज़ तक आपको पेट में लिए दरिया में घूमती रही फिर आपने वो दुआ फरमाई जिसे आयते करीमा कहा जाता है जिसकी बरक़त से मछली आपको किनारे पर छोड़ आयी,आपकी यही मछली भी जन्नत में जायेगी_*

*_9. असहाबे कहफ़ का कुत्ता_*

*_हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम के ज़माने में एक नेक शख्स था जिसका नाम बलअम बिन बावर था,ये बहुत बड़ा ज़ाहिद आलिम सूफ़ी और मुस्तजाबुद दावात था यानि इसकी हर दुआ क़ुबूल होती थी,ये ज़मीन पर बैठे बैठे अर्शे आज़म देख लेता था इसके 12000 तलबा थे इस्मे आज़म जानता था गर्ज़ कि इंतेहाई उरूज पर था,जब हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम बनी इस्राईल को लेकर शहर कुनआन में दाखिल हुए तो कुनानी भागते हुए बलअम बिन बावर के पास पहुंचे और कहा कि वो हमारी हुक़ूमत पर क़ाबिज़ होना चाहते हैं लिहाज़ा तुम उनके लिये बद्दुआ करो पहले तो इसने काफी मना किया मगर बाद में कसीर माल की लालच में आकर हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम के लिए बद्दुआ करने को तैयार हो गया,जब इसने बद्दुआ करनी शुरू की तो जो कुछ हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम के लिए कहना चाहता क़ुदरते खुदावन्दी से खुद उसका नाम निकलता आखिरकार उसकी ज़बान सीने पर आ पड़ी और वो कुत्ते की तरह हांपने लगा इस्मे आज़म भूल गया और सबने देखा कि उसके सीने से एक सफ़ेद कबूतर की मानिंद कुछ चीज़ निकलकर उड़ गयी तो लोगों ने जान लिया कि इसका ईमान सल्ब हो गया,और वो इसी तरह ज़िल्लत की ज़िंदगी गुज़ारते हुए मरा,असहाबे कहफ़ का जो कुत्ता जन्नत में जाएगा वो बलअम बिन बावर की शक्ल में जन्नत में जाएगा और बलअम बिन बावर उस कुत्ते की शक्ल में जहन्नम में_*

*_10. बनी इस्राईल की गाय_*


*📕 अलअश्बाह वन्नज़ायर,सफह 382*
*📕 हाशिया 19,जलालैन,सफह 318*
*📕 नुज़हतुल मजालिस,जिल्द 2,सफह 64*
*📕 अलमलफ़ूज़,हिस्सा 4,सफह 75*
*📕 क्या आप जानते हैं,सफह 123*
*📕 तज़किरातुल अम्बिया,सफह 182* *197-222-224-254*

*_इसके अलावा कुछ खूबसूरत और अच्छे जानवर भी जन्नत मे जायेंगे_*

*📕 रूहुल मआनी,जिल्द 15,सफह 236*
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                *_जोइन_*

*_मदर्सा हनफिया वारिसुल उलूम_*
       *_9628204387_*

*_मुजीबुर्रहमान क़ादरी_*

           *_खादिम_*

*_दारूल उलूम हनफिया वारिसुल उलूम क़स्बा बेलहरा ज़िला बाराबंकी यू.पी_*






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 *_مدرسہ حنفیہ وارث العلوم_*
*_मदर्सा हनफिया वारिसुल उलूम_*


            *_नमरूद_*


*_नसारा का एक फिरका है जिसका नाम सायबा है उसी क़बीले के बादशाहों का लक़ब नमरूद है,अब तक 6 ऐसे बादशाह गुज़रे हैं जिनका लक़ब नमरूद हुआ_*

*_1. नमरूद बिन कुंआन बिन हाम बिन नूह,यही हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम के ज़माने का नमरूद है_*

*_2. नमरूद बिन कोश बिन कुंआन_*

*_3. नमरूद बिन संजार बिन ग़रूर बिन कोश बिन कुंआन_*

*_4. नमरूद बिन माश बिन कुंआन_*

*_5. नमरूद बिन सारोग़ बिन अरग़ू बिन मालिख_*

*_6. नमरूद बिन कुंआन बिन मसास बिन नुक़्ता_*

*📕 उम्दतुल क़ारी,जिल्द 1,सफह 93*
*📕 हयातुल हैवान,जिल्द 1,सफह 98*

*_अब तक 4 ऐसे बादशाह गुज़रे हैं जिन्होंने पूरी दुनिया पर हुक़ूमत की है 2 मोमिन हज़रत सिकंदर ज़ुलक़रनैन और हज़रत सुलेमान अलैहिस्सलाम और 2 काफ़िर नमरूद और बख्ते नस्र,और अनक़रीब पांचवे बादशाह हज़रत इमाम मेंहदी रज़ियल्लाहु तआला अन्हु होंगे जो पूरी दुनिया पर हुक़ूमत करेंगे_*

*📕 अलइतक़ान,जिल्द 2,सफह 178*

*_नमरूद ने 400 साल हुक़ूमत की,नमरूद के पास कुछ तिलिस्माती चीजें थी जिसकी बिना पर उसने खुदाई का दावा किया_*

*_! तांबे का एक बुत था,जब भी कोई चोर या जासूस शहर में दाखिल होता तो उस बुत से आवाज़ आती जिससे वो पकड़ा जाता_*

*_! एक नक़्क़ारा था,जब किसी की कोई चीज़ ग़ुम हो जाती तो उस पर चोब मारा जाता तो वो गुमशुदा चीज़ का पता बताती_*

*_! एक आईना था,अगर कोई शख्स ग़ुम हो जाता तो उसमे नज़र आ जाता कि इस वक़्त कहां पर है_*

*_! एक दरख़्त था,जिसके साए में लोग बैठते और उसका साया बढ़ता जाता यहां तक कि 1 लाख लोग बैठ जाते थे मगर जैसे ही 1 लाख से 1 भी ज़्यादा होता तो साया हट जाता और सब धूप में आ जाते_*

*_! एक हौज़ था,जिससे मुकदमे का फैसला होता युं कि मुद्दई और मुद्दआ अलैह दोनों को उस हौज़ में उतारा जाता जो सच्चा होता उसके नाफ़ से नीचे पानी रहता और झूठा उसमे डुबकी खाता_*

*📕 तफ़सीरे नईमी,जिल्द 1,सफह 677*

*_नमरूद ने शहरे बाबुल में एक इमारत बनवाई जिसकी ऊंचाई 15000 फिट थी,उसने ये इमारत आसमान वालों से लड़ने के लिए बनवाई थी,मौला ने एक ऐसी हवा चलायी कि पूरी इमारत ज़मीन पर आ गयी और उसकी दहशत से लोग 73 ज़बान बोलने लगे उससे पहले तक सिर्फ एक ज़बान सुरयानी ही बोली जाती थी_*

*📕 तफ़सीरे खज़ायेनुल इर्फ़ान,पारा 14,रुकू 10*

*_नमरूद ने हज़रत इब्राहीम खलीलुल्लाह को आग में डालने के लिए जो आग जलवाई थी उसकी लपटें कई सौ फीट ऊपर तक जाती थी उसी आग की तपिश से एक मच्छर के पर व पैर जल गए,इस मच्छर ने रब की बारगाह में दुआ की तो मौला ने फरमाया कि ग़म ना कर मैं तेरे ज़रिये ही नमरूद को हलाक़ करवाऊंगा,ये मच्छर एक दिन नमरूद की नाक के जरिए उसके दिमाग में घुस गया और अंदर ही अंदर काटना शुरू किया,उस तक़लीफ से मौत हज़ार दर्जे बेहतर थी,जब वो काटता तो नमरूद अपने सर पर चप्पलों से मारा करता,दीवार में सर मारता और इसी तरह तड़प तड़प कर मरा_*

*📕 तफ़सीरे नईमी,जिल्द 3,सफह 68*
*📕 मलफूज़ाते निज़ामुद्दीन औलिया,स 162*
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*_मदर्सा हनफिया वारिसुल उलूम_*
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     *_हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम और गाय_*


*_क़ुरान में सूरह बक़र को बक़र यानि गाय वाली सूरह इसलिए कहा जाता है कि इसमें हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम और एक गाय का ज़बरदस्त वाक़िया है,जो कि आयत नं0 67 से 73 तक है,आईये उसकी तफसील जानते हैं_*

*_बनी इस्राईल में एक नेक शख्स था जिसका एक छोटा सा बेटा था,उस शख्स ने एक बछिया बड़ी मुहब्बत से पाली थी,जब उसकी मौत का वक़्त करीब आया तो वो बछिया को लेकर एक जंगल में गया और उसको मौला के सुपुर्द करके वहीं छोड़ आया कि जब मेरा बेटा जवान हो जाए तो ये उसके काम आए,वो तो मर गया और गाय जंगल में और उसका बेटा मां के पास परवरिश पाता रहा,लड़का भी नेक और परहेज़गार था जब वो बड़ा हो गया तो उसकी मां ने उससे कहा कि तेरे बाप ने उस जंगल में तेरे लिए एक गाय छोड़ी है और उसकी निशानियां बताई तू जाकर उसे ले आ,लड़का गया और पहचान कर गाय ले आया,अब उसकी मां ने कहा कि इसे बाज़ार ले जा और 3 अशर्फियों से कम में हरगिज़ न बेचना और बेचने से पहले मुझे ज़रूर बता देना,लड़का गया और उसे एक खरीदार मिला उसने कीमत पूछी इसने 3 अशर्फी बताया और मां की इजाज़त शर्त है उसने कहा कि 6 दूंगा मगर मां से ना पूछ,लड़के ने नहीं बेचा और वापस आ गया,सारा माजरा मां से कहा तो मां ने कहा कि 6 अशर्फी में बेच देना मगर सौदा होने से पहले मुझसे पूछ लेना,लड़का फिर बाज़ार गया फिर वही गाहक मिला अब उसने 12 अशर्फियां देने को कहा मगर मां से ना पूछे,लड़का फिर वापस आ गया,उसकी मां अक़लमंद थी वो समझ गयी कि ये गाहक कोई आम आदमी नहीं बल्कि फ़रिश्ता है जो इम्तिहान लेने की गर्ज़ से आया है,उसने लड़के को फिर बाज़ार भेजा और कहा कि जाकर उनसे पूछ कि हम गाय बेचें कि रोके रहें,लड़का गया तो उस फ़रिश्ते ने कहा कि अपनी मां से कहना कि अभी जल्दी न करे कि अनक़रीब बनी इस्राईल को इस गाय की सख्त ज़रूरत पड़ने वाली है और जब वो इसको खरीदना चाहें तो कीमत ये तय करना कि पूरी खाल को सोने की अशर्फियों से भर दिया जाए,ये कहकर वो ग़ायब हो गया लड़का घर को वापस आ गया_*

*_उधर बनी इस्राईल में आबील या आमील नाम का एक शख्स था जिसकी कोई औलाद नहीं थी,उसके चचाज़ाद भाई ने जायदाद की लालच में आकर उसका क़त्ल कर दिया और उसकी लाश को दूसरी बस्ती में फेंक आया,और दूसरे दिन खुद ही उसके खून का मुद्दई बनकर बस्ती वालों पर उसके चचा के क़त्ल का मुक़दमा करके उनसे उसके खून का बदला यानि खून बहा लेना चाहा,वहां के लोगों से जब हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम ने पूछा तो उन लोगों ने साफ़ इनकार कर दिया और आपसे दुआ की दरख्वास्त की कि आपही कुछ हल फरमायें,आपने बारगाहे खुदावन्दी में दुआ की तो मौला फरमाता है कि ऐ मूसा इनसे कह कि एक गाय ज़बह करके उसका गोश्त इस मक़तूल की लाश पर मारें तो लाश खुद ही ज़िंदा होकर अपने क़ातिल का नाम बताएगी,आपने बनी इस्राईल को रब का ये फरमान सुना दिया जिस पर वो कहने लगे कि आप हमसे मज़ाक कर रहे हैं हम आपसे क़ातिल का सुराग चाह रहे हैं और आप हमें गाय ज़बह करने का हुक्म दे रहे हैं इस पर आप फरमाते हैं कि मेरे रब ने मुझे ऐसा ही हुक्म दिया है तब वो सोचने लगे की शायद ये गाय कोई ख़ास गाय होगी और उसकी निशानियां पूछने लगे तो आप फरमाते हैं कि वो ना तो बिलकुल बूढ़ी हो और ना जवान बल्कि बीच की उम्र की हो,इससे बनी इस्राईल को तशफ्फी नहीं हुई और उन्होंने उसका रंग पूछा तो आप फरमाते हैं कि उसका रंग ज़र्द है जो देखने वालों को भला मालूम होता है इस पर भी उनकी समझ में नहीं आया और जानकारी चाही तो आप फरमाते हैं कि ना तो उससे खेती सैराब की गयी हो और ना ही उसने हल चलाया हो,और ना उसके जिस्म पर कोई दाग धब्बा हो तब बनी इस्राईल कहते हैं कि अब आपने पूरी बात बतायी अब हम ऐसी गाय को ढूंढ़ लेंगे,और बिल आखिर ढूंढ़ते ढूंढ़ते वो उसी लड़के के पास पहुंच गए जब उन्होंने गाय खरीदना चाहा तो उसने वही कीमत बता दी जो फ़रिश्ते ने कही थी,चूंकि बनी इस्राईल पर इलज़ाम आयद था और उनको इस इल्ज़ाम से बचना था तो उन्होंने इतनी भारी कीमत पर वो गाय खरीद ली और उसे ज़बह करके उसका गोश्त लाश पर मारा तो बहुकमे खुदावन्दी लाश ने फ़ौरन अपने क़ातिल यानि चचाज़ाद भाई का नाम बता दिया,अब उसके क़त्ल के जुर्म में उसका क़त्ल किया गया और उधर उस लड़के को रब की अता से बेशुमार दौलत मिल गई_*

*📕 तफ़सीरे खज़ाएनुल इरफ़ान,पारा 1,स 14*
*📕 तफ़सीरे नईमी,जिल्द 1,सफह 581*
*📕 तज़किरातुल अम्बिया,सफह 324*
*📕 क्या आप जानते हैं,सफह 156*

*सबक़*

 *_हज़रत इब्ने अब्बास रज़ियल्लाहु तआला अन्हु फरमाते हैं कि नबी ने जब ये फ़रमाया कि तुम गाय ज़बह करो तो बनी इस्राईल चाहते तो कोई भी गाय ज़बह करके इतनी मुश्किलात में ना पड़ते और ना इतनी भारी कीमत पर गाय खरीदनी पड़ती मगर ये मुसीबत उन्होंने खुद मोल ली,कि जैसे जैसे नबी से सवाल करते जाते वैसे वैसे उस पर शर्तें बढ़ती जाती,लिहाज़ा किसी भी बुज़ुर्ग या वली से अगर किसी सवाल का जवाब मिल गया हो तो फ़ौरन वहां से उठ जाए और फ़िज़ूल के सवाल करके उस पर पाबंदियां ना लगवानी चाहिए_*

*_हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम का ज़माना नबी करीम सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम की विलादत से 2300 साल क़ब्ल है_*

*📕 मआरेजुन नुबुव्वत,जिल्द 2,सफ़ह 32*
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                *_जोइन_*

*_मदर्सा हनफिया वारिसुल उलूम_*
        *_9628204387_*

*_मुजीबुर्रहमान क़ादरी_*

             *_खादिम_*

*_दारूल उलूम हनफिया वारिसुल उलूम क़स्बा बेलहरा ज़िला बाराबंकी यू.पी_*





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 *_مدرسہ حنفیہ وارث العلوم_*
*_मदर्सा हनफिया वारिसुल उलूम_*


 *सिद्दीक़े अकबर*

*नाम    अब्दुल्लाह*
*लक़ब  सिद्दीक़े अकबर* 
*वालिद  अबु कहाफा* 
*वालिदा सलमा बिन्त सखर*
*विलादत हुज़ूर की विलादत से 26 महीने बाद* 
*विसाल 22/6/13 हिजरी*

*_आपका नस्ब युं है अब्दुल्लाह बिन अबु कहाफा बिन उस्मान बिन आमिर बिन उमर बिन कअब बिन सअद बिन तय्युम बिन मुर्राह बिन कअब,मुर्राह बिन कअब पर आपका नस्ब हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम से जाकर मिल जाता है_*

*_आपके बारे में मशहूर है कि आपने ज़मानये जाहिलियत में भी कभी बुत परस्ती नहीं की और ना कभी शराब पी,जब आप 4 साल के थे तो आपके बाप आपको लेकर अपने बुतों के सामने गए और उनसे कहा कि ये हमारे माबूद हैं तुम इनकी पूजा करो तो 4 साल के सिद्दीक़े अकबर उन बुतों से फरमाते हैं कि मैं भूखा हूं मुझे खाना दो मैं कुछ कहना चाहता हूं मुझसे बात करो जब उधर से कुछ जवाब नहीं आया तो आपने एक पत्थर उठाकर उस बुत पर ऐसा मारा कि वो आपके जलाल का ताब ना ला सका और चकना चूर हो गया,जब आपके बाप ने ये देखा तो आपको तमंचा मारा और घर वापस ले आये,और अपनी बीवी से सारा वाक़िया कह सुनाया तो वो फरमाती हैं कि इसे इसके हाल पर छोड़ दीजिए जब ये पैदा हुआ था तो किसी आवाज़ देने वाले ने ये कहा कि मुबारक हो तुझे कि ये मुहम्मद का रफीक़ है मुझे नहीं मालूम कि ये मुहम्मद कौन हैं_*

*_मर्दो में सबसे पहले आप ईमान लाये और सबसे पहले हुज़ूर के साथ नमाज़ पढ़ने का शर्फ आपको मिला_*

*_आपने दो मर्तबा अपनी पूरी दौलत हुज़ूर के क़दमो पर डाल दी_*

*_आपका लक़ब सिद्दीक़ होने का बड़ा मशहूर वाक़िया है कि जब हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम मेराज शरीफ से वापस आये और ये वाक़िया लोगों में बयान किया तो अबु जहल भागता हुआ अबू बक्र के पास पहुंचा और कहने लगा कि अगर कोई कहे कि मैं हालाते बेदारी में रात ही रात सातों आसमान की सैर कर आया जन्नत दोज़ख देख आया खुदा से भी मिल आया तो क्या तुम यक़ीन करोगे आपने फरमाया कि नहीं,तो कहने लगा कि जिसका तुम कल्मा पढ़ते हो वो मुहम्मद तो लोगों से यही कह रहे हैं तो आपने फरमाया कि क्या वाकई वो ऐसा कहते हैं तो अबु जहल बोला कि हां वो ऐसा ही कहते हैं तो आप फरमाते हैं कि जब वो ऐसा कहते हैं तो सच ही फरमाते हैं अब जब आपने उस वाक़िये की तस्दीक़ की तो वो मरदूद वहां से भाग निकला और उसी दिन से आपको सिद्दीक़ का खिताब मिला_*

*_आपने हुज़ूर की मौजूदगी में 17 नमाज़ों की इमामत फरमाई सिवाये सिद्दीक़े अकबर के हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम ने किसी भी सहाबी के पीछे नमाज़ नहीं पढ़ी_*

*_आपके खलीफा बनने पर सबसे पहले हज़रते उमर फारूक़ रज़ियल्लाहु तआला अन्हु ने आपकी बैयत की_*

*_जब आपने तमाम माल लुटा दिया तो फक़ीराना लिबास में बारगाहे नबवी में हाज़िर थे कि हज़रत जिब्रील अलैहिस्सलाम हाज़िर हुए और कहा कि ऐ सिद्दीक़ आप मालदार होते हुए भी ऐसे कपड़ो में क्यों है तो हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम फरमाते हैं कि उन्होंने अपना पूरा माल दीने इस्लाम पर खर्च कर दिया तो हज़रत जिब्रील फरमाते हैं कि अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त ने अबु बक्र को सलाम भेजा है और पूछा है कि क्या इस हालत में भी अबु बक्र मुझसे राज़ी हैं इतना सुनते ही हज़रते अबु बक्र सिद्दीक़ रज़ियल्लाहु तआला अन्हु वज्द में आ गए और बा आवाज़े बुलंद यही फरमाते रहे कि मैं अपने रब से राज़ी हूं मैं अपने रब से राज़ी हूं,अल्लाह अल्लाह क्या शान है सिद्दीक़े अकबर की कि खुद मौला उनसे पूछ रहा है कि क्या तुम मुझसे राज़ी हो अल्लाहो अकबर अल्लाहो अकबर_*

*_आप वो मुक़द्दस सहाबी हुए जिनकी 4 पुश्तें सहाबियत से सरफराज़ हैं,आपके वालिदैन ईमान लाये और सहाबी हुए आप खुद सहाबी हुए आपकी औलाद में मुहम्मद व अब्दुल्लाह व अब्दुर्रहमान व सय्यदना आयशा व सय्यदना अस्मा सब के सब सहाबी हुए और आपके पोते मुहम्मद बिन अब्दुर्रहमान भी सहाबी हुए,ये फज़ीलत आपके सिवा किसी को हासिल नहीं_*

*_आपका और मौला अली का हालते जनाबत में भी मस्जिद में जाना जायज़ था_*

*_2 साल 3 महीने 11 दिन आपकी खिलाफत रही_*

*_आपसे कई करामतें भी ज़ाहिर हैं,जब आपका विसाल होने लगा तो आपने अपनी प्यारी बेटी सय्यदना आयशा सिद्दीक़ा रज़ियल्लाहु तआला अंहा को बुलाया और फरमाया कि बेटी मेरा जो भी माल है उसे तुम्हारे दोनों भाई मुहम्मद व अब्दुर्रहमान और तुम्हारी दोनों बहनें हैं उनका हिस्सा क़ुरान के मुताबिक बाट देना इस पर आप फरमाती हैं कि अब्बा जान मेरी तो एक ही बहन है बीबी अस्मा दूसरी बहन कौन है तो आप फरमाते हैं कि मेरी एक बीवी बिन्त खारेजा जो कि हामिला हैं उनके बतन में एक लड़की है वो तुम्हारी दूसरी बहन है,और आपके विसाल के बाद ऐसा ही हुआ उनका नाम उम्मे कुलसुम रखा गया,इसमें आपकी 2 करामत ज़ाहिर हुई पहली तो ये कि मैं इसी मर्ज़ में इन्तेक़ाल कर जाऊंगा और दूसरी ये भी कि पैदा होने से पहले ही बता देना कि लड़का है या लड़की_*

*_आपकी उम्र 63 साल हुई आपकी नमाज़े जनाज़ा हज़रते उमर फारूक़ रज़ियल्लाहु तआला अन्हु ने पढ़ाई और खुद हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम की इजाज़त से आपको उन्ही के पहलु में दफ्न किया गया,ये आपकी शानो अज़मत है_*

*_आपकी शान को समझने के लिए ये तन्हा हदीस ही काफी है हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम फरमाते हैं कि अगर एक पलड़े में अबु बक्र का ईमान रखा जाए और दूसरे में तमाम जहान वालो का तो सिद्दीक़ का पलड़ा सबसे भारी होगा,अल्लाहो अकबर अल्लाहो अकबर,ज़रा सोचिए कि दूसरे पलड़े में तमाम जहान वालो से कौन कौन मुराद हैं अगर अम्बिया के ईमान को मुस्तसना कर भी दिया जाए तब भी क्या ये कम है कि उसी एक पलड़े में उमर फारूक़ का ईमान उस्मान ग़नी का ईमान मौला अली का ईमान तमाम 124000 सहाबा का ईमान फिर तमाम ताबईन का ईमान इमामे आज़म इमाम शाफई इमाम मालिक इमाम अहमद बिन हम्बल का ईमान फिर दुनिया भर के औलियाये कामेलीन का ईमान हुज़ूर ग़ौसे पाक का ईमान ख्वाजा ग़रीब नवाज़ का ईमान आलाहज़रत अज़ीमुल बरक़त का ईमान और क़यामत तक के पैदा होने वाले तमाम औलिया व अब्दाल व तमाम मुसलेमीन का ईमान सब एक ही पलड़े में और दूसरे में सिर्फ अबु बक्र का ईमान,फिर भी अबु बक्र का ईमान सब पर भारी,या अल्लाह कैसा ईमान था उनका,मौला से दुआ है कि अपने उसी बन्दे के ईमान का एक ज़र्रा हम तमाम सुन्नी मुसलमानों को नवाज़ दे ताकि हमारी दुनिया और आखिरत दोनों कामयाब हो जाए आमीन आमीन आमीन या रब्बुल आलमीन बिजाहिस सय्यदिल मुरसलीन सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम_*

*📕 तारीखुल खुल्फा,सफह 90--137*
*📕 शाने सहाबा,सफह 80--94*
*📕 मदरेजुन नुबूवत,जिल्द 2,सफह 914*
*📕 तफसीरे नईमी,जिल्द 2,सफह 547*
------------------------------------------------
*_हज़रत खालिद बिन वलीद_*

               *_करामत_*

 *_हज़रत खालिद बिन वलीद रज़ियल्लाहु तआला अन्हु ने मक़ामे हीरह में लश्कर के साथ पड़ाव किया,एक ईसाई पादरी अपने साथ एक खास किस्म का ज़हर जो कि बहुत खतरनाक था लेकर हज़रत की बारगाह में हाज़िर हुआ,हज़रत खालिद बिन वलीद रज़ियल्लाहु तआला अन्हु ने उससे वो ज़हर लिया और उसके सामने ही बिस्मिल्लाह शरीफ पढ़कर खा गए जब ये मंज़र उस ईसाई पादरी ने देखा तो तो अपनी क़ौम से कहा कि जो इंसान ज़हर खाकर भी ज़िन्दा खड़ा हो तो उससे जंग करना बहुत बड़ी बेवकूफी होगी लिहाज़ा भलाई इसी में है कि इनसे जंग ना करके बल्कि सुलह कर ली जाए और फिर एक बहुत बड़ा जुज़िया देकर ईसाईयों ने सुलह की,ये वाक़िया हज़रत अबू बक्र रज़ियल्लाहु तआला अन्हु की खिलाफत में पेश आया_*

*📕 करामाते सहाबा,सफह 106*
------------------------------------------------- *हज़रत इब्राहीम बिन अदहम*

 *_हज़रत इब्राहीम बिन अदहम रज़ियल्लाहु तआला अन्हु एक बादशाह थे मगर खुदा की इबादत के लिए सब कुछ तर्क कर दिया,एक रोज़ आप दरिया किनारे बैठे हुए अपना पैराहन सिल रहे थे कि उधर से एक शख्स का गुज़र हुआ आपको इस हाल में देखकर बोला कि आपने सल्तनत खोकर क्या हासिल किया,आपने फौरन ही अपनी सुई दरिया में डाल दी और आवाज़ लगाई कि ऐ मछलियों मेरी सुई ढ़ूढ़ंकर लाओ आपके इतना कहते ही हजारों मछलियां तरह तरह की सुई लेकर हाज़िर हुईं जिनमें सोने चांदी की भी बहुत सारी सुई थी,आपने उनसे फरमाया कि मुझे मेरी सुई लाकर दो तब एक छोटी मछली आपकी सुई लेकर हाज़िर हुई और और आपको पेश की,जब उस शख्स ने ये माजरा देखा तो हैरान रह गया,हज़रत इब्राहीम बिन अदहम रज़ियल्लाहु तआला अन्हु फरमाते हैं कि अब बताओ ये हुकूमत अच्छी है या वो हुकूमत अच्छी थी_* 

*📕 सच्ची हिकायत,सफह 464*

*हुज़ूर हाफिज़े मिल्लत हज़रत अल्लामा शाह अब्दुल अज़ीज़ मुहद्दिस* 
*_अलैहिर्रहमा से जब हज पर जाने के लिए लोगों ने बहुत इसरार किया तो आपने फरमाया कि "सरकार की बारगाह में उनके एहकाम की खिलाफ वर्ज़ी करके जाना मेरे बस की बात नहीं अगर उन्हें बुलाना है तो कोई जायज़ व मुस्तहसन सबील फरमायेंगे फिर सर के बल हाज़िर हो जाऊंगा" यानि हज के लिए भी आपने फोटो खिंचाना पसंद नहीं किया,लोगों ने कहा कि हज़रत पासपोर्ट पर फोटो के ज़माने में ये तो ऐसा ही मुहाल है जैसा कि पश्चिम से सूरज का निकलना,तो हुज़ूर हाफिज़े मिल्लत अलैहिर्रहमा फरमाते हैं कि ये उनके लिए मुहाल नहीं है बल्कि वो तो मक़ामे सहबा में सूरज को पहले ही पश्चिम से निकाल चुके हैं और जो एक बार कर सकता है तो हज़ार बार कर सकता है,आपके इस क़ौल पर लोगों को तब यक़ीन हुआ जब आपको बिना फोटो खिंचाये हज के लिए जाने की इजाज़त मिल गई_* 

*📕 ज़िक्रुस सालेहीन,सफह 94*
-------------------------------------------------
 *मौलाना रज़ा अली खान* 

*_आप आलाहज़रत अज़ीमुल बरकत रज़ियल्लाहु तआला अन्हु के दादा हैं_*

*_आप 1224 हिजरी में पैदा हुए और 1286 हिजरी में विसाल हुआ_*

*_आपके वालिद हज़रत हाफिज़ काज़िम अली खान जो कि मुग़लिया सल्तनत में शहरे बदायुं के तहसील दार थे जो कि आज कल के हिसाब से कलेक्टर के क़ायम मक़ाम हुआ,200 घुड़सवारों की फौज आपकी खिदमत में हर वक़्त हाज़िर रहती_*

*_आप एक आरिफे कामिल और बा करामत बुज़ुर्ग थे,आपकी चन्द करामतें दर्ज करता हूं_*

*_! आपका गुज़र एक मर्तबा कूचा सीताराम की तरफ से हुआ,होली का ज़माना था अचानक एक औरत ने आप पर रंग डाल दिया साथ चल रहे एक मुसलमान ने जब उसको सज़ा देनी चाही तो आपने फरमाया रहने दो जैसे उसने मुझे रंगा है मौला उसको रंग देगा,आपका इतना कहना था कि वो औरत फौरन आपके क़दमो में गिर गयी माफी मांगी और वहीं मुसलमान हो गयी,हज़रत ने उसका निकाह उसी मुसलमान से करा दिया_*

*_! मोहल्ला सौदागरान के जनाब वारिस अली खान साहब एक मर्तबा हाज़िरे बरगाह होकर आपसे कुछ क़र्ज़ ले गए,आपने उन्हें दे तो दिया मगर कह दिया की फिज़ूल खर्च ना किया जाए,वो साहब आज़ाद ख्याल के थे पैसा लेकर फौरन एक तवायफ के कोठे की तरफ चल दिए जैसे ही ज़ीने पर पहुंचे देखा कि हज़रत छतरी लिए खड़े हुए हैं वापस हुए,इस तरह कई और जगहों पर पहुंचे मगर हर जगह हुज़ूर को खड़ा पाया,आखिर में थक हार कर वापस आ गए और खिदमत में हाज़िर होकर सिद्क़ दिल से माफी मांगी_*

*_! एक हिंदू लड़का मुसलमान लड़की पर आशिक हो गया,जब हज़रत की बारगाह में अरीज़ा आया तो आपने उसको मना फरमाया इस पर वो नहीं माना और हज़रत पर तलवार से हमला कर दिया जिसमे आपको कुछ चोट भी आई,मुसलमानों ने उसको खूब पीटा आपने उन सबको मना किया कि इसकी सज़ा मेरा रब ही देगा,चुनांचे जब तक वो ज़िंदा रहा पागलों की तरह मारा मारा फिरता रहा यहां तक की नालियों से पानी पीते तक देखा गया और इसी तरह मरा_*

*_! 1857 में हिंदुस्तान पर अंग्रेज़ो का तसल्लुत के ज़माने में मुसलमानों पर बहुत सख्ती की गयी यहां तक की कई मुसलमान डर के मारे अपने मकान तक छोड़ गए,मगर हज़रत अपने मकान में ही रहे और बा क़ायदा मस्जिद में नमाज़ अदा करते थे,एक मर्तबा हज़रत मस्जिद में नमाज़ अदा फरमा रहे थे कि अचानक वहां से कुछ अंग्रेज़ टुकड़ियों का गुज़र हुआ उन लोगों ने सोचा कि मस्जिद में देखा जाए अगर कोई मिला तो सज़ा देंगे,ये सोचकर कई लोग मस्जिद में दाखिल हुए इधर उधर देखा मगर कोई ना मिला सब वापस हो गए,हालांकि हज़रत मस्जिद में ही तशरीफ फरमा थे मगर उनकी आंखों को मौला तआला ने हज़रत को देखने से अंधा कर दिया_*

*_! आज भी मस्जिदों में जिस खुत्बए इल्मी किताब से खतीब खुत्बा पढ़ते हैं वो किताब हज़रत अल्लामा हसन साहब इल्मी की तहरीर करदा है,और ये हज़रत मौलाना रज़ा अली खान रहमतुल्लाह तआला अलैहि के ही मुरीद व शागिर्द थे_* 

*📕 हयाते आलाहज़रत,जिल्द 1,सफह 84--87*

---------------------------------------------- *इमाम गज़ाली* 

*_हुज्जतुल इस्लाम इमाम मुहम्मद गज़ाली रज़ियल्लाहु तआला अन्हु शहरे तूस के कस्बा गज़ाल में 450 हिजरी बमुताबिक 1058 ईसवी में पैदा हुए_*

*_आपके वालिद हज़रत मुहम्मद बिन मुहम्मद का विसाल 465 हिजरी में हुआ उस वक़्त आपकी उम्र 15 साल और आपके भाई इमाम हामिद गज़ाली 12 या 13 साल के थे_*

*_आपने इब्तिदाई तालीम तूस के ही एक मदरसे में हासिल की फिर आप हज़रत इमाम अबू नस्र इस्माईली की बारगाह में कुछ साल रहे और उसके बाद तमाम उलूम फुनून आपने इमामुल हरमैन हज़रत अल्लामा अबुल मआलि जीवनी से हासिल किये_*

*_आप शाफई मज़हब रखते थे_*

*_आपकी लिखी हुई किताबों की तादाद 200 से ज़्यादा बताई जाती है जिसमे सबसे बुलंद अहयाउल उलूम फिर कीमियाये सआदत,मुक़ाशिफातुल क़ुलूब,मिनहाजुल आबेदीन सरे फेहरिस्त है_*

*_आपको 5वीं सदी हिजरी का मुजद्दिद भी तस्लीम किया गया है_*

*_आप और आपके भाई दोनों हज़रात ही साहिबे करामत बुज़ुर्ग हुए हैं,एक मर्तबा किसी इख्तिलाफ की वजह से आपके छोटे भाई इमाम हामिद गज़ाली ने आपके पीछे नमाज़ पढ़ना छोड़ दिया,जब लोगों ने लअन तअन शुरू किया कि भाई ही भाई के पीछे नमाज़ नहीं पढ़ रहा तो कुछ तो राज़ होगा तो ये शिकायत लेकर आप अपनी वालिदा के पास गए और अपने छोटे भाई की शिकायत की,जिस पर आपकी वालिदा ने उनको बुलाकर तंबीह की और उनके पीछे नमाज़ पढ़ने को कहा,उसके बाद इमाम हामिद गज़ाली आपके पीछे नमाज़ को खड़े हुए क़याम और रुकू तक तो साथ रहे फिर अचानक नमाज़ तोड़कर मस्जिद से चले गए,अब तो लोगों ने पहले से भी ज़्यादा बुरा हाल कर दिया फिर आप अपनी मां के पास पहुंचे और पूरी बात बताई उन्होंने फिर उनको बुलवाया और उनका नमाज़ तोड़कर जाने की वजह पूछी,जिस पर वो फरमाते हैं कि ये नमाज़ में खुशु व खुज़ु नहीं रखते हैं बल्कि दीनी मसायल में उलझे रहते हैं आज भी तलाक़ के मसले को ये नमाज़ में हल कर रहे थे इसलिए मैंने नमाज़ तोड़ दी,तो आपकी वालिदा फरमाती हैं कि अगर यही बात है कि उसका ख्याल नमाज़ में नहीं रहता बल्कि मसायल को हल करने में लगा रहता है तब तो तुम उससे भी ज़्यादा बुरे हो क्योंकि वो तो सिर्फ मसायल का हल ही ढूंढता है मगर तुम तो अपने ख्याल को लागों की तरफ मुतवज्जह करते हो कि कौन क्या सोच रहा है तो अब तुम बताओ कि कौन ज़्यादा सही है,फिर आपने उनको ताक़ीद की कि अब से तुम इन्ही के पीछे नमाज़_* 
*_पढ़ोगे और इमाम मुहम्मद गज़ाली से भी नमाज़ में खुशु व खुज़ु रखने का हुक्म दिया_*

*_आपके ज़माने में आपके काफी मुखालिफ हो गए थे और आपके खिलाफ किताब तक लिखी गयी,ऐसी ही एक किताब को हज़रत अबु अब्दुल्लाह बिन ज़ैन अशबिलीया जो कि बुज़ुर्ग हस्ती तस्लीम किये जाते थे पढ़ ली जिससे की उनकी आंखों की रौशनी चली गयी,फिर जब आपने बारगाहे खुदावन्दी में खूब तौबा की और वो किताब ना पढ़ने की कसम खाई तब आपकी आंखों की रौशनी वापस आई_*

*_हज़रत इमाम शाज़ली रहमतुल्लाह तआला अलैहि का बयान है कि मैंने ख्वाब में हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम की ज़ियारत की इस तरह कि आप हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम और हज़रत ईसा अलैहिस्सलाम पर इमाम गज़ाली की ज़ात से फख्र फरमा रहे हैं और दोनों से पूछा कि क्या तुम्हारी उम्मत में इमाम गज़ाली की कोई मिसाल है तो दोनों हज़रात फरमाते हैं कि नहीं_*

*सुब्हान अल्लाह*

*_आपका विसाल 55 साल की उम्र में यानि 14 जमादिल आखिर 505 हिजरी पीर के दिन सुबह के वक़्त हुआ और आपको शायरे ईरान फिरदौसी के बगल में दफन किया गया_*

*📕 मुक़ाशिफातुल क़ुलूब,सफह 19--39*
*📕 जामेय करामाते औलिया,जि 1,स 501*
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                 *_जोइन_*

*_मदर्सा हनफिया वारिसुल उलूम_*
       *_9628204387_*

*_मुजीबुर्रहमान क़ादरी_*

           *_खादिम_*

*_दारूल उलूम हनफिया वारिसुल उलूम क़स्बा बेलहरा ज़िला बाराबंकी यू.पी_*







POST=47


 *_مدرسہ حنفیہ وارث العلوم_*
*_मदर्सा हनफिया वारिसुल उलूम_*


             *_झूठ बोलना_*


*ये भी एक अलमिया है कि मुसलमान झूट बोलकर या धोखा देकर अपने भाई को बेवकूफ बनाता है और उसपे फख्र करता है कि मैंने फलां को बेवकूफ बनाया हालांकि झूट बोलना और धोखा देना दोनों ही हराम काम  है,जैसा कि हदीसे पाक में मज़कूर है हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम इरशाद फरमाते हैं कि*

*_जिस के अन्दर ये बातें पायी जाए यानि जब बात करे तो झूट बोले वादा करे तो पूरा ना करे और अमानत रखी जाए तो उसमे खयानत करे तो वो खालिस मुनाफिक़ है अगर चे वो नमाज़ पढ़े रोज़ा रखे और मुसलमान होने का दावा करे_*

*📕 मुस्लिम,जिल्द 1,सफह 56*

*_बेशक झूट गुनाह की तरफ ले जाता है और गुनाह जहन्नम में_*

*📕 बुखारी,जिल्द 2,सफह 900*

*_उस शख्स के लिए खराबी है जो किसी को हंसाने के लिए झूट बोले_*

*📕 अत्तर्गीब वत्तर्हीब,जिल्द 3,सफह 599*

*_झूटा ख्वाब बयान करना सबसे बड़ा झूट है_*

*📕 मुसनद अहमद,जिल्द 1,सफह 96*

*_मोमिन की फितरत में खयानत और झूट शामिल नहीं हो सकती_* 

*📕 इब्ने अदी,जिल्द 1,सफह 44*

*_झूटे के मुंह को लोहे की सलाखों से गर्दन तक फाड़ा जायेगा_* 

*📕 बुखारी,जिल्द 2,सफह 1044*

*अब कुछ हुक्म क़ुरान से भी पढ़ लीजिए* 

*_झूटों पर अल्लाह की लानत है_*

*📕 पारा 3,सूरह आले इमरान,आयत 61*

*_बेशक अल्लाह उसे राह नहीं देता जो हद से बढ़ने वाला बड़ा झूटा हो_*

*📕 पारा 24,सूरह मोमिन,आयत 28*

*_मर जाएं दिल से तराशने वाले (यानि झूट बोलने वाले)_* 

*📕 पारा 26,सूरह ज़ारियात,आयत 10*

*_झूट और बोहतान वही बांधते हैं जो अल्लाह की आयतों पर ईमान नहीं रखते_*

*📕 पारा 14,सूरह नहल,आयत 105*

*और वादे के ताल्लुक़ से अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त क़ुरान में इरशाद फरमाता है* 

*_और वादा पूरा करो कि बेशक क़यामत के दिन वादे की पूछ होगी_*

*📕 पारा 15,सूरह असरा,आयत 34* 

*_ऐ ईमान वालो वादों को पूरा करो_* 

*📕 पारा सूरह मायदा,आयत 1*

*ज़रा गौर कीजिये कि किस क़दर इताब की वईद आयी है झूट बोलने और धोखा देने के बारे में,हंसी मज़ाक करना या दिल बहलाना हरगिज़ गुनाह नहीं बस शर्त ये है कि झूट ना बोला जाए और किसी का दिल ना दुखाया जाए,हां मगर तीन जगह झूट बोलना जायज़ है*

*_1. जंग मे - दुश्मन पर रौब तारी करने के लिये कहा कि हमरी इतनी फौज और आ रही है या दुश्मनों की फौज मे भगदड़ मचाने के लिये अफवाह उड़ा दी कि उनका सिपाह सालार मारा गया वगैरह वगैरह_*

*_2. दो मुसलमानों के बीच सुलह कराने मे - एक दूसरे से दोनो की झूटी तारीफ की कि वो तो तुमहारी बड़ी तारीफ कर रहा था इस तरह दोनो को मिलाना_*

*_3. शौहर का बीवी से - बीवी नाराज़ हो गयी तो उसको मनाने की गर्ज़ से कह दिया कि मैं तुम्हारे लिये ये ले आऊंगा वो ले आऊंगा या उसके पूछने पर कि कैसी लग रही हूं तो अगर चे अच्छी नहीं भी लग रही थी कह दिया कि बहुत अच्छी लग रही हो वगैरह वगैरह_*

*📕 तिर्मिज़ी,जिल्द 4,हदीस 1939*

*इस्लाम में तफरीहात हरगिज़ मना नहीं बल्कि रसूल अल्लाह सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम से साबित है,पढ़िए*

*_एक मर्तबा एक ज़ईफा बारगाहे नबवी में आईं और कहने लगी कि हुज़ूर मेरे लिए दुआ फरमा दें कि अल्लाह मुझे जन्नत में दाखिल करे,आप सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम ने उससे फरमाया कि कोई बुढ़िया जन्नत में  नहीं जाएगी,इस पर वो रोने लगी तो आपने मुस्कुराते हुए फरमाया कि ऐ अल्लाह की बन्दी मेरे कहने का ये मतलब है कि कोई बूढ़ी औरत जन्नत में नहीं जाएगी बल्कि हर बूढ़ी को जवान बनाकर जन्नत में भेजा जायेगा,तो वो खुश हो गयी इसी तरह एक सहाबी हाज़िर हुए और सवारी के लिए ऊंट मांगा तो आप फरमाते हैं कि मैं ऊंटनी का बच्चा दूंगा तो वो कहते हैं कि हुज़ूर मैं बच्चे पर सवारी कैसे करूंगा तो आप मुस्कुराकर फरमाते हैं कि ऊंट भी तो ऊंटनी का बच्चा ही होता है ऐसे ही कई सच्ची तफरीहात अम्बिया व औलिया व सालेहीन से मनक़ूल है_*

*📕 रूहानी हिकायत,सफह 151*

*_एक फक़ीह किसी के घर में किराए पर रहते थे,मकान बहुत पुराना और बोसीदा था अकसर दीवारों और छतों से चिड़चिड़ाने की आवाज़ आती रहती थी,एक दिन जब मकान मालिक किराया लेने के लिए आये तो$ फक़ीह साहब ने फरमाया कि पहले मकान तो दुरुस्त करवाइये तो कहने लगे कि अजी अल्लामा साहब आप बिल्कुल न डरें ये दीवार और छत तस्बीह करती रहती है उसकी आवाज़ें हैं,तो फक़ीह बोले कि तस्बीह तक तो गनीमत है लेकिन अगर किसी रोज़ आपकी दीवार और छत पर रिक़्क़त तारी हो गयी और वो सजदे में चली गयी तब क्या होगा_* 

*📕 मुस्ततरफ,सफह 238*

*कहने का मतलब सिर्फ इतना है की हंसी मज़ाक करिये बिल्कुल करिये मगर झूट ना बोलिये गाली गलौच ना कीजिये और ना किसी की दिल आज़ारी कीजिये,मौला से दुआ है कि हम सबको हक़ सुनने हक़ समझने और हक़ पर चलने की तौफीक अता फरमाये-आमीन*
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                *_जोइन_*

*_मदर्सा हनफिया वारिसुल उलूम_*
      *_9628204387_*

*_मुजीबुर्रहमान क़ादरी_*

            *_खादिम_*

*_दारूल उलूम हनफिया वारिसुल उलूम क़स्बा बेलहरा ज़िला बाराबंकी यू.पी_*







POST=48


 *_مدرسہ حنفیہ وارث العلوم_*
*_मदर्सा हनफिया वारिसुल उलूम_*


             *बिदआत व मुनकिरात*


*_मर्द का कांधे तक बाल रखना सुन्नत से साबित है मगर इससे ज़्यादा बढ़ाना हराम है_*

*📕 अहकामे शरीयत,हिस्सा 1,सफह 127*

*_खुत्बे से पहले या बाद में उर्दू में उसका तर्जुमा बयान करना खिलाफ़े सुन्नत है_* 

*📕 रद्दे बिदआत व मुनकिरात,सफह 298*

*_जिस निक़ाह में मीयाद तय हो मसलन कुछ दिन या महीने या साल के लिए निकाह होता हो ये हराम है_*

*📕 फतावा अफ्रीका,सफह 51*

*_एक हाथ से मुसाफा करना नसारा का तरीक़ा है मुसाफ दोनों हाथों से करना ही सुन्नत है_*

*📕 बुखारी,जिल्द 2,सफह 926*

*_ईमान और कुफ्र में कोई वास्ता नहीं मतलब ये कि या तो आदमी मुसलमान होगा या काफ़िर बीच की कोई राह नहीं_*

*📕 बहारे शरीयत,हिस्सा 1,सफह 54*

*_मर्द को 4.3 ग्राम चांदी से कम की एक अंगूठी एक नग की पहनना ही जायज़ है औरतों के लिए सोने चांदी में कोई क़ैद नहीं_*

*📕 फतावा रज़वियह,जिल्द 9,सफह 56*

*_आलिम की तारीफ़ ये है कि अक़ायद का पूरा इल्म रखता हो और उस पर मुस्तक़िल हो और अपनी ज़रूरत के मसायल को किताबों से बग़ैर किसी की मदद के निकाल सके अगर ऐसा नहीं है तो वो आलिम नहीं और ऐसे को तक़रीर करना हराम है_*

*📕 अलमलफूज़,हिस्सा 1,सफह 7*

*_मर्द या औरत का नसबंदी करा लेना हराम और सख्त हराम है_*

*📕 फतावा मुस्तफवियह,सफह 530*

*_अगर मुसलमान किसी काफिर या मुनाफिक़ के मरने पर उसे मरहूम या स्वर्गवासी कहे या उसकी मग़फिरत की दुआ करे तो खुद काफिर है_* 

*📕 बहारे शरीयत,हिस्सा 1,सफह 55*

*_जो ये अक़ीदा रखे कि हम काबे को सजदा करते हैं काफिर है कि सजदा सिर्फ खुदा को है और काबा इमारत है खुदा नहीं_*

*📕 फतावा मुस्तफविया,सफह 14*

*_ग़ैर मुस्लिमों के त्योहारों में शामिल होना हराम है और अगर माज़ अल्लाह उनकी कुफ्रिया बातों को पसंद करे या सिर्फ हल्का ही जाने जब तो काफ़िर है_*

*📕 इरफाने शरीयत,हिस्सा 1,सफह 27* 

*_आखिर ज़माने में आदमी को अपना दीन संभालना ऐसा दुश्वार होगा जैसे हाथ में अंगारा लेना दुश्वार होता है_*

*📕 कंज़ुल उम्माल,जिल्द 11,सफह 142*

*_आखिर ज़माने में आदमी सुबह को मोमिन होगा और शाम होते होते काफिर हो जायेगा_*

*📕 तिर्मिज़ी,जिल्द 2,सफह 52*

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             *_जोइन_*

*_मदर्सा हनफिया वारिसुल उलूम_*
       *_9628204387_*

*_मुजीबुर्रहमान क़ादरी_*

             *_खादिम_*

*_दारूल उलूम हनफिया वारिसुल उलूम क़स्बा बेलहरा ज़िला बाराबंकी यू.पी_*







POST=49


 *_مدرسہ حنفیہ وارث العلوم_*
*_मदर्सा हनफिया वारिसुल उलूम_*


                  *ख्वाजा ग़रीब नवाज़* 


*_ख्वाजये हिन्द वो दरबार है आला तेरा_* 
*_कभी महरूम नहीं मांगने वाला तेरा_*

*_नाम - मोइन उद्दीन हसन_*

*_लक़ब - हिन्दल वली,गरीब नवाज़_*

*_वालिद - सय्यद गयास उद्दीन हसन_*

*_वालिदा - बीबी उम्मुल वरा  (माहे नूर)_*

*_विलादत - 530 हिजरी,खुरासान_*

*_विसाल - 6 रजब 633 हिजरी,अजमेर शरीफ_*

*_वालिद की तरफ से आपका सिलसिलए नस्ब इस तरह है मोइन उद्दीन बिन गयास उद्दीन बिन नजमुद्दीन बिन इब्राहीम बिन इदरीस बिन इमाम मूसा काज़िम बिन इमाम जाफर सादिक़ बिन इमाम बाक़र बिन इमाम ज़ैनुल आबेदीन बिन सय्यदना इमाम हुसैन बिन सय्यदना मौला अली रिज़वानुल लाहे तआला अलैहिम अजमईन_*

*_वालिदा की तरफ से आपका नस्ब नामा युं है बीबी उम्मुल वरा बिन्त सय्यद दाऊद बिन अब्दुल्लाह हम्बली बिन ज़ाहिद बिन मूसा बिन अब्दुल्लाह मखफी बिन हसन मुसन्ना बिन सय्यदना इमाम हसन बिन सय्यदना मौला अली रिज़वानुल लाहे तआला अलैहिम अजमईन,गोया कि आप हसनी हुसैनी सय्यद हैं_*

*📕 तारीखुल औलिया,सफह 74*

*_मसालेकस सालेकीन में हैं कि आप और हुज़ूर ग़ौसे पाक रज़ियल्लाहु तआला अन्हु आपस में खाला ज़ाद भाई हैं और वहीं सिर्रूल अक़ताब की रिवायत है कि ख्वाजा गरीब नवाज़ एक रिश्ते से हुज़ूर ग़ौसे पाक रज़ियल्लाहु तआला अन्हु के मामू होते हैं_*

*📕 मसालेकस सालेकीन,जिल्द 2,सफह 271*
*📕 सिर्रूल अक़ताब,सफह 107*

*_आपकी वालिदा फरमाती हैं कि जिस दिन से मेरे शिकम में मोइन उद्दीन के जिस्म में रूह डाली गयी उस दिन से ये मामूल हो गया कि रोज़ाना आधी रात के बाद से सुबह तक मेरे शिकम से तस्बीह व तहलील की आवाज़ आती रहती,और जब आपकी विलादत हुई तो पूरा घर नूर से भर गया,आपके वालिद एक जय्यद आलिम थे आपकी इब्तेदाई तालीम घर पर ही हुई यहां तक कि 9 साल की उम्र में आपने पूरा क़ुरान हिफ्ज़ कर लिया,मां का साया तो बचपन में ही उठ गया था और 15 साल की उम्र में वालिद का भी विसाल हो गया_*

*📕 मीरुल आरेफीन,सफह 5*

*_वालिद के तरके में एक पनचक्की और एक बाग़ आपको मिला जिससे आपकी गुज़र बसर होती थी,एक दिन उस बाग़ में दरवेश हज़रत इब्राहीम कन्दोज़ी आये गरीब नवाज़ ने उन्हें अंगूर का एक खोशा तोड़कर दिया,हज़रत इब्राहीम सरकार गरीब नवाज़ को देखकर समझ गए कि इन्हें बस एक रहनुमा की तलाश है जो आज एक बाग़ को सींच रहा है कल वो लाखों के ईमान की हिफाज़त करेगा,आपने फल का टुकड़ा चबाकर गरीब नवाज़ को दे दिया जैसे ही सरकार गरीब नवाज़ ने उसे खाया तो दिल की दुनिया ही बदल गयी,हज़रत इब्राहीम तो चले गए मगर दीन का जज़्बा ग़ालिब आ चुका था आपने बाग़ को बेचकर गरीबो में पैसा बांट दिया,खुरासान से समरक़न्द फिर बुखारा इराक पहुंचे और अपने इल्म की तकमील की_*

*📕 अहसानुल मीर,सफह 134*

*_आप एक मर्शिदे हक़ की तलाश में निकल पड़े और ईरान के निशापुर के क़रीब एक बस्ती है जिसका नाम हारूनाबाद है,जब आप वहां पहुंचे तो हज़रत ख्वाजा उस्मान हारूनी रज़ियल्लाहु तआला अन्हु को देखा और उन्होंने आपको,मुर्शिदे बरहक़ ने देखते ही फरमाया कि आओ बेटा जल्दी करो मैं तुम्हारा ही इंतेज़ार कर रहा था अपना हिस्सा ले जाओ हालांकि इससे पहले दोनों की आपस में कभी कोई मुलाक़ात नहीं हुई थी,खुद सरकार गरीब नवाज़ रज़ियल्लाहु तआला अन्हु फरमाते हैं कि "जब मैं उस महफिल में पहुंचा तो बड़े बड़े मशायख बैठे हुए थे  मैं भी वहीं जाकर बैठ गया तो हज़रत ने फरमाया कि 2 रकात नमाज़ नफ्ल पढ़ो मैंने पढ़ा फिर कहा किबला रु होकर सूरह बक़र की तिलावत करो मैंने की फिर फरमाया 60 मर्तबा सुब्हान अल्लाह कहो मैंने कहा फिर मुझे एक चोगा पहनाया और कलाह मेरे सर पर रखी और फरमाया कि 1000 बार सूरह इखलास पढ़ो मैंने पढ़ी फिर फरमाया कि हमारे मशायख के यहां फक़त एक दिन और रात का मुजाहदा होता है तो करो मैंने दिन और रात नमाज़ों इबादत में गुज़ारी,दूसरे रोज़ जब मैं हाज़िर हुआ क़दम बोसी की तो फरमाया कि ऊपर देखो क्या दिखता है मैंने देखा और कहा अर्शे मुअल्ला फिर फरमाया नीचे क्या दिखता है मैंने देखा और कहा तहतुस्सरा फरमाते हैं अभी 12000 बार सूरह इखलास और पढ़ो मैंने पढ़ी फिर पूछा कि अब क्या दिखता है मैंने कहा कि अब मेरे सामने 18000 आलम हैं फरमाते हैं कि अब तेरा काम हो गया" उसके बाद भी सरकार गरीब नवाज़ 20 साल तक अपने मुर्शिद के साथ ही रहें_* 

*📕 अनीसुल अरवाह,सफह 9*
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               *_जोइन_*

*_मदर्सा हनफिया वारिसुल उलूम_*
      *_9628204387_*

*_मुजीबुर्रहमान क़ादरी_*

            *_खादिम_*

*_दारूल उलूम हनफिया वारिसुल उलूम क़स्बा बेलहरा ज़िला बाराबंकी यू.पी_*







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 *_مدرسہ حنفیہ وارث العلوم_*
*_मदर्सा हनफिया वारिसुल उलूम_*


                *हिस्सा-6*

                   *शादी*


            *औलाद और उसकी तरबियत*


*_जो औरत हमल की तकलीफ बर्दाश्त करती है उसे सारी रात नमाज़ पढ़ने का और हर दिन रोज़ा रखने का सवाब मिलता है और वो उस मुजाहिद की तरह है जो जिहाद में है और दर्दे ज़ह के हर झटके पर एक ग़ुलाम आज़ाद करने का अज्र मिलता है_*

*📕 ग़ुनियतुत तालिबीन,सफह 113*

*_हामिला औरत को चाहिए कि हमेशा खुश रहे,रोज़ाना ग़ुस्ल करे,पाक साफ कपड़े पहने,ग़िज़ा हलकी मगर मुक़व्वी खाये,खूबसूरत तस्वीरें देखें,बे वक़्त खाने पीने या सोने जागने से परहेज़ करे,फलों का इस्तेमाल ज़्यादा करे खासकर संगतरा कि संगतरा खाने से बच्चा खूबसूरत होगा,नमाज़ पढ़ना ना छोड़े और क़ुरान की तिलावत करती रहे खुसूसन सूरह मरियम की,अगर चाहते हैं कि आपका बच्चा आपका फरमाबरदार रहे तो सबसे पहले आपको नेक बनना पड़ेगा क्या सुना नहीं कि हुज़ूर ग़ौसे पाक रज़ियल्लाहु तआला अन्हु मां के पेट में ही 18 पारे के हाफिज़ हो गए थे मतलब साफ है आप जो भी करेंगे उसका सीधा असर आपके बच्चे पर पड़ेगा लिहाज़ा झूट चुग़ली बदनज़री गाना बजाना गाली गलौच हराम ग़िज़ा से परहेज़ी और तमाम मुंकिराते शरइया से बचें_*

*📕 सलीकये ज़िन्दगी,सफह 50*

*_बच्चा कभी मां के मुशाहबे होता है तो कभी बाप के ऐसा इसलिए होता है कि औरत के रहम में 2 खाने होते हैं,दायां लड़के के लिए और बायां लड़की के लिए,तो अगर मर्द का नुत्फा ग़ालिब आया और सीधे खाने में पड़ा तो लड़का होगा और उसकी आदत व चाल-ढाल मर्दाना ही होंगे लेकिन अगर मर्द का नुत्फा ग़ालिब तो आया मगर बाएं खाने में गिरा तो सूरतन तो लड़का होगा मगर उसके अंदर औरतों की खसलत मौजूद होगी मसलन दाढ़ी मुंडाना ज़ेवर पहनना हाथ पैर में मेंहदी लगाना औरतों जैसे बाल रखना जूड़ा बांधना यानि उसको औरतों की वज़अ कतअ बनाने का बड़ा शौक़ होगा युंही अगर औरत का नुत्फा ग़ालिब आया और बाएं खाने में गिरा तो ज़हिरो बातिन में लड़की ही होगी लेकिन अगर औरत का नुत्फा ग़ालिब तो आया मगर रहम के दाहिने खाने में रुका तो जब तो सूरतन लड़की होगी मगर उसके अंदर मरदाना खसलत पाई जायेगी मसलन घोड़ा चलाना बाईक चलाना मर्दाने कपड़े व जूते पहनना मर्दों की तरह छोटे छोटे बाल रखना बोल चाल में भी मरदाना पन रहेगा_*

*📕 फतावा रज़वियह,जिल्द 9,सफह 362*

*_बच्चा मां और बाप दोनो का होता है मतलब उसकी हड्डियां मर्द के नुत्फे से बनती है और गोश्त वगैरह औरत के नुत्फे से_*

*📕 क्या आप जानते हैं,सफह 607*

*_हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम इरशाद फरमाते हैं की "बेशक औलाद की खुशबु जन्नत की खुशबु है_*

*📕 मुकाशिफातुल क़ुलूब,सफह 515*

*_और फरमाते हैं कि "निकाह करो कि मैं तुम्हारी कसरत पर फख्र करूंगा यानि ज़्यादा बच्चे पैदा करो, मगर यहां तो हाल ही अलग है पहले तो हम 2 हमारे 2 का नारा हुआ करता था और आज कल हम 1 हमारा 1 फैशन में है,माज़ अल्लाह_*

*📕 मुसनदे इमाम आज़म,सफह 208*

*_लड़की पैदा होना बाईसे बरक़त है जैसा कि हदीसे पाक में आता है कि हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम इरशाद फरमाते हैं "जिसके बेटियां हों और वो उनकी अच्छी तरह परवरिश करे तो क़यामत के दिन वो और मैं इतने पास होंगे फिर आपने अपनी उंगलियां मिलाकर दिखाया कि इस तरह_*

*📕 मुस्लिम,जिल्द 2,सफह 330*

*_जिसकी 1 या 2 या 3 बेटियां या बहने हों और वो उनकी परवरिश करे यहां तक कि उनकी शादियां करा दे तो उस पर जन्नत वाजिब है_*

*📕 मिश्कात,सफह 423*

*_सुब्हान अल्लाह ये रिवायत पढ़िए हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम इरशाद फरमाते हैं कि "जिस घर में लड़कियां होती हैं तो आसमान से रोज़ाना उस घर पर 12 रहमतें नाज़िल होती है और उस घर की फरिश्ते ज़ियारत करते हैं और उस लड़की के मां बाप के नामये आमाल में रोज़ाना साल भर की इबादत का सवाब लिखा जाता है अल्लाहो अकबर_*

*📕 नुज़हतुल मजालिस,जिल्द 2,सफह 83*

*_लड़कियों की पैदाईश पर नाखुश होना काफिरों का तरीका है जैसा कि मौला तआला फरमाता है कि "और जब उनमें से किसी को बेटी होने की खुश खबरी दी जाती है तो दिन भर उसका मुंह काला रहता है_*
*_और गुस्सा खाता है_*

*📕 पारा 14,सूरह नहल,आयत 58*

*_जब बच्चे की विलादत हो तो उसे फौरन ग़ुस्ल देकर सीधे कान में अज़ान कही जाए और बाएं कान में तकबीर,बेहतर है कि अज़ान 4 बार कहें और तकबीर 3 बार,और कोई मुत्तक़ी परहेज़गार शख्स  खजूर चबाकर बच्चे के मुंह में डाले कि हदीसे पाक में आता है कि बच्चे को पहली घुट्टी देने वाले का असर बच्चे पर आता है इसीलिए सहाबा इकराम अपने मौलूद बच्चों को लेकर हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम की बारगाह में आते और हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम उनके मुंह में अपना लोआबे पाक डाल देते_*

*📕 फतावा रज़वियह,जिल्द 9,सफह 46*

*_सातवें दिन बच्चे का अक़ीक़ा किया जाए उसका बाल मूंडकर उसके बराबर चांदी सदक़ा करे या उसकी कीमत और बच्चे का नाम रखे,लड़के के लिए 2 बकरे और लड़की के लिए 1 बकरी या लड़के में बकरी कर दी और लड़की में बकरा तब भी कोई हर्ज नहीं युंही 2 की जगह 1 या 1 की जगह 2 कर दिया तो भी हो जायेगा उसी तरह बड़े जानवर में हिस्सा लिया तो भी अक़ीक़ा हो जायेगा,और अक़ीक़े का गोश्त बच्चे के मां बाप दादा दादी नाना नानी सब खा सकते हैं_*

*📕 बहारे शरीयत,हिस्सा 15,सफह 154*

*_जो औरतें बच्चों को अपना दूध नहीं पिलाती इस गर्ज़ से कि कहीं उनकी खूबसूरती कम ना हो जाए वो इस रिवायत को पढ़ें कि शबे मेराज में हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम ने कुछ औरतों को देखा कि जिनके पिस्तान ज़्यादा बड़े हैं उन्हें सांप डस रहे हैं तो जिब्रीले अमीन फरमाते हैं कि ये वो औरतें हैं जो बच्चों को अपना दूध नहीं पिलाती थीं_*

*📕 शराहुस्सुदूर,सफह 153*

*_बच्चे की दूध की हर चुस्की के बदले मां को एक ग़ुलाम आज़ाद करने का सवाब मिलता है और जब वो उसका दूध छुड़ाती है तो ग़ैब से निदा आती है कि ऐ औरत तेरे आज तक के सारे गुनाह माफ हुए अब तू नए सिरे से नेकियां कर_*

*📕 ग़ुनियतुत तालिबीन,सफह 113*

*_मां का दूध बच्चे के लिए हर चीज़ से ज़्यादा फायदेमंद है तबीबो का यही कहना है कि जो बच्चा मां के दूध पर पला है वो बहुत कम बीमार पड़ेगा और जो मां के दूध से महरूम रहेगा वो कमज़ोर और तरह  तरह की बिमारियों में ज़िन्दगी भर मुब्तेला रहेगा,बच्चे की परवरिश पर मां का हक़ है तो बग़ैर उसकी मर्ज़ी के कोई उसका बच्चा नहीं पाल सकता हां अगर उसको दूध वगैरह नहीं उतरता तो ऐसी सूरत में दाया वगैरह को दिया जाए या डब्बे का दूध इस्तेमाल करायें_* 

*📕 तफसीरे नईमी,जिल्द 2,सफह 472*

*_बच्चे को 2 साल से ज़्यादा दूध पिलाना मना है और ढाई साल से ज़्यादा पिलाना हराम हां 2 साल से पहले अगर दूध छुड़ाना चाहें तो छुड़ा सकता है इजाज़त है_*

*📕 बहारे शरीयत,हिस्सा 7,सफह 29*

*_एक बहुत ज़रूरी बात बेशक अपनी औलाद को नेक तालीम देना हर मां बाप पर फर्ज़ है लेकिन अगर मां बाप ये गलती कर बैठे हैं कि उन्होंने अपने बच्चों को दीनी तालीम नहीं दी तो बेशक वो कुसूर वार हैं  मगर उतना नहीं जितना कि आजकल की औलाद उन्हें ठहराती है मसलन कोई भी बात पड़ी तो फौरन कह दिया कि मेरे मां बाप ने हमें पढ़ाया ही नहीं या सिर्फ यही सोच ही लिया कि गलती हमारी थोड़ी ही थी,तो उनकी गलती उसी वक़्त मानी जाती जबकि औलाद बालिग़ होने से पहले मर जाती और जब बालिग़ हो गयी तो दुनिया भर की सारी खुराफात तो खुद सीख गया_*

*_गुटखा खाना सिगरेट पीना क्या मां बाप ने सिखाया था_*

*_लौंडिया बाजी करना क्या मां बाप ने सिखाया था_*

*_अय्याशी करना भी क्या मां बाप ने सिखाया था_,*

*_कुछ शराब पीते हैं क्या मां बाप ने सिखाया था_*

*_नाचना गाना हुल्लड़ बाज़ी करना क्या मां बाप ने सिखाया था_*

*_झूट मक्कारी आवारा गर्दी करना क्या मां बाप ने सिखाया था_*

*_नहीं ना फिर भी सीख गया,तो जब ये सब खुद से सीख लिया तो इल्मे दीन क्यों नहीं सीखा ये सिर्फ एक बहाना है और बहाने से इंसान को फुसलाया जा सकता है फरिश्तों को नहीं,लिहाज़ा अगर फरिश्तों की मार से बचना चाहते हैं तो मरने से पहले हर वो चीज़ जिसकी एक इंसान को ज़रूरत पड़ती है उतना इल्म हासिल कर लें क्योंकि ज़रूरत का इल्म हासिल करना हर मुसलमान पर फर्ज़ है_*
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                  *_जोइन_*

*_मदर्सा हनफिया वारिसुल उलूम_*
        *_9628204387_*

*_मुजीबुर्रहमान क़ादरी_*

               *_खादिम_*


*_दारूल उलूम हनफिया वारिसुल उलूम क़स्बा बेलहरा ज़िला बाराबंकी यू़.पी_*

MADARSA HUZOOR SIBRAIN RAZA WHATS APP GROUP SAWAL O JAWAB

                                                         ⬅ سوال=01➖                فرض کی پہلی دو رکعتوں میں اور نفل و وتر کی کسی بھی سو...